Bazaar - 12 in Hindi Anything by Neeraj Sharma books and stories PDF | बाजार - 12

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बाजार - 12

 बाजार------12 वी किश्त।

                                            मॉडलिंग का शौक, जिस्म की नुमाइश, नंगा पन कितना हो, किस तिकोन मे हो, किस आयत्कार मे हो, बस जितना सडोल शरीर वस्त्रो से नंगा हो गा, तुम उतने ही मॉडलिंग के पुरजोर डिमांड पर हो।

                       कितने निर्देशक तुम्हे बुला रहे है, ये तुम्हारी मॉडलिंग की नगेज की अपील पर डापेंड करता हैं।

                          तुम गरीब घर से हो, तो तुम मॉडलिंग के बारे मे सोच भी नहीं सकते। कुछ पैसे उछले हो, स्टेज लगी हो, लोग तुम्हारे जिस्म को कोया दृष्टि से ताक रहे हो।

तुममें कितनी खासियत हैं। पेश करने की, आपने जिस्म के सडोल पन को... समझ लो यही क्लोजअप हैं, मॉडलिंग का बस।

रानी की काया सुन्दर, सडोल और किसी से भी बिलकुल आपरिचत थी। वो पहली दफा दिल्ली को छोड़ बम्बे जैसे साम्राज्य मे अकेली आयी थी... गंदी गाले निकलना उसका यही शौक पड़ा था... वो गुस्से मे सब कुछ ही बोल जाती थी।

स्टोरी लेखक से वो दो डेट्स पर जा चुकी थी। मॉडलिंग के इलावा और भी कुछ हैं, ये जान के उसे आपनी गौरी काया उस बेढंग से हाथों को सौंप दी थी...

उसके इम्तिहान और भी बाकी थे। वो बस उसके आगोश मे बैठा यही सोच रहा था, कि ये उसकी एक सौ बताली वाली मोहर थी... अब तक की... उसने कहा था जो " रानी यहाँ कोई भी तुझे सपनो की रानी नहीं बनाएगा.. आपना मतलब निकल जाने के बाद ---- हां इतना याद रखना तुम ये अँधेरी नगरी मेआपनी क़ीमत सपोर्ट बॉय जो फिल्मो का हिस्सा हैं, उसके आगे मत विछ जाना। "

उसने स्टोरी लेखक को जिसने डायलॉग लिखें थे, " थन्कु "बोला था।

उसकी एक फ़िल्म लेने के पीछे एक दुःखद घटना यही ही थी। जो उसने कथक सीखा था, वो बस उसी कमरे मे रह गया था, यहां तो बस सुंदर काया के ही गुलाम थे। ताश के पतों जैसी बम्बे की फ़िल्म इंडस्ट्री... जुए की तरा तुम जहाँ कुछ भी नहीं जीतते... हमेशा हारते ही हो.... ज़ब वक़्त तुम पर मेहरबान हो, तो तुम एक नये ब्रैंड बन कर विकते हो... तुम्हारा मुकाबला कोई नहीं कर सकता... पूछो तो बताऊ..." तुम सिर्फ आपने बलबूते पर यहाँ मे कुछ भी नहीं हो...." तुम्हरा मुकाबला सिर्फ तुमाहरा अंदर बोले तो तुम कब के हार चुके होते हो.... "

बस यही ज़िन्दगी की कमीनी रंगोली सुबह और कब शाम पड़ती हैं, तुम्हे खुद ही पता चल जाता हैं.... पता कब। नहीं जानते, सच्ची मे..... कोई इस जहान मे कोई लम्मा कोई नहीं ठहरा.... बरखुरदार।

कड़वाहट के घुट कौन नहीं पीता, इस बम्बे नगरी मे... सब तो नहीं भी पीते होंगे। वाइन या वोडका फिर और कया देसी की बोतल... नहीं नहीं इधर बहुत कम। नारी अब पीछे नहीं, किसी भी काम मे, वाइन हर तरा की शराब उसकी पहली चॉइस बन रही हैं। कल के गम दुःख कौन याद रखे... भूल जाए चाये जैसे मर्ज़ी हो। लेडीज़ जयादा पीती हैं, पता कयो  ---- बम्बे मे कोई चलता पुर्जा नहीं, सब टूटे हुए ही मिलेगे। सब की बेशक कोई न कोई कहानी लिख लो। रानी आखिरी स्क्रिप्ट के डायलग्स मे उलझी हुई थी। वो किस तरा बोले... उसकी समझ मे पड़ता ही नहीं था। निर्देशक ने सुझाव दिया..." देव का रोल बेशक छोटा हैं, लेकिन उसने और उसकी बीवी लिली ने कितनी जान डाल रखी हैं। " एक सुझाव लो, मिलो आज ही देव से.... और ये सब पूरा होने के बाद, फ़िल्म को स्टेज के कोरिडोर पे लेकर आना हैं..... "जल्दी करो। "

(चलदा )                              नीरज शर्मा 

                            पिन :- 144702।