Mahantam Ganitagya Shrinivas Ramanujan - 19 books and stories free download online pdf in Hindi

महानतम गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन् - भाग 19

[ इंग्लैंड में पदार्पण, कैंब्रिज में कार्य आरंभ ]

बंदरगाह की गोदी पर रामानुजन को लेने नेविल अपने बड़े भाई के साथ कार से आए थे। उन्हें वह पहले लंदन के साउथ-केनसिंग्टन भाग में 21 क्रोमवैल रोड, जहाँ भारत से पहुँचने‌ वाले विद्यार्थियों का स्वागत केंद्र था, गए। वहाँ पर ‘नेशनल इंडिया एसोसिएशन’ का कार्यालय था। लंदन होकर इंग्लैंड पहुँचने वाले विद्यार्थियों के लिए ज्योर्जियन शैली के इस भवन में कई कमरे थे। रामानुजन को वहाँ लाने का ध्येय उन्हें भारतीय वातावरण में ले जाकर उनके आगमन को सहज बनाना था। परंतु पूर्व परिचित नेविल के साथ रहने से रामानुजन को इसका कोई अंतर नहीं पड़ा। वह चार दिन वहाँ रुके। मद्रास के निकट कुडलोर से आए ए. एस. रामलिंगम से वहाँ उनकी भेंट हुई। तेईस वर्षीय रामलिंगम इंजीनियर थे और लगभग चार वर्षों से इंग्लैंड में ही रह रहे थे।
रामानुजन ने यहाँ पचास लाख की जनसंख्या वाले बड़े नगर लंदन को पहली बार देखा। यह देखकर भी उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ कि अंग्रेज छोटे काम भी करते हैं। आरंभ में उन्हें व्यक्तियों को पहचानने में भी दिक्कत आती थी। अंग्रेज लोग उन्हें कुछ भिन्न प्रकार से—रहमानुजान—कहकर पुकारते थे।
18 अप्रैल को रामानुजन नेविल के साथ कैंब्रिज चले गए। चेस्टरटाउन रोड पर स्थित नेविल के घर पर ही उनके ठहरने की व्यवस्था की गई। नेविल और उनकी पत्नी एलिस दो माह पूर्व ही इस घर में आए थे। मकान तीन मंजिला था और उसमें कई कमरे थे। रामानुजन वहीं एक भाग में अलग अपनी तरह से रहने लगे। वहाँ का एकांतवास उन्हें अच्छा लगा। थोड़ी दूरी पर कैम नदी बहती थी। लगभग छह सप्ताह वहाँ रुकने के पश्चात् वह कॉलेज के व्हेवैल कोर्ट के स्टेरकेस पी के कमरों में चले गए और बाद में वहीं रहे। नेविल एवं उनकी पत्नी से दूर जाने की खुशी उन्हें नहीं थी। वे दोनों (दंपती) रामानुजन के प्रति बहुत संवेदनशील थे। वहाँ से चले आने के पश्चात् भी नेविल उनका पूरा ध्यान रखते थे और बीच-बीच में उनसे मिलते रहते थे।
कैंब्रिज पहुँचने पर शीघ्र ही रामानुजन की भेंट प्रो. हार्डी और लिटिलवुड से हुई। वहाँ पहुँचते ही वे गणित में जुट गए। जून में भेजे अपने पत्र में उन्होंने लिखा था— “मिस्टर हार्डी, मिस्टर नेविल और अन्य लोग यहाँ पर सरल, ध्यान रखने वाले और उपकारी व्यक्ति हैं।”
रामानुजन कैंब्रिज किसी कक्षा के विद्यार्थी के रूप में नहीं आए थे। फिर भी रामानुजन ने प्रो. हार्डी तथा कुछ अन्य प्राध्यापकों की कक्षाओं में जाना आरंभ कर दिया। वहाँ वह अन्य स्थानों से आने वाले अन्य गणितज्ञों से भी मिले और उनसे शोध की अपनी समस्याओं पर चर्चा करने का लाभ प्राप्त किया।


[ विभिन्न गणितज्ञों के प्रारंभिक विचार ]


आर्थर बेरी की कक्षा में
किंग्स कॉलेज के गणित के प्राध्यापक आर्थर बेरी एक दिन प्रातः ‘इलिप्टिक इंटीग्रल्स’ पर व्याख्यान दे रहे थे। रामानुजन को आए तब कुछ ही दिन हुए थे। वे उनके व्याख्यान में उपस्थित थे। उधर बेरी रामानुजन के कार्य से परिचित नहीं थे। वे श्यामपट्ट पर कुछ सूत्रों को लिखकर विषय समझा रहे थे। इसी बीच उन्होंने रामानुजन की ओर देखा और पूछा, “क्या आपकी समझ में आ रहा है?”
रामानुजन ने गरदन हिलाकर “हाँ” का संकेत दिया।
बेरी ने पुनः पूछा, “क्या आप स्वयं कुछ आगे बताएँगे?”
रामानुजन उठकर श्यामपट्ट पर पहुँचे। उन्होंने खडिया ली और ‘इलिप्टिक इंटीग्रल्स’ पर कुछ वैसे सूत्र लिख दिए जो श्री बेरी ने अपने व्याख्यान में नहीं बताए थे। तब सब लोगों के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा, जब काफी सोचने के पश्चात् अपने व्याख्यान के समापन के समय श्री बेरी ने बाद में बताया कि वे सूत्र उन्होंने पहले कभी नहीं देखे थे, अर्थात् वे ‘इलिप्टिक इंटीग्रल्स’ पर नए सूत्र थे।

जॉर्ज पोलियो और रामानुजन की नोट बुक.
हंगरी के प्रसिद्ध गणितज्ञ ज्योर्ज पोलिया उन्हीं दिनों कैंब्रिज आए हुए थे। प्रो. हार्डी, लिटिलवुड एवं पोलिया की पुस्तक ‘इनइक्वेलिटीज’ आज भी अपने क्षेत्र में अद्वितीय पुस्तक है। पोलिया ने रामानुजन की नोट-बुक्स को पढ़ा। वह लगभग घबराहट स्थिति में उन नोट-बुक्स को प्रो. हार्डी को वापस करते हुए बोले, ‘‘नहीं, मैं इनको नहीं पढ़ना चाहता। यदि एक बार मैं रामानुजन की इन जादुई आकर्षण वाली ‘थ्योरमस’ के जाल में फँस गया तो बाकी सारा जीवन इन्हीं को सिद्ध करने में निकल जाएगा और मैं अपनी ओर से नया कुछ नहीं खोज पाऊँगा।”
मार्क काक (Mark Kac) के अनुसार, रामानुजन केवल ‘जीनियस’ ही नहीं थे, ‘मैजिकल जीनियस’ थे। साधारण जीनियस और मैजिकल जीनियस के अंतर को भी उन्होंने इस प्रकार समझाया है कि एक साधारण जीनियस वह है, जिसके बारे में आप कह सकें कि यदि मैं सौ गुना बुद्धिमान होता तो अवश्य वह सोच लेता, जो उसने सोचा है। परंतु एक मैजिकल जीनियस वह है, जिसके कार्य को देखकर आप एकदम विस्मित रह जाएँ, समझ ही न पाएँ कि वह कहाँ से उसको सूझा और उसने कैसे कर दिया।
प्रसिद्ध गणितज्ञ एवं दार्शनिक बर्ट्रेड रसेल ने लिखा है— “मैंने हार्डी एवं लिटिलवुड को [ रामानुजन को पाकर ] एक जंगली उद्वेग की दशा में पाया, क्योंकि उनका विश्वास था कि उन्होंने मद्रास में 20 पाउंड प्रतिवर्ष पर जीवनयापन कर रहे एक हिंदू क्लर्क में दूसरे न्यूटन को खोज निकाला है।”