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लंदन में भारतीय शिक्षिका



लंदन के बहुत बड़े स्कूल के वार्षिक उत्सव आजार राशि को बेस्ट टीचर्स का एवार्ड लेते समय, कुछ समय पहले की बात याद आ गई.... जब राज का लंदन की बहुत बड़ी कम्पनी में चयन होने की खबर से घर में सब खुशी से झूम रहे थे। राज की छोटी बहन नन्ही बोली पर भैया आप भाभी को भी वहीं ले जा रहे हैं। उनको इंग्लिश तो ज़रा भी नहीं आती है। वहाँ सब मज़ाक बनाएँगे और भाभी को शर्मिंदगी भी महसूस होगी....

राशि उनकी बात सुनकर यहीं अपने देश (भारत) में "शर्मिंदगी" महसूस करने लगी, किन्तु राज ने फट से कहा "नन्ही तेरी भाभी को इंग्लिश तो नहीं आती, पर हिंदी तो आती है और उसे भी कौन पढ़ाने जाना है। घर में ही मेरे और बिट् के साथ रहना और सँभालना है। निपुण गृहिणी जो है, हिंदी तो आती है?"

यह सब सुनकर घर के सभी सदस्य मुस्कुराकर बात हिंदी करने लगे।

राज को लंदन आए एक सप्ताह हुआ था। उसने राशि से कहा - "राशि बिट् का एडमिशन फ़ॉर्म लेकर जाओ और फ़ीस जमा कर देना..."

राशि घबराकर बोली - "स्कूल नहीं, बाबा नहीं... मुझे तो इंग्लिश नहीं आती और फिर वहाँ कोई कुछ पूछेंगे तो क्या जवाब दूँगी... बिट् की भी इंसल्ट होगी... न.... मुझे नहीं जाना"

राज

बोला - "बकबक मत करो, तुमको कोई परेशानी

राशि बिट् के साथ फ़ॉर्म लेकर स्कूल पहुँचती है। जब वह काउंटर के सामने खड़ी थी, तब उसने देखा एक बच्ची को सीढ़ी चढ़ने में दिक्कत हो रही थी। राशि तुरंत उस बच्ची को गोद में उठाकर ऊपर ले आई। उस नन्ही बच्ची ने जब उसे धन्यवाद किया, तब राशि ने बरबस उसे चूम लिया। स्कूल इनचार्ज़ यह सब देख रहा था। जब फीस और फ़ॉर्म जमा कर वह जाने लगी, तब इनचार्ज ने उससे बात करने की कोशिश की। राशि घबराकर बोली - "a am not talk- ing इंग्लिश... इनचार्ज़ मुस्करा उठा और उसे ऑफ़िस में ले जाकर प्रिंसिपल से मिलवाया। इनचार्ज़ और प्रिंसिपल ने आपस में बात की, फिर राशि से बोले "मैम आपको इंग्लिश नहीं आती है, तो क्या हिंदी तो आती है और सबसे बढ़कर बच्चों की मनोभावना को समझना। आप आज से हमारे यहाँ टीचर का काम करेंगी... क्या आप तैयार हैं?"

राशि हैरानी से देखने लगी। उसने कभी सपने में नहीं सोचा था कि उसे विदेशी स्कूल में पढ़ाने का अवसर मिलेगा और बेस्ट टीचर का एवार्ड मिलेगा। एवार्ड लेते समय उसे अपने देश और घर-परिवार की बात याद आ गई। अब वही ननद, सास, ससुर तथा घर के सभी सदस्य कहते हैं - "हमारी राशि तो विदेश में पढ़ाती है।" आज एवार्ड लेते हुए उसे इंग्लिश नहीं बोलने की शर्मिंदगी की जगह अपनी हिंदी भाषा पर गर्व महसूस हो रहा था। इस कहानी से सभी ने राशि के साथ सिखा कि गर्व वही कायम रहता है जो हमारी मूलभाषा में होता है। उसने इंग्लिश की बजाय हिंदी में अपनी पहचान बनाई और देश का नाम रोशन किया। अब उसकी हंसी में गर्व छुपा होता है। अपनी मातृभाषा से हमे अलग नही बल्कि जुड़ना चाहिए और युवा पीढ़ी को इसका महत्व समझना चाहिए।


कहानीकार- डॉ. सुनीता श्रीवास्तव (इंदौर)