Budhape se Jawani ki Aur - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

बुढ़ापे से जवानी की ओर (सच्ची घटना) - 2

बुढ़ापे से जवानी की ओर -2 (सच्ची घटना)

आर० के० लाल 


राकेश जी का भतीजा नीरज  छुट्टियां बिताने एक हफ्ते से उनके यहां आया था । रिटायर होने के बाद राकेश अपनी ज्वाइंट - फैमिली को छोड़ कर अपने बेटे सुमित के यहां नोएडा चले आए थे। नीरज ने सोचा था कि नोएडा चलकर  खूब मस्ती करेंगे और चाचा के साथ खूब घुमेंगे, मॉल जाकर पी वी आर में मूवी देखेंगे मगर यहां जाकर उसने महसूस किया कि उसके चाचा तो पहले वाले जिंदादिल इंसान रह ही नहीं गए हैं और वे काफी बदल गए हैं। उनकी मानसिकता संकीर्ण सी हो गई है। छोटे से फ्लैट में दिन भर अपने कमरे में पड़े रहते हैं। कभी-कभार ही सब्जी लाने अथवा  बच्चों को स्कूल की बस तक पहुंचाने के लिए घर से निकलते हैं। सब मिला कर वे आलसी से लगने लगे थे।

नीरज को पता चला कि राकेश अपनी पूरी पेंशन अपनी बहू को ही दे देते हैं जो घर चलाती है इसलिए राकेश उनके आदेशों का ही पालन करके अपना जीवन धन्य करते रहते हैं। वैसे तो सोसायटी में उनके दो चार हम-उम्र दोस्त भी बन गए थे परंतु वे उनके साथ कम ही समय बिताते हैं और अपने फैमिली-मेंबर्स के साथ ही कहीं आना जाना पसंद करते हैं। कहते हैं कि रिटायरमेंट के बाद मुझे सिर्फ अपने परिवार के लिए जीना है। उन सब का काम करने को वे तत्पर रहते हैं जबकि कोई उनका काम नहीं करता। अपनी पत्नी की भी परवाह नहीं करते ।

नीरज से नहीं रहा गया तो उसने एक दिन बोल ही दिया, “चाचा! अब आप 60 वर्ष से अधिक के हो गए हैं। रिटायरमेंट के  बाद से तो आप और अधिक उम्र-दराज लगने लगे हैं। लखनऊ में तो आप किसी हीरो से कम नहीं लगते थे। हमेशा वेल ड्रेस्ड रहते थे और अपने दोस्तों के साथ चहकते रहते थे। अब तो चेहरे से लगता है जैसे आपको कोई गंभीर बीमारी हो गई हो हो।

राकेश यह सुन कर बिना कुछ बोले मात्र , हंस देते हैं पर उनकी भाव-भंगिमा कुछ और ही बयां कर रही थी। शायद उन्हें भी इन बातों का एहसास है मगर हालात से कम्प्रोमाइज कर लिया है।

नीरज को लगा और लोग कहते भी हैं कि अपने परिवार से कुछ ज्यादा चिपके रहने के कारण ही वे कुछ अधिक बूढ़े लगते हैं। अपनी पत्नी, बहू-बेटे और उनके दो बच्चों के साथ वे सभी के पीछे ही चलते हैं तो चेहरे पर प्रॉमिनेंट हो गई निराशा की झुर्रियां और रंगे  बालों के बीच झांकती सफेदी मुंह चिढ़ाती हुई सी लगती है। 

इसके विपरीत नीरज को लगा कि जब उस दिन राकेश अपने वरिष्ठ नागरिक दोस्त खरे जी के साथ पार्क में टहल रहे थे तो वे मात्र चालीस-पैंतालीस साल के ही लग रहे थे। इतना ही नहीं जब लाल साहब, राकेश,  कमल जी, पचौरी जी, गुप्ता जी और श्रीवास्तव जी आदि क्लब हाउस में साथ बैठे गप मार रहे थे तो भी सभी बीस पच्चीस वर्ष के युवा ही लग रहे थे। उन लोगों के व्यवहार एवं बातचीत ठहाकों और रंगीनियों से सराबोर थी, लगा सबकी उम्र घट गई हो।  

ये सारे अनुभव नीरज ने राकेश को खुल कर बताए और छोटा होने के बावजूद भी उनसे कहा,  कि इसलिए तय कीजिए कि आप क्या चाहते हैं। नीरज ने कहा, “बालों और बाल-बच्चों की जरूरत से ज्यादा परवाह किए बगैर अधिक सीनियर सिटीजन लोगों से पक्की दोस्ती कीजिए, उनके साथ भ्रमण कर समय बिताइए और अपनी उम्र आनुपातिक रूप से घटाइए । इससे आपका जीवन काल बढ़ेगा और आपकी मस्ती भी”।

नीरज ने राकेश चाचा को जब सच्चाई बताई और हिदायत दी तो राकेश जी भी सोच में पड़ गए कि नीरज ने उनके जीवन की पुस्तक के पन्नों को खोल कर उनके सामने रख दिया है, उन्हें कुछ करना चाहिए ताकि बुढ़ापे से बचे रहें।

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