Dil na Janeya - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

दिल ना जानेया - 1






अवस्थी हाउस, दिल्ली

सुबह के 8:00 बज रहे थे। घर के मुखिया नवीन अवस्थी इस वक्त पूजा करने में लगे हुए थे। पूजा के मंत्र पढ़ते हुए उन्होंने चारों तरफ नजर दौड़ाई जिसे उनकी पत्नी शालिनी ने समझ लिया और वह सीधे अपने बेटे के कमरे में गई जहां उनका बेटा स्वप्निल इस वक्त घोड़े बेचकर पेट के बल आराम से तकिए पर पैर रखे सोया हुआ था।

शालिनी जी बिस्तर पर बैठ कर उसके बाल सहलाते हुए बोली "उठ जा बच्चा! तेरे पापा अभी पूजा कर रहे हैं और तुझे ढूंढ रहे हैं। इससे पहले कि उनकी आरती और जाप पूरी हो जाए और प्रसाद लेने के समय तुम उपस्थित ना हो और तुम्हें डांट पड़े, उससे पहले और जाओ और तैयार होकर नीचे आओ।"

स्वप्निल अनमने ढंग से उठते हुए बोला "क्या मां! पापा को इतनी सुबह उठ कर पूजा करने की क्या जरूरत पड़ती है? ना वो खुद सोते हैं ना हमें सोने देते हैं।"

शालिनी बोली "यह सारी बातें तू अपने पापा से क्यों नहीं पूछता? और अभी तुम जाकर तैयार हो जाओ वरना डांट तो पड़नी ही है, चाहे तुम घर पर सुनो या ऑफिस में। घर पर सुनोगे तो सिर्फ दो लोगों के बीच बात रहेगी, ऑफिस में तुम्हारे पापा बिल्कुल भी ये नहीं देखेंगे कि तुम अपने केबिन में हो या इंप्लाइज के बीच में। सोच लो, तुम्हें अपनी इज्जत कहां उतरवानी है।"

शालिनी उठी और कमरे से निकलने लगी "जल्दी कर। आज तेरे चाचू नहीं है तुझे बचाने वाले। घर पर कोई नहीं है तो मेरी तरफ देखना भी मत।"

स्वप्निल मुंह बना कर उठा और बोला "चाचू घर पर नहीं है?"

शालिनी बोली, "तेरे चाचू सुबह-सुबह निकल गए। बोला किसी जरूरी काम से जाना है।"

स्वप्निल अपना सर खुजाते हुए बोला "चाचू भी ना! पापा से भी बड़े वाले हैं। मेरा मतलब, वह तो पापा से भी जल्दी उठ जाते है। पता नहीं रात को सोते भी है या नहीं। वैसे इतनी जल्दी क्यों निकल गए? आज ऑफिस में मीटिंग थी। उनका वहां होना जरूरी है।"

शालिनी बोली "वह सब मैं नहीं जानती। तुम जल्दी से तैयार हो और नीचे आ जाओ। तुम्हारे पास सिर्फ 15 मिनट है। देखते हैं इन 15 मिनट में तुम क्या कर पाते हो?" इतना बोल कर शालिनी कमरे से बाहर निकल गई। पीछे स्वप्निल अपना हाथ सर पर मारते हुए बाथरूम में घुस गया।

जैसे ही नवीन जी की आरती की घंटी बजी, स्वप्निल भागते हुए बाथरूम से निकला और जैसे तैसे तैयार होकर, गीले बाल और घर के ही कपड़ों में नीचे चला आया।

नवीन जी ने भगवान की आरती करने के बाद पूरे घर में आरती दिखाना शुरू किया। उसी वक्त सीढ़ियों से भाग कर आते हुए स्वप्निल उनसे टकराते टकराते बचा। पहले तो अपने पापा को देखकर वो थोड़ा घबरा गया लेकिन फिर उसने जल्दी से आरती लेने के लिए अपना हाथ बढ़ाया। नवीन जी ने अपना हाथ उठाकर उसे रोक दिया और गुस्से में घूर कर देखा। स्वप्निल ने अपने हाथ जल्दी से पीछे की तरफ खींच लिए और एक साइड हो गया ताकि नवीन जी आगे बढ़ सके।

पूरे घर में आरती दिखाने के बाद नवीन जी ने आरती पूजा घर में रखी फिर लोटे में से थोड़ा पानी लेकर आरती के चारों ओर आचमनियम किया फिर उन्होंने आरती लेने के लिए शालिनी जी को देखा। शालिनी जी और स्वप्निल वहीं खड़े थे। उन्होंने आरती ली और नवीन जी से प्रसाद। स्वप्निल ने जैसे ही झुककर नवीन जी के पैर छुए, नवीन जी ने उसके बाल जो पहले से खराब थे उन्हें और खराब करते हुए बोले "बाल सुखा लो वरना सर में दर्द हो जाएगा।"

नवीन जी अपने कमरे में तैयार होने चले गए। शालिनी जी ने स्वप्निल को इशारा किया तो वह भी कपड़े बदलने अपने कमरे की तरफ भागा और फटाफट तैयार होकर डाइनिंग हॉल में चला आया लेकिन नवीन जी उनसे भी ज्यादा तेज थे। वो पहले ही वहां पधार चुके थे जिन्हें देख स्वप्निल मन ही मन अपने चाचू को कोसने लगा "क्या चाचू! आप जानते हो ना सारी बात फिर भी सुबह सुबह मुझे फंसा कर निकल लिए। आप जानते हैं मुझे इस वक्त आपकी जरूरत होती है लेकिन नहीं! आपके लिए मेरे से ज्यादा इंपोर्टेंट आपका काम है।"

नवीन जी ने बिना देखे अपने पीछे खड़े सप्निल को आवाज लगाई "खुद में चिंतन करना अलग बात होती है लेकिन अपने आप से बात करना पागलपन की निशानी होती है। चिंतन करो कोई बात नहीं लेकिन ऐसी हरकत मत करो। वैसे भी सोचने से दिमाग खर्च होता है और वह तुम्हारे पास ज्यादा है नहीं।"

शालिनी जी ने स्वप्निल को इशारे से बैठने के लिए कहा। उसके बैठते ही शालिनी ने दोनों बाप बेटे को नाश्ता परोसना शुरू किया। नवीन जी ने पूछा "आपका लाडला कहां है?"

शालिनी मुस्कुरा कर बोली "आपका लाडला सुबह-सुबह किसी काम से गया है। उसने कहा कि वह मीटिंग में टाइम पर पहुंच जाएगा।"

स्वप्निल को मौका मिल गया। उसने कहा "ये चाचू भी ना! मेरा मतलब, आपका लाडला भाई ऐसी कौन सी मीटिंग में गए हैं? उन्हें पता था ना कि आज की मीटिंग कितनी जरूरी है फिर भी चले गए! अब पता नहीं वो टाइम पर मीटिंग में पहुंच पाएंगे या नहीं? आजकल थोड़े लापरवाह से नहीं हो गए है!"

नवीन जी स्वप्निल को आंखें दिखाते हुए बोले "तुम्हारी तरह नहीं है वह। तुम्हारी उम्र में वह एक सफल इंसान बन चुका था। तुम्हारी तरह सुबह के 8:00 बजे तक सोता नहीं रहता था। अपनी नींद गवां दी थी उसने अपने सपने के पीछे। तुम्हारी तरह घोड़े बेचकर नहीं सोता था। खुद को देख लो। 30 को होने को आए लेकिन मजाल है जो जिम्मेदारी समझ में आती हो! थोड़ा अपने चाचू से कुछ सीखो, थोड़ा सा ही सही लेकिन उसके जैसे बनो। बस एक अच्छी सी लड़की मिल जाए जो तुम्हें अच्छे से सुधार सके तो तेरे हाथ पीले करके मैं गंगा नहाऊ।""

स्वप्निल का मुंह बन गया। वो बोला, "लड़की नहीं हूं मैं जो मेरे हाथ पीले करके आप गंगा नहाओगे। वैसे भी, शादी तो चाचू ने भी नहीं की। इस मामले में आप मुझे उनके साथ कंपेयर क्यों नहीं करते?"

नवीन जी ने गुस्से में स्वप्निल को घूरकर देखा तो स्वप्निल धीरे से बड़बड़ाया "आपका बड़ा बेटा मैं हूं, लेकिन फिर भी चाचू के साथ मुझे सौतन वाली फीलिंग आती है।"

स्वप्निल ने इतनी धीमी आवाज में कहा था कि नवीन जी तो उसकी बात नहीं सुन पाए लेकिन शालिनी जी को समझ आ गया और उनकी हंसी छूट गई ।नवीन जी उनके सामने बैठे हुए थे इसलिए उन्होंने अपनी हंसी कंट्रोल की और सबके लिए चाय बनाने चली गई। घर में नौकरों की पूरी फौज लगा रखी थी नवीन बाबू ने अपनी महारानी के लिए लेकिन मजाल है जो शालिनी जी किसी को चूल्हे को हाथ भी लगाने दे। पांच लोगो का परिवार जिसमे एक बेटा होस्टल में, बचे चार लोगों के लिए खाना बनाना इतना भी मुश्किल नहीं था जो ये काम किसी नौकर को देती।

नाश्ता करने के बाद नवीन जी ने चाय का कप उठाया और अपने भाई को फोन लगा दिया। कुछ देर रिंग जाने के बाद दूसरी तरफ से कॉल रिसीव हुआ तो नवीन जी बोले "कहां हो तुम?"

दूसरी तरफ से आवाज आई "भैया एक मीटिंग थी। कुछ जरूरी काम निकलवाने थे इसलिए इतनी जल्दी चला आया। सॉरी मैं आज प्रसाद नहीं ले पाया आपके हाथ से।"

नवीन जी बोले, "प्रसाद की फिकर आप मत कीजिए आपको मिल जाएगी। हम बस इतना जानना चाहते थे कि कहीं कोई समस्या तो नहीं जो आप इतनी सुबह निकल गए?"

दूसरी तरफ से आवाज आई "नहीं भैया! मैं बस कुछ लीगल फॉर्मेलिटी पूरी करनी थी इसलिए चला आया। आपकी मीटिंग के बाद मुझे टाइम नहीं मिलता इसलिए। आप चिंता मत कीजिएगा मैं यहीं पर नाश्ता कर लूंगा।"

नवीन जी ने फोन रख दिया और शालिनी जी को आवाज लगाते हुए बोले "अपने देवर के लिए नाश्ता पैक कर दीजिएगा, हम लोग बस निकलने वाले हैं।"

लेकिन शालिनी जी पहले ही लंच बॉक्स उनके सामने रखते हुए बोली "मुझे पता है वह बिना आपके हाथों से प्रसाद लिए नाश्ता नहीं करेगा। आप खुद उसे खिला दीजिएगा। मैं खाना टाइम पर भिजवा दूंगी बस बता दीजिएगा आज क्या खाना है।"

यह सारा नजारा अवस्थी हाउस में कोई नया नहीं था और स्वप्निल को भी इस सब की आदत हो चुकी थी। उसने मुंह विचकाते हुए अपनी चाय खत्म की तब तक नवीन जी घर से बाहर निकल चुके थे। स्वप्निल उनकी इस आदत से और भी ज्यादा झुंझला जाता था। "इतनी जल्दी में क्यों रहते हैं? वक्त के पाबंद! मतलब इस उम्र में भी इतनी फुर्ती!" उसने अपना फोन उठाया और भागते हुए घर से बाहर निकल गया।