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मनु की टाँगें दो नावों के बीच में फँसी हुई थीं| एक ओर दीना अंकल की परेशानी तो दूसरी अनन्या की गर्भावस्था का गंभीर व चुनौतीपूर्ण समय!वह सोचता कि उसे सबके साथ ही न्याय करना होगा लेकिन कैसे? इसका उत्तर उसके पास नहीं था| इसका परिणाम यह हो रहा था कि मनु रातों को चैन की नींद नहीं सो पाता था| आज भी वह अपने कमरे में करवटें बदल रहा था, दो के घंटे बजे और पूरे वातावरण में पसर गए| इन घंटों की तो उन्हें आदत पड़ गई थी लेकिन आजकल उनींदी अवस्था में घंटों की आवाज़ कुछ कहती सी लगती| सोनी आँटी की प्यारी एंटीक दीवार-घड़ी थी यह, दीना अंकल ने इसे कितना संभालकर रखा था!आशी ने तो इसको भी कितनी बार उतारने की कोशिश की थी लेकिन इस पर दीना उखड़ गए थे|
आज जैसे ही दो के घंटे बजे दीनानाथ चौंककर उठ बैठे| उनका दिल ज़ोर-ज़ोर से धक-धक कर रहा था| माधो तो उनके कमरे की दीवार से सटकर ही सोता था| हल्की सी भी आवाज़ हुई कि माधो अपने मालिक के पास ! कई बार तो दीना जी भी उससे पूछते कि वह सोता भी है या उनकी करवटें बदलने की आवाज़ ही सुनता रहता है?वह कभी कोई उत्तर न देता लेकिन उसका रूटीन कभी नहीं बदल था|
“क्या हुआ सरकार---?”क्षण भर में माधो उनके पास था|
वे कुछ नहीं बोले, बस इधर-उधर अजीब अजनबी सी दृष्टि से देखते रहे| माधो घबरा गया, उसने भागकर मनु के कमरे को नॉक कर दिया| मनु तो न जाने कबसे कच्ची नींद में ही होता था| वह भी लगभग भगता हुआ दीना अंकल के कमरे में आय लेकिन पहले डॉक्टर को फ़ोन करना न भूला|
“क्या हुआ डैडी ?”मनु ने उनकी पीठ सहलाते हुए पूछा|
उनका सारा बदन पसीने से तरबतर हो रहा था, मुँह से आवाज़ नहीं निकल रही थी| इशारे में उन्होंने कहा कि वे आराम करना चाहते हैं| अब तक तो पूरा घर जाग चुका था| रेशमा तो पहले ही उनके कमरे में आ गई थी, घर का सारा स्टाफ़ जमा हो गया था|
“भैया! क्या हुआ अंकल को?” रेशमा घबरा गई |
“कुछ नहीं रेशु, अभी ठीक हो जाएंगे| डॉक्टर साहब आते ही होंगे---”
भाई के इस आश्वासन से रेशमा को कोई फ़र्क नहीं पड़ा, उसके चेहरे पर हवाइयाँ उड़ रही थीं|
“तू अपने कमरे में नहीं जाना चाहती तो आजा यहीं बैठ, ”मनु को रेशमा बहुत घबराई हुई लग रही थी| अकेली अपने कमरे में रहेगी तो और परेशान हो जाएगी| उसकी आँखें आँसुओं से डबडबा रही थीं|
बाकी सभी लोगों को मनु ने वहाँ से भेज दिया और गार्ड को इन्सट्रक्शन दिलवा दिए कि ध्यान रखा जाए डॉक्टर साहब आते ही होंगे| उनका घर और क्लीनिक बहुत दूर नहीं थे| बंबई जैसे शहर में सब आवश्यक चीज़ों का पास-पास होना अपने में बहुत बड़ी बात थी|
रेशमा दीना अंकल के कमरे में ही बैठ गई| उनकी तेज़-तेज़ चलती हुई साँसों को देखकर वह बच्ची घबरा रही थी| माधो भी घबरा गया और अपने मालिक की तेज़ धड़कनों को देखकर सहम तो गया, वह वहाँ से कहीं हिल भी नहीं सकता था, वहीं बना रहा|
कुछ ही देर में डॉक्टर साहब की गाड़ी रुकने की और गार्ड के गेट खोलने की आवाज़ आई| माधो उन्हें लेने नीचे भागा गया| उनके हाथ से मैडिकल बॉक्स लेकर उसने कहा;
“जल्दी चलिए डॉक्टर साहब, मालिक ठीक नहीं हैं| ”
डॉक्टर ने कोई जवाब नहीं दिया और माधो के पीछे-पीछे ऊपर आकर दीना जी के सामने कमरे में खड़े हो गए| डॉक्टर शर्मा बंबई के माने हुए मनोवैज्ञानिक थे| उन्होंने आशी को भी कई वर्षों तक ट्रीटमेंट दिया था| उनका मानना और कहना था कि आशी अपनी ज़िद में कुछ चीज़ों को बिगाड़ रही है| थोड़ा सा को-ऑपरेट करे तो अपने आप संभल जाएगी| लेकिन यहीं तो मुश्किल थी, वह कर सकती थी लेकिन उसे करना नहीं था| डॉक्टर शर्मा ने मनोविज्ञान व मैडिसिन में डिग्री हासिल की थी इसलिए वे अपने अनुसार रोगी को दवाइयाँ भी देते थे| अब वे काफ़ी बड़ी उम्र के हो चुके थे और लोग उन पर आँख मूंदकर विश्वास करते थे| डॉक्टर सहगल के अच्छे दोस्तों में होने के कारण दीना जी से भी उनकी अच्छी पहचान थी|
दीना अंकल को मानसिक रूप से परेशान देखकर एक दिन बिना बताए ही मनु उन्हें डॉ.शर्मा के पास ले गया था और इस प्रकार उनका इलाज शुरू हो गया|
“कैसे हैं सर---क्या हुआ ?”डॉक्टर शर्मा ने दीना से पूछा|
“कुछ नहीं, सब ठीक है डॉक्टर, ये मनु बहुत जल्दी घबरा जाता है, नाहक ही आपको परेशान किया---”उन्होंने धीमी सी आवाज़ में कहा|
“हम तो बने ही परेशान होने के लिए हैं, आप हमारी चिंता न करें, अपनी बताएं---”डॉक्टर शर्मा ने हँसकर कहा|
“वैसे अब लग कैसा रहा है आपको?क्या फ़ील हो रहा है?”उन्होंने उन्हें लिटा दिया था| उनकी जांच करते हुए उनसे पूछा| वे चुप बने रहे|
“क्या घबराहट हो रही है?”उन्होंने स्टेथेटकोप लगाया और उनकी धड़कनें सुनने की कोशिश करने लगे| अब भी उनका दिल नॉर्मल से अधिक ज़ोर से धड़क रहा था| उन्हें आराम की ज़रूरत थी लेकिन इससे पहले उनके दिमाग को शांत करना जरूरी था|
“दीना जी ! क्या कोई सपना देखकर आपकी आँखें खुल गईं?”डॉक्टर ने पूछा और आनन-फ़ानन में उन्हें एक इंजेक्शन लगा दिया|
“मनु! दवाइयाँ तो ठीक टाइम पर खा रहे हैं न ये---?”उन्होंने पूछा मनु से था लेकिन इसका उत्तर माधो के पास होता था|
“बिलकुल डॉक्टर साहब, जैसे आपने बताई बिलकुल वैसे---”मनु से पहले ही माधो बोल उठा| डॉक्टर भी जानते थे कि माधो उनके मरीज़ का कितना अच्छी तरह ख्याल रखता है| माधो की ओर देखकर वे मुस्कराए, दीनानाथ पाँच मिनट के अंदर ही सो गए थे|
“मैं चलता हूँ, ”कहकर डॉक्टर ने मनु की पीठ थपथपाई| यह उसके लिए डॉक्टर का बाहर आने का इशारा था| माधो ने डॉक्टर साहब का बैग उठा लिया था|
“माधो, मैं छोड़कर आता हूँ, तुम बैठो इनके पास---”
वह कमरे से बाहर निकला तो देखा मनु के कहने के बावज़ूद भी घर के सभी हैल्पर्स कमरे के बाहर लाइन में खड़े थे|
“जाकर सो जाओ, बिलकुल ठीक हैं तुम्हारे सेठ जी---”मनु ने कहा और डॉक्टर शर्मा के साथ बात करते हुए उन्हें नीचे गेट की ओर चला आया|
“वैसे तो कोई गंभीर समस्या नहीं लगती मनु लेकिन इनके मन में अकेलापन भरा हुआ है| इसीलिए इनका सबके साथ रहना, सबके बीच उठना-बैठना अधिक अच्छा है| ”डॉक्टर ने कहा|
“तुम लोग तो यहीं पर हो न ?”उन्होंने मनु से पूछा|
“जी अंकल, हम गए तो थे लेकिन एक दिन में ही वापिस आ गए| माधो ने बताया था कि उस दिन इन्होंने ठीक से खाना ही नहीं खाया | फिर मेरा वहाँ रहने का कोई मतलब ही नहीं था| ”
“हूँ---जहाँ तक हो इन्हें अकेले मत रहने दो| मैं तो समझता हूँ आशी भी आ ही जाए तो अच्छा है| ”डॉक्टर ने कहा|
“अभी तो नींद का इंजेक्शन लगाया है लेकिन इनकी दवाइयों में भी नींद का असर है| रोज़ इंजेक्शन देने का तो कोई मतलब नहीं| सबके बीच में रहेंगे तो ठीक रहेंगे---अच्छा करते हो जो ऑफ़िस ले जाते हो---बेशक अब सब काम संभला हुआ है लेकिन इनका मन लगा रहे यह बहुत जरूरी है| ”
“जी, इसीलिए ले जाता हूँ ऑफ़िस, अभी आशी को भी फ़ोन कर देता हूँ---”
“हूँ, यह ठीक रहेगा---कुछ परेशानी दिखे तो मुझे फ़ोन कर देना--”उन्होंने फिर मनु के कंधे पर आश्वासन का हाथ रखा|