Bodyguard - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

बॉडीगार्ड - 2

अब आगे।

(अर्जुन का दिमाग बहुत तेज था। अर्जुन वो सोच सकता था, जो आज की दुनिया मे शायद ही सोच सकता हैं। यहाँ पर मसला सिर्फ एक ही था, की, अर्जुन को इंसानियत का अर्थ जानना था। इसलिए वो सिर्फ इस विषय पर बात करने लगा था। वीर के पास अर्जुन के सवाल का कोई जवाब नही था। इसलिए अर्जुन अब वहा से घर लौट आया।)

(शाम के पाँच बज रहे थे। रोहित जी भी अब तक घर लौट आये थे। रोहित जी घर के बाहर चेयर पर बैठ कर अपने पड़ोसी रामलाल जी से बाते कर रहे थे। अर्जुन अंदर अपने कमरे से बाहर आया।)

"पापा, मुझे आपसे कुछ बात करनी है!
(अर्जुन ने आते हुए कहा।)

" बेटा, बाद मे बात करे! अभी हम कुछ ज़रूरी बात कर रहे है।
(रोहित जी ने अर्जुन को देख कर कहा।)

"लेकिन, पापा बात ज़रूरी है।
(अर्जुन ने कहा।)

" मैंने कहा न अर्जुन, हम बाद मे बात करेंगे! अभी तुम जाओ, और खाना बनाने की तैयारी करो।
(रोहित जी ने अर्जुन से कहा।)


(अर्जुन वापस पीछे मूड कर अंदर चला जाता है।)


"भैय्या, क्या हुआ? आप इतने परेशान क्यो लग रहे है?
(सूर्या ने सीढ़ियों से नीचे आते हुए पूछा।)


" मुझे पापा से ज़रूरी बात करनी है , लेकिन पापा अभी व्यस्त हैं। उन्होंने बोला की, खाना बना लो।
(अर्जुन ने परेशान हो कर कहा।)


"ऐसी भी क्या ज़रूरी बात है भैय्या, जो आप सुबह से इतने टेंशन मे हो!
(सूर्या ने अर्जुन के बाह को पकड़ कर पूछा।)


" छोटे, मै बाद मे बताऊंगा। अभी खाना बना लेते है!
(अर्जुन इतना कहकर किचन मे चला जाता है।)


"भैय्या...भैया रुको! मै भी आता हू!
(सूर्या ने अर्जुन के पीछे किचन मे आते हुए कहा।)


" तु यहाँ क्यो आया है छोटे? अपने कमरे मे जाकर अपनी पढाई कर!
(अर्जुन ने एक बर्तन उठाते हुए कहा।)


"भैया, मै भी आपकी हहेल्प करता हूँ, खाना बनाने में!
सूर्या ने अर्जुन से कहा।)


" छोटे, मैंने कहा न, अपने कमरे मे जा! मुझे तेरी हेल्प की ज़रूरत नही है।
(अर्जुन थोड़ा सक्त होकर सूर्या से कहा।)


(अर्जुन की बात से सूर्या को तकलीफ हुई। वो अपने कमरे मे चला गया और कमरे का दरवाजा अंदर से बन्द कर दिया। अर्जुन ने एक पतिला लिया और उसमे पानी डालकर थोड़ा नमक भी डाल दिया। दरसल अर्जुन की माँ इस दुनिया मे नही है। अर्जुन जब दस साल का था, तब एक बड़ी बीमारी की वजह से चल बसी थी। तब से रोहित जी और अर्जुन-सूर्या अपनी लाइफ अकेले जी रहे है।)


"तो चलता हूँ मै रोहित साब!
(रामलाल जी ने रोहित जी से कहा।)

"ठीक है रामलाल जी। और मै सोचूँगा उस बारे में! सोच कर आपको बताऊंगा।
(रोहित जी ने रामलाल जी से कहा।)


(रामलाल जी वहा चले जाते है। रोहित जी मुस्कुराकर उनको देखते हैं , फिर पलट कर घर के अंदर जाते है।)

.................

वीर का घर।

(वीर अपनी बाइक से घर आता है।)

" माँ... माँ कहा हो आप?
(वीर ने अपनी माँ को आवाज़ लगायी।)

"अरे मै आ रही, वीर बेटा!
(कुसुम जी ने कहा।)


(हे भगवान! यह लड़का भी न, दिन भर बाहर घूमता रहता है। ज़रा सा भी घर पर पैर नही टिकता। घर मे इतना काम पड़ा है और यह मज़ा मस्ती करके आता है। रुको, अभी इसकी खबर लेती हूँ। यही सब बुदबुदाते हुए कुसुम किचन से बाहर आयी।)

" कहा गया था तु?
(कुसुम ने वीर से पूछा।)

"माँ, वो मै...
(वीर ने कहा। पर कुसुम वीर की बात पूरी होने से पहले आगे पूछती हैं।)

" वो मै क्या?
(कुसुम नही हाथ की घडी बांध कर पूछा।)

"मै प्लेग्राउंड पर गया था माँ। क्रिकेट मैच देखने।
(वीर ने कहा।)

" अच्छा.. क्रिकेट देखने गए थे। और घर का काम कौन करेगा?
(कुसुम जी ने थोड़ा सख्त हो कर वीर से कहा।)


"माँ , मै सिर्फ क्रिकेट मैच देखने गया था! किसी जूए के अड्डे पर नही गया था।, जो इतना गुस्सा कर रही हो आप! और वैसे भी, घर के काम करने के लिए आप हो न माँ! तो आपको मेरी ज़रूरत क्यो पड सकती हैं?
(वीर ने अपनी बैग सोफे पर रखते हुए कहा।)

" दो दिन बाद तेरे मामाजी यहाँ आ रहे है! इसलिए घर की थोड़ी बहुत सफाई करनी है। और वीर मुझे यह बिल्कुल भी पसंद नही है की, कोई हमारे घर को गंदा देखे तो मुह पर बोल कर चले जाए।
(कुसुम ने एक झाड़ू हाथ मे लेते हुए कहा।)


"माँ इतनी सी बात के लिए आप अपने बेटे को डाँट रही हो?
(वीर ने पूछा।)

" डाँटू नही तो और क्या करू? जब देखो तब आवारा गर्दी करता रहते रहते हो! यहाँ वहाँ घूमते रहते हो।
(कुसुम ने कहा।)


"आप होती कौन हो, मुझे बाहर घूमने से रोकने वाली? बोलो?
(वीर ने माँ से पूछा।)

(जैसे ही वीर ने यह बात बोली तो, कुसुम जी को जैसे धक्का लग जाता हैं। वीर को अब गुस्सा आ गया था। उसने अपनी माँ से इस तरह से बात की तो मानो, कुसुम को अपने कानों पर यकीन नही हुआ। उन्हे लगा की, शायद उन्होंने ठीक से नही सुना।)


"क्या कहा वीर? फिर से कहना तो!
(कुसुम जी ने वीर से पूछा।)

" मैंने यह कहा की, आप कौन होती हैं मुझे बाहर ना जाने से रोकने वाली। जब भी मै घर से बाहर कही चला जाता हूँ तो, आप हर बार बीच मे टोकती हो। जब देखो तब घर के काम, काम काम। वीर यह करो, वो करो, यह लाकर दो... हद है यार। माँ कभी तो मुझे अपनी जिंदगी खुद अपनी मर्ज़ी से जिने दो!
(वीर इतना बोलकर घर से बाहर चला जाता हैं।)


(कुसुम जी, जो अब तक वीर की बाते सुन रही थी। उनको बहुत दुख हो रहा था। उन्हे यह बिल्कुल भी उम्मीद नही थी, की उनका अपना बेटा वीर उन्हे , ऐसी दिलतोड बाते करके यु चला जायेगा। कुसुम रोने लगी। वो किचन मे चली गयी। अभी शाम के 6:30 बजे थे। एक औरत हाथ मे दिया (दीपक) लेकर कुसुम के घर आयी।)

"कुसुम भाभी!
(औरत ने आवाज़ लगाते हुए कहा। कुसुम ने अपने आँसू पोछे और फिर किचन से बाहर आयी।)


"हाँ, निर्मला बोलो! क्या बात है?
(कुसुम ने नॉर्मल हो कर निर्मला से पूछा।)

" भाभी आप संध्या आरती के लिए नही चलेगी?
(निर्मला ने सिर पर अपना पल्लू रखते हुए पूछा।)

"चलूंगी न! रुको मै बस अभी आयी।
(कुसुम ने निर्मला से कहा।)

पाँच मिनट बाद कुसुम अपने हाथो मे दिया लिए बाहर आयी, और फिर दोनों ही मंदिर चली गयी वीर अपनी माँ से गुस्सा हो कर पार्क मे चला गया था। इधर कुसुम को बहुत दुख हो रहा था। लेकिन इस वक़्त वो चुप थी।)

.................

अर्जुन का घर।

(इधर अर्जुन के घर पर अर्जुन ने खाना बना लिया था। सात बज चुके थे। रोहित जी, टिव्ही पर न्यूज़ देख रहे थे। अर्जुन ने खाना लेकर डाइनिंग टेबल रख दिया।)

"पापा, खाना रेडी है।
(अर्जुन ने खाने को प्लेट से ढकते हुए कहा।)

"हाँ, अर्जुन, सूर्या कहाँ है?
(रोहित जी ने पूछा।)

" वो अपने कमरे मे है पापा, मै अभी उसे बुलाकर लाता हूँ।
(अर्जुन ने रोहित जी को बताया और सूर्या के कमरे की तरफ चला गया।)

"छोटे, खाना रेडी है। आजा खाते हैं!
(अर्जुन ने आवाज़ देते हुए कहा।)

" हाँ भैय्या, आप जाओ मै अभी आया।
(सूर्या ने कहा।)


(अर्जुन सूर्या से इतना बोल वापस डाइनिंग टेबल के पास आया और चेयर पर बैठ गया। सामने टीवी पर न्यूज़ चल रही थी। सूर्या भी डाइनिंग टेबल पर आ गया। रोहित जी भी बैठ गए। अर्जुन सबको खाना परोसने लग गया। तभी टिवी पर एक न्यूज़ चली।)


"मुंबई के फिल्म सीटी की एक कॉलोनी मे चौदह वर्षीय लड़की का हुआ खून!"

(अर्जुन के हाथ खाना परोसते हुए रुक गए। अर्जुन ने टीवी की ओर देखा। टीवी पर न्यूज़ मे एक छोटी सी चौदह वर्षीय लड़की की लाश थी। मुंबई और बाहर सिटी के कुछ रिपोर्टर टीम इस घटना को कवर कर रहे थे। उस घटनास्थल पर कुछ पुलिस वाले भी मौजूद थे जो, भीड़ को दूर करने की कोशिश कर रही थी। अर्जुन ने जब यह न्यूज़ टीवी पर देखी तो उसके होश ही उड़ गए। उसके हाथ से एक चम्मच नीचे गिर गया।)

" क्या हुआ अर्जुन बेटा?
( अर्जुन के हाथ से चम्मच गिर गया तो रोहित जी उनसे पूछने लगे।)

" कुछ नहीं पापा। वह ऐसे ही छूट गया, मेरा ध्यान नही रहा।
(अर्जुन चम्मच उठाते हुए रोहित जी से कहता है।)

...................

फिल्म सिटी कॉलोनी
मुंबई।


[ फिल्म सिटी कॉलोनी में 14 वर्षीय लड़की का खून हुआ था जिसके चलते काफी पुलिस वाले हर वह प्रयास कर रहे थे, ताकि खूनी करने वाले का पता चल सके।सभी पुलिसकर्मी और अधिकारी घटनास्थल के आसपास के एरिया को चार्ज करने लगे। कुछ पुलिस वाले उसे लड़की के परिवार से भी बात कर रहे थे। जो बहुत दुखी थे अपनी बेटी के जाने से। एक इंस्पेक्टर मृतक लड़की के पिता से पूछता है।]

" देखिए हम जानते हैं, कि यह समय आपके लिए अभी सही नहीं है। लेकिन क्या करें; हमारी ड्यूटी है तो हमें पूछताछ तो करनी ही होती है। "क्या आप हमें बता सकते हैं कि जब आपकी बेटी का खून हुआ तो, आप उस वक्त कहा थे?

(पुलिस वाले ने मृतक लड़की के पिताजी से सवाल किया।)

(उनके साइड में एक हवलदार एक रजिस्टर लिए खड़ा था जो की स्टेटमेंट और प्रूफ नोट कर रहा था। मृतक लड़की के पिताजी ने सब कुछ बताया। पुलिस अपनी इन्वेस्टिगेशन कर ही रही थी, कि एक 19 साल का लड़का उसे भीड़ को चीरते हुए आगे आया और क्राइम सीन को देखने लगा। यह लड़का और कोई नहीं बल्कि अर्जुन था।)

( अर्जुन वही खड़े-खड़े होकर उसे लड़की 14 वर्ष से लड़की की लाश को देख रहा था। उसकी शरीर पर खून ही खून फैला हुआ था लड़की के पेट पर चाकू के वार के निशान साफ नजर आ रही थी जो अर्जुन की और बाकी लोगों के भी रूह तक हिला दे रही थी अर्जुन की मुठिया कस गई उसने खुद से लड़की की लाश को देखा। अर्जुन वहां खडे सब लोग लोगों की तरफ देख रहा था। कुछ लोग पुलिस को इस घटना के बारे में बता रहे थे, तो वहीं कुछ लोग मृतक लड़की की फोटो भी खींच रहे थे। अर्जुन वही से वापस मुंडा और घर के लिए निकलने लगा।)
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( अर्जुन को बहुत गुस्सा आ रहा था, क्योंकि अभी जो उसने देखा वह पर्याप्त था उसकी सोच को बदलने के लिए।)

" एक लड़की का खून हुआ है तो सभी पुलिस वाले इन्वेस्टिगेशन करने आए और टीवी प्रेस रिपोर्टर्स भी न्यूज़ कवर अप करने आए। यह सब लोग लड़की का नाम? वह क्या करती थी? उसका खून कैसे हुआ? कहां रहती थी इस सब के बारे में बातें कर रही है ,और पूछताछ भी कर रही है। लेकिन कोई यह जानने की कोशिश क्यों नहीं कर रहा कि आखिर खून किसने किया? वह खड़ा कोई भी एक आदमी मृतक लड़की के बाप को सांत्वना देने की कोशिश तक नहीं कर रहा था। बस घटनास्थल का फोटो निकाल कर लड़की की फोटो निकाल ग्रुप में सोशल मीडिया पर अपलोड करती है। और न्यूज़ पर भी दिखा दी। बस इतना कर सकते हैं यह लोग।

( अर्जुन अपने मन में, लोगों के बारे में गुस्से में बोल रहा था। कुछ देर बाद वह अपने घर आया। घर पहुंचते ही उसने अपने पापा को देखा और उनके पास आया।)

अरे अर्जुन बेटा कहां गए थे? मैं तो हर जगह ढूंढ रहा हूँ तुम्हें।
( रोहित जी ने अर्जुन को देखकर पूछा।)

" पापा, वह में क्राइम सीन देखने चला गया था।अभी न्यूज़ आई थी न, टीवी पर खून की तो वही देखने गया था।
( अर्जुन ने रोहित जी से कहा।)

" अर्जुन बेटा ऐसे घटनास्थल पर नहीं जाते। वहां पर पुलिस और बाकी लोग इन्वेस्टिगेशन करते हैं बेटा! घटनास्थल की जांच करते हैं। हमारा वहां पर कोई काम नहीं होता।
(रोहित जी ने अर्जुन से कहा।)

[ रोहित जी के मुंह से जब यह बात अर्जुन ने सुनी तो अर्जुन हैरान रह गया उसे यह उम्मीद नहीं थी कि उसके पिताजी रोहित जी ऐसा भी बोल सकते हैं। अर्जुन जब उसे घटना स्थल पर मौजूद था , तो वहा खड़े कुछ लोग मृतक लड़की के फोटोस निकाल रहे थे,तो वहीं कुछ लोग बातें भी कर रहे थे। लेकिन एक भी आदमी की आंखों में उसे लड़की के लिए कोई दया या फिर कोई आंसू नहीं थे। सिवाय उसके पिताजी के। क्यो?]

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[ हेलो एवरीवन! तो कैसा लगा आपको इस कहानी का यह भाग? आप मुझे कमेंट सेक्शन में जरूर बताएं और रेटिंग्स जरूर दें।]