Bodyguard - 4 books and stories free download online pdf in Hindi

बॉडीगार्ड - 4

[अर्जुन, वीर को जाते हूए देख रहा था। अर्जुन कुछ देर वही खडा रहा। कुछ देर मे वो भी अपने हर चला गया।]

"भैय्या, आप कहाँ थे? मैंने आपको कितना तलाश किया आपको पता भी है?
(अर्जुन के छोटे भाई सूर्या ने कहा।)

" क्यों, क्या हुआ?
(अर्जुन ने क्युरियस होते हुए पूछा।)

"भैय्या, पानी के नल मे लीकेज हो रहा है, और पानी भी नही आ रहा है!
(सूर्या ने अर्जुन को बताया।)

" अरे यार, यह नल की समस्या कब खत्म होगी! अब फिर से प्लंबर को ही बुलाना पड़ेगा।
(अर्जुन ने परेशान हो कर कहा।)

"क्या भैय्या, नल को रिपेयर करने के लिए प्लंबर को ही बुलाएँगे न! थोडी ही एलेक्ट्रिशियन को बुलाएँगे! हा हा हा हा!
(सूर्या मजकियाँ लहजे मे बोला। अर्जुन ने उसे घूर कर देखा। तो सूर्या सॉर्री बोलकर चुप हो गया।)

[कुछ देर बाद अर्जुन प्लंबर को बुलाने चला गया। सूर्या ने आह भरी।]

" यह अर्जुन भैय्या को भी पता नही क्या हो गया है! आजकल हमेशा ही गंभीर हो कर रहते है।
(सूर्या ने कहा।)

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[अर्जुन एक बाइक से नीचे उतर गया। कुछ देर पहले अर्जुन ने लिफ्ट ली थी, ताकि वो जल्दी पहुँच सके। अर्जुन इस वक़्त A.S ENTERPRISES प्लंबर पॉइंट पर खड़ा था। यह AS इंटरप्राइसेस प्लंबर लोगो को ऑफिस था। दिखने मे ज्यादा बड़ा भी नही लग रहा था। लेकिन लोगो का यह कहना है की, AS इंटरप्राइसेस के प्लंबर वर्कर इतने प्रोफेशनल है, की कोई भी नल चुटकियों मे ठीक कर देते है। AS इंटरप्राइसेस प्लंबर ऑफिस मुंबई का सबसे लोकप्रिय ऑफिस माना जाता है। लोग इन प्लंबर वर्कर के, उनके काम के दीवाने है।]

[अर्जुन ने पहले ए.स.एंटरप्राइजेज प्लंबर ऑफिस को अच्छे से देखा। उसके बाद वह उस ऑफिस के अंदर चला गया। अंदर जाने के बाद, उसे हर जगह लोग प्लंबर वाली ड्रेस पहने दिखे। वह लोग ब्लू शर्ट पहने नल का कुछ सामान सेट कर रहे थे। वहीं कुछ लोग चेयर पर बैठकर कुछ काम कर रहे थे। अंदर बहुत बड़ा एक केबिन था। जिसमें दो-तीन लोग कुछ डिस्कस कर रहे थे। ऑफिस की दीवारों पर नल के पोस्टर लगे हुए थे।]

[ऐसा नहीं था कि अर्जुन यहां पहली बार आया हो! अर्जुन यहां पर इससे पहले भी काफी बार आ चुका था। इसलिए उसे हर जगह,हर लोगों के बारे में सब कुछ मालूम था। अर्जुन बिना देरी किए ऑफिस रूम में चला गया और एक प्रोफेशनल प्लंबर को घर का नल ठीक करवाने के लिए अप्लाई किया। अर्जुन के अप्लाई पर ऑफिस वर्क के हेड ऑफिसर ने, एक प्रोफेशनल प्लंबर को अर्जुन के साथ उसके घर भेजा।]

[करीब आधे घंटे बाद अर्जुन उस प्रोफेशनल प्लंबर के साथ अपने घर पहूँचा। घर पहूँचने के बाद, अर्जुन ने उसे पीने के लिए पानी दिया। उसके बाद अपने काम पर लग गए। अर्जुन ने नल दिखाया तो प्लंबर ने ज्यादा देर ना करते हुए, नल रिपेयरिंग का काम शुरू कर दिया। कुछ देर नल रिपेयरिंग के बाद नल पूरी तरह से ठीक हो गया था। उस प्लंबर ने बहुत ही अच्छे तरीके से नल को दोबारा रिसेट करके दिया, ताकि फिर से लीकेज ना हो। प्लंबर का काम होते ही, वह आदमी ने अर्जुन से पैसे लिए और वहां से चला गया।]

[अर्जुन किचन में चला गया और एक थाली में अपने लिए खाना लेने लगा। अर्जुन डाइनिंग टेबल के पास आया और चेयर पर बैठकर खाना खाने लगा। उसने रिमोट से टीवी ऑन किया और खाना खाते हुए टीवी देखने लगा। तभी सूर्या वहां आ गया।]

" भैया आप अभी भी यही हो! आपने तो कहा था की, आप प्लंबर को बुलाने जा रहे हैं?
(सूर्या ने अर्जुन से सवाल किया।)

" अरे छोटे, मैंने प्लंबर को बुला लिया और नल भी ठीक करवा लिया।
(अर्जुन ने रोटी का एक टुकड़ा तोड़ते हुए कहा।)

[सूर्या को लग रहा था कि, अर्जुन ने अभी तक प्लंबर से बुलवाकर नल रिपेयर नहीं करवाया, जबकि, अर्जुन ने फौरन ही काम कर लिया था। जिस वक्त प्लंबर घर का नल ठीक करवा रहे थे। तब सूर्या घर पर नहीं था और ना ही रोहित जी घर पर थे। अर्जुन ने थोड़ी देर बाद अपना खाना खत्म किया और खाने की थाली लेकर किचन में बेसिन में रखने गया। उसने अपने हाथ धोएं और खाने की प्लेट अच्छे से साफ करके रख दिया।]

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[अब तक शाम हो चुकी थी। सूरज ढलने को आ रहा था, मानो, ऐसा लग रहा था,जैसे, अब उजाले पर अंधेरे का राज होगा। इस वक्त मुंबई के एक बड़े से फ्लैट पर पुलिस आई थी। उस फ्लैट में आज कुछ अलग ही घटना हुई है। उसे फ्लैट के एक कमरे में बाहर सभी पुलिस वाले तैनात थे। नो एंट्री और क्राइम सीन का रोल साइन बोर्ड लगा हुआ था। जिसमें से बाहर के व्यक्ति को अंदर प्रवेश नहीं करने दिया जा रहा था।]

[उस कमरे में एक औरत के लाश थी। यह लाश मनीषा की थी यह वही मनीषा है, जिसको कुछ दिन पहले अर्जुन ने मार्केट से आते हुए देखा था और उसकी बातें टेलीफोन बूथ पर सुनी थी। पुलिस रजिस्टर ,पेन, कैमरा और हाथों में ग्लाब पहन कर इन्वेस्टिगेशन कर रही थी। वहीं कुछ हवलदार कमरे की अच्छी तरह से तलाशी ले रहे थे। एक पुलिस वाला ध्यान से उस मनीषा की लाश को गौर से देख रहा था।मानो ऐसी कोई चीज हो, जो उसे समझ में नहीं आ रही हो कि,आखिर यह खून हुआ कैसे?]

" हमने यहाँ आने मे बहुत देर कर दी! काश वक्त रहते हम पहूँच पाते! Dammnn!!
(इंस्पेक्टर राठौर ने मनीषा की लाश को देखकर कहा।)

[यह इंस्पेक्टर अनिकेत राठौर थे। यह एक ईमानदार पुलिस ऑफिसर है। मुजरिम को पड़कर उनको सजा दिलवाना, यही इनका मकसद था। इंस्पेक्टर अनिकेत राठौर का नाम गिनी चुने पुलिस वालों में नहीं,बल्कि हर पुलिस वालों में उनका नाम आदर और सम्मान के साथ लिया जाता था। "क्योंकि, उनका व्यक्तित्व,उनका चरित्र कुछ ऐसा ही था। प्रेम भावना के साथ जीते हैं। लेकिन जब पुलिस की वर्दी इनकी बदन पर चढ़ जाती है, तब प्रेम,करुना, दया सब कुछ भूल कर सिर्फ अपनी ड्यूटी निभाते हैं। और वह अपना फर्ज समझते हैं। उनका नाम किसी भी फिल्म स्टार से काम नहीं था उन्होंने मुंबई शहर में एक साल के अंदर,ना जाने कितने क्राइम्स को खत्म कर दिया था।]

" सावरकर! इस कमरे का चप्पा चप्पा छान मारो और हर चीज हर जगह की तलाशी लो। जो भी सुराग मिले वह उठा लो। हमें एविडेंस की जरूरत है। एविडेंस के बिना यह मर्डर केस आगे बढ़ नहीं सकता।
(इंस्पेक्टर अनिकेत राठौर ने साथ खड़े इंस्पेक्टर सावरकर से कहा।)

[इंस्पेक्टर सावरकर ने अनिकेत राठौर का आर्डर फॉलो करते हुए, कमरे की अच्छी तरह से तलाशी लेना शुरू कर दिया। वहां खड़े हवलदार भी कमरे की अच्छी तरह से तलाशी ले रहे थे। कुछ देर मे इंस्पेक्टर सावरकर को एक एविडेंस मिला। एविडेंस मे उन्हे एक गोल्डन चैन मिली। इंस्पेक्टर सावरकर इंस्पेक्टर राठौर को वह गोल्डन चैन दिखाया। उन्होंने गोल्डन चैन को एविडेंस के रूप में एक प्लास्टिक में पैक कर दिया।]

"बॉडी को फॉरेंसिक डिपार्टमेंट मे भिजवाने का इंतज़ाम करो।
(इंस्पेक्टर राठौर ने इंस्पेक्टर सावरकर से कहा।)

[इंस्पेक्टर राठौर के इतना कहते ही पुलिस वालो ने आधे घण्टे बाद बॉडी को फॉरेंसिक डिपार्टमेंट मे ले जाया गया। उसके बाद मुंबई के पुलिसकर्मियों ने उस कमरे को,कुछ वक्त के लिए सील कर दिया। लेकिन अभी तक इन्वेस्टिगेशन पूरी नहीं हुई थी। अभी पुलिस वालों को काफी कुछ पता लगाना था की खून किसने किया।]

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धारावी पुलिस स्टेशन,
मुंबई।

[अगले दिन की शुरुआत हो चुकी थी। सुबह के 9:00 बजे थे। मुंबई शहर के लोग अपना-अपने कामों में लगता,कोई ऑफिस के लिए जाने लगा, तो कोई हॉस्पिटल ,कोई कॉलेज जाने लगा। हर कोई आदमी अपने-अपने काम पर सुबह तैयार होकर जा रहा था। इसी बीच अर्जुन भी था जो आज बड़े दिनों बाद कॉलेज जा रहा था। अर्जुन बी.ए.फर्स्ट इयर का स्टूडेंट था। पिछले कुछ दिनों से अर्जुन की तबीयत थोड़ी खराब चल रही थी और इसी बीच दो घटनाओं ने भी अर्जुन को परेशान करके रख दिया था। पहली घटना तो यह उस मनीषा औरत के बारे मे और दूसरी घटना यह थी कि, मुंबई के फिल्म सिटी कॉलोनी में छोटी लड़की का खून।]

[ अर्जुन इन सभी बातों से परेशान था लेकिन अब वह रिलैक्स होना चाहता था इसलिए आज उसने कॉलेज जाने का फैसला किया था। बड़े दिनों बाद आज वह कॉलेज पहूँचा था। वैसे अर्जुन पढ़ाई में उतना ज्यादा अच्छा नहीं था।"क्योंकि, उसने कॉलेज की पढ़ाई से ज्यादा जिंदगी की पढ़ाई की थी। समाज की पढ़ाई की थी उसने। ऐसा नहीं था कि अर्जुन को पढ़ाई करना पसंद नहीं वह पढ़ाई करता था दसवीं कक्षा से लेकर क्लास तक पास होगा दिखाए अच्छे मार्क्स और ग्रेड लिये थे। लेकिन अर्जुन अब 19 साल का लड़का था। अब उसकी जिंदगी का लक्ष्य क्या है। यह उसे समझ में आ रहा था, लेकिन अभी भी वह इन सभी बातों से अनजान था कि, उसका भविष्य कैसा होने वाला है।]

[अर्जुन की सोच सबसे अलग सबसे जुदा थी। वह वह सारी चीज सोच सकता था जो सब लोग नहीं सोच सकते थे। जब एक आदमी सिर्फ अपने बारे में सोचता है, वही अर्जुन पूरे समाज के बारे में सोचता था। और अर्जुन की ऐसी ही सोच की वजह से उसका भविष्य आगे जाकर तय होने वाला था।]

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[ अर्जुन कॉलेज के गेट के पास आ पहुंचा था वह कॉलेज के अंदर गया अपने कुछ दोस्तों से मिला बा फर्स्ट ईयर के सभी स्टूडेंट्स अर्जुन को पूछने लगे उसकी तबीयत के बारे में पूछने लगे अर्जुन ने सबको एक मुस्कुराहट के साथ जवाब दिया और बातें करने लगा। अभी सुबह के 11:00 थे तो सभी छात्र लोग अपने-अपनी क्लास में चलेगा स्टूडेंट ने अपनी किताबें खोली अर्जुन ने अपना सब्जेक्ट बुक निकाल और बचा हुआ होमवर्क करने लगा तभी उसका दोस्त विजय उसके पास आया।]

" क्या बात है भाई! बडे दिनों बाद आज कॉलेज में। कहाँ थे इतने दिन?
(विजय ने बैठते हुए अर्जुन से पूछा।)

" अरे भाई तबीयत थोड़ी खराब थी। इसलिए नहीं आ पाया। अब जाकर ठीक हुआ हूँ, तो सोचा कॉलेज जाकर पढ़ाई की जाए। क्या कर सकते है अब!
(अर्जुन ने विजय की ओर देखते हुए कहा।)

"हाँ यार बात तो सही बोली तूने! यार अर्जुन, यह वीर अब तक क्यों नहीं आया!
(विजय ने क्लास में नजर रखते हुए वीर को खोजते हुए अर्जुन से कहा।)

[विजय के मुंह से वीर का नाम सुनकर अर्जुन के हाथ लिखते लिखते रुक गए। अर्जुन को वीर की वह बातें याद आ गई। जब अर्जुन ने उसे कुसुम जी से माफी मांगने को बोला, तो उसने इंकार किया था। अर्जुन ने पेन बुक में रख दी और बुक क्लोज करके साइड में रख दिया और आगे विजय से बोला।]

" क्यों? विजय से क्या काम है तुझे?
(अर्जुन ने विजय से पूछा।)

" अर्जुन भाई, मैं तो सिर्फ इसलिए बोल रहा हूँ। "क्योंकि, आज वह कॉलेज में नहीं दिख रहा। शायद आया नहीं , इसलिए पूछा और वैसे भी दोस्त है तो पूछेंगे न! ना पूछे तो बुरा मान जाते हैं दोस्त।
(विजय ने अर्जुन से कहा।)

[थोड़ी देर बाद क्लास रूम में क्लास टीचर आए और उन्होंने स्टूडेंट्स को पढ़ना शुरू कर दिया। अर्जुन ने भी अपना पूरा ध्यान पढ़ाई पर लगना शुरू कर दिया।]

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[धारावी पुलिस स्टेशन के पुलिस ऑफिसर्स को औरत मनीषा के खूनी का पता लग गया था यह खून उसके पति ने किया था मनीषा के पति का नाम श्रेयस था। इंस्पेक्टर लोगों ने श्रेयस का स्केच बनवाकर उसको ढूंढना शुरू कर दिया। इंस्पेक्टर राठौर अभी कड़क इन्वेस्टिगेशन कर रहे थे। जब तक मुजरिम का पता ना लग जाए , उसको गिरफ्तार ना कर लिया जाए। तब तक वह शांत नहीं बैठते। इसलिए उन्होंने अपनी पुलिस टीम और बढ़ा दी ,ताकि खूनी का जल्द से जल्द पता चल सके।]

[इंस्पेक्टर राठौर ने मुंबई की हर गली में श्रेयस की फोटो दिखाकर पूछताछ चालू कर दी। उन्होंने इन्वेस्टिगेशन उसी फ्लैट से शुरू करना चालू कर दिया था। जहां पर मनीषा का खून हुआ था लेकिन वहां से कोई ज्यादा पुख्ता सबूत ना मिलने की वजह से उन्होंने और ज्यादा इन्वेस्टिगेशन करना का सोचा।

" अरे सुनो क्या तुमने इस आदमी को कही देखा है?
(इंस्पेक्टर अनिकेत राठौर ने श्रेयस का स्केच दिखाते हुए कहा।)

" जी हाँ साहब! मैंने तो इनको देखा है। लेकिन कहाँ देखा है, यह फिलहाल याद नहीं आ रहा है मुझे?
(एक दुकान वाले आदमी ने याद करते हुए इंस्पेक्टर राठौर से कहा।)

" याद करो कहाँ देखा है और बताओ कि इस आदमी को आखिरी बार तुमने कहाँ देखा था!
(इंस्पेक्टर अनिकेत राठौर ने उसे आदमी से सवाल किया।)

" और हां साहब अभी याद आ गया मैंने उसे कल देखा था। यही पास के एक बार शॉप में शराब पी रहा था।
(दुकान वाले आदमी ने इंस्पेक्टर अनिकेत राठौड़ को बताया।)

[ इंस्पेक्टर राठौर पूछताछ कर ही रहे थे, और वह दुकान वाला बात ही रहा था, तभी उस दुकान वाले को इंस्पेक्टर राठौर के पीछे से एक आदमी कहीं जाते हुए देखा। दुकान वाले ने इंस्पेक्टर राठौर से कहां।]

" इंस्पेक्टर साहब वह देखिए! वो रहा आदमी।
(दुकान वाले ने इंस्पेक्टर राठौर को बताया।)

[जैसे ही अनिकेत राठौर ने पीछे मुड़कर देखा तो वह श्रेयस था। इंस्पेक्टर साहब ने दोबारा स्केच की ओर देखा, और यह कंफर्म किया कि, यह वही आदमी है या नहीं। जब पता चला कि,यही आदमी है , जिसे पुलिस ढूंढ रही है। तो अनिकेत राठौर ने बिना देरी करते हुए उस आदमी का पीछा करना शुरू कर दिया। आसपास के दुकानों में पूछताछ कर रहे हैं हवलदार और पुलिसकर्मी भी श्रेयस की ओर दौड़ पड़े।]

[श्रेयस ने सब पुलिस वालों को अचानक उसके तरफ भागते हुए आते देखा। तो वह आदमी हड़बड़ा गया और वह भी उनसे बचने के लिए भागने लगा। श्रेयस बहुत तेजी से भाग रहा था। पीछे से पुलिस वाले पैदल ही जोर से तेज कदमों से भाग कर रहे थे। श्रेयस भागते हुए एक कॉलेज में छुप गया। कॉलेज के पीछे से आकर वह एक स्टोर रूम में छुप गया। क्लासरूम के स्टूडेंट सभी क्लासरूम में मौजूद थे। उनको कुछ पता नहीं था ना ही प्रिंसिपल ना ही टीचर्स को। यह वही कॉलेज था,जिसमें अर्जुन पढ़ता था।]

[श्रेयस के बारे में अर्जुन को भी पता नहीं था कि वह एक खूनी है और उनकी कॉलेज में छुपा हुआ है। दोपहर के 12:30 बजे थे। क्लास की छुट्टी हो गई। सभी स्टूडेंट क्लासरूम से बाहर आ गए। इंस्पेक्टर राठौर अभी भी उसे आदमी को ढूंढ रहे थे। ढूंढते ढूंढते वह कॉलेज के गेट के पास आ पहूँचे।]

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"क्या इंस्पेक्टर अनिकेत राठौर और उनकी टीम खूनी को पकड़ पाएगी?

" क्या होगा जब अर्जुन को यह पता चलेगा कि श्रेयस जो की एक खूनी है, वह उनके कॉलेज में छुपा हुआ है?

(जानने के लिए पढ़ते रहिए यह रोमांचक कहानी "बॉडीगार्ड")