Sawan Purnima books and stories free download online pdf in Hindi

सावन पूर्णिमा

सावन का महीना चल रहा था जिसमें बात हरियाली की होती है। सारा जहां हरा हरा दिखता है और अपनी मेहबूब की हाथों में हरी चूड़ियां न हो, माथे पे हरी बिंदिया न हो और बदन में हरी साड़ी न हो तबतक अपना सावन तो फीका ही लगता है। राधा बोली " ओय हीरो सावन आ गया है, क्या दूसरों की हरियाली से ही काम चलाना होगा क्या?" मैं कभी ना कहने वाला, ऐसा कभी होगा। तुरंत बाईक निकली चल दिया मनिहारी दुकान लेकिन वहां जाकर पड़ गया चक्कर में जब दुकानदार ने चूड़ी और बिंदिया का माप पूछ दिया। तुरंत कॉल किया राधा को किंतु वो कहां बिना नखरे की मानती बोली " इतने दिनों से कलाई पकड़े हो और माप ही नहीं पता? " फिर इसके आगे क्या ही बोलता। मैं भी कम नहीं था उसका बेटा को फोन किया और उससे ज्यामिति पढ़ने के बारे में पूछा। उससे पूछा की व्यास और परिधि जानते है? बोला " हां सर।" मैने बोला थोड़ा कोई चूड़ी की व्यास बताओ तो आंतरिक और बाह्य उसने तुरंत अपनी मां की चूड़ी का माप बताया। फिर दुकानदार को बताया तो उसने थोड़ा विचार दिया की चूड़ी की साइज कैसे पता करते है। अंततः ज्ञात हुआ कि 2’4” की बनती है। फिर मैने चूड़ी , नाखून पॉलिश, और बिंदिया का सारा माप का एक एक पत्ता खरीद डाला क्योंकि इसकी भी माप नहीं पता था। फिर एक हरी साड़ी खरीदी, और उसी थैले में डाल कर जा पहुंचा मैडम की दुकान के पास। 4 बजे दोपहर को मैने सारा सामान दिया और 7 बजे शाम तक हरियाली रूप में भिन्न भिन्न प्रकार के शैली में तस्वीरें हमारी गैलरी में आ पहुंची। इस मोहिनी को देख के मन बहुत मचल रहा था सामने से दीदार करने को लेकिन इतनी जल्दी मन्नत कहां पूरी होने वाली थी। वक्त तो लगा पूर्णिमा के दिन तक जब अचानक मेरा दरवाजा ठकथकाने की आवाज सुनाई दी। बारिश झमाझम हो रही थी सोचा इतनी बारिश में कौन है भाई। देखा की एक अत्यन्त सुन्दर नारी हरी साड़ी में मेरी दुवारी खड़ी है। तुरंत दरवाज़ा खोला और अंदर आते ही दरवाजा बंद किया। मेरी तो धड़कने इतनी तेज हो गई थी कि क्या ही बताऊं किंतु जैसे ही उसने जोरो से हग किया सब स्थिर हुआ डर लगे जा रहा था की किसी ने आते तो नहीं देखा। उसने बोला ओय पगलू सब अंदर है बारिश में डरो मत। मैंने इस अचानक और जोखिम भरा आगमन का राज पूछा तो उसने बताया कि सिर्फ चूड़ी बिंदिया और साड़ी से काम हो जायेगा मुझे भी तो कुछ देना है। फिर उसने हग किए हुए मुझे होठों पे चुंबना प्रारंभ किया। उसका चुम्बन सायद ही कोई महिला मुकाबला कर सकती है। चुम्बन के दौरान उसकी सांसे फूलने से मेरे जिस्म में जो ज्वाला उत्पन्न हो रही थी उसका क्या ही जिक्र करू। मेरा मन कुछ और ही करने को बोल रहा था लेकिन मैं वचन बध की राधा की तरह प्यार करूंगा बिना जिस्म के लालायित होकर। उसे सब समझ आ रहा था उसने धीरे से दरवाजा सताया और पलंग पे सो गई और मुझे अपने ऊपर लेटाया। चुम्बन की प्रकिया में ही मैने ओ सब कर दिया जो ना करना था। मुझे दुःख हो रहा था वो समझ गई और हग करके बोली " ओय बच्चू आज सावन पूर्णिमा है आज आपने प्यार के साथ ही ये सब करना चाहिए। देखो आज अपने पति को न करने दी बस आपके पास चली आई।" पता नही ये तथ्य कितना सही है पर मैं यही स्वीकार करके मुस्करा दिया। आप टिपण्णी में जरूर बतावे।
धन्यवाद।