Prem ke Rang - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

प्रेम के रंग - 2

भरी लव स्टोरी
आज नेहा का जन्मदिन है और उसे पूरी उम्मीद है कि राहुल उसे शादी के लिए प्रोपोज़ जरूर करेगा। राहुल ने नेहा को वादा किया था कि उसके जन्मदिन के दिन वह उसे हीरे की अंगूठी देकर प्रोपोज़ करेगा। नेहा बेसब्री से राहुल का इंतजार कर रही है। तभी दरवाजे की घंटी बजती है और राहुल सामने खड़ा होता है। राहुल बहुत खुश लग रहा है। तभी राहुल ने कहा, “मुझे माफ कर देना नेहा, मुझे आने में थोड़ी देर हो गई।” नेहा ने कहा, “कोई बात नहीं। अच्छा यह बताओ कि मेरा बर्थडे गिफ्ट कहाँ हैं।” तभी राहुल ने नेहा को एक टेडी बेयर देते हुए कहा, “हैप्पी बर्थडे नेहा, यह लो तुम्हारी जन्मदिन का गिफ्ट।” अरे यह क्या, नेहा ने तो सोचा था कि राहुल हीरे की अंगूठी लेकर आएगा और उसे प्रोपोज़ करेगा लेकिन वह छोटा सा टेडी बेयर ले आया। नेहा को मन ही मन बहुत गुस्सा आया और उसने बिना कुछ कहे और बिना सोचे समझे टेडी बेयर को उठाकर घर के बाहर फेंक दिया। यह देखकर राहुल दौड़कर निचे गया। सीढ़िया उतरकर वह उस टेडी बेयर को लेने गया जो सड़क के बीचो-बीच पड़ा है। जैसे ही वह टेडी बेयर उठाने के लिए सड़क पर झुका, दूसरी तरफ से एक ट्रक आकर राहुल को कुचल देता है। राहुल को फॉरेन हॉस्पिटल ले जाया जाता है लेकिन वहाँ उसकी मौत हो गई। तभी नेहा हॉस्पिटल पहुँचती हैं और बहुत रोती है। राहुल के मृत शरीर के पास वह टेडी बेयर भी पड़ा था। नेहा उसे अपने सीने से लगाकर बहुत ज़्यादा रोती है। तभी नेहा को टेडी बेयर पर एक बटन सा दीखता है। जैसे ही वह उस बटन को दबाती है तभी उस टेडी बेयर में से राहुल की आवाज आती है “नेहा क्या तुम मुझसे शादी करोगी?” तभी अचानक टेडी बेयर का ऊपर का हिस्सा खुलता है और उसमे से एक हीरे की अंगूठी निकलती है। उस हीरे की अंगूठी को देखकर नेहा बेहद तड़प-तड़प कर रोते हुए राहुल के मृत शरीर के पैरों में ही गिर जाती है और उसे इतना ज़्यादा पछतावा होता है कि नेहा सायद ही अपने आपको कभी माफ कर पाए। तो दोस्तों दुनिया में चाहे कुछ भी हो जाये जिससे आप प्रेम करते हैं उससे कभी नाराज मत होना और अगर कभी नाराज हो भी जाए तो उसे माफ करने में देरी कभी मत करना क्यूंकि दोस्तों इस ज़िंदगी का कोई भरोसा नहीं। इस गुस्से जैसी विषैली चीज की बजह से कहीं ऐसा न हो कि आपको भी नेहा की तरह पूरी ज़िंदगी पछताना पड़े।

मुलाक़ात

लड़के ने पहली बार स्कूल के मैदान में मुलाक़ात की। फुटबॉल मैच था। वह गोलकीपर है। घुंगराले बाल, लंबी नाक, गहरी आंखे, सफेद टी-शर्ट। उसके माथे से थोड़ा थोड़ा करके पसीना टपक रहा था। बॉल आकर सीधा मेरी साड़ी पर लगी। बॉल कीचड़ से भरा हुआ था। वह दौड़कर मेरे पास आया और सिर झुका लिया। उसने कहा, “मैंने देखा नहीं।” मैं इतना गुस्से में था की कुछ बोल भी नहीं पा रही थी की, “मेरी माँ की साड़ी है। अब पता है मुझे कितनी डाट पड़ने वाली है?” मैं बस उसे घूर रहा था। वह धीरे से मुस्कुराया। उस दोपहर तूफान भी था था। आंगन में हवा बह रही थी। हवा के बाद बारिश भी हुई। हम दूसरी बार बस स्टैंड के सामने मिले। फिर शाम को। मैं कॉलेज में वापस आ गया हूँ। आखरी सिगरेट खींचते हुए, उसने बाकि सिगरेट कूड़ेदान में फेक दी और दूर से कहा, “साड़ी से मिट्टी के दाग निकले?” मैंने न में अपना सिर हिलाया और मुस्कुराया। उसने चुपके से उसे कहा, “उस दिन बालों में फूल लगाया था…..! आप और भी सुन्दर लग रही थी।” अचानक बिजली गिरी। वह चौंका, मैं चौंका। उस शाम तूफान आया था। बारिश के कारन उस दिन बस रोक दी गई थी। बिजली ऐसी गिरी की मैं डर गई। तीसरी बार हमारी मुलाकात हुई एक नदी के किनारे। सुखी नदी। मैंने नदी की और ऊँगली करके इशारा किया और कहा, “उसे पानी चाहिए। बारिश चाहता है। एक भयानक लहर चाहता है। क्या आप समझे?” उसने धीरे से कहा, “मैं तुम्हे समझता हूँ।” उस दिन बहुत जोरो की तूफान आयी। नदी में पानी भर आया। नदी के किनारे पर पेड़ की शाखाएं टूट गई। उस बीच दोनों में से किसी को भी प्यार के बारे में बात करते हुए नहीं सुना गया। हम चौथी बार सड़क के कोने पर मिले। हाली में मैंने कॉलेज पास किया था। लेकिन कोई जॉब नहीं थी तब मेरे पास। हाथ खर्च के लिए दो टूशन पढ़ाती थी। हाथ में पेन लेकर, सड़क के फुटपात पर निचे सिर झुककर चल रहा था। वह अचानक सड़क के बीच में खड़ा हो गया। और कहा, “कैसे हो तुम?’ मैंने हमेशा की तरह अपना सिर हिला दिया। वह सड़क से हट गया। एक तरफ खड़ा हो गया। और कहा, “अच्छी बात है।” मैंने उसे पीछे छोड़ा और चला गया। मैं दो फ़ीट आगे गया। तभी पीछे से उसकी आवाज आई। “क्या तुम पहले की तरह बालों को बांधती हो?” इससे पहले की मैं पीछे मुड़कर देख पाता की तभी बारिश शुरू हो गई। मैं वहां से दौड़ा। तूफान के भवंडर में बाल ढीले थे। बाल कमर से निचे गिर रहे थे। आज उनसे मेरी आखरी मुलाकात है। स्टेशन परिसर पर। मैं ट्रैन से बाहर निकला तभी उसे देखा। वह बैग लेकर सीढ़ी के निचे आ रहा था। उसने मुझे देखा। लेकिन इस बार मुझसे कुछ कहा नहीं। मुझे भी उससे बहुत कुछ कहना था। सोचा था की आज उससे मैं अपनी मन की बात बताऊंगी। लेकिन यह क्या? वह तो बैग लेकर कही जा रहा था। वह ट्रैन की ओर बड़े जा रहा था। और मैं उसे सिर्फ देखता ही जा रहा था। सोच रहा था, “क्या मुझे उसे पुकारना चाहिए?’ बहुत सोचने के बाद….मैंने आखिर उसे पुकार ही डाला। उसने पीछे मेरी तरफ देखा। और कहा, “क्या कुछ कहना है?’ मैंने निचे की तरफ फिरसे अपना सिर झुकाया। और कहने लगा, “नहीं।” वह अजीब सी सकल बनाकर मेरी तरफ देखने लगा। और मुझसे कहा, “आज तुम बहुत प्यारी लग रही हो।” यह सुन मुझे बहुत शर्म आ गई। वह वहाँ से जाने लगा। लेकिन मैं कुछ बोल नहीं पाई उसे। वह ट्रैन में चढ़ गया। ट्रैन से हाथ हिलाकर उसने कहा, “अपना ख्याल रखना।” वह चला गया। और मैं वही खड़ा खड़ा उसे देखता रहा। न मैंने मन की अपनी बात उसे बताई और न ही उसके सामने कुछ बोल पाई शर्म से।