Geeta se Shree Krushn ke 555 Jivan Sutra 179 - Last Part books and stories free download online pdf in Hindi

गीता से श्री कृष्ण के 555 जीवन सूत्र - भाग 179 - समापन भाग

समापन भाग:जीवन सूत्र 555: भाग 180: जहां ईश्वर हैं,वहां विजय है

अर्जुन के मन में संदेह के मेघ छंटने लगे थे और ज्ञान के सूर्य का उदय हो रहा था। आज तक उनसे किसी भी व्यक्ति ने इतनी आत्मीयता से उनके मन में उमड़ घुमड़ रहे प्रश्नों का उत्तर नहीं दिया था और फिर अगले ही क्षण श्रीकृष्ण ने उन्हें सबसे बड़ा आश्वासन दे दिया।

श्री कृष्ण: हे अर्जुन!तुम सभी कर्तव्य कर्मों को अपने निजपन द्वारा किए जाने की भावना का त्याग करते हुए उन्हें मुझ सर्वशक्तिमान ईश्वर के अभिमुख कर मेरी शरण में आ जाओ। अर्जुन, विजय और पराजय से बढ़कर अपना स्वधर्म निभाने के लिए तुम युद्ध लड़ो।युद्ध लड़कर योद्धा धर्म निभाओगे तो अपने संपूर्ण कर्मों को ईश्वरीय आज्ञा समझकर करने से इस योद्धा धर्म से भी ऊपर उठ जाओगे। अब तुम योद्धा धर्म से भी ऊपर उठ गए हो अर्जुन,क्योंकि अब तुमने ज्ञान प्राप्त कर लिया है।तुम ईश्वर के हो गए हो। तुम मेरे हो गए हो।

अर्जुन :हां अच्युत! अब आपकी कृपा से मेरा मोह और भ्रम नष्ट हो गए हैं और मैंने अपनी वह स्मृति फिर से प्राप्त कर ली है जो मुझे एक योद्धा के रूप में शस्त्र उठाने को तत्पर करती है। अब मेरे मन में कोई संदेह नहीं है और मैं आपकी आज्ञा का पालन करने को तैयार हूं।


गीता का समापन श्लोक है:-

यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः।

तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम।।18/78।

यह संपूर्ण विवरण महाराज धृतराष्ट्र को सुनाते हुए दिव्य दृष्टि प्राप्त संजय ने कहा कि "हे राजा अब पांडवों की जीत सुनिश्चित है जहां स्वयं योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण हैं और उनके भक्त तथा सखा गांडीव धनुषधारी अर्जुन हैं, वहीं श्री है,वहीं नीति है और वहीं पर विजय है।"

एक श्री कृष्ण कई अक्षौहिणी सेना पर भारी हैं। अर्जुन ने आज इसका प्रत्यक्ष अनुभव कर लिया है। कौरवों और पांडवों में चार अक्षौहिणी सेना का ही अंतर नहीं है,बल्कि मुख्य अंतर श्री कृष्ण के पांडवों के पक्ष में होने का है क्योंकि जहां श्री कृष्ण है,वहां विजय है, वहां सुख शांति और कल्याण है।

अर्जुन श्री कृष्ण के दिव्य वचनों को सुनकर भाव विभोर हैं।निःशब्द हैं। उनके सारे प्रश्नों का समाधान हो गया है और न सिर्फ अर्जुन के मन में उमड़- घुमड़ रहे प्रश्नों का समाधान हुआ है,बल्कि मानवता भी इस सृष्टि के अंत तक अपने अबूझ प्रश्नों का उत्तर श्री कृष्ण अर्जुन के इस संवाद में अंतर्निहित सूत्रों के माध्यम से प्राप्त करती रहेगी।

(समाप्त)


(मानव सभ्यता का इतिहास सृष्टि के उद्भव से ही प्रारंभ होता है,भले ही शुरू में उसे लिपिबद्ध ना किया गया हो।महर्षि वेदव्यास रचित श्रीमद्भागवत,महाभारत आदि अनेक ग्रंथों तथा अन्य लेखकों के उपलब्ध ग्रंथ उच्च कोटि का साहित्यग्रंथ होने के साथ-साथ भारत के इतिहास की प्रारंभिक घटनाओं को समझने में भी सहायक हैं।श्रीमद्भागवतगीता भगवान श्री कृष्ण द्वारा वीर अर्जुन को महाभारत के युद्ध के पूर्व कुरुक्षेत्र के मैदान में दी गई वह अद्भुत दृष्टि है, जिसने जीवन पथ पर अर्जुन के मन में उठने वाले प्रश्नों और शंकाओं का स्थाई निवारण कर दिया।इस स्तंभ में कथा,संवाद,आलेख आदि विधियों से श्रीमद्भागवत गीता के उन्हीं श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों को मार्गदर्शन व प्रेरणा के रूप में लिया गया है।भगवान श्री कृष्ण की प्रेरक वाणी किसी भी व्याख्या और विवेचना से परे स्वयंसिद्ध और स्वत: स्पष्ट है। श्री कृष्ण की वाणी केवल युद्ध क्षेत्र में ही नहीं बल्कि आज के समय में भी मनुष्यों के सम्मुख उठने वाले विभिन्न प्रश्नों, जिज्ञासाओं, दुविधाओं और भ्रमों का निराकरण करने में सक्षम है।यह धारावाहिक उनकी प्रेरक वाणी से वर्तमान समय में जीवन सूत्र ग्रहण करने और सीखने का एक भावपूर्ण लेखकीय प्रयत्नमात्र है,जो सुधि पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है।)

(अपने आराध्य श्री कृष्ण से संबंधित द्वापरयुगीन घटनाओं व श्रीमद्भागवत गीता के श्लोकों व उनके उपलब्ध अर्थों व संबंधित दार्शनिक मतों पर लेखक की कल्पना और भक्तिभावों से परिपूर्ण कथात्मक प्रस्तुति)

(इस विस्तृत श्रृंखला के प्रत्येक भाग का मनोयोग से अध्ययन करने के लिए मैं मातृभारती के सभी पाठकों के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त करता हूं। जय श्री कृष्ण🙏 जय हिंद🇮🇳)



डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय