Fathers Day - 26 books and stories free download online pdf in Hindi

फादर्स डे - 26

लेखक: प्रफुल शाह

खण्ड 26

मंगलवार, 07/12/1999

सूर्यकान्त और संजय रात 11 बजे घर वापस पहुंचे। दोनों ही थकान और निराशा से घिरे हुए थे, उन्होंने घर पहुंचकर किसी से भी कोई बात नहीं की। सब उनकी ओर आशाभरी नजरों से देख रहे थे, जो कुछ हुआ उसके बारे में वे जानना चाहते थे। संजय एक कुर्सी पर बैठ गया और मौन तोड़ते हुए बोला, “अपहरण करने वाला पैसा ले गया है।”

“संकेत अभी तक वापस क्यों नहीं आया है?” प्रतिभा ने सवाल किया।

“वह वापस आएगा.. हो सकता है जहां उसने संकेत को रखा हो वहां तक पहुंचने में बहुत रात हो गई हो।” सूर्यकान्त ने जवाब दिया।

“हो सकता हैं संकेत सो रहा हो। अपहरण करने वाला उसे जगाने से डर रहा हो, कहीं वह रोने न लगे।” संजय ने आगे जोड़ा।

“यह भी हो सकता है कि अपराधी को यह सोचकर कि हमारे घर के आसपास पुलिस वाले उसको पकड़ने के लिए तैनात होंगे, तुरंत यहां आने में असुरक्षित लग रहा हो।” सूर्यकान्त का कहना था।

संजय ने अपने पिता और चाचा की ओर देखा। “पुलिस वालों की उपस्थिति खतरनाक हो सकती है। सुबह की ही तरह यदि उसने उन्हें शाम को भी देख लिया होता तो बहुत तनाव हो जाता। यह तो अच्छा हुआ कि पुलिस तब पहुंची जब वह ब्रीफकेस लेकर जा चुका था। हमने जैसी ही उसके बताई हुई जगह पर ब्रीफकेस रखा, उसने उठाने में कोई देर नहीं की।”

“तुम दोनों बिना कोई पुलिस सहायता लिए अपराधी से मिलने निकल गए थे। हम तुम दोनों की सुरक्षा को लेकर चिंतित थे। हमने तुरंत ही पुलिस को सूचित कर दिया था क्योंकि तुम्हारी सुरक्षा भी उतनी ही जरूरी थी, जितनी कि संकेत की।” विष्णु ने सफाई दी।

“हमें उस समय जो ठीक लगा, हमने वही किया। आशा है तुम लोग हमारी मनःस्थिति को समझ सकते हो।” शामराव ने बात आगे बढ़ाई।

“कोई बात नहीं। इस समय सबसे जरूरी यह है कि वह अपने वादे के मुताबिक संकेत को वापस लौटाए। उसने जो रकम मांगी थी, वो हमने उसे दे दी है, और हम जानते हैं कि उसने वह ले भी ली है। हमको तभी राहत मिलेगी जब वह अपने बात पर कायम रहेगा।” संजय बोला।

“वह संकेत को वापस कर देगा, उसे करना ही पड़ेगा, भले ही थोड़ी देर हो गई हो, पर ठीक है...” सूर्यकान्त ने आगे कहा।

भांडेपाटील परिवार को बड़े धीरज के साथ अगली चाल का इंतजार करना था। परिवार के सभी सदस्य शांतिपूर्वक हॉल में बैठकर आशा भरी नजरों से मुख्य द्वार की ओर ताक रहे थे। उत्सुकतावश, सूर्यकान्त कभी-कभी मुख्य दरवाजे की ओर चक्कर लगा लेता था तो संजय खिड़की के बाहर झांक लेता था।

रात की ठिठुरन के बीच, उन्होंने एक स्कूटर के पास से गुजरने की आवाज सुनी। हर कोई साई विहार के बाहर की ओर भागा, उन्हें दिखाई दिया एक आदमी जो हेलमेट पहने, स्वेटर और मफलर में लिपटा हुआ था, जो तेजी से उनके सामने से गुजर गया।

इंतजार अंतहीन लग रहा था और प्रतिभा के आंसू थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे। उसकी तरफ देखकर सूर्यकान्त को चिड़चिड़ाहट भी ओर रही थी और चिंता भी। “संकेत वापस आ जाएगा, हो सकता है एक या दो घंटे में और हो सकता है कि कल या परसों...अब तुम रोना बंद करो।”

साई विहार से नींद मानो गायब हो चुकी थी। परिवार का हर सदस्य दूसरे को आराम करने की सलाह दे रहा था, लेकिन कोई भी अपने इस आदेश का पालन नहीं कर रहा था। एक भी झपकी आराम की जगह चिंता कारण बनी हुई थी। अंततः, सूर्यकान्त ने सभी को बिस्तर पर जाकर सोने के लिए कहा। “यदि संकेत को गेट के बाहर लाकर भी छोड़ दिया जाए तो उसे मालूम है कि अंदर कैसे आना है।”

“मैं तो इस जगह से तब तक हिलने नहीं वाली जब तक मेरा संकेत वापस नहीं आ जाता।” प्रतिभा ने पक्के इरादे से कहा।

“मैं तुम्हारे साथ बैठूंगी। सूर्यकान्त और संजय, तुम दोनों जाओ और आराम करो। आज का पूरा दिन तुम दोनों के लिए बहुत कठिनाई भरा रहा है।” जनाबाई का कहना था।

शालन भी प्रतिभा और जनाबाई के नजदीक आकर बैठ गईं।

न तो सूर्यकान्त, न ही संजय अपनी जगह से हिला।

“क्या तुम दोनों सुन पा रहे हो? यदि आराम नहीं करोगे, तो बीमार पड़ जाओगे।” अबकी जनाबाई ने जोर देकर कहा।

“तुम चुप रहो। ऐसी स्थिति में कोई भी सो नहीं पाएगा.” अब तक विष्णु आपा खो चुके थे।

शामराव ने इशारों ही इशारों में अपने भाई को संकेत दिया कि वह शांत रहे।

जनाबाई को सौरभ को बहला-फुसला कर उसके कमरे में भेजना था, ताकि वह नींद ले सके। वह अपने कमरे में चला तो गया, पर सो नहीं पा रहा था। उसे मालूम था कि यदि वह कमरे से बाहर निकलेगा तो उसे डांट पड़ सकती है, तो वह कमरे के आधे बंद दरवाजे के बीच से बाहर देख रहा था। ‘संकेत को आज शाम को ही घर वापस आना था। लेकिन वह अभी तक वापस नहीं आया है...’ कुछ पलों के लिए उसने अपनी चिंताओं को एक किनारे किया और पराग और पायल से मिलने चला गया। वे आराम से सो रहे थे। उनको सोता देखकर, सौरभ को संकेत की पहले से ज्यादा याद आने लगी। वह पराग के पास बैठ गया, उसके सिर पर प्रेम से हाथ फेरा उसके बाजू में ही सो गया। उसे याद नहीं कि उसे कब नींद आ गई।

सुबह हो गई। पहली रात को कोई भी नहीं सोया था। उदासी को दूर करने के लिए परिवार के मुखिया होने के नाते विष्णु ने सभी को तैयार होकर चाय-नाश्ता लेने की हिदायत दी। जब कोई भी अपनी जगह से नहीं उठा तो उन्होंने अपमानित महसूस किया। “मैं जो कह रहा हूं, क्या तुम लोग समझ नहीं पा रहे हो? संकेत किसी भी समय आ सकता है। क्या तुम लोग उस समय नहाने के लिए जाना रहना पसंद करोगे या रसोई घर में काम करना पसंद करोगे?”

विष्णु ने जनाबाई और शालन की ओर तीखी नजरों से देखा। उन्हें समझ में आ गया कि अब उन्हें आगे क्या करना है।

जनाबाई ने प्रतिभा को जबर्दस्ती उठाया। “रसोई घर में चलो। आज संकेत की पसंद की कोई चीज बनाते हैं। हमें मालूम नहीं कि इतने दिनों तक उसने क्या खाया है। घर के बने खाने से अच्छा तो कुछ हो ही नहीं सकता। चलो...चलो...”

प्रतिभा को रसोई घर की तरफ जाते हुए देखकर सूर्यकान्त को राहत मिली। वह भी उठा और उसने संजय की तरफ देखकर उसे तैयार होने के लिए कहा। “ तैयार हो जाते हैं। यदि कोई और फोन आते हैं, तो स्थिति से निपटने के लिए हमें तैयार रहना ही होगा।”

साई विहार में परिवार वालों ने अपनी दिनचर्या प्रारंभ कर दी थी लेकिन शिरवळवासियों ने बातें बनाना शुरू कर दिया था।

“मैंने सुना है कि अपहरण करने वाले ने 2 लाख की मांग कर दी है।”

“उसने मांगे थे और इन लोगों ने कल शाम को ही वो रकम उसे दे दी है।”

“शाम को या सुबह? मैंने उन लोगों को सुबह पुलिस वालों के साथ कहीं जाते हुए देखा था।”

“क्या अपहरणकर्ता ने एक ही दिन में दो बार पैसे मांगे थे? ”

“क्या सूर्यकान्त में इतनी ताकत है कि वह दिन में दो बार इतनी सारी रकम दे सके?”

“कौन सा पिता अपने बेटे के लिए नहीं करेगा? यदि उसके पास नहीं होंगे तो किसी से उधार मांगेगा। ”

“ईमानदारी की बात तो यह है कि मुझे भरोसा ही नहीं है कि अपहरणकर्ता दिन में दो बार फिरौती की मांग कर सकता है।”

“कुछ तो गड़बड़ है। यदि अपहरण करने वाला आपसे दो बार पैसों की मांग करता है, और आप उसे पूरा कर देते हैं तो वह आपको परेशान करने की आदत बना लेगा, और यदि वह ऐसा करते रहेगा तो अच्छे से अच्छा अमीर भी कंगाल हो जाएगा।”

“इस केस में बहुत सारे संदेह हैं। शिरवळ पुलिस और नागरिकों ने मिलकर इस प्रकरण को सुलझाने के लिए न जाने कितनी कोशिशें कीं, लेकिन फिर भी अपराधी पकड़ से बाहर है।”

“शिरवळ पुलिस ही क्यों, सातारा की स्थानीय अपराध शाखा के लोग भी तो इसमें सक्रियता से लगे हुए हैं।”

“अधिक पैसा कमाना भी किसी मुसीबत से कम नहीं। हमारे जैसे किसी सामान्य व्यक्ति के बच्चे का अपहरण क्यों नहीं होता? ”

“सावधानी में ही सुरक्षा है। हमें भी सावधान रहने की जरूरत है, समय बहुत खराब है।”

“हां, यह तो सही बात है। आश्चर्य की ही बात है कि अपहरण करने वाले ने एक बच्चे को इतने दिनों तक कैसे संभाल कर रखा हुआ है।”

जितने लोग, उतनी बातें....

लोग क्या कह रहे हैं, क्या सोच रहे हैं इस पर विचार करने का न तो भांडेपाटील परिवार के पास समय ही था, न ही कोई आवश्यकता। उनके अपने कई विषय थे, जिन पर ध्यान दिया जाना था।

सूर्यकान्त ने स्नान किया, वार्डरोब खोला, पहनने के लिए कपड़े तय कर ही रहा था कि उसका ध्यान वहां पड़े हुए एक प्लास्टिक बैग पर गया। उत्सुकतावश, उसने देखा कि उसके अंदर क्या रखा है। उसे 500 रुपए के दो बंडल मिले। वह अपने भुलक्कड़पन पर मुस्कुरा दिया।

अनुवाद: यामिनी रामपल्लीवार

©प्रफुल शाह