अन्वी 2 in Hindi Love Stories by W.Brajendra books and stories PDF | अन्वी

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अन्वी

अब अन्वी उसकी ज़िंदगी में नहीं है,
मगर उसकी ज़िंदगी का हर हिस्सा अब भी अन्वी से जुड़ा है।

उसने प्रेम को खोया नहीं था —
बस एक और रूप में जीना सीख लिया था।

क्योंकि कुछ लोग भले ही पास न हों,
मगर उनकी रूहें हमारे साथ चलती हैं… हर सांस में, हर ख्वाब में।


यह कोई आम प्रेम कहानी नहीं थी —
यह त्याग का प्रेम था… वक़्त के आगे झुक गया, मगर झूठा कभी नहीं हुआ।

उन दो रूहों के लिए, जो साथ नहीं रह सकीं…
मगर कभी एक-दूसरे से जुदा भी नहीं हुईं।



वो दोनों अब अलग थे —
रिश्तों की भाषा में भी, और दुनिया की नज़रों में भी।

न साथ बैठना बचा था,
न वो रोज़ की बातों का सिलसिला…

मगर…
उनकी रूहों में अब भी एक कोना ऐसा था —
जहाँ कोई और कभी पहुँच नहीं पाया।

**

अर्जुन ने 
परिवार, समाज, जिम्मेदारियों के बीच उसने अपने प्रेम को शब्दों में नहीं, त्याग में जिया।

और अन्वी ने भी अपना दिल चुपचाप समेट लिया —
बिना किसी शिकायत के, बिना किसी सवाल के।

**

कभी अर्जुन की आँखों में नींद नहीं होती थी, सिर्फ़ यादें होती थीं।
और अन्वी की मुस्कुराहटों में अब वो गहराई नहीं थी — जो सिर्फ़ अर्जुन समझता था।

दोनों ने अपने-अपने हिस्से का प्रेम…
अपने सीने में दफ़न कर लिया था।


**

उन्होंने साथ रहने का वादा नहीं निभाया —
मगर एक-दूसरे की खुशी के लिए खुद को भुला देना… वो निभा गए।

**

आज भी जब अर्जुन किसी मंदिर के सामने रुकता है,
तो मन ही मन बस इतना कहता है:

"हे भगवान… जहाँ भी हो वो,
उसका ख्याल रखना।
मैंने उससे बहुत प्यार किया है…
उससे ज़्यादा… अब तक किसी से नहीं कर पाया।"

और अन्वी,
जब भी अकेले बैठती है…
तो कानों में जैसे अब भी एक आवाज़ गूंजती है:

"कितना समय लगा दिया, अन्वी…"

वो मुस्कुराती है…
आँखों से आँसू बहते हैं…
और वो खुद से कहती है:

"कभी-कभी सबसे सच्चा प्यार वही होता है,
जो पूरा नहीं होता।"




अर्जुन और अन्वी के अलग होने के बाद, जैसे उसकी दुनिया ही बदल गई थी। पहले जो लड़का हमेशा दोस्तों के बीच हँसता-खेलता नजर आता था, अब वो एकदम खामोश हो गया था। कॉलेज के कॉरिडोर में, भीड़ में, या लाइब्रेरी के सन्नाटे में—हर जगह अर्जुन अकेला दिखता था।

उसके दोस्त जो कभी उसके सबसे करीबी थे, अब उसी के जज़्बातों का मजाक उड़ाने लगे थे। "क्या अर्जुन, अन्वी गई तो तू भी गया क्या?"— ऐसी बातें अर्जुन को भीतर तक तोड़ देती थीं।

धीरे-धीरे उसने हर किसी से दूरी बना ली। व्हाट्सएप ग्रुप म्यूट कर दिए, इंस्टाग्राम पर स्टोरीज देखना छोड़ दिया, और कॉल्स उठाना भी बंद कर दिया। उसने खुद को एक ऐसे खोल में बंद कर लिया था जहाँ न कोई आवाज थी, न कोई एहसास—सिर्फ अन्वी की यादें थीं और खुद से किए सवाल।

कभी-कभी रात को वो अपनी छत पर जाकर बैठ जाता, आसमान की तरफ देखता और सोचता—"क्या गलती मेरी थी?"

वो अपने अंदर के तूफान से लड़ रहा था, लेकिन बाहर से उसे देखकर कोई नहीं समझ पाता कि उसकी मुस्कुराहट के पीछे कितनी तकलीफ छुपी है।

अब अर्जुन के लिए दोस्ती, रिश्ते, और भरोसा सब धुंधला हो गया था। वो सिर्फ जी रहा था, लेकिन ज़िंदगी से जुड़ा नहीं था।

अब अर्जुन अकेले अपने कमरे की खिड़की के पास बैठा था, बाहर बारिश हो रही थी, बूंदों की टप-टप उसे जैसे अपने ही भीतर की आवाज़ें सुना रही थीं। वो खुद से बुदबुदा रहा था, "काश... कोई हो... जिससे मैं सब कुछ कह सकूं, बिना डर के, बिना हिचक के। कोई जो सुने, समझे... और हँसे नहीं।"

उसने अपना फोन उठाया, कुछ देर व्हाट्सएप खोला, फिर वापस बंद कर दिया। हर चैट में एक पुरानी याद थी, हर नाम के पीछे कोई अधूरा रिश्ता। वो किसी को मैसेज करना चाहता था, लेकिन डरता था — क्या वो फिर मजाक बनाएँगे? फिर से ताने देंगे?

उसकी आंखें भीग गई थीं, शायद बारिश से बाहर ज़्यादा अंदर से भी। वो सोचता जा रहा था —
"क्या मैं इतना बुरा हूं कि किसी से दिल की बात भी नहीं कह सकता?
क्या इस दुनिया में कोई नहीं है जो सिर्फ सुने, जज न करे?"

उसे किसी ऐसे की ज़रूरत थी जो उसका सुनने वाला बन सके — न कि सुधारने वाला, न हँसने वाला।
बस एक इंसान, जो उसकी खामोशी को भी समझ सके।

अर्जुन खिड़की के पास बैठा था, बाहर हल्की-हल्की हवा चल रही थी और सामने वह पुराना नीम का पेड़ झूम रहा था जैसे किसी अनदेखे संगीत पर थिरक रहा हो। अचानक उसके ज़हन में बचपन की एक कहानी तैर गई — एक कहानी जिसमें सारे पेड़ आपस में बातें करते थे, हँसते थे, उदास भी होते थे।

उसने मुस्कुराते हुए खुद से कहा,
"क्या पेड़ भी बातें करते हैं?
अगर मैं नीम के पेड़ से कुछ कहूं, तो क्या वो सुनेगा?"

फिर खुद ही जवाब भी आया — "नहीं।"
लेकिन उस ‘नहीं’ के भीतर भी एक उम्मीद छिपी थी।
"शायद वो जवाब न दे सके, पर सुन तो सकता है...
और शायद मुझे अब किसी जवाब की नहीं, सिर्फ एक सुनने वाले की ज़रूरत है।"

अर्जुन धीरे-धीरे उठकर बाहर आया। चप्पलें भी नहीं पहनीं, जैसे ज़मीन की नमी को महसूस करना चाहता हो। वो सीधे नीम के पेड़ के पास गया, उसकी छांव में खड़ा हो गया, और पेड़ के तने से अपनी पीठ टिकाकर बैठ गया।

कुछ पल वो चुप रहा।
फिर अचानक बोला —
"तुझे पता है ना, अन्वी चली गई..."

फिर एक एक कर सारी बातें निकलने लगीं —
कैसे वो दिन भर उसी के बारे में सोचता था,
कैसे दोस्तों ने उसका मज़ाक बनाया,
कैसे अब सब कुछ बेमानी लगता है।

नीम का पेड़ कुछ नहीं बोला, लेकिन उसकी शाखाएं जैसे हर बात पर धीरे-धीरे हिलती रहीं।
हवा उसके पत्तों से सरसराकर गुज़रती रही, जैसे वो अर्जुन के दुख को थपकी देकर सुला रही हो।

अर्जुन को पहली बार ऐसा लगा कि कोई है, जो बिना बोले भी उसकी हर बात सुन रहा है।
उसे सुकून मिला — वो सुकून जो इंसानों से नहीं मिला, वो एक पेड़ की चुप्पी से मिला।

अब अर्जुन रोज उस नीम के पेड़ के पास जाता।
वो पेड़ उसकी डायरी बन गया था — बिना पन्नों वाला, बिना जवाबों वाला,
लेकिन हर दर्द को समेट लेने वाला।
अर्जुन का नया साथी अब बो नीम था जिससे वो रोज बातें करता था


लेखक के शब्द

अर्जुन और अन्वी की कहानी में इतनी गहराई है जो चंद पेजों में भी नहीं सिमट सकती ओर लगता है जैसे इनको दर्शाने के लिए ब्रह्मांड की रोशनी भी कम पड़ जाएगी

वो कहानी अधूरी रह गई,
मगर प्रेम…
अब भी उनके दिलों में पूरी तरह ज़िंदा है।

न मांग थी,
न सवाल,
न कोई अंतिम अलविदा…

बस दो नाम थे —
अर्जुन और अन्वी —
जो प्रेम में जुड़े थे…
और त्याग में अमर हो गए।





कहानी अभी पूरी नहीं है मेरे दोस्त यह कहानी का दूसरा पार्ट है पहले पार्ट में क्या हुआ जानने के लिए अपनी प्रतिक्रिया जरूर दे
                                धन्यवाद