Bade dil wala - Part - 2 in Hindi Motivational Stories by Ratna Pandey books and stories PDF | बड़े दिल वाला - भाग - 2

Featured Books
Categories
Share

बड़े दिल वाला - भाग - 2

अभी तक आपने पढ़ा कि अनन्या की शादी के दिन उसका मन भारी था। वह अपने प्रेमी वीर से विवाह करना चाहती थी, लेकिन माता-पिता के विरोध के कारण उसे अनुराग से शादी करनी पड़ रही थी। मंडप में बैठते हुए भी उसका दिल अंदर ही अंदर संघर्ष कर रहा था। आगे क्या हुआ अब पढ़िए: -

पंडित के मंत्र उच्चारण के बीच भी अनुराग का मन बेचैन हो रहा था। उसे कुछ ठीक नहीं लग रहा था। वह सोच रहा था कि अनन्या से एक बार पूछ ले कि आख़िर वह लगातार रो क्यों रही है। लेकिन उसे ऐसा मौका नहीं मिला। धीरे-धीरे फेरों का समय भी आ गया। पंडित जी ने फेरे करवाना शुरू कर दिया। अग्नि की धधकती प्रज्वलित लपटों के चारों ओर चक्कर लगाने से पहले उनका गठबंधन कर दिया गया। वे दोनों इस अग्नि को साक्षी मानकर उसके चारों तरफ़ सात फेरे लगा रहे थे। पंडित जी के मंत्रों की आवाज़ को समेटे अनुराग उन्हें अपने अंदर ग्रहण करता जा रहा था। उसके बाद मांग भरकर अनुराग ने वह रस्म भी पूरी कर दी। अब अनन्या उसकी पत्नी बन चुकी थी।

धीरे-धीरे विवाह संपन्न हो गया और विदाई की बेला भी आ गई। विदाई के समय अनन्या अपने पापा से लिपटकर ख़ूब रो रही थी। वह तो उसका इस तरह रोने का कारण अच्छी तरह जानते थे।

तब उन्होंने कहा, "अनु बेटा जीवन में आज तक कभी मेरा सर किसी के आगे नहीं झुका है। मेरी इज़्ज़त की लाज रखना।"

यह शब्द सुनते ही अनन्या और ज़ोर से फफक कर रो पड़ी।

उसके बाद जब वह अपनी मम्मी के गले लगी, तब उन्होंने कहा, "अनु, मैं देख रही हूँ तुम्हारी आंखों से लगातार आंसू बहते जा रहे हैं। अनुराग क्या सोचेगा बेटा, अब शांत हो जाओ। पापा ने जो भी किया है, तुम्हारे भले के लिए ही तो है।"

विदाई के समय उसके पापा के कहे शब्द अनन्या के कानों में गूंज रहे थे। "मेरी इज़्ज़त की लाज रखना बेटा," इन्हीं शब्दों के इर्द-गिर्द घूमते हुए अनन्या कार में आकर बैठ गई।

अनुराग भी उसके बाजू में बैठने वाला था कि योगेश ने उसका हाथ पकड़ कर कहा, "अनुराग बेटा, मेरी अनु का ख़्याल रखना। यूँ तो हमने उसे अच्छे संस्कारों के साथ पाला है। फिर भी यदि कभी उससे कोई गलती हो जाए तो माफ कर देना। "

"बिल्कुल पापा, यह भी कोई कहने की बात है। धर्म पत्नी है वह मेरी, आज से उसकी हर सांस, हर धड़कन की आहट को मैं पहचान लूंगा। उनमें चलते हुए सुख और दुख को भी सबसे पहले मैं जान लूंगा। आप बिल्कुल चिंता मत कीजिए," कहते हुए अनुराग ने योगेश की आंखों से बहते आंसुओं को अपने हाथ से पोछ दिया।

उसके बाद वह कार में आकर बैठा। बैठते ही उसने अनन्या की तरफ़ देख कर कहा, "अनु, प्लीज़ रोओ मत। तुम्हारा जब मन करे, तुम अपने मम्मी-पापा के पास आ सकती हो। हमारे घर में तुम्हें किसी भी तरह की कोई रोक-टोक नहीं होगी। घर पर माँ भी तुम्हारा इंतज़ार कर रही हैं। वहाँ भी तुम्हें माँ और पापा दोनों का भरपूर प्यार मिलेगा।"

अनन्या अनुराग की तरफ़ देख रही थी। तभी अनुराग ने उसके सर को अपने कंधे पर रख लिया। अनन्या को अनुराग की बातें अच्छी लग रही थीं। तभी अचानक उसकी नज़र कार से बाहर सामने की तरफ़ गई तो वह दंग रह गई। सामने भीड़ में उसे वीर खड़ा हुआ दिखाई दे रहा था। अनन्या ख़ुद को संभाल न पाई और अनुराग के कंधे से अपना सर हटा कर बाहर देखने लगी।

अनुराग ने पूछा, "क्या हुआ अनु?"

"कुछ नहीं।"

"फिर तुम अचानक इस तरह एकदम से हट क्यों गईं, जैसे किसी ने तुम्हें डरा दिया हो?"

"नहीं-नहीं, ऐसी कोई बात नहीं। मुझे भला कौन डराएगा।"

उधर वीर वहाँ से हटने का नाम ही नहीं ले रहा था। वह एक टक अनन्या को देखे जा रहा था। उसे वहाँ कोई नहीं जानता था। इसी का फायदा उठाकर वीर वहाँ आ गया था। हालांकि अनन्या के पापा उसे जानते थे। परंतु बारातियों के बीच में खड़े वीर की दूरी उनसे काफ़ी अधिक थी।

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक 
क्रमशः