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मैं तो ओढ चुनरिया - 49

 

मैं तो ओढ चुनरिया 

 

 

49

 

इस घटना की सूचना हमें मिली तो परिवार के सभी लोग उदास हो गये । फौजी भाई साहब बेहद हँसमुख , जिंदादिल और मिलनसार व्यक्ति थे । सब को अपना बना लेने की कला उन्हें आती थी । जहाँ बैठते महफिल गुलजार हो जाती । हमेशा कोई न कोई बात सुनाते रहते । कई लोकगीत उन्हें याद थे जो वे पूरी शादी में जब तब सुनाते रहे थे । हमेशा हँसते और हँसाते रहते । चाचा की शादी में वे छाये रहे थे । भारत सरकार की नौकरी के चलते उन्हें अलग अलग राज्यों में जाने और वहाँ के जनजीवन को नजदीक से देखने का मौका मिला था । इस अनुभव ने उन्हें खुली सोच का बना दिया था पर बहन भाइयों , यहाँ तककि माँ पर भी उनका कङा अनुशासन था । सब उनसे डरते थे । सब उनका आदर करते थे । जो उन्होंने कह दिया , वह पत्थर की लकीर । मजाल है कोई उनकी बात काट जाए । अपनी जरूरत भर का रख कर पूरी तनख्वाह घर भेज देते । बस एक ही तमन्ना थी कि सारे बहन भाई पढ लिख कर कहीं अच्छी नौकरी पा जाए तो घर की गरीबी दूर हो जाय । माँ की सुविधा का ख्याल करके बीबी को कभी नौकरी पर साथ लेकर नहीं गये । सारी जिंदगी अकेले काट दी । बस साल में दो महीने की छुट्टी आते तो ही बीबी बच्चों को सामने देख पाते । उसमें भी भाइयों की चिंता मुख्य रहती । ऐसे बेटे का असमय मात्र चालीस साल की उम्र में चले जाना वाकई में परिवार के लिए बहुत बङा सदमा था ।
माँ और पिताजी दोनों उनके दुख में शामिल होने कोटकपूरा गये और दो दिन लगा कर लौट आए । पता चला कि वे भैया बाहर वाली पथकन में अपने लिए घर बना रहे थे । एक महीने की छुट्टी लेकर आए थे तो एक कमरा , रसोई और गुसलखाना बनवा गए । अभी फर्श लगना और पलस्तर होना बाकी था कि छुट्टियां खत्म हो गई । उन्हें वापस जाना था । उस दिन वे काफी उदास थे । उनके बाजू में भी हल्का हल्का दर्द था । पर उन्होंने उस पर ध्यान ही नहीं दिया बस एक पेनकिलर कैप्सूल लिया और जाने के लिए सामान बांधने लगे । सबने डाक्टर को दिखाने के लिए कहा भी पर बोले – अरे कुछ नहीं बस थकावट की वजह से बांहें दर्द कर रही हैं । आराम करने से ठीक हो जाएंगी । वैसे भी मैंने दर्द के लिए गोली तो खा ली है न । सही समय पर भाई स्टेशन ले जाकर गाङी में बैठा आया । चलते हुए भाई से कहा – सुन अपनी भाभी का ख्याल रखना ।
परिवार के लिए बेटे का जाना सामान्य सी बात थी । वे हर साल इसी तरह छुट्टी आते और कुछ दिन रह कर लौट जाते थे । इस बार उन्हें उधमनगर बेस पर रिपोर्ट करना था । अभी उन्हें गये आठ नौ दिन ही हुए थे कि फौज की ओर से तार द्वारा उनके उधमपुर से करीब सौ किलोमीटर दूर पहाङी गाँव में ट्रक चलाते हुए हार्ट अटैक से मरने की खबर आई । पूरा परिवार सकते में आ गया । हर तरफ रोना धोना मच गया । अङोसी पङोसी रिश्तेदार सब आ जुटे । भाभी तो बार बार बेहोश हो जाती । इस बीच दोपहर को डाकिया चिट्ठी डाल गया । चिट्ठी मिलते ही सबके चेहरे खिल गए । खत भाईसाहब ने अपने हाथ से पहुँचने के अगले दिन लिखा था और अपने सही सलामत पहुँच जाने की सूचना दी थी । खत सुनकर औरतें खुश हो गई कि शुक्र है , फौजी सहीसलामत है । पर मर्द इस चिट्ठी को मानने के लिए तैयार नहीं थे । ये चिट्टी रास्ते में पाँच दिन लगा कर छटे दिन पहुँची थी जबकि तार दूसरे दिन । फौज के अफसर परिवार के साथ इतना भद्दा मजाक क्यों करेंगे । ऐसी खबर झूठी तो कोई दुश्मन भी नहीं देता फिर वे तो अफसर हैं , वे इस तरह से गलत खबर कैसे दे सकते हैं । आखिर यह तय हुआ कि दो लोग फरीदकोट छावनी जाकर अफसरों से सम्पर्क करने की कोशिश करेंगे ताकि सच सामने आ सके । तो अगले दिन ये दो भाई और एक इनके मामा फरीदकोट कैंट गये । वहाँ के सी ई ओ से मिले तो पूरी बात सुनकर वह मदद के लिए तैयार हो गया । उसने उधमपुर के सी ई ओ से बात करके तार की सच्चाई जाननी चाही । खबर सच्ची ही थी । उधमपुर से राशन लेकर द्रास जाते हुए उन्हें रास्ते में ही हार्टअटैक आया था और वहीं उन्होंने अंतिम सांस ली थी । उनका शव उधमपुर बेस कैंप लाया गया जहाँ उनका अंतिम संस्कार सैनिक सम्मान के साथ कर दिया गया था । अब संदेह की कोई गुंजाइश नहीं थी । ये तीनों घर लौट आए । अगले दिन दो लोग उधमपुर गये और जाकर सैन्य अधिकारियों से मिले । अधिकारियों ने उन्हें अस्थिकलश के साथ संस्कार की फोटो , वीडियो और उनका सामान सौंप दिया और हर संभव सहायता देने का आश्वासन दिया । ये लोग भारी मन से लौटे जो उम्मीद मन में बार बार सिर उठा रही थी , अस्थिकलश के घर पहुँचते ही टूट गई ।
यानि अब बरसी होने तक शादी की कोई गुंजाइश नहीं थी । आखिर घर के सबसे बङे बेटे की बात थी , वह भी युवा मौत की तो ऐसे में शादी की बात कैसे हो सकती थी । इधर माँ को एक नया खब्त सवार हो गया । वे सोचती , शादी से पहले जवान बेटे का मरना माँ और भाभी तो यही कहेंगी कि कैसी मनहूस लङकी शादी करके आ रही है कि जवान बेटा दुनिया से चला गया । लङकी को सारी जिंदगी सुनना पङेगा । रिश्ता तो पहले ही उन्हें खास पसंद नहीं था अब वे दिन रात पिताजी से रिश्ता तोङ देने का दबाव बनाने लगी । पिताजी सुन कर अनसुना कर जाते ।
उधर फर्नीचर अलग घर के कोने में रखा रखा धूल से भर रहा था । रामकटोरी ने दो महीने अपने घर रख कर सारा फर्नीचर यह कह कर लौटा दिया था कि बच्चे छोटे है । सारा दिन सोफों पर कूदते रहते हैं । सामान मैला हो रहा है । टूट भी सकता है तो आप अपने सामने ही रखो । आखिर यह सारा सामान घर के प्रयोग में ले लिया गया कि जब शादी होगी तब नया ले लिया जाएगा तो घर सोफा पलंग और श्रंगार मेज से सज गया । जो कोई घर आता सामान देख कर खुश हो जाता । माँ बङा उदास होकर कहती , बेटी के लिए लिया था पर अब उनका बङा बेटा मर गया । शादी टल गई । अब पता नहीं कैसे बात सिरे चढेगी । ईश्वर जाने क्या होने वाला है । फूफाजी होंसला देते हुए खत लिखते कि घबराओ नहीं , थोङा देर तो होगी पर शादी जरूर होगी पर माँ की हिम्मत टूट टूट जाती ।

 

बाकी फिर ...