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फादर्स डे - 24

लेखक: प्रफुल शाह

खण्ड 24

सोमवार, 06/12/1999

पुलिस दल चौकस था। अपराधी ब्रीफकेस को उठाने के लिए जैसे ही कमरे में पहुंचतेगा, उसे धर दबोचने के लिए सभी तैयार थे। सूर्यकान्त, उसके दोस्त और पुलिस वाले अलग-अलग दिशाओं से ब्रीफकेस पर नजरें गड़ाए हुए थे। वे इस कदर दम साधे और चौकन्ने थे कि उनकी दिल की धड़कनें तेज हो गई थीं।

सूर्यकान्त ने संजय को एक अलग कार में घर वापस भेज दिया था। वह हर एक पल को गिन रहा था। इस लोकेशन पर उसे बिना मकसद, फालतू समय गंवाना भारी पड़ रहा था। दोपहर 3 बजे तक कोई भी ब्रीफकेस लेने नहीं आया। पुलिस वालों ने आसपास के इलाके में तलाश की कि कहीं को छुपा हुआ तो नहं है। उन्हें कोई हाथ नहीं लगा तो वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि अपराधी फरार हो चुका है।

इंसपेक्टर माने सूर्यकान्त के पास आए। उन्होंने अपना विचार रखा कि, “किडनैपर को शायद इस बात का डर सता रहा होगा कि यदि वह ब्रीफकेस उठाने आए तो वह गिरफ्तार हो जाएगा।” सूर्यकान्त का मानना था, “हो सकता है उसने आपको देखकर पहचान लिया होगा और आपके साथी पुलिस वालों को देख लिया होगा...वह मेरे घर के टेलीफोन नंबर पर दोबारा फोन कर सकता है।

इंसपेक्टर माने सूर्यकान्त से इत्तिफाक नहीं रखते थे। उन्होंने अपनी टीम को भोजन के लिए भेज दिया। सूर्यकान्त के पास ब्रीफकेस को वापस उठाकर घर ले जाने के अलावा कोई विकल्प शेष नहीं था। घर पर सब लोग इंतजार कर रहे होंगे, वह उन्हें क्या जवाब देगा? वह बहुत परेशान था यह सोचकर कि किस तरह से अपने माता-पिता और पत्नी से नजरें मिलाएगा, जो संकेत की वापसी का बेताबी से इंतजार कर रहे हैं। सूर्यकान्त ने वैन चालू की, एक बार चारों ओर नजरें दौड़ाईं। उसे जब कोई दिखाई नहीं दिया तो वह घर की ओर निकल पड़ा। ‘मैं घर में सबको क्या बताऊंगा? यहां जो कुछ हुआ उस बारे में अपने प्रियजन को किस तरह से बताऊंगा?’ उसने सोचा कि वे सभी सदमे में आ जाएंगे क्योंकि नाव किनारे पर पहुंचकर ही डूब जो गई थी...

सूर्यकान्त अपने घर अपराह्न 4.30 बजे पहुंचा। घर का परिदृश्य उसकी कल्पना से परे, पूरी तरह से बदला हुआ था। उसे किसी से भी नजरें मिलाने की जरूरत नहीं पड़ी। उल्टे, संजय घर के बाहर दौड़ता हुआ आया। उसने उसे संक्षेप में बताया कि उन्हें तुरंत नई लोकेशन की ओर भागना होगा। प्रतिभा, जनाबाई, विष्णु, शामराव, सालन, अजय के पास घर में बैठने और प्रार्थना करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था।

सूर्यकान्त समझ ही नहीं पाया कि इधर, उसकी अनुपस्थिति में घर में क्या कुछ हुआ।

लैंडलाइन फोन एक बार फिर घनघनाया। किसी अच्छी खबर की उम्मीद लगाए प्रतिभा ने रिसीवर उठाया।

“हैलो...”

“पिल्लू हवे ना? पोलिस घेऊन येते का तिथे मला पकड़ायला? पिल्लू जीवंत पाहिजे असेल तर सांगतो तिथे पैसे घेऊन ये...”( तुम्हें अपना बच्चा चाहिए कि नहीं?मुझे पकड़ने के लिए पुलिस को बुलाया है ? बच्चा जिंदा चाहिए हो तो मैं जिस जगह पर कहूं वहां पर पैसे भिजवा दो।)

बिलकुल वही आवाज़, बातचीत करने का वही निष्ठुर अंदाज़, उसकी बातों में वही साहस गूंज रहा था, मानो वह कुछ भी कर गुजर सकता है...

प्रतिभा के हाव-भाल बदल गए। अपहरण करने वाले ने फिरौती रखने के लिए अब एक नया पता दिया था। संजय ने एक डायरी में उस पते को लिख लिया जो प्रतिभा ने उसे बताया।

“हमें कात्रज घाट से पुणे की ओर जाने वाले रास्ते पर स्थित बॉबी कॉर्नर के पास पहुंचना होगा। उसके बाद वन विभाग की जमीन की तरफ बांए मुड़ना होगा और फिर पगडंडी पर चलते जाना होगा।”

सूर्यकान्त ने हाईवे पर रफ्तार भरी। उसे मालूम था कि यह लोकेशन शिरवळ से करीब 50 किलोमीटर की दूरी पर है। उसे अपनी मनःस्थिति का पूरा भान था और वह सड़की की स्थिति भी भलीभांति जानता था। उसी के अनुसार, उसने अनुमान लगाया कि लोकेशन पर पहुंचने के लिए उसे कितना समय लग सकता है। वह जरा ठहरा। यदि रास्ते में ट्रैफिक होगा तो उसे कितना समय लगेगा? सूर्यकान्त अब अपहरणकर्ता को और अधिक चिढ़ाना नहीं चाहता था, उसे यह अच्छे से पता था कि उसकी नाराजगी अंततः बच्चे को ही भुगतनी पड़ेगी।

सूर्यकान्त ने तेजी से आगे बढ़ रही वैन का का गियर बदला। अब यह दौड़ थी उसके विचारों की और उसकी वैन की गति के बीच।

अंधेरा बढ़ने लगा था और ठंड भी, शिरवळ की सर्दियों की आम शामों की ही तरह। सूर्यकान्त और संजय के भीतर कश्मकश चल रही थी, वे गुस्से से उबल रहे थे, लेकिन चुप थे। वे आपस में कोई बातचीत नहीं कर रहे थे।

साई विहार में, प्रतिभा भगवान से सवाल कर रही थी कि उसे और कितनी परीक्षाओं से गुजरना पड़ेगा? ‘आपको हमारे साथ जो कुछ भला-बुरा करना हो, करें, पर उस मासूम बच्चे, मेरे संकेत के बारे में थोड़ा सोचें, उसे घर से बाहर गए हुए आठ दिन बीत गए हैं...वह अपनी मां से दूर है...वह क्या खा रहा होगा? क्या अपहरण करने वाला उसके साथ बुरा बर्ताव कर रहा होगा? क्या उसे तंग किया जा रहा होगा? नहीं, मुझे ऐसा नहीं लगता। आखिर शैतान भी मासूम बच्चों को परेशान नहीं करते हैं...’

जनाबाई और शालन आकर उसके पास बैठ गईं। प्रतिभा की आंखों में आंसू थे पर आवाज में गुस्सा, वह बोली, “तुम दोनों कितने ही सालों से न जाने कितने भगवानों की पूजा कर रही हो। यदि वे मेरी प्रार्थना नहीं सुन रहे, तो कम से कम तुम्हारी तो सुनना चाहिए?  भगवानों से कहो कि मेरे संकेत को वापस भेजें...” जनाबाई के पास प्रतिभा से नरमाई से व्यवहार करने और सहानुभूति दिखाने के अलावा कोई चारा नहीं था। उसने तस्वीरों के भगवानों से प्रार्थना करते हुए कहा कि वे इस परिवार पर अपनी कुछ दया बरसाएं।

शालन भी इतना दर्द देख नहीं पा रही थी। उसने सूर्यकान्त को अपने सगे बेटे की तरह ही पाला-पोसा था। संकेत के जन्म की खबर पाते ही वह मिलने के लिए आ गई थी। वह नवजात शिशु को पहली बार उठाने और अपनी गोद में खिलाने के आनंद को भूल ही नहीं सकती।

सूर्यकान्त और संजय कात्रज घाट पहुंच गए। वे बॉबी कॉर्नर के पास वन विभाग की जमीन को देख पा रहे थे। उन्हें वहां पगडंडी भी दिखाई पड़ी। हर बढ़ते कदम के साथ सूर्यकान्त महसूस कर रहा था कि वह संकेत की ओर बढ़ रहा है। करीब सौ फुट दूरी पर उन्हें एक पेड़ दिखाई दिया। जैसा कि अपहरणकर्ता ने बताया था, उन्हें  पेड़ की शाखा पर ‘भारत वूलन’ बैग लटका हुआ दिखा। वे  आश्वस्त हो गए कि वे सही राह पर बढ़ रहे हैं। जैसे ही वे 50 फुट और आगे बढ़े, उन्हें एक और सुराग मिला। उन्हें पेड़ पर लटका हुआ महिला का एक अंतःवस्त्र दिख गया। वे उसी रास्ते पर 20 फुट और आगे बढ़े। उन्हें पेड़ पर गोल्डफ्लैक सिगरेट का पैकेट लटकता हुआ नजर आया। उन्होंने उसी जगह पर पैसा छोड़ दिया। उन्हें यह नहीं मालूम था कि पैसे छोड़ने के बाद उन्हें आगे क्या करना है। टेलीफोन के हिसाब से तो उन्हें पैसे रखने के बाद घर लौट जाना था और उसके बाद जल्दी ही बच्चा उन्हें वापस मिलने वाला था, और इस बारे में उन्हें पुलिस को कुछ भी नहीं बताना था।

उन्होंने 500 रुपये के दो बंडलों के साथ ब्रीफकेस को वहां छोड़ दिया था। इस जगह से हाई वे करीब 150 फुट की दूरी पर था। उन्होंने वहीं पर अपनी वैन पार्क की हुई थी। उन्होंने थोड़ा आसपास देखा, लेकिन उन्हें कोई भी दिखाई नहीं दिया। वे वहां और ज्यादा देर रुकना भी नहीं चाहते थे क्योंकि उनका मकसद तो था कि फिरौती की रकम पाते ही अपहरणकर्ता बच्चे को जल्द से जल्द वापस कर दे, इसीलिए वे वापस अपनी वैन में आ गए। उन्हें वहां तक पहुंचने में मुश्किल से तीन मिनट लगे। वे यह जानने के लिए उत्सुक थे कि क्या वहां से ब्रीफकेस उठाया गया भी या नहीं। इसकी तस्दीक करने के लिए वे वापस उसी जगह पर लौटे। उनका अनुमान सही था, ब्रीफकेस वहां से गायब था। उन्होंने आजू बाजू देखा, पर कोई भी दिखाई नहीं पड़ा, न ही वहां पर कोई हलचल ही थी। उन्हें ताज्जुब हो रहा था कि कितनी जल्दी अपहरणकर्ता ने ब्रीफकेस उठा लिया, न कोई शोर, न संकेत न कोई गतिविधि ही महसूस हुई। वे जान गए थे कि अपराधी बहुत ही शातिर और फुर्तीला है। वे इस बात को लेकर खुश थे कि उसने उनके साथ कोई चालबाज़ी नहीं की। वे अपनी वैन में वापस आ गए और फिर उन्होंने अपने सामने जो देखा उससे भौंचक्के रह गए। वे अपनी आंखों पर भरोसा ही नहीं कर पा रहे थे।

 

अनुवाद: यामिनी रामपल्लीवार

©प्रफुल शाह