🌘 एपिसोड 42 — “रूह की कलम”
(सीरीज़: अधूरी किताब)
(शब्द संख्या: लगभग 1500)
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1. नीली स्याही का जागना
रात का तीसरा पहर था।
दरभंगा की हवेली के भीतर अब भी वो नीली चमक मौजूद थी —
जैसे स्याही ने खुद को सांस दी हो।
टेबल पर रखी “The Eternal Writer” धीरे-धीरे खुली,
और उसके बीच से एक कलम बाहर निकली —
पतली, पारदर्शी, और नीली रौशनी में चमकती हुई।
वो हवा में तैर रही थी, जैसे किसी अदृश्य हाथ ने उसे थाम रखा हो।
> “वक़्त आ गया है…”
दीवार से एक हल्की फुसफुसाहट गूँजी।
खिड़की पर बैठे एक उल्लू ने अचानक चीख़ लगाई।
हवेली के दरवाज़े अपने आप खुल गए —
और उसी क्षण, “रूह की कलम” ने पहला नाम लिखा।
> “नेहा शर्मा — The Next Reader.”
स्याही हवा में लहराई,
और दूर शहर में, दरभंगा यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी में बैठी नेहा शर्मा ने ठंडी हवा का झोंका महसूस किया।
उसके सामने रखी किताब अपने आप खुली —
“अधूरी किताब”।
नेहा ने पन्ना पलटा —
और उस पर ताज़ा लिखा था:
> “पढ़ने से पहले सोच लेना… अब कहानी तुम्हें भी पढ़ रही है।”
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2. नेहा का भय
नेहा को लगा, शायद ये कोई पुराना मज़ाक है।
उसने मुस्कराकर कहा, “भूत-प्रेत सिर्फ़ कहानियों में होते हैं।”
पर तभी लाइट झपकने लगी।
कमरे के कोने से एक धीमी गुनगुनाहट आई —
जैसे कोई पन्नों के बीच से बोल रहा हो।
> “कहानी आधी रह गई थी, नेहा… अब तू उसे पूरा करेगी।”
नेहा ने किताब बंद करने की कोशिश की —
पर वो अपने आप खुल गई।
हर पन्ने पर उसका नाम लिखा जा रहा था —
हर बार थोड़ी गहरी स्याही से।
वो डरकर उठी,
पर लाइब्रेरी का दरवाज़ा बंद हो चुका था।
काँच के शीशे में उसकी परछाई हिली —
और उसी में किसी और की आँखें दिखीं —
नीली, ठंडी, और रूह जैसी।
> “मैं तन्वी हूँ… वो जो कभी इस कहानी का हिस्सा थी।”
“अब तू मेरी जगह है — रूह की कलम की नई लेखनी।”
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3. हवेली की पुकार
दरभंगा हवेली के भीतर दीवारें फटने लगीं।
किताबों से धूल नहीं, स्याही उड़ रही थी।
हर स्याही का कतरा हवा में आकार ले रहा था —
कभी चेहरा, कभी आवाज़, कभी अधूरी पंक्ति।
आदित्य मेहरा की रूह, अब हवेली की दीवारों में समा चुकी थी।
उसकी आवाज़ आई —
> “नेहा को रोकना होगा…
वरना रूह की कलम हर इंसान का नाम लिख देगी।”
तन्वी की परछाई बोली —
> “लेकिन अब बहुत देर हो चुकी है…”
नीली स्याही ने हवेली की छत पर एक नया वाक्य लिखा —
> “हर नया पाठक, एक नई रूह बनता है।”
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4. नेहा की यात्रा
सुबह होते ही नेहा दरभंगा की ओर निकल पड़ी।
वो मान नहीं पा रही थी कि किताब में जो लिखा था, वो हकीकत हो सकता है।
फिर भी, दिल के भीतर एक अजीब-सी बेचैनी थी।
हवेली के पास पहुँचते ही उसने देखा —
दरवाज़े के ऊपर वही नीला प्रतीक उभरा है जो किताब के आख़िरी पन्ने पर था।
> “The Soul Script Seal.”
वो धीरे-धीरे अंदर गई।
हवा में एक गंध थी —
स्याही, खून, और पुराने कागज़ की मिली-जुली।
टेबल पर “रूह की कलम” रखी थी।
वो अपने आप घूम रही थी —
और दीवार पर नाम लिख रही थी।
> “नेहा शर्मा…”
“तन्वी…”
“काव्या…”
“आदित्य…”
हर नाम के साथ दीवार से एक हल्की नीली लौ उठती और हवा में विलीन हो जाती।
नेहा ने कलम को पकड़ने की कोशिश की —
पर वह उसके हाथ में आते ही धड़कने लगी।
> “तू अब सिर्फ़ पाठक नहीं… कहानी का हिस्सा बन चुकी है।”
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5. स्याही का निर्णय
हवेली की छत पर अब बारिश हो रही थी —
पर वो पानी नहीं, नीली स्याही थी।
हर बूंद जैसे किसी शब्द को जन्म दे रही थी।
नेहा ने देखा, दीवारों पर खुद-ब-खुद पंक्तियाँ उभर रही हैं —
> “Chapter 15 — The Writer’s Blood.”
एक गूँज उठी —
“अब हर लेखक को अपनी रूह लिखनी होगी।”
नेहा के हाथों से खून टपकने लगा —
वो धीरे-धीरे स्याही में बदल गया।
“रूह की कलम” ने खुद उसे छुआ,
और किताब अपने आप खुल गई।
उस पर लिखा था:
> “अब लिखो… वरना मिट जाओ।”
नेहा ने काँपते हुए शब्द लिखे —
> “सच्चाई वही है जो पढ़ने के बाद भी डराए।”
हवेली में कंपन हुआ।
दीवारों से रूहों की चीख़ें निकलीं —
लेकिन इस बार, वो मुक्त हो रही थीं।
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6. अधूरी किताब का खुलना
जैसे ही नेहा ने आख़िरी शब्द लिखा,
हवेली की दीवारों पर फैली स्याही एक बिंदु में सिमटने लगी।
टेबल पर रखी सातों किताबें एक साथ खुलीं।
उनके पन्ने चमक उठे —
और बीच में नया शीर्षक बना:
> “अधूरी किताब — The Soul Edition.”
हर किताब की रूह अब एक में विलीन हो चुकी थी।
नेहा ने देखा, “रूह की कलम” अब शांत थी —
उसकी रौशनी बुझ चुकी थी।
लेकिन तभी हवा में एक आख़िरी पंक्ति उभरी —
> “हर कहानी जब खत्म लगती है,
वहीं से वो किसी और के दिल में शुरू होती है…”
नेहा मुस्कराई —
“शायद अब यह कहानी मेरी नहीं… हम सबकी है।”
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7. हवेली की नई सुबह
सूरज उग आया।
दरभंगा की हवेली अब शांत थी —
ना स्याही, ना आवाज़, ना डर।
गाँव वाले जब अंदर आए,
तो उन्होंने देखा —
टेबल पर एक नई किताब रखी है।
उसका नाम था —
> “रूह की कलम — Written by Neha Sharma.”
कवर के नीचे हल्की नीली चमक थी,
और एक पंक्ति में लिखा था —
> “कहानी अब जीवित है।”
गाँव वालों ने किताब उठाने की कोशिश की —
पर किताब ने खुद पन्ने पलटे और आख़िरी पंक्ति दिखाई —
> “अगर तुमने इसे पढ़ लिया,
तो तुम भी कहानी का हिस्सा बन जाओगे…”
सभी चुप रह गए।
हवेली के बाहर हवा चली —
और नीले कण आसमान में बिखर गए।
अब हर जगह एक अदृश्य आवाज़ गूँज रही थी —
> “स्याही फिर जागेगी… जब अगला पाठक पढ़ेगा।”
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🩸 एपिसोड 42 समाप्त
🕯️ आगामी एपिसोड 43 — “अधूरी आत्माएँ”
जहाँ नेहा की लिखी किताब से रूहें फिर जन्म लेंगी —
हर पन्ना एक नई आत्मा को जगाएगा,
और हवेली एक बार फिर किताबों का मकबरा बन जाएगी।
> “कहानी खत्म नहीं हुई…
बस उसने अब नया पाठक ढूँढ लिया है।”