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व्यवस्था

’’ उफ््फ कितनी व्यस्तता ! घर के सारे काम बाकी हैं और मैं अभी से थक गयी। ’’ घर में प्रवेश करते हुए अनीता मन ही मन बुदबुदाते हुए जीना चढ़ रही थी।

दोनों बच्चे उसके साथ ही थे। छोटी बेटी का बैग उसने स्वंय पकड़ रखा था। बेटा अपना बैग अपनी पीठ पर रखे हुए उसके साथ ही जीना चढ़ रहा था।

कमरे में पहुँच कर अनीता धम्म से कुर्सी पर बैठ गयी। दोनों बच्चे अपना बैग स्टडी रूम में रख कर अनीता के पास आकर बैठ गये। खेलने- कूदने, चहकने -बोलने वाले बच्चे इस समय चुपचाप बैठे एक दूसरे का मुँह देख रहे थे। कुछ देर के लिए कमरे में पसरी खामोशी को तोड़ते हुए अनीता ने कहा, ’’ समझ गये न? जैसा मैडम ने कहा है, वैसी ही पढ़ाई करो। ’’ बच्चे चुपचाप माँ कर बात सुन रहे थे।

’’ विप्लव! तुम्हारी काॅपी में स्पेलिंग की कितनी ज्यादा ग़लतियाँ थीं। सब कुछ सही लिखने के बाद भी तुम्हारे नम्बर कितने कम हैं। सिर्फ स्पेलिंग की ग़लतियों की वजह से कम नम्बर हैं तुम्हारे साइंस में? और तो और दो सब्जेक्ट में तो तुम मात्र एक-एक नम्बर से फेल ही हो गये हो। ’’ उसने विप्लव को लगभग डाँटते हुए कहा।

’’ जिस प्रकार मैं बताती हूँ उस प्रकार तुम क्यों नही पढते? ’’ अपनी बात पूरी करते हुए अनीता ने बेटे से कहा।

उसकी बेटी वैभवी सभी विषयों में उत्तीर्ण थी। क्लास में इस बार उसे इक्सीवीं रैंक मिली थी। वैभवी के इस स्तर से यद्यपि अनीता कुछ खास प्रसन्न नही थी। फिर भी उससे कुछ नही कहा। विप्लव का परीक्षा परिणाम देख कर उसका मन खिन्न जो था। ग्यारह वर्ष का विप्लव और नौ वर्ष की वैभवी दो बच्चे हैं अनीता के। आज शिक्षक-अभिभावक मीटिंग थी। जिसमें बच्चों का अर्द्धवार्षिक परीक्षा परिणाम भी दिखाया जाना था। अनीता वहीं से आ रही है।

इस समय उसे वहाँ अपने पति गजेन्द्र की कमी महसूस हो रही थी। किन्तु ऐसे अवसरों पर गजेन्द्र कम ही उपलब्ध रहते हैं। बच्चों की शिक्षा से सम्बन्धित सभी कार्य व मुिश्कलंे अपने स्तर से वह ही हल करती है। उसके पति गजेन्द्र सरकारी महकमें में अच्छे पद पर कार्यरत् हैं। बच्चे शहर के नामचीन अंग्रेजी स्कूल में पढ़ते हैं। अनीता भी उच्च शिक्षित व समझदार महिला है। वह गृहणी है। गजेन्द्र कार्यालय चले जाते हैं।

कार्यालय जाने से पूर्व वे बच्चों को उनके स्कूल छोड़ कर आते हैं। बच्चों को स्कूल से लाने का उत्तरदायित्व अनीता पर रहता है। बच्चों को स्कूल से लाना, उनकी ड्रेस बदलना, हाथ-मुँह धुलाकर भोजन कराकर कुछ देर उन्हें आराम के लिए कह कर स्वंय भी दोपहर को थोड़ी देर आराम कर लेती है। कभी घर में कोई काम अचानक आ जाता है तो उसे दोपहर को आराम करने का समय भी नही मिलता है। शाम को चार-पाँच बजे के मध्य बच्चों उठा कर होमवर्क कराना, पढाना तत्पश्चात् वह रसोई में जाती है। इस बीच बच्चे कुछ देर टी0 वी0 पर अपनी रूचि का कोई कार्यक्रम देख लेते हैं। या कभी-कभी सामने पार्क में खेल रहे बच्चों के साथ खेलने चले जाते हैं।

बच्चे छोटे हैं अतः वह उन्हें ध्यान से खेलने के लिए समझाकर कर भेजती है। उस समय भी वह बालकनी से उन पर दृष्टि बनाये रखती है कि बच्चे साफ-सुथरी जगह पर ही खेले जिसमें उन्हें गिरने या चोट लगने की संभावना न हो। शाम को गजेन्द्र आ जाते हैं। उनके लिए चाय व शाम का भोजन बनाने की तैयारियों में वह व्यस्त हो जाती है। उस समय गजेन्द्र बच्चों की देखभाल करते हैं। तथा उन्हें पढ़ाते भी हैं।

बच्चों की देखभाल करने व अपनी घर गृहस्थी को सुचारू रूप से चलाने में अनीता व गजेन्द्र दोनों ही व्यस्त रहते हैं। उनकी दुनिया बच्चों के इर्दगिर्द सिमटती जा रही है। उनकी काॅपियाँ, किताबें, स्कूल डायरी, हामवर्क, रिजल्ट, ड्रेस-जूते, फीस आदि-आदि यही तो हैं उनका संसार.....उनकी खुशियाँ।

आज भी बच्चों को समझा-बुझा कर, उन्हें नाश्ता कराकर अनीता ने थोड़ी देर टी0वी0 देखने दिया है। बच्चे अपना मनपसंद कार्टून चैनल खोलकर टाॅम और जेरी देख रहे हैं। कार्यक्रम देखते-देखते वे थोड़ी-थोड़ी देर में सहसा हँस पड़ते हैं। विप्लव तो अब तक उदास बैठा था। अनीता ने उसे कम नम्बर पाने पर ठीक से मन लगा कर पढ़ने के लिए कहा था। तब से वह अनमना-सा था।

पैरेन्टस-टीचर मीटिगं से अब तक फैली उदासी विप्लव के चेहरे से शनै-शनै गायब हो रही है। कभी -कभी उन्मुक्त हो कर वह हँस रहा दे रहा है। विप्लव को हँसता देख वैभवी भी खूब प्रसन्न हो रही है। वरना विप्लव को डाँट पड़ने से वह भी अब तक उदास थी। यद्यपि वैभवी को अधिक डाँट नही पड़ी थी। बच्चों को प्रसन्न देख अनीता को अच्छा लगा। किन्तु उनकी पढ़ाई की चिन्ता भी उसे होने लगी। कहीं अधिक देर तक बच्चे टी0वी देखकर समय बर्बाद न करें। अतः वह टी0 वी के सामने से उन्हें शीघ्र हटाना चाह रही थी।

वह जानती है कि आजकल छोटे बच्चों की शिक्षा भी व्यवस्थित व कठिन है। ऊपर से पैरेन्ट मीटिगं में जब भी काॅपियां दिखाई जाती हैं, उस पर और दबाव आ जाता है। पूरे वर्ष समय कठिन परिश्रम से वह बच्चों को पढ़ाती है, फिर भी न जाने कैसे उनके नम्बर कम आ जाते हैं? गे्रडिंग में भी पीछे हो जाते हैं।

नर्सरी, के0 जी0 से ही बच्चों का अधिकांश समय पढ़ने में व्यतीत हो रहा है। बच्चों के साथ उसे भी लगना पड़ता है। वह भी अपनी शाम बच्चों को पढ़नें में व्यतीत करती है। जब से बच्चे स्कूल जाने लगे हैं वह शाम को बाहर आवश्यक काम होने पर ही निकलती है। उसकी सामाजिक गतिविधियाँ कम होती जा रही हैं। नाते-रिश्तेदारों, मित्रो-परिचितो से मिलने का समय नही मिल पाता।

पूरा समय बच्चों की शिक्षा पर देने के उपरान्त भी आज स्कूल में कापियाँ दिखाई गयीं जिनमें विप्लव के आशानुरूप नम्बर नही आये हैं। अनीता ने बच्चों कम नम्बर आने का दबाव अपने ऊपर महसूस किया। स्कूल से आने के बाद से ही वह सोच रही है कि विप्लव व वैभवी को और अधिक परिश्रम से पढ़येगी। और अधिक समय उनकी शिक्षा पर देगी।

शाम को गजेन्द्र कार्यालय से घर आये। चाय पीने के पश्चात् सबसे पहले बच्चों को बुलाकर आज उन्होंने पैरेन्ट्स-टीचर मीटिगं के बारे में पूछा। वैभवी ने कहा, ’’ ठीक था पापा बाकी मम्मा से पूछियेगा। टीचर ने सब कुछ मम्मा को बताया दिया है। ’’ अच्छा-अच्छा ’’ मुस्कराते हुए गजेन्द्र ने बच्चों से कहा। दोनों बच्चे स्टडी रूम में चले गये। चाय पीते हुए अनीता ने गजेन्द्र से कहा, ’’ वैभवी के नम्बर तो ठीक हैं। किन्तु इस बार विप्लव के कम नम्बर आये हैं। कहते हुए उसने डायरी में नोट कर लाये विषयवार नम्बरों के पृष्ठ को गजेन्द्र के समक्ष खोल दिया। गजेन्द्र ने एक सरसरी दृष्टि उस पेज पर डाली तथा बोला, ’’ विप्लव तो पहले अच्छे नम्बरों से पास होता था। इस बार न जाने क्या हो गया उसे?

’’ अब उस पर विशेष ध्यान देना पड़ेगा। ’’ कुछ क्षण रूक कर उसने पुनः कहा। गजेन्द्र की बात सुन कर अनीता सोच में पड़ गयी कि विपल्व अभी थर्ड में और वैभवी फस्र्ट में है। उनकी पढ़ाई के लिए हम सब अभी से इतने चिन्तित हो रहे हैं। वह अपने बचपन के दिनों व उस समय की शिक्षा व्यवस्था को स्मरण करते हुए गजेन्द्र से बताने लगी कि ’’ बचपन में वह सरकारी विद्यालय में पढ़ती थी। विद्यालय घर से एक-डेढ़ कि0मी0 दूर था अतः वह अपने भाई बहनों व उस विद्यालय में पढ़ने वाले पास पड़ोस के अन्य बच्चों के साथ विद्यालय पैदल आया-जाया करती थी। तब अधिकांश विद्यालयों में शिक्षा का माध्यम हिन्दी हुआ करता था जिसमें पढ़ना व समझना कठिन नही होता था। अंग्रेजी एक विषय के रूप में पढाई जाती थी। ’’

अनीता की बातों का समर्थन करते हुए गजेन्द्र ने स्वीकारोक्ति में सिर हिलाया।

’’ हम छः भाई बहन थे। कभी भी ऐसा नही लगा कि पापा के ऊपर हमारी फीस व किताब-कापियों के खर्च का बोझ है। ’’ अनीता आज अपनी बात कहने को तत्पर थी।

’’ हाँ, हमारे दो बच्चे हैं। मेरी सैलरी का अच्छा-खासा पैसा उनकी शिक्षा पर व्यय हो जाता है। जब कि बच्चे अभी प्राइमरी कक्षाओं में हैं। ’’ गजेन्द्र ने कहा।

अनीता बचपन की स्मृतियों में खिंची जा रही थी, ’’ पढ़ने के पश्चात् हमें खेलने के लिए भी पर्याप्त समय मिल जाता था। शाम को प्रतिदिन घर के सामने पड़े खाली मैदान में हम सब खेलने जाते थे। तब हमारा शाम का समय खुले असमान नीचे खेलों में व्यतीत होता था। ’’ बचपन के दिनों का स्मरण करते हुए अनीता ने कहा।

’’ आज सब कुछ कितना परिवर्तित हो गया है। पढ़ाई, होमवर्क इत्यादि करने में बच्चों का शाम का समय व्यतीत हो जाता है। मनोरंजन के लिए बच्चे टी0वी0 देखते हैं। फिर भी नम्बर कम आते हैं। ’’ गजेन्द्र ने कहा।

’’ हाँ! शारीरिक श्रम वाले खेलों का भी अभाव होता जा रहा है। ’’ अनीता ने कहा।

’’ इस समय के बच्चे तब के बच्चों से प्रखर बुद्धि के हैं। फिर भी कम नम्बर का, रैंकिंग में नीचे आने व फेल होने का भय बना रहता है। अनीता ने चिन्ता व्यक्त करते हुए अपनी बात पूरी की।

’’ मम्मी, मेरी हेल्प कर दीजिए। ये सम नही कर पा रही हूँ। ’’ वैभवी ने स्टडीरूम से ही अनीता को बुलाया।

अनीता तीव्र गति से बच्चों के कक्ष की ओर बढ़ गयी। अनीता जब भी बच्चांे की पुस्तकें को देखती तो उसे ऐसा आभास होता कि बच्चो की उम्र और उनके ज्ञान के विकास के अनुपात में उनकी पढा़ई कुछ कठिन है। उन्हें विद्यालयी कोर्स के साथ चलने के लिए उन पर और समय व ध्यान देने की आवश्यकता है। बच्चांे को भी पढ़ने के लिए और अधिक समय निकालना पड़ेगा।

वह बच्चों को पढ़ती रही। रात के आठ बजने वाले थे। बच्चे भी थके व उनींदें से लग रहे थे। अभी भोजन भी नही किया है। कहीं ऐसा न हो कि ये बिना भोजन किए ही सोने लगें। अतः वह बच्चों से कल का स्कूल बैग ठीक करने के लिए कह स्वंय रसोई में जाकर उनके लिए भोजन निकालने लगी। बच्चे यदि समय पर नही सोयेगें तो प्रातः उठनें में वह आनाकानी करेंगे। ठीक सात बजे उन्हें स्कूल के गेट के भीतर हो जाना होता है। बच्चों को भोजने कराने के पश्चात् उन्हें सुलाकर वह वापस रसोई में आ गयी। बच्चे लेटते ही निद्रामग्न हो गये। वे प्रातः बहुत शीघ्र उठते हैं। दिन में भी उन्हें समय नही मिल पाता कि वे थोड़ी देर की नींद ले सकंे।

एक निश्चित दिनचर्या में जीवन बँधता जा रहा है। प्रातः शीघ्र उठ कर बच्चों के लिए नाश्ता तैयार करना, उन्हें उठाकर स्कूल के लिए तैयार करना, उनका टिफिन रखना, इतना सब कुड करते-करते स्कूल की वैन आ जाती है। इधर दोपहर तक घर के कार्यों को करते-करते बच्चे स्कूल से आ जाते हैं। थोड़ी देर के आराम के पश्चात् बच्चों की पढ़ाई, होमवर्क इत्यादि में शेष समय व्यतीत हो जाता है। बच्चों के साथ खेलने या उन्हें बाहर ले जाकर घुमाने का समय बमुश्किल मिल पाता है।

जीवन की व्यस्तताओं, आपाधापी व उनमें ही खुशियाँ तलाश लेने के साथ दिन व्यतीत होते जा रहे हैं। देखते-देखते विप्लव सातवीं तथा वैभवी पाँचवी कक्षा में पहुँच गयी। हमारे लिए महत्वपूर्ण बात यह है कि कभी अच्छे तो कभी कम नम्बरों से बच्चे उत्तीर्ण होते जा रहे हैं। बच्चों पर पढ़ाई के लिए और समय देने का दबाव बढ़ता जा रहा है। स्पष्ट-सी बात है कि कक्षायें बड़ी होती जा रही हैं, उनके पाठ्यक्रम में पुस्तकें और विषय बढ़ते जा रहे हैं। बच्चों को पढ़ने के लिए और अधिक समय निकालना ही पड़ेगा।

विप्लव का आउटडोर खेल सिमटता जा रहा है। स्कूल में पढ़ाई के घंटे बढ़ गये हैं। अतः उसकी कक्षायें देर से छूटती हंै। पहले की अपेक्षा कुछ विलम्ब से घर आने लगा है। होमवर्क, सेल्फस्टडी करने में शाम का अधिकांश समय व्यतीत हो जाता है। कार्यालय से आकर गजेन्द्र भी कुछ देर उन्हें बैठाकर पढ़ाते हैं। जब आवश्यकता होती है उन्हें मैं पढ़नें में सहायता करती हूँ। इतना समय देने के पश्चात् भी हमें लगता कि हमारी समझ व पकड़ से आज की कक्षा सात की शिक्षा भी फिसलती जा रही है। पाठ्यक्रम परिवर्तित हो चुके हैं। कुछ-कुछ कठिन भी। हमारा पढ़ाना ही पर्याप्त नही है।

अतः मैंने व गजेन्द्र ने यह निश्चय किया कि विप्लव के लिए हम एक शिक्षक रखेगें । ताकि उसकी शिक्षा की नींव सुदृढ़ रहे। आगे की शिक्षा भी और भी कठिन होने वाली है। अतः हमने एक शिक्षक रखा जो गणित, विज्ञान जैसे विषयों को पढ़ा सके और पढा़ई पर विप्लव की पकड़ बनी रहे।

आज प्रथम युनिट टेस्ट की कापियाँ दिखाई जाने वाली हैं। गजेन्द्र ने आज कार्यालय से प्रथम आधे दिन का अवकाश ले लिया है। वर्ष के अधिकांश पैरेन्ट्स-टीचर मीटिंग में मैं अकेले ही बच्चों के साथ जाती हूँ। बच्चे प्रसन्न हैं कि पापा भी उनके साथ मीटिंग में चल रह हैं। गजेन्द्र गाड़ी चला रहे हैं। वैभवी उनसे बातें किए जा रही है। गजेन्द्र भी अच्छे मूड में हैं। उसकी बातों का हँस-हँस कर उत्तर दे रहे हैं।

मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा है विप्लव कुछ चुप-चुप सा है। वह गजेन्द्र की बातों का सिर्फ हाँ....हूँ में उत्तर दे रहा है। खोया-खोया सा है। बच्चो की छोटी-छोटी बातों पर कुछ कहना या टोकना ठीक नही है यह सोच कर मैं चुप रही। मैं निश्चिन्त हूँ कि इस बार विप्लव के नम्बर ठीक आयेंगे क्यों कि घर में ट्यूटर से बहुत ही मनोयोग से वह पढ़ रहा है।

आज विद्यालय के गेट पर बहुत अधिक भीड़ थी। दूर-दूर तक गाड़ियाँ खड़ी थीं। आसपास के घरों की दीवारों के किनारे-किनारे तो गाड़ियां खड़ी ही थीं। उतावलेपन में कुछ लोगों ने घरों के गेट के सामने भी गाड़ी पार्क कर दी थी। यही होता है विद्यालय में जब भी अभिभावक-अध्यापक मीटिंग होती है। गजेन्द्र ने भी किसी प्रकार गाड़ी पार्क करने के लिए सुरक्षित स्थान ढूँढा और गाड़ी पार्क की

सबसे पहले हमें वैभवी की कक्षा में जाना था। क्यों कि उसकी क्लास मीटिंग का समय विप्लव से पहले था। वैभवी को ठीक-ठाक नम्बर मिले थे। प्रत्येक विषय में वह उत्तीर्ण थी। गे्रडिंग में बहुत से बच्चों से वह पीछे थी, फिर भी मुझे व गजेन्द्र को यह सोच कर संतोष हुआ कि वैभवी ने अच्छा प्रर्दशन किया है। अब हमें विप्लव की क्लास में जाना था। वहाँ भी कुछ मिनटों में विप्लव का अनुक्रमांक आ गया। उसकी काॅपियाँ देखते ही मेरे हृदय में एक टीस-सी उत्पन्न हो रही थी। मैंने गजेन्द्र कर ओर देखा तो उनके चेहरे पर खामोशी पसरी थी। कारण स्पष्ट था कि विप्लव के नम्बर ठीक नही थे। विशेषकर गणित में जिसके लिए हमने ट्यूटर रखा था।

काॅपियां देखने व कक्षाध्याापिका से सख्त निर्देश सुनने के पश्चात् चुपचाप हम सब विप्लव की कक्षा से बाहर निकल आये। जब भी हम अभिभावक-अध्यापक मीटिंग में आते हैं, बच्चों को कोलेज की कैंटिंन में ले जाकर कुछ खिला-पिला देते हैं। इस बार भी ऐसा ही सोच कर आये थे। किन्तु आज मन कुछ कसैला हो रहा था। अब वो उत्साह नही था जो घर से निकलने से पूर्व था। हम वैभवी की प्रसन्नता को कम करना नही चाहते थे। विप्लव ने भी कई विषयों में अच्छा प्रदर्शन किया था। किन्तु गणित व विज्ञान में नम्बर कम होने का कारण समझ से परे था। हम कैंटिन में चल पड़े। बच्चों ने अपनी पसन्द की कुछ चीजें मगंवायी। मैं व गजेन्द्र अनमने से बच्चों के साथ बैठे रहे।

’’ हाय अनीता क्या हाल हैं? ’’हम कैंटिन से बाहर निकल रहे थे कि सहसा पीछे से किसी महिला के स्वर सुन मैं चैक गयी। पलटकर देखा तो वैभवी के साथ पढ़ने वाली सौम्या की माँ थीं। उन्होंने मेरा हाथ पकड़ लिया और हालचाल पूछने लगीं। हम दोनों कुछ देर यूँ ही बातें करते रहे। तत्पश्चात् वो सौम्या को लेकर गेट कर ओर बढ़ गयीं। मैं जानती थी कि सौम्या पढ़ने में कमजोर है। इस बार भी उसके नम्बर कमआये हैं। फिर भी उसकी माँ कितनी प्रसन्न लग रही हैं। कैसे वो प्रसन्न मुद्रा में सौम्या की उंगली थामें चली जा रही हैं।

हम बच्चों को कैंटीन में ले जा कर उनकी पसन्द की स्नैक्स आदि खिलाने के पश्चात् घर आ गये। रास्ते भर गजेन्द्र विप्लव को डाँटने के अन्दाज में पढ़ने का उपदेश देते रहे। विप्लव सिर झुकाये चुपचाप सुनता रहा। मैं चुप रही। विप्लव को इस प्रकार डाँट खाते देख वैभवी भी चुप थी। उदास थी। हम सब घर आये। मैं घर के कायों में लग गयी। गजेन्द्र कार्यालय जाने की तैयारियों में व्यस्त हो गये।

उनका भोजन डायनिंग मेज पर लगाकर मैंने बच्चों की स्टडी रूम में देखा। विप्लव सिर झुकाये मेज पर बैठा कुछ पढ़ने का प्रयत्न कर रहा था। उसका उदास चेहरा देखकर मन द्रवित हो गया। मैने उसे गजेन्द्र के साथ भोजन करने के लिए कहा। ’’ बाद में खा लूँंगा ’’ कह कर उसने मना कर दिया। किसी प्रकार मैंने उसे वहाँ से उठा कर खाने की मेज पर उठाया। वह बैठ गया। मैंने देखा कि गजेन्द्र ने उससे कोई बात नही की। वे चुपचाप खाना खाते रहे। विप्लव भी बिना कुछ बोले खाना खा रहा था। खाने की मेज पर पसरा सन्नाटा मुझे अच्छा नही लग रहा था। अतः मैंने ही बोलना प्रारम्भ किया। ’’ खाना कैसा है? सब्जी में नमक कम तो नही है? ’’ आदि-आदि वही घिसी-पिटी बातें। जिसका जवाब हाँ....हूँ....से अधिक नही मिला।

गजेन्द्र कार्यालय चले गये। बच्चों से मैंने कुछ देर आराम करने के लिए कहा। तत्पश्चात् मैं भी कुछ देर आराम करने अपने कक्ष में आ गयी। आँखें अभी नीेद की आगोश में जा ही रही थीं कि मेरे मोबाइल फोन की घंटी बज उठी। फोन सौम्या की माँ का था। उफ्! अभी एक घंटे भी न हुए थे लेटे हुए..आँखें नींद से बोझिल ही थीं कि सहसा फोन की घंटी के स्वर से नींद उड़ गयी। फोन उठाना ही था।

’’ हाँ, बताइये नीना जी क्या हाल हैं। ’’ उनींदे स्वर में मैंने पूछा।

’’ आपने कुछ सुना मिसेज मेहरोत्रा? ’’ उनके स्वर में आश्चर्य मिश्रित पीड़ा थी।

’’ नही तो! मुझे कुछ नही मालूम। ’’ मैने तत्काल कहा।

’’ अभी सुनने में आया है कि हमारे स्कूल में पढ़ने वाले नवीं के छात्र दिपांशु ने सोसाइट कर लिया है। ’’

’’ क्या...?....कौन दिपांशु? ’’ मेरी नींद उड़ चुकी थी। मैं उठकर बैठ गयी।

’’ अरे....आप ने शायद उसे देखा भी हो। नौवीं कक्षा में पढ़ता था। ’’ उन्हांेने शब्दों पर बल देते हुए कहा।

’’ नही मुझे याद नही आ रहा है, कौन-सा दिपांशु? किन्तु उसे हुआ क्या था? क्यों किया उसने ऐसा? ’’ मैंने कई प्रश्न नीना से कर डाले।

’’ उसके परिवार से परिचित मेरी एक फ्रेंड है उसने अभी-अभी फोन कर के मुझे बताया है। आज पैरेन्ट्स मीटिंग में जो कापियाँ दिखाई गयी थी, उसमें कुछ सब्जेक्ट्स में उसके नम्बर कम आये थे। उसी बात को ले कर उसके पैरेन्ट्न्स ने कुछ कह दिया। सुनने में आया है कि अपने रूम में जाकर उसने......’’ कह कर नीना चुप हो गयी।

उसकी बात सुनकर मैं काँप रही थी। मेरे गले से स्वर नही निकल पा रहे थे।

’’ न जाने क्या होता जा रहा है आजकल की जेनरेशन को? ’’ नीना कहती जा रही थी। मेरे हाथ काँप रहे थे। मोबाइल मेरे हाथों से छूट जायेगा।

’’ नम्बरों...ग्रेडिंग.....पर्सेन्टाईल का कितना प्रेशर है आजकल के बच्चों पर। ’’ कहकर नीना चुप हो गयी। मेरी ओर से कोई उत्तर न पाकर ’’ अच्छा रखती हूँ। फिर बाते करते हैं। ’’ कह कर उन्होंने फोन रख दिया।

मैं तीव्र गति से बच्चों के कक्ष की ओर दौड़ी। धीरे से किवाड़ खोलकर देखा। दोनों अपनी-अपनी बेड पर गहरी निद्रा में सो रहे थे। अपने कक्ष में आकर कुछ देर तक मैं जड़वत् बैठी रही। बहुत प्रयत्न कर अपने को संतुलित कर पायी। तत्पश्चात् मैंने गजेन्द्र को फोन मिलाया। अत्यन्त धीमे स्वर में मैंने उन्हें इस घटना की जानकारी दी। कारण यह कि बच्चे कहीं मेरी बात न सुन लें। मुझे बच्चों को इन सबसे बचाकर रखना था। मेरी बात सुनकर गजेन्द्र भी आवाक् रह गये। मैंने फोन रख दिया। बिस्तर पर लेटे-लेटे मैं इस घटना के बारे में सोचती रही.....व्याकुल रही। यह व्याकुलता तब कुछ कम हुई जब गजेन्द्र शाम को कार्यालय से घर आये।

शाम का नाश्ता करा कर मैंने विप्लव व वैभवी को कुछ देर पार्क में खेलकर आने के लिए कहा। बच्चे चले गये। गजेन्द्र अब तक चुप थे।

’’ आप आज नाहक ही डाँट रहे थे बच्चों को। अब कभी भी पढ़ने के लिए उन पर दबाव बनाने या डाँटने की आवश्यकता नही है। ’’ बातें प्रारम्भ करते हुए मैंने कहा।

’’ हाँ तुम सही कह रही हो। मैंने आज बड़ी भूल कर दी है विप्लव को डाँट कर। ’’ गजेन्द्र ने निराशा भरे स्वर में कहा।

’’ चलो कोई बात नही जो हुआ सो हुआ। आगे से हमें बच्चों की रूचि व मानसिकता का ध्यान रखना पड़ेगा। उन्हें सही ग़लत को पहचानना सिखाना है। पथ उन्हें ही तय कर उस पर चलने देना है। बच्चे समझदार हैं। ’’ मेरी बातें सुनकर गजेन्द्र सहमति में सिर हिलाते हुए प्रत्युत्तर में मात्र हाँ....हूँ बोलते रहे। उनके चेहरे पर विप्लव को डाँटने के कारण आये पश्चाताप के भाव अब तक स्पष्ट थे।

मैंने उन्हें समझाते हुए कहा, ’’ पुरानी बातें छोड़िये। अब हमें बच्चों पर पढ़ाई और पर्सेंटाईल आदि का दबाव नही बनाना है। उन्हें खुले नभ में पक्षियों की भाँति उन्मुक्त उड़ने देना है। विकास के सोपानों पर अपनी रूचि के अनुसार आगे बढ़ने देना है। हमें मार्गदर्शक व अभिभावक की भाँति उनके साथ रहना है। लड़खड़ाने की स्थिति में उनका संबल बनना है। न कि उन्हें हतात्साहित करना है। ’’ गजेन्द्र मेरी बातों से सहमत थे।

मैंने ड्राइंगरूम में आकर टी0वी0 खोल दिया। मैं अपना व गजेन्द्र का मन बदलना चाहती थी। मैं जानती थी कि यह इतना सरल नही है। समय के साथ ही यह सम्भव होगा। कुछ देर में बच्चे खेल कर आ गये। गजेन्द्र ने दोनों को बुलाकर अपने पास बैठा लिया। वे बारी-बारी से विप्लव व वैभवी के सिर पर हाथ फेर रहे थे। विप्लव को तो उन्होंने अपने सीने से लगा रखा था। ड्राईंगरूम का वातावरण परिवर्तित हो गया था। निराशा के छँट चुके बादलों को देखकर मैं रसोई में चली गयी,सबकी रूचि का खाना बनाने।

नीरजा हेमेन्द्र