Musafir Jayega kaha? - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

मुसाफ़िर जाएगा कहाँ?--भाग(१)

रात का तीसरा पहर,ऊधवगढ़ का छोटा सा वीरान रेलवें स्टेशन,रेलगाड़ी रुकी और उसमें से इक्का दुक्का मुसाफ़िर उतरें,उन्हीं मुसाफिरों में से एक कृष्णराय निगम भी थे,उन्होनें अपना सामान रेलगाड़ी में से नीचें उतारा और स्टेशन पर कुली को इधरउधर देखने लगें,लेकिन नज़र दौड़ाने पर उन्हें वहाँ कोई कुली नज़र नहीं आया...
उन्हें रेलवें प्लेटफार्म पर कुछ ठंड का अनुभव हुआ तो उन्होंने कोट के ऊपर अपना ओवरकोट पहना और सिर पर अपनी हैट भी लगा ली,जब उन्हें कोई कुली ना दिखा तो वें अपना सामान स्वयं लेकर स्टेशन मास्टर के केबिन की ओर गए ,वहाँ उस केबिन में बल्ब की पीली रोशनी थी और वो बल्ब स्टेशन मास्टर साहब की टेबल के ठीक ऊपर लटक रहा था और उन्होंने दरवाजे पर खड़े होकर ये भी देखा कि वहाँ उनके टेबल पर एक नेमप्लेट रखीं थी जिस पर अवधेश कुमार त्रिपाठी लिखा था,फिर उन्होंने वहाँ की कुर्सी पर बैठे स्टेशन मास्टर की ओर नज़र दौड़ाई जो लगभग पैतालिस साल के ऊपर ही रहें होगें,कृष्णराय जी ने स्टेशन मास्टर साहब के केबिन के बाहर से ही पूछा.....
मास्टर साहब !क्या मैं अन्दर आ सकता हूँ?
जी!आइए!मास्टर साहब बोलें....
कृष्णराय जी तब केबिन के भीतर पहुँचे,तो स्टेशन मास्टर साहब ने उनसे पूछा...
जी!आपकी तारीफ़?
जी!मैं कृष्णराय निगम,पेशे से इन्जीनियर हूँ,कृष्णराय जी बोले।।
पहले मास्टर साहब ने कृष्णराय जी को कुर्सी पर बैठने का इशारा किया फिर उनसे पूछा...
जी! तो आप किसी काम से मेरे पास आएं हैं या यूँ ही,
जी!काम तो था,कृष्णराय जी कुर्सी पर बैठते हुए बोलें...
जी!फरमाइए!क्या काम है?स्टेशन मास्टर साहब ने पूछा...
जी!क्या यहाँ सिर छुपाने की जगह मिल जाएगी,कृष्णराय जी ने पूछा।।
मिल तो जाएगी,लेकिन सवाल ये उठता है कि कितने दिनों के लिए,एक दिन के लिए तो आप मेरे यहाँ भी ठहर सकते हैं,मेरे मेहमान बनकर,स्टेशन मास्टर साहब ने कहा...
जी!यहाँ रहना तो बहुत दिन था,कृष्णराय जी बोलें...
आप जैसा एजूकेटेड परसन यहाँ ऐसी छोटी सी जगह में क्यों रहना चाहेगा भला?स्टेशन मास्टर साहब बोले....
दरअसल!मैं यहाँ किसी जरूरी काम से आया हूँ,कृष्णराय जी बोलें...
ऐसा कौन सा जरूरी काम है आपको यहाँ?स्टेशन मास्टर साहब ने पूछा....
जी!मैं वो आपको नहीं बता सकता,कृष्णराय जी बोलें....
जी!ठीक है,अगर आप नहीं बताना चाहते तो मत बताइए और इतना कहते हुए उन्होंने कृष्णराय जी से पूछा....
सिगरेट पियेगें आप?
जी!मैं सिगरेट नहीं पीता,कृष्णराय जी बोलें...
अरे!आप सिगरेट नहीं पीते ये तो बड़े तअज्जुब वाली बात है,स्टेशन मास्टर साहब बोले...
जी!मैं तो विलायत में भी नहीं पीता था,मैं इतने साल वहाँ रहा,लेकिन कभी ना शराब को हाथ लगाया और ना सिगरेट को,कृष्णराय जी बोले....
तो क्या आप विलायत में भी रहकर आएं हैं?स्टेशन मास्टर साहब ने बड़ी हैरत से पूछा....
जी!दस साल से मैं विलायत में ही था,अभी एक महीने पहले ही लौटा हूँ,कृष्णराय जी बोलें....
ओहो...आप तो बहुत पहुँचे हुए मालूम पड़ते हैं,स्टेशन मास्टर साहब बोलें.....
तब स्टेशन मास्टर साहब की बात सुनकर कृष्णराय जी हँस पड़े फिर बोलें...
जैसा आप ठीक समझें....
आपको सिगरेट नहीं पीनी तो ठीक है,मैं तो पिऊँगा सिगरेट क्योंकि ठण्ड बहुत है और इतना कहते हुए स्टेशन मास्टर साहब ने अपना सोने का सिगरेटकेस अपनी पतलून की जेब से निकाला और उसे खोलकर एक सिगरेट निकाली,उस सिगरेटकेस को देखकर कृष्णराय जी हैरत में पड़ गए और उस सिगरेटकेस को देखकर उनकी आँखें खुली की खुली रह गई और उन्होंने स्टेशन मास्टर साहब से पूछा.....
ये सिगरेटकेस आपको कहांँ से मिला?
जी!ये कैसा बेतुका सा सवाल है ये तो मेरा है,स्टेशन मास्टर साहब बोलें....
झूठ बोलते हैं आप,ये आपका नहीं है,कृष्णराय जी गुस्से से बोलें...
जी!आपके पास क्या सुबूत है कि ये सिगरेटकेस मेरा नहीं है,स्टेशन मास्टर साहब भी गुस्से से बोलें....
जरा आप इसे मुझे दिखाएगें,कृष्णराय जी बोले....
ये तो बड़ी जबरदस्ती है,आपसे दो घड़ी बात क्या कर ली,आप तो मुझे चोर समझने लगे,भलाई का तो जैसे जमाना ही नहीं है,स्टेशन मास्टर साहब बोलें...
अच्छा तो मुझे ये बताइए कि क्या उस सिगरेटकेस पर किशोर नहीं लिखा,कृष्णराय जी बोलें...
ये आपको कैसे पता कि इस पर किशोर लिखा है?स्टेशन मास्टर साहब बोलें....
क्योंकि ये सोने का सिगरेटकेस मैंने ही किशोर को उसके जन्मदिन पर उपहार में दिया था,कृष्णराय जी बोलें.....
इसका क्या सुबूत है कि ये वही सिगरेटकेस है?स्टेशन मास्टर साहब ने पूछा...
क्योंकि इसकी दूसरी ओर मेरा नाम भी लिखा है और देखिए आप मेरा नाम कृष्ण लिखा होगा,क्योंकि मेरा पूरा नाम कृष्णराय निगम है और मेरे दोस्त का पूरा नाम किशोर जोशी है,कृष्णराय जी बोलें.....
कृष्णराय जी की बात सुनकर स्टेशन मास्टर साहब सकपका गए फिर कुछ नहीं बोलें,जब बहुत देर तक स्टेशन मास्टर साहब कुछ नहीं बोलें तो कृष्णराय जी ने उनसे विनती करते हुए कहा.....
स्टेशन मास्टर साहब!मुझे ये सिगरेटकेस नहीं चाहिए,मुझे तो बस उसका पता चाहिए जिसका ये सिगरेटकेस है,मैं उसी को खोजने आया हूँ,
तब स्टेशन मास्टर साहब बोलें...
कृष्णराय जी!मुझे माँफ कर दीजिए,करीब दस साल पहले यहाँ एक आदमी आया था,आपकी तरह ही उसने मुझसे बातें की और वो ये सिगरेटकेस यहाँ छोड़कर चला गया,स्टेशन मास्टर साहब बोले....
क्या आप मुझे बता सकते हैं कि वो कहाँ गया था?कृष्णराय जी ने पूछा।।
अब तो मैं ठीक ठीक नहीं कह सकता कि वो कहाँ गए?स्टेशन मास्टर साहब बोलें....
कुछ तो बोला होगा उसने,कुछ तो कहा होगा बातों बातों में कि वो कहाँ जा रहा है?कृष्णराय जी बोलें...
जी!हाँ!शायद उसने उमरिया गाँव का नाम लिया था,उसे शायद वहाँ जाना था,स्टेशन मास्टर साहब बोलें....
ओह...तो आप मुझे बता सकते हैं कि यहाँ से उमरिया गाँव कितनी दूर है,कृष्णराय जी ने पूछा....
यहाँ से लगभग बीस किलोमीटर होगा,स्टेशन मास्टर साहब बोलें....
वहाँ जाने का कोई साधन मिलेगा?कृष्णराय जी ने पूछा।।
जी!नहीं!शहर से दो चार दिन में भूले भटके कोई बस आ जाती है तो यहाँ के लोंग अपने आपको धन्य समझते हैं,स्टेशन मास्टर साहब बोलें...
तो फिर यहाँ कोई रुकने का ठिकाना,कृष्णराय जी ने पूछा।।
कोई ठिकाना नहीं है यहाँ,कोई रेस्टहाउस भी नहीं है और ना ही रेलवें का कोई वेटिंग रूम है जो मैं आपको वहाँ रुकने की इजाजत दे दूँ,स्टेशन मास्टर साहब बोलें...
तो मैं अब क्या करूँ?कृष्णराय जी बोलें....
आप मेरे घर चल सकते हैं,रेलवें का सरकारी घर है अंग्रेजों के जमाने का,आपको वहाँ कोई दिक्कत नहीं होगी,स्टेशन मास्टर साहब बोलें...
आपके घरवालों को तो दिक्कत होगी,कृष्णराय जी बोले...
मेरे घर में मेरी घरवाली बस है ,एक बेटी है तो वो ब्याहकर अपने ससुराल जा चुकी है,हम दोनों पति पत्नी रहते हैं वहाँ,पत्नी ने खूब साग सब्जी बो रखी है तो वो दिनभर उसी की देखभाल में लगी रहती है,बाहर के काम वो खलासियों से करा लेती है,इसलिए घर गृहस्थी के कामों से मैं आजाद रहता हूँ,स्टेशन मास्टर साहब बोलें....
ये भी खूब कही आपने,गृहस्थ जीवन के भी अपने मज़े हैं,कृष्णराय जी बोलें....
और आप...आपके भी तो बीवी बच्चे होगें,मास्टर साहब ने पूछा...
जी!अभी तो सब विलायत में ही हैं,मैं अकेला ही भारत आया हूँ....कृष्णराय जी बोलें....
बहुत बढ़िया...बस एक अन्तिम रेलगाड़ी आने को बाक़ी है उसके बाद कल सुबह दस बजे ही रेलगाड़ी आएगी, बस इस रेलगाड़ी के बाद मैं आपको घर ले चलता हूँ,मास्टर साहब बोलें...
और यूँ ही दोनों में बातें चलतीं रहीं.....

क्रमशः...
सरोज वर्मा.....