जहरीला घुंगरू भाग 1
“दवंडी की गूँज और पहला तूफ़ान”
राज्य की शाम हमेशा शांत हुआ करती थी,
लेकिन आज हवा में अजीब-सी घबराहट थी।
सूरज की लाल किरणें पहाड़ों के पीछे डूब रही थीं, और किले की ऊँची दीवारों पर जली मशालों की रोशनी लहरों की तरह चमक रही थी।
अचानक—
धड़ाम! धड़ाम! धड़ाम!
राज्य के हर कोने में नगाड़ों की आवाज़ गूंज उठी।
सिपाही, दूत, प्रचारक—सब एक ही बात पुकारते हुए दौड़ रहे थे—
“सुनो! सुनो! सुनो!
राजा वज्रप्राण के आदेश से आज रात्रि भव्य नृत्य-सभा होगी!”
“प्रसिद्ध नृत्यांगना तालिका पहली बार हमारे राज्य में अपने नृत्य की कला प्रस्तुत करेगी!”
“प्रत्येक नागरिक, प्रत्येक गाँववाला महल में उपस्थित हो!”
दवंडी की आवाज़ सुनकर गलियों में हलचल मच गई।
महिलाएँ अपने घूंघट सँभालती दौड़ीं, बच्चे खुशी से उछले, बुजुर्ग धीरे-धीरे अपनी लाठी पकड़कर चौक तक आए।
एक बूढ़ा अधेड़ बोला—
“तालिका? वही जो गुजरात में राजा के सामने नाचे थी?”
दूसरा बोला—
“हाँ वही! सुना है उसके पाँव जमीन को छूते ही संगीत खुद पैदा होता है।”
हर कोई उत्साहित था…
पर एक जगह इस खुशी की चमक नहीं पहुँची थी—
राजमहल के भीतर, रानी रुद्रिका के कक्ष तक।
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रानी रुद्रिका की बेचैनी
रानी रुद्रिका खिड़की के पास खड़ी थीं।
उनके चेहरे पर चिंता की रेखाएँ साफ दिख रही थीं।
जैसे ही राजा वज्रप्राण अंदर आए, रानी ने कहा—
“महाराज, क्या एक नृत्यांगना के लिए इतनी भारी दवंडी जरूरी थी?”
राजा ने शांत स्वर में कहा—
“रुद्रिका… यह उत्सव है।
युद्धों से थका राज्य कला से ही शांत होता है।”
रानी की नजरें राजा की आँखों में थीं—
“पर मुझे लगता है… यह नृत्य कोई साधारण आयोजन नहीं।
कहीं कोई षड्यंत्र न हो।”
राजा ने हँसते हुए कहा—
“तुम हर बात में शक ढूँढ लेती हो, रुद्रिका।
तालिका सिर्फ नृत्य दिखाने आई है, बस उतना ही।”
रानी ने धीमे पर गहरे स्वर में कहा—
“हर सुंदर चेहरा निर्दोष नहीं होता, वज्रप्राण…”
राजा कुछ देर चुप रहे।
जैसे उन्हें भी कहीं कोई संदेह था—
पर वे उसे मन से दूर करना चाहते थे।
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तालिका का राजमहल में प्रवेश
रात के पहले पहर शंख बजने लगे।
महल का भारी, सोने से जड़ा दरवाज़ा खुला।
चाँदी के रथ पर बैठी तालिका अंदर आई।
उसका रूप राजमहल में मौजूद हर व्यक्ति को थमने पर मजबूर कर रहा था—
• रेशमी हरा लहंगा
• कमर में चांदी के झुनझुने
• पैरों में पुराने घुंगरू
• उनकी पायल से उठती हल्की खनक
• चेहरे पर हल्की उदासी
• आँखों में कहीं गहराई में छुपा दर्द
उसने किसी की ओर नहीं देखा।
सिर्फ धीरे से बोली—
“राजा वज्रप्राण कहाँ हैं?”
महल के सेवक ने आदर से कहा—
“वे आपकी प्रतीक्षा में हैं, देवी तालिका।”
जब तालिका महल में चली, तो भीड़ फुसफुसाई—
“यह सच में अप्सरा लगती है…”
“किस दर्द को छुपाती है ये?”
“आज इसका नृत्य इतिहास बनेगा!”
पर बहुत कम लोगों ने ध्यान दिया—
कि तालिका की आँखों में चमक नहीं थी।
जैसे वह नृत्य नहीं, किसी बोझ के लिए आई हो।
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राजा का ऐलान और रानी का शक
सभा में राजा वज्रप्राण ने गर्व से घोषणा की—
“आज जो कला तुम्हें देखने मिलेगी… वह अत्यंत दुर्लभ है।
और उसके सम्मान में—
नृत्यांगना तालिका को 25,000 सुवर्ण मुद्राएँ और विशेष घुंगरू प्रदान किए जाएँगे!”
सब जय-जयकार करने लगे।
पर रानी रुद्रिका ने दासी के कान में कहा—
“ये नए घुंगरू… किसने बनाए?”
दासी ने धीमे कहा—
“महारानी, पता नहीं… बस कहा गया कि यह विशेष उपहार है।”
रानी की आँखें तुरंत संदेह से भर गईं।
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तालिका का मंत्रमुग्ध करने वाला नृत्य
ढोल, सरंगी, तबले की धुन शुरू हुई।
तालिका मंच पर आई।
उसने हल्के से आँख बंद की—
और जब उसकी पायल पहली बार बजी…
पूरा महल जैसे एक जादू में बंध गया।
उसकी हर घूम, हर तान, हर पांव की थिरकन—
लोगों को सम्मोहित कर रही थी।
• कुछ की आँखों में आँसू आ गए
• कुछ इतने खो गए कि सांस लेना भूल गए
• कुछ बच्चों ने अपनी माताओं का हाथ कसकर पकड़ा
• पहरेदार भी मंत्रमुग्ध हो गए
राजा वज्रप्राण खुद उठकर बोले—
“तालिका! तुम्हारा नृत्य… देवताओं का वरदान है।”
तालिका थकी हुई थी, पर मुस्कुरा रही थी।
जैसे एक पल के लिए वह अपने दर्द को भूल गई।
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जहरीला घुंगरू – वह पल जिसने सब बदल दिया
समारोह पूरा होने पर, राजा ने कहा—
“घुंगरू लाओ!”
एक सुनहरी थाली लाई गई।
उसमें रखे थे—
दिखने में अद्भुत… पर भीतर से घातक घुंगरू।
मोती नीली रोशनी में हल्का-हल्का चमक रहे थे,
जैसे उनमें कोई रहस्यमयी शक्ति छुपी हो।
राजा ने उन घुंगरुओं को तालिका के हाथ में रखते हुए कहा—
“ये घुंगरू… मेरे राज्य का सर्वोच्च सम्मान हैं।
ये अब तुम्हारे हैं।”
भीड़ तालियाँ बजाने लगी।
तालिका ने घुंगरुओं को हाथ में लिया…
उनपर झुकी…
और धीरे से उन्हें चूमा।
और तभी—
• उसके होंठ अचानक नीले पड़ गए
• उसकी आँखों की पुतलियाँ फैलने लगीं
• उसके हाथ कांपने लगे
• शरीर ढीला पड़ गया
थाली उसके हाथ से गिर पड़ी—
ठण्न्न्न्न्न!!!
हर तरफ चीखें गूंज उठीं—
“तालिका!”
“क्या हुआ उसे?”
“घुंगरुओं में… कुछ था?”
तालिका ज़मीन पर गिर गई।
महल के वैद्य चिल्लाए—
“इसमें ज़हर है! जल्दी हवा दो! जल्दी!!”
राजा वज्रप्राण हैरान… गुस्से में, अविश्वास में जम गए।
और रानी रुद्रिका ने धीमे पर साफ शब्दों में कहा—
“मैंने चेतावनी दी थी…
ये घुंगरू… मौत लेकर आए हैं।”
महल की हवा में सन्नाटा फैल गया।
बाहर हवा तेज हो चुकी थी।
और किले के ऊपर चाँद लाल दिखाई पड़ने लगा—
जैसे आने वाले तूफान की आहट।