Recreation of 'Shalimar'... (one thought) in Hindi Film Reviews by VIRENDER VEER MEHTA books and stories PDF | 'शालीमार' का रिक्रिएशन. . . (एक विचार)

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'शालीमार' का रिक्रिएशन. . . (एक विचार)

शालिमार

हाल ही के कुछ वर्षों में कई ऐसी फिल्मों का निर्माण हुआ है, जिनमें या तो किसी पुरानी हिट फिल्म का रिक्रिएशन करके उसे दर्शकों के सामने रखा गया या पुरानी फिल्म को आधुनिक समय के लिहाज़ से उसे थोड़े परिवर्तन के साथ बनाया गया। ऐसी कुछ फिल्मों में हम सहज ही 'अग्निपथ', 'डॉन', 'जंजीर' का नाम ले सकते हैं।

लेकिन क्या किसी ऐसी फिल्म को भी दोबारा बनाया जा सकता है; जिसे दर्शकों ने नकार दिया हो, लेकिन उनकी असफ़लता के बावजूद वह फ़िल्म इतिहास में आज  ही बहुत ख़ास मानी जाती हो।यह विचार थोड़ा अलग जरूर है लेकिन यह विचार बास्तव में अपने आप में दिलचस्प है कि ऐसी पुरानी फिल्में जो सिनेमा के पर्दे पर  पसंद किए जाने और चर्चा पाने के बाद भी सुपर-डुपर हिट नहीं हो सकी, का फ़िर से निर्माण किया जाए या उनका सेंकड पार्ट बनाया जाए। अब चाहे वह फ़िल्म 'शालीमार'  हो, 'मेरा नाम जोकर' हो या रज़िया सुल्तान' हो।

बहरहाल यदि हम इस नजरिए से फ़िल्म 'शालीमार' की बात करें, तो यह थोड़ा दिलचस्प होने के साथ-साथ विचारणीय भी होगा, क्योंकि वह फ़िल्म जिसे उस दौर के दर्शकों ने स्वीकार नहीं किया; क्या उस कंसेप्ट को आज के दर्शक स्वीकार करेंगे? इस पर बात करने से पहले थोड़ा फ़िल्म से जुड़ी बात।। दरअसल यह फ़िल्म जिस दौर में बनी थी, उस दौर में इसकी कहानी, लोकेशन्स और इसकी स्टार कास्ट अपने आप में थोड़ा हटकर थी। समस्या जब शुरू हुई, जब फ़िल्म बनकर सामने आई। तकनीकी स्तर, संपादन स्तर और डबिंग के स्तर पर फ़िल्म इतनी घटिया बनी थी कि देखने वाले को बहुत बुरी फ़ीलिंग हुई। यही कारण था कि थियेटर्स में यह फ़िल्म बुरी तरह से असफल हो गई।  बाद के वर्षों में वी सी आर के जमाने में जाकर इसे घर बैठे देखने पर मिलने के बाद इस चर्चा मिली।  पर सच में इसके गाने तब भी फ़ेमस हुए थे और आज भी याद किए जाते हैं।और इसमें भी कोई दो राय नहीं है कि फ़िल्म शालीमार तकनीकी स्तर पर अपनी बहुत सी ख़ामियों के चलते एक ऐसी फिल्म बन गई, जिसे पसंद करने वाले दर्शक भी फ़िल्म देखने के बाद खुश नजर नहीं आते। और इस फ़िल्म की कमियों में सबसे बड़ी कमी फ़िल्म की बेहद ख़राब डबिंग थी जिसने फ़िल्म का सारा मजा खराब कर दिया था।बहरहाल यदि अतीत को छोड़कर बात वर्तमान की करें तो इस फ़िल्म के बेहतर कंसेप्ट को दोबारा दर्शकों तक पहुचाने के कुछ और ऑप्शन भी हैं, जिन्हें सहज ही कोई फ़िल्मकार आगे बढ़कर इन्हें अपनाए तो शायद दर्शकों को एक  बेहतरीन फ़िल्म देखने को मिले।बहरहाल इस विषय पर और बात करने से पहले फ़िल्म शालीमार की कहानी।

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पुलिस से भागते समय, एस एस कुमार (धर्मेंद्र) एक चोर, को सर जॉन लॉकस्ले (रेक्स हैरिसन) के द्वीप पर राजा बहादुर सिंह (प्रेम नाथ) को संबोधित एक निजी निमंत्रण मिलता है, जिसे राजा को गोली मारने के बाद कुमार ने उसे राजा से चुरा लिया। फिर कुमार राजा को पास के एक अस्पताल में ले जाता है, एक सिख की पगड़ी पहनता है, राजा के बेटे, बहादुर सिंह, जूनियर के रूप में पेश होता है, और चुराए गए निमंत्रण के साथ सर जॉन के निजी द्वीप पर जाता है। जहाँ पर उसकी मुलाकात के पी डब्ल्यू लयंगर उर्फ ​​रोमियो (ओ पी रहलन); डॉ. दुबारी (शम्मी कपूर) विश्व के सभी धर्मों के अनुयायी; कर्नल कोलंबस (जॉन सेक्सन) एक मूक; और काउंटेस रासमुसेन (सिल्विया माइल्स) एक कलाबाज से होती है।स्तब्ध कुमार को पता चलता है कि ये सभी आमंत्रित लोग मास्टर अपराधी और चोर हैं। कुमार वहाँ किसी को भी मूर्ख नहीं बना पाता, और वे उस पर हँसते हैं।वहीं पर कुमार को अपनी पूर्व प्रेमिका शीला एंडर्स (ज़ीनत अमान) भी मिलती है जो वहाँ अपाहिज़-कैंसरग्रस्त सर जॉन की सहायता के लिए काम करती है।बहरहाल कुमार का सच जानने के बाद भी सर जॉन कुमार को रुकने की अनुमति देते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि कुमार हालांकि शौकिया चोर है, लेकिन वहाँ पहले से मौजूद लोगों के अनुरूप है। जॉन ने उन्हें आमंत्रित करने का कारण उनकी जगह लेने के लिए एक उत्तराधिकारी की तलाश करना है, क्योंकि वह कैंसर से मर रहे हैं। सर जॉन को लगता है कि उसके आमंत्रित लोगों में से एक पर उसकी जगह लेने के लिए भरोसा किया जा सकता है, और इसके लिए सर जॉन ने एक सौ पैंतिस करोड़ रुपये के शालीमार हीरे की चोरी की व्यवस्था की है। यह हीरा उनके महल के भीतर एक सुरक्षित कमरे में रखा गया है, जिसकी सुरक्षा चौबीस घंटे हथियारबंद लोग करते हैं। हीरा एक बुलेटप्रूफ ग्लास के एक डिस्प्ले केस के भीतर रखा गया है और उसे एक 'माइन्स प्रोटेक्शन्स' से सुरक्षित किया गया है।सर जॉन उन सभी को बारी-बारी से शालीमार चुराने की चुनौती देता है - लेकिन यदि कोई विफल रहता है तो सुरक्षा प्रणाली द्वारा उसे मार दिया जाता है। शालीमार को चुराने की कोशिश में  कोलंबस, रासमुसेन और डॉ. डुबरी मारे जाते हैं। इसी बीच दूसरों के अविश्वास के बावजूद कुमार दावा करता है कि कोलंबस मरने से पहले एक बार चीखा था। कोलंबस के शव को स्थानीय जनजाति द्वारा ले जाया जाता है और उसका सम्मान किया जाता है। रोमियो ने प्रतियोगिता से अपना नाम वापस ले लिया, लेकिन फ़िर भी सर जॉन उसे मार डालता है। यहीं पर ये खुलासा भी होता है कि वह चल सकता है। सर जॉन जो शालीमार पर दावा करने के बाद असुरक्षित हो गए थे, उनका मानना था कि ये अनुभवी अपराधी इसे लूटने की कोशिश कर सकते हैं, इसलिए उन्होंने विकलांग और कैंसर का कार्ड खेलकर अपराधियों को आमंत्रित किया ताकि वे प्रतियोगिता के दौरान मारे जा सकें।अंततः शालीमार को चुराने का अपने अवसर का कुमार फ़ायदा उठाता है और बहुत ही चालाकी से वह कोहिनूर पाने में सफल हो जाता है। दूसरी ओर रोमियो के जीवित बचकर आने और स्थानीय जनजाति के लोगों को भड़काने से स्थिति बदल जाती है और जनजाति-नेता सर जॉन को मार देते हैं क्योंकि उसने उनसे शालीमार का झूठा वादा किया था।कोहिनूर और शीला को लेकर सुरक्षित शहर पहुँचने के बाद यह ख़ुलासा होता है कि एस एस कुमार वास्तव में मुख्य अपराधियों को गिरफ्तार करने के लिए इस विशेष मिशन पर एक सीबीआई अधिकारी (सेना से चयनित) लगाया गया था। अंततः फ़िल्म की हैप्पी एंडिंग में कुमार और शीला की शादी हो जाती है।

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अब यदि बात की जाए इस फ़िल्म के रिक्रिएशन की, तो हमारे सामने पहला ऑप्शन है फ़िल्म का 'एज इज'  रिक्रिएशन या रिबूट। अर्थात फ़िल्म को आधुनिक तकनीक, वीएफएक्स आदि के साथ इस फ़िल्म को कुछ आंशिक परिवर्तन के साथ दर्शकों के सामने लाया का सकता है। (इसी ट्रेंड पर 'डॉन' और 'जंजीर' को रिबूट किया गया)  इस परिवर्तन में फ़िल्म के कुछ हल्के फुल्के दृश्यों को कम करके वर्ल्ड के बेस्ट चोरों के एक्ट को बढ़ाया जा सकता है। आदिवासी लोगों से जुड़े कंसेप्ट को सुधारा जा सकता है। अभिनेताओं के रिप्लेसमेंट पर (पहले की तरह) विदेशी अभिनेताओं को लिया जा सकता है, या इसी तर्ज पर भारतीय-क्षेत्रीय अभिनेताओं को (जैसे वैसे आजकल बॉलीवुड और टॉलीवुड के  अभिनेताओं को साथ लाने का ट्रेंड है) लेकर प्रयोग किया जा सकता है। चल रहा है।) बाकी फ़िल्म का गीत-संगीत तो पहले से ही प्रसिद्ध है, जिसे छेड़ना बहुत ज़रूरी नहीं है।

और यदि हम बात करें फ़िल्म शालीमार के दूसरे कंसेप्ट यानी इस फ़िल्म के नेक्स्ट पार्ट (कहानी को आगे बढ़ाते हुए) के लिए कोई नया आईडिया। तो इसमें सर्वप्रथम तो एक प्रयोग ऐसा ही कर सकते हैं,जैसे कहानी पचास-साठ वर्ष आगे ले जाकर कोहिनूर के वापस कबीले के हाथ लग जाना और फिर से उसे चुराने के लिए कुछ बेस्ट चोरों (चाहे वह 'धूम' की जॉन इब्राहिम, रितिक रोशन टाइप टीम हो या फ़िल्म 'हैप्पी न्यू ईयर' या फ़िर फ़िल्म 'प्लेयर्स' की टीम हो।) का रिक्रिएशन किया जा सकता है।

एक दूसरा प्रयोग हम ऐसा भी किया जा सकता है कि 'कुमार और शीला' (धर्मेंद्र -जीनत अमान) का बेटा अपने पिता द्वारा सरकार को हैंड ओवर किए गए कोहिनूर को अपना मानता है और उसका जुनून इस हद तक बढ़ जाता है कि वह कोहिनूर को हथियाने के लिए दुनियाँ के माने हुए चोरों को हायर करके इसे चुराने का प्लान करता है। (वैसे भी अभी जीनत और धर्मजी बाकायदा फ़िल्म का हिस्सा बन सकते हैं)

एक और फेंटेंसी इस फ़िल्म के अगले पार्ट के रूप में प्लान की जा सकती है। जिसके अंतर्गत कोहिनूर की बेशक़ीमती वैल्यू को देखते हुए एक दुश्मन देश इसे हथियाने के लिए कुछ पेशेवर चोरों को हायर करता है। और कोहिनूर लगभग उसी तरह से एक संग्राहलय में आधुनिक कड़ी सुरक्षा में रखा जाता है जैसे सर जॉन इसे अपने महल में रखते हैं।

बहरहाल कल्पनाएँ बहुत की जा सकती हैं, क्योंकि लेखन जगत में क्रिएटिव माइंड्स की कमी नहीं है; बस ज़रूरत है ऐसे लोगों के विचारों को  वास्तविक ज़मीन पर लाने की।

फ़िलहाल इस लेख पर पाठकों की प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा रहेगी।

. . . वीर।