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फादर्स डे - 34

लेखक: प्रफुल शाह

खण्ड 34

शनिवार, 11/12/1999

सूर्यकान्त अपनी पत्नी प्रतिभा, अपना प्यार और उसके बच्चे की मां को किसी मेटरनिटी अस्पताल में ले जाने के लिए सातारा की सड़कों पर उड़ान भर रहा था। जीप को चलाते हुए उसने अपने गुस्से पर काबू रखने की बहुत कोशिश की। उसे मालूम था कि उसे प्रतिभा का ख्याल रखना है, साथ ही होने वाले बच्चे का भी। आज, नीरा के किनारे पर चलते हुए उसके सामने 8 अक्तूबर 1996 की शाम जीवंत हो उठी। ‘सड़क पर कितना भारी ट्रैफिक था। प्रतिभा की हालत नाजुक थी और मुझे उसकी सुरक्षित डिलेवरी के लिए एक डॉक्टर या एक क्लिनीक की तलाश थी, ताकि उसे एडमिट करवा सकूं।’ मानसिक तनाव के  उन घंटों को याद करके सूर्यकान्त के रोंगटे खड़े हो गए। वह एक बार फिर भूतकाल में चला गया।

अंततः, स्ट्रीट लाइट की मद्धिम रौशनी में, सड़क की दाहिनी तरफ उसने एक बोर्ड देखा जिस पर डॉ. अजय लिखा हुआ था। वह मुड़ा, तुरंत अपनी गाड़ी खड़ी की और प्रतिभा को अस्पताल के अंदर ले गया। डॉ. अजय को उसने जो कुछ हुआ उसके बारे में पूरी ईमानदारी के साथ बता दिया। डॉक्टर ने सूर्यकान्त की तरफ आश्चर्य और सम्मान की नजरों से देखा। उसने अपने स्टाफ को सूचना दी और प्रतिभा को भीतर ले गया।

डॉ. अजय ने सूर्यकान्त के कंधे पर हाथ रखा। उसने आश्वासन दिया कि मां और बच्चे को बचाने के लिए वह अपने सारे बेहतरीन प्रयास करेगा। “चिंता न करें, प्रार्थना करें।” उसने बड़ी शांति और स्नेह के साथ कहा।

सूर्यकान्त ने चार दिनों तक प्रार्थना की। डॉक्टर ने दंपति को दिलासा दिया और  तनाव न लेने की सलाह दी। अंततः, बच्चे ने 12 अक्तूबर, 1996 को शाम 6 बजकर 20 मिनट पर जन्म लिया। वह एक स्वस्थ बालक था जो कि नॉर्मल डिलेवरी से पैदा हुआ था।

सूर्यकान्त इस खबर से बहुत खुश हुआ था। लेकिन वह उस डॉक्टर को भी भूला नहीं जिसने उसे प्रतिभा और अजन्मे बच्चे के जीवन को लेकर खतरा उठाने के लिए बाध्य किया था। ‘’ तुमने कहा था कि सातारा का कोई भी डॉक्टर मेरी पत्नी को एडमिट नहीं करेगा। मेरी पत्नी ने एक बालक को सामान्य प्रसव से जन्म दिया है। सीजेरियन करने की कोई जरूरत नहीं पड़ी। मां और बच्चा, दोनों स्वस्थ हैं। क्या  मुझे मीडिया को आपके पास भेजकर आपकी जांच-पड़ताल करवानी चाहिए?”

सूर्यकान्त को फोन काटना पड़ा क्योंकि नर्स उसकी ओर भागती हुई आई और बोली कि प्रतिभा उसे बुला रही है।

सूर्यकान्त तुरंत उधर भागा। उसने प्रतिभा का हाथ अपने हाथों में ले लिया। दंपति ने भावनाओं का आदान-प्रदान किया और बिना बोले ही एकदूसरे से बहुत कुछ कह दिया। आखिरकार, उन्होंने अपने मन की बात कह ही डाली।

“मैंने अपनी मूर्खता के कारण तुम दोनों की जिंदगी को खतरे में डाल दिया था।”

“नहीं, मैं तुम्हारी वजह से ही खतरे से बाहर आई।”

“खतरे से बाहर? भला कैसे?”

“यदि तुमने साहस दिखाकर मुझे उस अस्पताल से बाहर नहीं निकाला होता तो डॉक्टर ने मेरा ऑपरेशन कर दिया होता। हमें और अधिक पैसे खर्च करने पड़ते, मुझे सर्जरी के कारण और अधिक दर्द सहन करना पड़ता और हम दोनों को ही अधिक परेशानी उठानी पड़ती। ”

“लेकिन मेरा बर्ताव बहुत खराब था। यह तो अच्छा हुआ कि हमें उसकी कीमत नहीं चुकानी पड़ी। ईश्वर ने हम पर बड़ी कृपा की।”

“तुमने जो कुछ भी किया उसके कारण हमारा भला ही हुआ है।”

सूर्यकान्त प्रतिभा को लगातार देख रहा था। ‘उसका मन कितना अच्छा है। उसने कभी कोई शिकायत नहीं की। उसने मुझे हमेशा ही सहारा दिया, मुझे समझा और प्यार किया। मैं कितना भाग्यशाली इंसान हूं।’

सूर्यकान्त ने धीमे से प्रतिभा का माथा सहलाया। उसकी आंखों में आंखें डालते हुए बोला, “मैं तुमसे बहुत सारी बातें करना चाहता हूं। लेकिन इस समय तुम्हें बहुत आराम करने की जरूरत है।”

उसी समय नर्स ने कमरे में प्रवेश किया। उसके हाथों में सफेद कपड़े में लिपटा हुआ उनका बच्चा था। उसने मजाकिया अंदाज में कहा, “खूब आराम करें, लेकिन इस राजकुमार की इजाजत लेने के बाद ही!”

सूर्यकान्त ने बच्चे की ओर देखा। “कितना खूबसूरत है यह बच्चा। इसने कुछ ही घंटों पहले मेरी जिंदगी में प्रवेश किया है, लेकिन लगता ऐसा है कि हम एकदूसरे को बरसों से जानते हैं। ” उसने अपने हाथों को रुमाल से पोंछा, और अपने दाहिने हाथ की पहली उंगली को नन्हें के नरम-मुलायम गालों पर फेरा। बच्चा तुरंत मुस्कुरा दिया। प्रतिभा ने हंसी में कहा, “हम दोनों के बीच बच्चे ने सबसे पहले तुम्हारे साथ संबंध बना लिया।”

सूर्यकान्त जब अपने बच्चे की खूबसूरती को निहारने में मग्न था, उसका मोबाइल फोन बज उठा। प्रतिभा ने फोन कॉल का जवाब देने के लिए कहा। उसने अपनी पैंट की दाहिनी जेब से मोबाइल फोन निकाला और अनिच्छा से बात की।

“हैलो... सच में? काय सांगते? एकदम मस्त न्यूज....इकड़े पण गुड न्यूज हाय… मुलगा… हो… ओके… नक्की… नक्की.... पहले हम पार्टी करेंगे, उसके बाद खूब मेहनत से काम करेंगे...थैंक यू...बाय।”

सूर्यकान्त ने अपने बच्चे की तरफ देखा और कहा, “”मेरा बच्चा मेरे लिए भाग्यवान है। ”

“हुआ क्या, मुझे भी तो बताओ।”

“मैंने एक बड़े प्रोजेक्ट के लिए आवेदन दिया था। उसके लिए कई लोग लगे हुए थे। कई बड़ी पार्टियां इस रेस में थीं। उनके पास मुझसे ज्यादा पैसा और अनुभव है। मुझे चांस मिलने की बहुत कम संभावना थी, लेकिन काम मुझे ही मिला। मैंने जो बजट दिया था, वह उन्हें ठीक लगा।”

“कई लोगों के लिए बेटियां भाग्य लेकर आती हैं, लेकिन हमारे लिए हमारा बेटा सौभाग्य लेकर आया है।”

“इस बच्चे का जन्म मेरे लिए बहुत सौभाग्यशाली है। ये हमारे लिए ईश्वर का उपहार है।”

सूर्यकान्त ने बच्चे को बड़ी सावधानी से उठा रखा था और वह उसे लेकर बड़ी देर तक बैठा रहा।

सूर्यकान्त वर्तमान में लौट आया, उसकी आंखों से आंसू झर रहे थे। उसने संकेत की फोटो को बड़े प्यार से देखा। “तुम्हारा जन्म हमारे लिए सौभाग्य लेकर आया था। मैं अपने व्यावसायिक लक्ष्यों को एक के बाद पाता ही चला गया। तुम अचानक कहां खो गए? मेरे बच्चे, जल्दी लौट आओ। अब मुझे डर लगने लगा है।”

सूर्यकान्त नीचे बैठ गया। उसने संकेत के फोटो अपने दिल के करीब रख लिया। उसने अपनी आंखें बंद कर लीं और उसके आंसू आंखों से निकलकर गालों पर बहते चले जा रहे थे। अचानक उसने अपने कंधे पर किसी का स्पर्श महसूस किया। उसने आंखें खोलीं और पीछे मुड़कर देखा। वहां पर सौरभ था। वह डर और असहायता से सिहरा हुआ था। उसे प्रेम, सहारे और किसी की नजदीकी की आवश्यकता थी। सूर्यकान्त उसे अपने पास खींचा और बड़ी जोर से अपने गले लगा लिया। एक लंबे समय से दोनों ने एकदूसरे से कुछ नहीं कह-सुन रहे थे। प्रतिभा उन्हें दूर से देख रही थी लेकिन उसने कुछ भी नहीं कहा।

सूर्यकान्त का मोबाइल फोन बजा। उसने शांति भंग की और पिता-पुत्र के बीच के भावनात्मक आदान-प्रदान में बाधा भी खड़ी की। उसने जवाब दिया, “हैलो, हां, ओके, नक्की, हम जरूर वैसा ही करेंगे, बाय।”

सूर्यकान्त की आंखों में चमक आ गई, एक नई आशा की किरण। उसने एक फुलस्केप कागज पर कुछ लिखा। जो कुछ लिखा उसे काट दिया। उसने उस कागज को मरोड़ा और दूर फेंक दिया। उसने दोबारा लिखना शुरू किया और देर रात तक लिखता रहा। जब वह पूरा लिख चुका तो उसके चेहरे पर एक अलग ही चमक छा गई।

अनुवाद: यामिनी रामपल्लीवार

©प्रफुल शाह

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