Life is a journey, not a destination in Hindi Motivational Stories by Indian Republics books and stories PDF | ज़िंदगी एक रास्ता है, मंज़िल नहीं

Featured Books
  • रॉ एजेंट सीजन 1 - 4

    सारा दिन आराम करने के बाद शाम होते ही अजय सिंह अपने दोस्त वि...

  • एक शादी ऐसी भी - 2

    बॉडीगार्ड की बात सुन जिया उस बॉडीगार्ड के साथ कोर्ट से बाहर...

  • The Book of the Secrets of Enoch.... - 2

    अध्याय 3, III1 जब हनोक ने अपके पुत्रोंको यह समाचार दिया, तब...

  • Mafiya Boss - 5

    मॉर्निंग टाइमनेहा-    रेशमा!! क्या कर रही है? उठ ना यार? कित...

  • नेहरू फाइल्स - भूल-86

    भूल-86 नेहरू और समान नागरिक संहिता (यू.सी.सी.) भारत में राज्...

Categories
Share

ज़िंदगी एक रास्ता है, मंज़िल नहीं

हममें से अधिकतर लोग ज़िंदगी को एक मंज़िल की तरह देखते हैं — ऐसा मुकाम जहाँ पहुँचकर सब कुछ परफेक्ट हो जाएगा। हमें लगता है कि जब एक अच्छी नौकरी मिल जाएगी, घर बन जाएगा, बैंक बैलेंस बढ़ जाएगा, रिश्ते सुलझ जाएँगे — तब हम चैन की साँस लेंगे, तब असली ज़िंदगी शुरू होगी। लेकिन क्या वाकई ज़िंदगी की असली शुरुआत सिर्फ मंज़िल मिलने के बाद होती है?

असल में, ज़िंदगी कोई ठहराव नहीं, बल्कि एक बहता हुआ सफर है। यह हर रोज़ बदलता है, हर दिन कुछ नया सिखाता है। हम कभी खुश होते हैं, कभी परेशान, कभी थक जाते हैं, और कभी उम्मीद से भर जाते हैं। लेकिन यह सब मिलकर ही तो ज़िंदगी को पूरा बनाते हैं।

समस्या तब होती है जब हम इस सफर को नज़रअंदाज़ करके केवल मंज़िल की तरफ़ भागने लगते हैं। हम सोचते हैं, “बस एक बार ये काम हो जाए... एक बार ये पैसा आ जाए... एक बार शादी हो जाए... एक बार बच्चा बड़ा हो जाए...” लेकिन क्या ये “एक बार” कभी खत्म होता है? नहीं। हर मंज़िल के बाद एक नई मंज़िल तैयार मिलती है। और इसी दौड़ में हम अपना आज खो देते हैं।

हम पैसे के पीछे भागते हैं — क्योंकि हमें लगता है पैसा होगा तो सब कुछ आसान हो जाएगा। हम रिश्तों के पीछे भागते हैं — क्योंकि हमें प्यार चाहिए, अपनापन चाहिए। हम सफलता के पीछे भागते हैं — क्योंकि हमें समाज में एक पहचान चाहिए। पर इस भागदौड़ में हम अक्सर खुद से बहुत दूर निकल जाते हैं। हमें यह तक याद नहीं रहता कि हमने आखिरी बार खुलकर हँसना कब सीखा था।

ज़िंदगी के रास्ते में उतार-चढ़ाव तो आएँगे ही। ये रास्ता सीधा नहीं होता। इसमें मोड़ होते हैं, कभी धूप होती है, तो कभी छाँव। कुछ लोग साथ चलते हैं, कुछ बीच में छोड़ जाते हैं। कुछ सपने पूरे होते हैं, कुछ अधूरे रह जाते हैं। पर इन्हीं सब अनुभवों में ही तो ज़िंदगी की खूबसूरती छुपी होती है।

अगर हम सिर्फ मंज़िल की चिंता करते रहेंगे, तो इन छोटे-छोटे पलों को जीना भूल जाएँगे। और जब एक दिन थक कर रुकेंगे, तो पाएँगे कि हमने मंज़िल तो पाई, लेकिन रास्ते की यादें नहीं बनाई। हमने सब कुछ हासिल किया, पर ज़िंदगी को महसूस करना भूल गए।

इसलिए ज़रूरी है कि हम थोड़ा धीरे चलें। कभी-कभी रुकें, आसपास देखें, महसूस करें — उन चीज़ों को जो हमें रोज़ देखने को मिलती हैं लेकिन हम उन्हें नज़रअंदाज़ कर देते हैं। किसी बच्चे की मुस्कान, किसी पेड़ की छाँव, बारिश की पहली बूंद, माँ की चाय, पापा की चुप्पी, दोस्त की हँसी — यही सब तो असली ज़िंदगी है।

जब अगली बार आप किसी लक्ष्य की तरफ भाग रहे हों, तो खुद से एक सवाल ज़रूर पूछिए — “क्या मैं इस सफर का आनंद ले रहा हूँ?” अगर जवाब “नहीं” है, तो शायद मंज़िल पर पहुँचने से पहले ही आपको कुछ बदलने की ज़रूरत है।

क्योंकि सच तो यह है कि ज़िंदगी मंज़िल नहीं, एक अनमोल यात्रा है। और इस यात्रा में हर मोड़, हर ठहराव, हर दर्द, हर खुशी – सबका अपना एक महत्व है।

मंज़िल तो एक दिन मिल ही जाएगी, लेकिन सफर को जीना सीख लिया, तो ज़िंदगी हर दिन खूबसूरत लगने लगेगी।