Garib ki Izzat - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

गरीब की इज्जत - पार्ट 2

उस समय लाजो का जी मिचला गया था।ऐसा लग रहा था पेट के अंदर का सब बाहर आ जायेगा।
लेकिन धीरे धीरे दिन गुजरने के साथ सब सामान्य हो गया।अब यह उसकी आदत में शुमार हो गया या इसका अभ्यास हो गया था।जस्सो का दारू पीना उसे बुरा लगता था।उसे दारू से घिन्न थी।वह यह भी जानती थी उसे चाहे दारू से कितनी ही चिढ़ हो,उसका पति दारू छोड़ने वाला नही है।
जस्सो का घर पहाड़ की तलहटी में बसे गांव रुतपुर में था।जस्सो रोज सुबह खा पीकर घर से निकलता था।वह आस पास के गांव में काम की तलाश में चला जाता था।उसे रोज किसी न किसी गांव में काम मिल ही जाता था।पति के घर से जाने के बाद लाजो बाकी के काम निपटाती और फिर खा पीकर दोपहर में घर से निकल जाती थी।वह सबसे पहले गांव के पास से बहने वाली नदी से पानी भरकर लाती।पानी भरने के बाद वह जंगल मे निकल जाती।उसे चूल्हे पर खाना बनाना होता था।चूल्हे के लिए लकड़ी चाहिए।और लकड़ी लेने के लिए उसे जंगल मे जाना पड़ता था।कभी उसे सुखी लकड़ियां पास में ही मिल जाती।कभी उसे लकड़ी की तलाश में काफी अंदर आगे तक भी जाना पड़ता था।
कुछ दिनों पहले की बात है।रात को हल्की बरसात की वजह से पेड़ भी भीग गए थे।जिसकी वजह से उसे सुखी लकड़ियां पास में नही मिली थी।वह सुखी लकड़ी की तलाश में जंगल मे काफी आगे तक निकल आयी थी।एक जगह उसे सुखी लकड़ी नजर आ गयी और वह वहां रुक गयी थी।वह लकड़ी तोड़ रही थी,तभी एक आदमी अचानक उसके सामने आकर खड़ा हो गया था।उस आदमी को अपने सामने देखकर लाजो बुरी तरह सहम गयी।वह आदमी उसके चेहरे के भावों से समझ गया इसलिए उस आश्वश्त करते हुए बोला,डरो मत।मै इस जंगल का अफसर हूँ।
फिर उसने उससे पूछा था,तुम्हारा नाम क्या है
लाजो
लाजो।वह बोला।नाम लाजो है इसीलिए शरमा रही थी।वह बोला,क्या रोज आती हो
हा
वैसे तो यह गलत है।सरकारी जंगल स लकड़ी तोड़ना।लेकिन तुम तो जलाने के लिए ले जा रही हो
हा
डरो मत तोड़ लो
जंगलात के अफसर की बात से आश्वस्त होकर वह लकड़ी तोड़ने लगी।
उस दिन के बाद जब भी वह जंगल जाती जंगलात का अफसर उसका ििइंतजअरतजर करता हुआ मिलता।लाजो को देखते ही वह मुस्कराकर उसका स्वागत करता।वह पेड़ से लकड़ी तुड़वाने में उसकी मदद करता।उसके साथ गट्ठर बनवाता और लकड़ी का गट्ठर उसके सिर पर रखते समय वह यह कहना नही भूलता। तुम कितनी सुंदर हो
और लाजो उसकी बात सुनकर शरमा जाती।पति ने उसकी कभी इतनी प्रशंसा नही की थी,जितनी जंगलात का अफसर उसके रूप की सराहना करता था।
जंगलात के अफसर के शिष्ट और म्रदु व्यवहार और उसके सहयोग और मदद की भावना से वह बेहद प्रभावित हुई थी।लाजो को अपनी बिरादरी में ऐसा कोई मर्द नही मिला था।जंगलात के अफसर को वह मानुष नही देव तुल्य समझने लगी थी।उसे ऐसा लगने लगा था,वह आदमी न होकर कोउ अवतार हो।
रोज की तरह पति के घर से जाने के बाद लाजो ने घर के काम निपटाए।फिर नदी से पानी लायी और खाना खाने के बाद वह लकड़ी तोड़ कर लाने के लिए जंगल गयी थी।