*अदाकारा 57*
शर्मिला को सुनीलने वह ड्रेस पहन के दिखाने को कहा जो वह इनफिनिटी मॉल से खरीद कर लाई थी।इसलिए शर्मिलाने अपनी कुर्ती की चेन जैसे ही खोली।उसी समय दरवाजे पर दस्तक हुई।
पहले तो दोनोंने एक-दूसरे को सवालिया निगाहों से देखा।फिर सुनील ने आवाज़ लगाई और पूछा।
"कौन?"
तो बाहर खड़े बृजेशने और ज़ोर से दरवाजा खटखटाया।और ज़ोर से चिल्लाया।
"दरवाजा खोलो।"
सुनील को कहा पता था कि बाहर से दरवाजा खटखटाने वाला पुलिस वाला है। उसने तो बाहर से इतनी ज़ोर से चिल्ला कर दरवाजा ठोकने की आवाज़ सुनी तो उसे भरपूर गुस्सा आया।वो भी तेश में आकर मुठ्ठी भींच कर दरवाजे की ओर लपका।
"तेरी तो…."
यह कहकर वह गुस्से से दरवाजे की ओर दौड़ा लेकिन शर्मिला ने उसे रोकते हुए कहा।
"सुनील पहले अपना दिमाग शांत करो।पहले हेल्प के लिए वॉचमैन को बुलाओ।ना जाने कौन हो?इतनी रात में।"
सुनील को शर्मिला की बात जँच गई।उसने अपना मोबाइल निकाला और वॉचमैन को फ़ोन किया।
“जगदीश।कहा हो?....”
वो कुछ और आगे कहे उससे पहले ही जगदीश बोल पड़ा।
“अरे साहब।दरवाज़ा खोलिए आपके यहां पुलिस आई है और मैं उनके साथ ही हूँ।”
पुलिस का नाम सुनते ही सुनील चौंक गया। पुलिस और हमारे यहां?उसने तेजी से दरवाज़ा खोला।इंस्पेक्टर बृजेश और कॉन्स्टेबल राघव सामने खड़े थे।
बृजेश को देखकर शर्मिला की धड़कनें तेज़ हो गईं।कहीं वो मुझे पहचान तो नहीं लेगा? उसके मन में डर सा छा गया।बृजेश घर में दाखिल हुआ और उसकी नज़र शर्मिला पर पड़ी।
उसने चौंककर पूछा।
“तुम?”
वह भूल गया कि उसने अभी आधे घंटे पहले ही उसकी लाश देखी थी।उसे लगा कि वो शर्मिला ही है क्योंकि उसने उर्मिला को पहले कभी देखा ही नहीं था।
शर्मिलाने काँपती आवाज़ में कहा।
"में..में.उर्मिला..."
उसने शर्मिला के मुँह से उसकी बहन उर्मिला के बारे में सुना था।
"इतनी समानता?"
वह बुदबुदाया।
"क्या।क्या बात है?क्या हुआ है?"
इस बार सुनीलने पूछा।
तो जवाब में बृजेशने अपनी हथकड़ियाँ निकालीं और कहा।
"तुम्हारा नाम सुनील है?"
"हाँ।लेकिन क्यों?बताओ तो सही क्या हुआ है।"
"तुम्हारी साली शर्मिला की हत्या हो गई है। और मैं तुम्हें उसकी हत्या के जुर्म में गिरफ्तार करने आया हूँ।"
बृजेशने खुलासा करते हुए कहा।
शर्मिला एक मंजी हुई अदाकारा थीं।और उसे यह भी पता था कि उसके फ्लैट में जिसकी हत्या हुई हे वो उर्मिला है।फिर भी उसने जैसे अचानक ओर अभी अभी ही उसे ये खबर मिली हो उस तरह का नाटक किया।जबकि सुनील सचमुच ही सदमे में था।
दोनों के मुँह से एक साथ ये शब्द निकले।
"शर्मिला की हत्या?"
और शर्मिला फूट-फूट कर रोने लगीं।उसका यह अभिनय कोई साधारण नहीं था बल्कि ऑस्कर विनर अभिनय था।
"सर।मैंने... मैंने उसकी हत्या नहीं की है।और मैं भला उसे क्यों मारूंगा?"
सुनीलने अपना बचाव करते हुए कहा।
लेकिन बृजेश के पास सुनील के खिलाफ काफी ठोस सबूत थे।
"तुम्हारा और शर्मिला का झगड़ा चल रहा था। और तुमने तीन महीने पहले उसे जान से मारने की धमकी भी दी थी।"
सुनील की आँखों के सामने तीन महीने पहले अपने अपार्टमेंट के बाहर शर्मिला के साथ हुई तू तू में में का वो दृश्य उभर आया।और वह शब्द भी उसे याद आए जो उसने उससे कहे थे।
"अगर तुने फिर कभी यहाँ कदम रखा तो मैं तुजे जान से मार दूंगा।"
सुनीलने नर्म लहजे मे कहा।
"हाँ अफसर।यह सच है कि मैंने उसे धमकी दी थी।लेकिन उस वक्त मैं गुस्से में था क्योंकि..."
बृजेश ने तुरंत उसके मुँह से निकले शब्दों को पकड़ लिया।
"और तुम उस गुस्से को अपने दिलो-दिमाग में घूंटते रहे।और आज जब तुम्हें मौका मिला तो तुमने उस पर अमल कर ही दीया।"
"नहीं सर।मैं अपनी कंपनी के काम से बैंगलोर गया था।और अभी डेढ़ घंटे पहले ही वापस आया हूँ।"
सुनील की बात खत्म होते ही बृजेश ने तुरंत अपनी हथैली सुनील के सामने करदी।
"लाव सबूत दिखाओ।"
सुनीलने अपने मोबाइल मे बैंगलोर का टिकट निकाला और बृजेश के सामने फोन रख दिया
बृजेश ने फ़ोन हाथ में लिया और टिकट को ध्यान से चेक किया।और जब उसने फ़ोन स्क्रॉल करते हुए बेक किया तो कल का टिकट भी वहीं मौजूद था।
ब्रजेश के चेहरे पर एक कड़वी मुस्कान आ गई।
"हूं।दरअसल तुम कल आने वाले थे।लेकिन तुम्हारे किसी जासूस ने तुम्हें संदेश दिया होगा कि आज शर्मिला को मारने का सबसे सही मौका है।और तुमने कल का टिकट कैंसिल करके आज का टिकट दोगुने दाम देकर बुक कर लिया।है ना?"
ब्रजेश की ऐसी अटकलों पर सुनील को बहुत गुस्सा आया।लेकिन पुलिस के सामने वह क्या कर सकता था?
वह धीरे से बोला।
"साहब।बैंगलोर में मेरा काम एक दिन पहले ही खत्म हो गया इसलिए वहाँ होटल में रुकने के बजाय मैंने घर आने का फैसला किया।"
(सुनील की कहानी में कितनी सच्चाई है?क्या ये खून सुनीलने ही किया है?क्या बृजेश सुनील को गिरफ्तार करेगा?)