Maa - 3 in Hindi Short Stories by Soni shakya books and stories PDF | मां... हमारे अस्तित्व की पहचान - 3

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मां... हमारे अस्तित्व की पहचान - 3

अगले दिन...

भावना जैसे ही गेट खोलकर बरांडे में गई तो वहां का मंजर देखते ही उसका दिल जोर से धड़कने लगा,

उसने आशु को आवाज लगाने की कोशिश की पर उसकी आवाज नहीं निकल रही थी फिर..

भावना दौड़कर अंदर गई और आशु को उठाते हुए बोली -

जल्दी उठो आशु, जल्दी बहार चलो , जल्दी चलो!!

मां को इतना घबराया हुआ देखकर आशु बोला-- क्या हुआ मां  क्या बात है ?

इतना क्यों घबरा रही हो ?

पर.. भावना के पास कोई शब्द  नहीं थे बस इतना हीं बोली कि -पहले तुम बहार‌ चलो जल्दी से।

ठीक है मां ,कहते हुए आशु आंखों को मलते हुए मां के पीछे बाहर बरांडे में आ गया ।

देखते ही एक पल के लिए उसे भी कुछ समझ नहीं आया क्योंकि __

घोंसला आधा लटका हुआ था और चिड़िया के दोनों बच्चे नीचे जमीन पर गिरे पड़े थे एक टेबल के  इस ओर ,

और दूसरा टेबल के दुसरी तरफ।

जमीन पर पडे बच्चे चू चू कर चिल्ला रहे थे, पर वह इतने बड़े नहीं हुए थे कि उड़ सके जिसमें से एक बच्चे की आवाज तो और भी धीमी थी।

दोनों उड़ने की बहुत कोशिश कर रहे थे पर दोनों असमर्थ थे।

थोड़ी देर समझाने के बाद आशु बोला-- ठीक है मां हम घोसला ठीक करके बच्चों को दोबारा उसमें रख देते हैं ।

भावना बोली- हां यह ठीक रहेगा पर बेटा, मैंने सुना है कि अगर पक्षी के बच्चों को हाथ लगा दिया जाए तो दोबारा चिड़िया उनसे मिलने नहीं आती।

पर मां हम इन्हें ऐसे जमीन पर भी तो नहीं छोड़ सकते ।

हम तो रख देते हैं बच्चों  को घोसले में फिर देखते हैं क्या होता है ।

भावना बोली ठीक है बेटा।


आशु ने चारों और नजर फैला कर देखा चिड़िया दूर-दूर तक नजर नहीं आ रही थी । क्योंकि उसे चिड़िया से डर लगता था एक बार चिड़िया ने उसे डरा जो दिया था ।

जब चिड़िया नजर नहीं आई तो आशु  टेबल पर खड़े होकर घोंसला ठीक करने लगा ।

चिड़िया के बच्चे अभी भी जमीन पर पड़े चू चू चिल्ला रहे थे उनके पंख उड़ने के लिए फड़फड़ा रहे थे पर- वो उड़ नहीं पा रहे थे।

आशु घोसला ठीक कर रहा था और भावना बीच -बीच में समझा रही थी कि -- ऐसा करो ,ऐसा करो तभी  आवाज सुनकर प्रियु भी बाहर आ जाती है।

यु चिड़िया के बच्चों को जमीन पर पढ़ा हुआ देखकर उसे भी बहुत‌ बुरा लगता है वह दौड़कर अंदर जाती है और एक गिलास में पानी भर ले आती है और जैसे ही वह बच्चों को पानी पिलाने लगती है आशु उसे रोक देता है।

रुको प्रियु मैंने पढ़ा है यु चिड़िया के बच्चों को पानी नहीं पिलाया जाता उनके लिए ठीक नहीं रहता।

पर भैया -- पता नहीं ये कब से जमीन पर पड़े हुए हैं इन्हें प्यास लग रही होगी।

पता नहीं कब से कुछ नहीं खाया होगा?

इन्हें भूख भी लग रही होगी भैया ।

हां पर हम इन्हे कुछ भी खिला-पिला नहीं सकते प्रियु अभी ये बहुत छोटे हैं।

हम इन्हें अपने घोंसले में सुरक्षित रख देते हैं बस फिर इनकी मां आकर इन्हें खाना और पानी देगी और अगर चिड़िया जल्दी लौट कर नहीं आई तो फिर हम यू ट्यूब पर सर्च करके उन्हें खाना और पानी ‌देगे ठीक है।

ठीक है भैया कहकर प्रियु पानी वापस अंदर रखकर आ गई।

अब तक आंसू ने घोंसला ठीक कर दिया था।

अब बारी बच्चों को भोसले में रखने की थी--

आंसू ने एक बच्चे को कागज की सहायता से घोंसले में रख दिया। पर दूसरा कागज में नहीं आ रहा था शायद वह थोड़ा बड़ा था ।

भावना बीच-बीच में कह रही थी संभाल के थोड़ा ध्यान से बहुत नाज़ुक है।

अंततः आशु ने दूसरा बच्चा भी घोंसले में सुरक्षित रख दिया और चैन की सांस ली। 

भावना के बैचेन मन को भी शांति मिली।

अब उन्हें बस उन्हें चिड़िया के आने का इंतजार था।

पर काफी टाइम हो गया चिड़िया नहीं आई ।

अब तो भावना और बेचैन हो गई बार-बार घर के बाहर आकर देखती फिर अंदर जाती फिर बहार आती।

एक घंटा बीत गया पर चिड़िया नहीं आई। 

अब  तो भावना, प्रियु और आसू सबको चिंता सताने लगी !

चिड़िया के बच्चों की आवाज भी अब सुनाई नही दे रही थी।

आशु और प्रियु भी बार-बार घोंसले में देखते __

चिड़िया के बच्चे एकदम शांति से पड़े थे जैसे उन में जान ही ना हो।

अब तो भावना से रहा नहीं गया तो आशु से बोली----