Geeta se Shree Krushn ke 555 Jivan Sutra - 118 books and stories free download online pdf in Hindi

गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 118


जीवन सूत्र 286 कर्म क्षेत्र में उतरने से पूर्व सभी दुविधाओं का निवारण आवश्यक


गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है: -

तस्मादज्ञानसंभूतं हृत्स्थं ज्ञानासिनात्मनः।

छित्त्वैनं संशयं योगमातिष्ठोत्तिष्ठ भारत।4/42।

इसका अर्थ है, हे भरतवंशी अर्जुन ! हृदयमें स्थित इस अज्ञान से उत्पन्न अपने संशय को ज्ञान खड्ग से काटकर योग में स्थित हो जाओ और युद्ध के लिए खड़े हो जाओ।


जीवन सूत्र 287 अतिरेक चेष्टा का त्याग आवश्यक


यह श्लोक ज्ञान कर्म संन्यास योग नामक चतुर्थ अध्याय का समापन श्लोक है। इस अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने ज्ञान के महत्व और कर्मों से संन्यास अर्थात कर्मों के संतुलित होने और अतिरेक चेष्टाओं के त्याग का संदेश दिया है।

भगवान श्री कृष्ण ने इस श्लोक में ज्ञान के महत्व पर प्रकाश डाला है। संशय अज्ञान से उत्पन्न होता है और इसे ज्ञान की तलवार से ही काटा जा सकता है। ऐसा करने पर ही योग की अवस्था उत्पन्न होती है और इस समत्व की अवस्था में मनुष्य आनंदपूर्वक कर्मों का संचालन करता जाता है। गीता का तीसरा अध्याय कर्मयोग है तो चौथा अध्याय ज्ञान कर्म संन्यास योग के रूप में तत्वज्ञान प्राप्त करने की प्रेरणा है और कर्मों को करते हुए तथा उसमें संतुलन स्थापित करते हुए आत्म ज्ञान प्राप्ति का निर्देश है।कुरुक्षेत्र की आसन्न स्थिति के अनुसार अर्जुन के मन में व्याप्त संदेह का निवारण आवश्यक था और उनका अज्ञानताजन्य संदेह भगवान कृष्ण के उपदेशों से एक-एक करके दूर हो रहा था।


जीवन सूत्र 288 ज्ञान और कर्म एक दूसरे के विरोधी नहीं

अब अर्जुन के मन में यह यह प्रश्न उठा कि ज्ञान और कर्म में से कौन सा एक मार्ग श्रेयस्कर है। इसका समाधान भगवान श्रीकृष्ण पांचवे अध्याय के वर्णित श्लोकों में करते हैं।अर्जुन यह तो समझ रहे थे कि आज के आसन्न युद्ध में उन्हें प्रवृत्त होने या निवृत्त होने के संबंध में किसी एक निर्णय पर पहुंचना होगा।अपनी ओर से तो उन्होंने हथियार रख दिए थे।


जीवन सूत्र 289 श्रेष्ठ परामर्शदाता विचार नहीं थोपता


भगवान कृष्ण सीधे आदेश देने के स्थान पर उनके मन के संदेहों का निवारण करना चाहते थे,क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि अर्जुन जैसे द्वापर युग के एक महान योद्धा किसी संशय और भ्रम को लेकर मैदान में उतरें और उनका यह भ्रम पांडवों की जीत की संभावना को धूमिल न कर दे।भगवान कृष्ण अर्जुन पर कोई बात थोपना नहीं चाहते थे इसलिए अर्जुन बीच-बीच में प्रश्न करते जा रहे थे और भगवान श्री कृष्ण एक गुरु की भूमिका निभाते हुए उनका उत्तर दे रहे थे।


जीवन सूत्र 290 एक ही सिद्धांत या विचार हर स्थिति में प्रासंगिक नहीं


वास्तव में जीवन अनेक विचारों और सिद्धांतों का परिस्थितियों के अनुसार प्रकटीकरण,संतुलन और अनुप्रयोग है।हम एक समय में प्रमुख रूप से एक ही विचार को कार्यान्वित कर रहे होते हैं लेकिन उसकी पृष्ठभूमि में अनेक तर्क,मत और अनुभव समाहित होते हैं।श्री कृष्ण अर्जुन के प्रश्नों के उत्तरों के माध्यम से हर उस संभावित कठिन परिस्थिति और उसका सामना करने की युक्तियों का क्रमशः ज्ञान करा रहे थे।


(मानव सभ्यता का इतिहास सृष्टि के उद्भव से ही प्रारंभ होता है,भले ही शुरू में उसे लिपिबद्ध ना किया गया हो।महर्षि वेदव्यास रचित श्रीमद्भागवत,महाभारत आदि अनेक ग्रंथों तथा अन्य लेखकों के उपलब्ध ग्रंथ उच्च कोटि का साहित्यग्रंथ होने के साथ-साथ भारत के इतिहास की प्रारंभिक घटनाओं को समझने में भी सहायक हैं।श्रीमद्भागवतगीता भगवान श्री कृष्ण द्वारा वीर अर्जुन को महाभारत के युद्ध के पूर्व कुरुक्षेत्र के मैदान में दी गई वह अद्भुत दृष्टि है, जिसने जीवन पथ पर अर्जुन के मन में उठने वाले प्रश्नों और शंकाओं का स्थाई निवारण कर दिया।इस स्तंभ में कथा,संवाद,आलेख आदि विधियों से श्रीमद्भागवत गीता के उन्हीं श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों को मार्गदर्शन व प्रेरणा के रूप में लिया गया है।भगवान श्री कृष्ण की प्रेरक वाणी किसी भी व्याख्या और विवेचना से परे स्वयंसिद्ध और स्वत: स्पष्ट है। श्री कृष्ण की वाणी केवल युद्ध क्षेत्र में ही नहीं बल्कि आज के समय में भी मनुष्यों के सम्मुख उठने वाले विभिन्न प्रश्नों, जिज्ञासाओं, दुविधाओं और भ्रमों का निराकरण करने में सक्षम है।यह धारावाहिक उनकी प्रेरक वाणी से वर्तमान समय में जीवन सूत्र ग्रहण करने और सीखने का एक भावपूर्ण लेखकीय प्रयत्नमात्र है,जो सुधि पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है।)

(अपने आराध्य श्री कृष्ण से संबंधित द्वापरयुगीन घटनाओं व श्रीमद्भागवत गीता के श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों व संबंधित दार्शनिक मतों पर लेखक की कल्पना और भक्तिभावों से परिपूर्ण कथात्मक प्रस्तुति)



डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय