नाम जप का नियम
नाम जप साधना तो बहुत लोग करते हैं लेकिन नियम से नहीं करते। नियम से जो सफलता मिलती है, वह अनियम से नहीं मिलती। अनियमित अधिक साधना की अपेक्षा नियमित थोड़ी साधना श्रेष्ठ होती है। बिना नियम से की गई साधना अधिक दिन नहीं चलती, न ही उसमें कोई उत्साह होता है। अनियमित साधना जीवन में आये उतार-चढ़ाव की भूल भलैया में खो जाती है। साधना भले ही कम हो लेकिन हो नियम से। नियम से की गई साधना से दिन-प्रतिदिन उत्साह बढ़ता जाता है। जितना समय बीतता जाता है, भजन में उतनी ही निष्ठा बढ़ती जाती है। नियम जितना पुराना होता जाता है, उतना ही नियम बढ़ता चला जाता है। फिर बाद में तो जितना प्यारा नाम लगता है, उतना ही प्यारा नियम लगने लग जाता है। इसी नेम से प्रेम प्रकट होता है या यों कह लो कि नेम ही प्रेम के रूप में बदल जाता है। अथवा नेम, प्रेम को प्रकट करके प्रेम में समा जाता है।
भजन का नियम स्वयं लेने से नियम दृढ़ता से नहीं निभता। थोड़ी सी भी प्रतिकूल स्थिति में नियम टूट जाता है। इसलिये जब भी नाम जप संख्या का नियम लो तो किसी श्रद्धास्पद संत महापुरूष से लेना चाहिये। फिर इसमें संत की कृपा, उनका संकल्प भी काम करेगा और साथ ही संतों के प्रति श्रद्धा भी नियम पालन में सहायक होगी। अगर संत ना मिले तो भगवान् के मन्दिर में जाकर, भगवान् के सामने खड़े होकर, पुष्प, फल आदि हाथ में लेकर मन ही मन भगवान् से नियम लें। ऐसी भावना करें कि भगवान् स्वयं हमको नियम दे रहें हैं। साथ ही ऐसे नियम पालन की शक्ति भी भगवान् से माँगो। फिर प्रभु चरणों में पत्र, पुष्प, फल आदि अर्पण कर प्रणाम करें। इस प्रकार प्रभु कृपा आश्रित हो नियम को दृढ़ता से निभाओ। मन ही मन एक प्रतिज्ञा ओर करो कि अगर किसी दिन किसी भी कारण से नियम टूट जाये तो फिर एक दिन भोजन नहीं करेंगे। इस प्रकार नियम टूटने पर प्रायश्चित करें। हो सके तो जिन लोगों के साथ आपका उठना-बैठना, मिलना-जुलना हो उनको भी नियम लेने के लिये कहो। नियमधारी जब भी एक दूसरे से मिले तो अभिवादन के बाद सबसे पहले यही पूछें कि नियम कैसा चल रहा है? इस प्रकार अगर ओर लोग भी नियम में लग जायें तो नियम करने वालों में उत्साह की वृद्धि हो जायेगी। इससे नियम की दृढ़ता से पालन करने कर भावना पैदा हो जाती है।
पूर्वकृत कर्मों के परिणाम स्वरूप जीवन में अनेक प्रकार के दुःख भी आयेंगे और सुख भी आयेंगे। भजन के प्रतिकूल परिस्थितियाँ भी आयेंगी और ना जाने कौन सा पाप हमारे सामने क्या मुसीबत लेकर आयेगा ? कौन कह सकता है कि प्रारब्ध क्या क्या नाच नचायेगा ? कौन जाने जीवन में कौन सी दुर्घटना कब आ जाये ? चाहे जीवन में कितने ही उतार-चढ़ाव क्यों न आ जायें, आप फिर भी अपने नियम को दृढ़ता से पकड़े रहो। किसी भी स्थिति में घबराना नहीं । संसार से तो एक दिन जाना ही है, तो छूटने वाले संसार के लिये सदा साथ रहने वाले भगवान् से रिश्ता क्यों तोड़े! नियम टूटने से भगवान् से रिश्ता टूट जाता है और यह रिश्ता भी हमारी तरफ से टूटता है, भगवान् की तरफ से नहीं। भगवान् तो सदा जीव को अपनाये रखते हैं, जीव ही भगवान् से विमुख हो जाता है। यम और नियम परस्पर विरोधी हैं। जहाँ नियम होता है वहाँ यम नहीं आ सकते। यदि यमराज से बचना चाहो तो नियम के किले में आक्रमण से सुरक्षित होकर साधना करो। नियम के किले से बाहर साधना करोगे तो पहले साधना पर आक्रमण होकर साधना का नाश होगा। साधना के नाश होते ही साधक मारा जाता है अर्थात् साधना के समाप्त होते ही वह साधक रहा ही नहीं। इसलिये कोई भी साधना करो, जो भी आपके अनुकूल हो, लेकिन करो नियम से। चौबीस घंटे में मनुष्य 21600 बार श्वास लेता है। नियम भी कम से कम 21600 नाम जप का तो लेना ही चाहिये। एक महामन्त्र (हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे, हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ) में सोलह नाम होते हैं। एक माला में 108 मनके और इस हिसाब से एक माला में 1728 नाम हो जाते हैं। और 16 माला जपने से 27648 नाम हो जाते हैं जो कि एक दिन-रात के श्वासों की संख्या से भी 6048 अधिक हो जाते हैं। इस प्रकार 16 माला जप का नियम तो सभी को लेना ही चाहिये ।
[ हरे कृष्ण ]🙏