Bimn Daa Ke Usula Bhi N books and stories free download online pdf in Hindi

बिमन दा के उसूल भी न

बिमन दा के उसूल भी न

मेरे एक दोस्त हैं। बिमन बासु। यूं तो वे बंगाली ब्राह्मण हैं। पर उनके अन्दर न तो ब्राह्मणों वाली कोई बात है। न आम बंगालियों वाली। मसलन संदेश, पान, कलफ-दार कुरता, मोटी कोर की धोती, रवीन्द्र संगीत, काली बाड़ी, शान्ति निकेतन और बौद्धिक श्रेष्ठता वाली बात। अगर उन्हें माछ-भात मिले तो ठीक, न मिले तो ठीक। वे पंजाबी और मराठी खाना भी उसी चाव से खाते हैं, जिस चाव से दक्षिण भारतीय या गुजराती। कारण कि वे पैदा बंगाल में हुए। पले बढे पंजाब में। शिक्षा ली मुम्बई में। वह भी तब, जब वह मुम्बई नहीं, बम्बई हुआ करता था। और आजकल रहते हैं हमारे शहर, हमारे मोहल्ले यानि कि उत्तर प्रदेश में। इस तरह से देखा जाए, तो बिमान दा खुद में पूरा हिन्दुस्तान हैं।

पर बिमन दा ने अपनी ज़िंदगी में कुछ विचित्र से उसूल बना रखे हैं। सिर्फ विचित्र ही नहीं, दृढ़ और रूढ़ भी। और सबसे बड़ी बात यह है कि अपने उन उसूलों का पालन वे ज़रूर करते हैं। चाहे कुछ भी हो जाए। चाहे लेने के देने ही क्यों न पड़ जाएं? बिमन दा शराब नहीं पीते। पर अगर कोई पिला देता है, तो वे मना भी नहीं करते। कहते हैं, यह मेरा उसूल है कि मैं अपने पैसे से कभी शराब नहीं पीता। वे चौबीस कैरेट के ईमानदार व्यक्ति हैं। घूस नहीं लेते। पर अगर कोई अपनी मर्जी से अंडर द टेबल ऑफर करता है, तो वे मना भी नहीं करते। कहते हैं, मांगता नहीं हूँ। पर आती हुयी लक्ष्मी को ठुकराने का पाप क्यों करूं? वे अपनी जुबान और लंघोट के भी बड़े पक्के हैं। जो कहते हैं, वह करते हैं। प्राण जाए पर वचन न जाये की स्टाइल में। पर अगर बीच रास्ते में ही उनके दिल ने मना कर दिया, तो वचन निभाना तो दूर, कई-कई दिनों तक फोन भी नहीं उठाते। बिमन दा कभी किसी महिला को बुरी नज़र से नहीं देखते। पर अगर कोई महिला अपनी मर्जी से....। समझ गए न? तो आइये, आगे बढ़ते हैं।

वैसे तो बिमन दा के अन्दर क्षेत्र या भाषा वाद जैसा कुछ भी नहीं है। पर जब भी कोई बंगाल या वहां की किसी चीज़ की बुराई करता है, तो वे बिदक जाते हैं। यह भी उनका उसूल है। उनके अन्दर का सोया पड़ा बंगाली मानुष अचानक से ही जागृत हो उठता है। इसी बंगाली अस्मिता के चलते वे पहले वामपंथियों के मुरीद थे। हर समय ‘लाल, लाल और सिर्फ लाल’ करते रहते थे। फिर जैसे ही वामपंथ के लाल किले को फतह करके तृणमूल कांग्रेस सत्ता में आयी, वे ममता दीदी के फैन हो गए। ‘दीदी ये करेगा’, ‘दीदी वो करेगा’...‘अपना दीदी तो एक दिन इस देश का प्रधानमंत्री बनेगा’। और अगर खुदा न खास्ते कहीं बंगाल में भाजपा आ गयी, तो वे ज़रूर ‘कमल, कमल और सिर्फ कमल’ करने लगेंगे। यह मैं अच्छी तरह से जानता हूँ।

अभी पिछले लोकसभा चुनाव की ही बात है। अरे वही, जब कुछ लोगों ने ममता दीदी को प्रधानमंत्री बनाने का अभियान शुरू किया था। और जो शुरू होते ही फुस्स हो गया था। बिमन दा अचानक से ही बहुत दुखी हो गए थे। और सिर्फ दुखी ही नहीं, मुझे तो ऐसा लगता था कि वे अपने आप को काफी डाउन भी महसूस करने लगे थे। वे घूम-घूम कर अपने मन की पीड़ा को हरेक के सामने व्यक्त कर रहे थे कि किस तरह से एक मराठी, एक बिहारी और एक गैर बंगाली पत्रकार ने बड़ी चालाकी से एक बंगाली भद्र नारी का भीषोण अपमान किया है। क्योंकि कोई नहीं चाहता कि दिल्ली का गद्दी पर एक बंगाली बैठे। अगर ऐसा होता, तो लोग ज्योति दा को नहीं बिठा देते? कांग्रेस अपने प्रणव दा को प्रधानमंत्री नहीं बना देती? उनको जब पुरुष होकर नहीं बनाया, तो दीदी तो महिला है। दीदी को पीएम बनाना तो न भाजपा चाहती है, न आप और न ही वाम के साथ कोई तीसरा-चौथा मोर्चा।

---पर दादा, इसमें तो कांग्रेस का भी हाथ हो सकता है। मैंने जब अपनी शंका ज़ाहिर की, तो उन्होंने फ़ौरन ही इस संभावना को सिरे से खारिज कर दिया। और कहा---नहीं, कांग्रेस ऐसा नहीं कर सकता। क्योंकि ऊ भी कांग्रेस और दीदी भी कांग्रेस। ऊ इंडियन नेशनल कांग्रेस और ममता दी त्रिणमूल कांग्रेस। दीदी भी महिला और सोनिया जी भी महिला। ऊ ममता दी का भोट काटेगा, सीट काटेगा पर गरदन कभी नहीं काटेगा। हंग पार्लियमेंट का मौका देख कर चौका मारने के लिए ऊ दीदी को पीएम भी बना सकता है। और तब राष्ट्रपति दादा भी दीदी को ज़रूर इन्भाईट करेगा। दादा भी बंगाली है और दीदी भी बंगाली। दोनों बंधु। दोनों बंगाली बंधु। मैंने पूछा---चलिए आप की बात मान लेते हैं। पर यह बताइए कि भाजपा वाले ममता बनर्जी को क्यों नुकसान पहुंचाएंगे? वे भी तो उनको फुसला कर रखना चाहेंगे कि अगर नया एनडीए बनाना पड़ा, तो झट से दीदी को साथ ले लेंगे? दादा, इस चुनावी राजनीति के खेल में कभी भी कुछ भी हो सकता है।

---एई तो!...एई तो!...एई खेला के चलते तो लोग दीदी का खेला बिगाड़ दिया है। एई लोग एक भद्र बंगाली महिला का भीषण अपमान किया है। एई लोग कभी खुस नहीं रहेगा।

तब बिमन दा के तमतमाए चेहरे को देख कर मुझे वाकई ऐसा लगता था कि कि अगर खुदा-न-खास्ते उनमें से कोई भी उनके हाँथ लग गया, तो वे उसका कचूमर ज़रूर निकाल देंगे। फिर भी मैंने पूछ ही लिया---लेकिन दादा, यह बताइए कि अरविन्द को ममता बनर्जी से क्या परेशानी हो सकती है?

उन्होंने फिर से मुझे उसी निगाह से देखा, मानो मैं कोई बकलोल होऊँ---एई तो!...एई तो!...एक मियान में दो तलवार कैसे रहेगा?...औरोबिन्दो तो अभी बच्चा है। ऊ तो वही कर रहा है, जो जो कर कर के दीदी ने बंगाल से कमुनिस्टों का साशन ख़त्म किया है। और वो भी इतना पुराना साशन।...औरोबिन्दो तो अभी एक ठो बार बिधानसभा छोड़ कर भागा है।...दीदी तो कई कई बार संसद, मंत्रिमंडल और सरकार तक छोड़ कर भागी है। काहे के लिए? बंगाल की भलाई के लिए।...औरोबिन्दो तो खाली अम्बानी और अदानी के खिलाफ बोल रहा है। कर कुछ नहीं रहा।...दीदी ने तो साक्षात टाटा को बंगाल से भगा दिया था।...दीदी भी प्रधानमंत्री बनना चाहता है। औरोबिन्दो भी पीएम बनना चाहता है। फिर दोनों एक दूसरे को पसंद कैसे कर सकता है? इसीलिये वह भी दीदी का जड़ काट सकता है। और हमको तो पक्का लगता है कि काटम-कूटम का यह खेल दोनों ने मिल के खेला होएगा।

कुल मिला कर बिमन दा बहुत ही खुले विचारों के सुलझे हुए व्यक्ति हैं। वे जात-पांत, धर्म, भाषा, लिंग, क्षेत्र और राष्ट्र के दकियानूसी विचारों और वादों को कत्तई नहीं मानते। पर जैसा कि उनका उसूल है। अगर कोई गलती से भी जाति, धर्म, लिंग या भाषा-क्षेत्र के मसले को छेड़ देता है, तो फिर वे उसको उसी हथियार से काट-पीट कर धराशाई भी कर देते हैं।