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अनमोल गुरु दक्षिणा

बरसों से संभाल कर रखा ₹1 खर्च करने के बाद लुकमान दर्जी साहब अपनी बेगम और बेटी बेटे से इतना झगड़ा करते हैं कि तुमने मेरा बरसों से संभल कर रखा ₹1 क्यों खर्च किया।

आस पड़ोस के लोग उनके घर के नौकर भी सोचते हैं कि लुकमान दर्जी साहब के घर में पैसों की कमी ना होने के बावजूद परिवार वालों से ₹1 के लिए इतना झगड़ा कर रहे हैं, शायद बुढ़ापे में इनका दिमाग कमजोर हो गया है।

और जब उनका गुस्सा शांत नहीं होता है तो उनके परिवार की सबसे बुजुर्ग पुरानी वफादार ईमानदार नौकरानी जिसको लुकमान दर्जी साहब के अब्बू ने नौकरी पर रखा था वह ₹1 को खर्च करने पर परिवार से झगड़ा ना करने के लिए लुकमान दर्जी को समझती है।
बूजुर्ग पुरानी वफादार ईमानदार नौकरानी के समझाने के बाद लुकमान दर्जी साहब का गुस्सा कुछ काम तो हो जाता है लेकिन खत्म नहीं होता है।

इसलिए पुरानी वफादार नौकरानी लुकमान दर्जी साहब की बेगम और बेटी बेटे को वहां बुलाकर दर्जी साहब से कहती है कि "मैंने अपने जीवन में बहुत कुछ देखा और बर्दाश्त किया है, इस ₹1 के पीछे कोई जरूर गहरी बात है, आप हम सब को वह बात बताएं।"

"आपने ठीक समझा पहले दुकान वाले को दूसरा ₹1 देकर वही ₹1 लेकर आओ मैं आज ही उसको सोने चांदी के फ्रेम में चढ़कर अपने कमरे में रखूंगा।"

और उस ₹1 की कीमत समझाते हुए परिवार वालों और पुरानी नौकरानी को बताते हैं कि "मेरी दर्जी की दुकान के सामने चाय की दुकान पर मुन्ना नाम का एक किशोर काम करता था, वह चाय की दुकान का मालिक अनाथ मुन्ना से दिन रात काम करवाता था और उसे रुखा सुखा खाना खिलाने के अलावा ₹1 भी खर्चे पानी के लिए नहीं देता था।

"और एक दिन मुन्ना ने जब दशहरे का मेला देखने के लिए उससे कुछ पैसे मांगे तो उस चाय की दुकान के मालिक ने मुन्ना को पीटना शुरू कर दिया था, मैं उसी समय उस चाय की दुकान के मालिक को डरा धमका कर मुन्ना की चाय की दुकान की नौकरी छुड़वाकर अपनी दर्जी की दुकान पर ले आया था और उसी दिन से मैंने मुन्ना को कपड़े सिलना सीखना शुरू कर दिया था।

"ईद आने से पहले जब मुन्ना ने मेरे अब्बू का कुर्ता पजामा खुद सिलाई किया तो मेरे अब्बू ने खूबसूरत कुर्ता पजामा सिलने के बदले मुन्ना को ₹1 दिया था, मैंने आजादी से पहले का मुन्ना के हाथों का सिला अब्बू का कुर्ता पजामा और वह ₹1 आज तक संभाल कर रखा है क्योंकि उस अब्बू के कुर्ते पजामे की सब ने बहुत तारीफ की थी और मुझे बेहतरीन गुरु का दर्जा दिया था, उस दिन से सब ने मेरा नाम लुकमान से बढ़ाकर लुकमान दर्जी साहब रख दिया था।

"और मेरे प्रिय शिष्य मुन्ना ने अपने जीवन में सीले पहले कुर्ते पजामे कि पहली कमाई मेरे हाथ में ईद के दिन यह कह कर रखी थी कि गुरुजी यह आपकी गुरु दक्षिणा है।

"आज मुन्ना देश का बहुत बड़ा फैशन फैशन डिजाइनर है और हमेशा मेरे सुख-दुख में मेरा साथ देता है।

"इस वजह से मैं अपने शिष्य मुन्ना कि गुरु दक्षिणा का किसी भी हालत में अपमान होते नहीं देख सकता हूं।"