Musafir Jayega kaha? - 5 books and stories free download online pdf in Hindi

मुसाफ़िर जाएगा कहाँ?--भाग(५)

कुछ समय की यात्रा के बाद कृष्णराय जी रामविलास चौरिहा जी के साथ उमरिया गाँव पहुँच भी गए,रामविलास चौरिहा साहब पहले कृष्णराय जी को अपने कमरें में ले गए और उन्हें चाय पिलाई और अपने माँ के हाथों के बनाएं नमकपारे खिलाएं,कुछ इधरउधर की बातें की और उनके दोस्त किशोर के बारें में और भी बातें जानीं,इसके बाद मुखिया जी के नौकर घीसू से बोले कि वें कृष्णराय जी को रेस्टहाउस छोड़ आइए,रामविलास के कहने पर घीसू कृष्णराय जी का सामान लेकर रेस्ट हाउस की ओर चल पड़ा....
कुछ ही देर में कृष्णराय जी रेस्ट हाउस के ऊबड़ खाबड़ रास्तों से होते हुए रेस्ट हाउस पहुँच गए,जब रेस्ट हाउस के नौकर बंसी ने कृष्णराय जी को रेस्टहाउस की ओर देखा तो कुछ परेशान सा हो उठा और जब कृष्णराय जी रेस्टहाउस के बिल्कुल नजदीक आ पहुँचे तो बंसी बोला.....
आप कौन है? रेस्टहाउस में कोई भी कमरा खाली नहीं है?
तब मुखिया जी का नौकर घीसू बोला....
बंसी!इन्हें चौरिहा साहब ने भेजा है,उन्होंने कहा है कि इन्हें रेस्टहाउस का सबसे अच्छा कमरा दे दिया जाएं...और इतना कहकर घीसू कृष्णराय जी का सामान रखकर वापस चला गया...
ओहो...तो ये बात है ,पहले बताना चाहिए था,बंसी बोला....
तुमने मौका ही नहीं दिया,कृष्णराय जी बोलें...
माँफ करना साब जी! यहाँ से कोई पन्द्रह-बीस किलोमीटर दूर लक्ष्मीनारायण मंदिर है,वहाँ उनके दर्शनों के लिए अक्सर दूर दूर से बहुत अमीर अमीर सेठ सेठानी आते रहते हैं और यहाँ रेस्ट हाउस में रुकते हैं और मैं उनकी खातिरदारी कर करके परेशान हो जाता हूँ और कोई कोई सेठानी तो कहतीं हैं कि मेरा छुआ ही नहीं खाएगी,फिर वो रेस्टहाउस की रसोईघर पर कब्जा कर लेती हैं और उनके नखरे देखकर तो मेरा खून खौल उठता है,बंसी बोला...
बंसी की बातें सुनकर कृष्णराय जी हँस पड़े और बोलें....
तब तो तुम्हारे जी को बहुत जंजाल हो जाता होगा...
और क्या साहब!मोटी मोटी सेठानियों की अकल भी मोटी होती है,बंसी बड़ी आँखें करते हुए बोला....
कृष्णराय जी बंसी की बात पर फिर हँस दिए और बोलें....
बंसी! एक गिलास पानी पिला दो भाई!ऊबड़खाबड़ रास्ते पर चलकर आ रहा हूँ तो प्यास लग आई...
हाँ....हाँ...साहब!अभी आपको मटके का ठण्डा-ठण्डा पानी पिलाता हूँ और इतना कहकर बंसी पानी लेने चला गया और जब पानी लेकर आया तो उसने कृष्णराय जी से पूछा....
साहब!रात का खाना यहीं खाऐगें ना!
हाँ...भाई!यहाँ रूका हूँ तो खाना भी यहीं खाऊँगा,कृष्णराय जी बोलें....
ठीक है तो मैं बगल वाली हाट से सामान लेकर आता हूँ,नहीं तो अँधेरा होने तक हाट उठ जाती है और लोंग सामान बेंचकर अपने अपने घर लौट जाते हैं,बंसी बोला....
तो ठीक है तुम सामान ले आओ,कृष्णराय जी बोलें....
लेकिन....साहब...वो,बंसी अपना वाक्य पूरा नहीं कर पाया...और फिर ...कृष्णराय जी ने पूछा....
रूपये चाहिए,
जी...बंसी बोला....
ये लो ये तुम्हारे चाय पानी के लिए और ये रहे बाक़ी के तुम इनसे सौदा ले आना,कृष्णराय जी बोलें..
बहुत अच्छा....साहब...और इतना कहकर बंसी जाने लगा तो कृष्णराय जी ने उसे रोकते हुए पूछा....
बंसी!एक बात तो बताओ...
जी!साहब!बंसी बोला...
तुम इस रेस्ट हाउस में कब से काम कर रहे हो?
जी!बहुत साल हो गए,बंसी बोला...
लगभग कितने साल हुए?कृष्णराय जी ने पूछा...
यही कोई बाईस सालों से यहाँ हूँ,बंसी बोला....
अच्छा तो ये बताओ कि किशोर जोशी नाम का सख्श कभी यहाँ आया था,कृष्णराय जी ने पूछा...
अचानक किशोर जोशी का का नाम सुनकर बंसी सदमें में आ गया ,उसके चेहरे का रंग उड़ गया और वो एकदम भौचक्का रह गया फिर कुछ सोचकर बोला....
साहब!मैं सामान ले आता हूँ,नहीं तो हाट उठ जाएगी...
अरे!मेरे सवाल का जवाब तो देते जाओ,कृष्णराय जी बोलें...
ना!साहब!ये मुझसे ना हो पाएगा.....मुझसे कुछ मत पूछिए...बंसी बोला...
इसका मतलब है तुम किशोर के बारें में जानते हो,कृष्णराय जी बोलें...
ना साहब!मुझे कुछ नहीं पता और फिर बंसी कृष्णराय जी के किसी भी सवाल का जवाब दिए बिना ही बाहर चला गया...
और इधर कृष्णराय जी बंसी के व्यवहार से बेचैन हो उठे और फिर उन्होंने अपने सूटकेस से आरामदायक कपड़े निकलें और कपड़े बदलकर वो शाँल ओढ़कर बिस्तर पर जा बैठे और कोई किताब पढ़ने लगें,जब अँधेरा काफी गहरा गया तब बंसी रेस्टहाउस लौटा और उसने कृष्णराय के कमरें में आकर पूछा....
साहब!कुछ चाहिए आपको,क्योंकि मैं अब खाना बनाने जा रहा हूँ...
तब कृष्णराय जी बोलें...
हाँ!अगर!एक प्याला गरमागरम चाय मिल जाती तो ....
जी!अभी चाय बनाकर लाता है और इतना कहकर बंसी चाय बनाने चला गया,कुछ देर में बंसी चाय लेकर कृष्णराय जी के कमरें में आया और उनसे बोला...
साहब!आपकी चाय...
तब कृष्णराय जी बोलें....
बंसी!अगर किशोर के बारें में कुछ जानते हो तो बता दो....
साहब!अभी मुझे खाना बनाना रात हो रही है और आपको भूख भी लग रही होगी...
बंसी!बात को मत टालो,कृपा करके अगर किशोर के बारें में कुछ पता है तो बता दो,कृष्णराय जी बंसी से विनती करते हुए बोलें...
हाथ मत जोड़िए साहब!मैं मजबूर हूँ,मैनें किसी को वचन दिया था,बंसी बोला...
तो ठीक है तुम अपना वचन मत तोड़ो,लेकिन ये तो बता सकते हो ना कि कोई और ऐसा इन्सान है जो किशोर के बारें में कुछ जानता हो,कृष्णराय जी ने पूछा....
जी!हैं तो,बंसी बोला....
कौन है वो?यहाँ से पाँच कोस दूर दूसरा गाँव है फूलपुर,वहाँ के साहूकार बता सकते हैं आपको आपके दोस्त के बारें में,बंसी बोला....
तो मुझे कल वहाँ ले चलोगे,कृष्णराय जी बोलें....
अभी तो सम्भव नहीं हैं क्योंकि वें तो अपने गुरूजी के दर्शन करने हरिद्वार गए हैं,ना जाने कब तक लौटें?बंसी बोला....
तो फिर मैं रामविलास चौरिहा से कहकर पता करवाता हूँ कि वें कब तक लौटेगें?,कृष्णराय जी बोलें...
जी!यही ठीक रहेगा,तो अब मैं खाना बनाने जाऊँ,बंसी बोला....
ठीक है तुम जाओ,कृष्णराय जी बोलें...
फिर बंसी खाना बनाने चला गया और कुछ ही देर में वो कृष्णराय जी के लिए थाली परोसकर ले आया,थालीं में आलू-गोभी की सब्जी,मूँग की दाल और रोटियांँ थीं,कृष्णराय जी ने खाना खाया और फिर किताब लेकर बिस्तर पर लेट गए और कुछ देर बाद उन्हें नींद आने लगी तो उन्होंने टेबल पर रखें लैंप की रोशनी कम कर दी और कम्बल ओढ़कर सो गए....
उनके सोने के आधे घण्टे बाद उनके कमरें के दरवाजे पर दस्तक हुई कोई कह रहा था कि दरवाजा खोलों.....दरवाजा खोलों....
तभी कृष्णराय जी हड़बडा कर अपने बिस्तर से उठे लैम्प की रोशनी बढ़ाई और पूछा....
कौन...कौन है?
तब दरवाजे के पीछे से आवाज़ आई....
बाबू जी!कृपा करके दरवाजा खोल दीजिए....
कृष्णराय जी ने दरवाजा खोला और दरवाजा खोलते ही वें सन्न रह गए...

क्रमशः....
सरोज वर्मा...