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Pyaaz Raag

प्याज़ राग व्यंग्य

संदीप मील

बस प्यारे, अपने तो वारे के न्यारे हो गये। पिछले दिनों हथेली में खाज चली और पांच बोरे प्याज़ खरीद मारे। फिर क्या था, अब तो नौकरी वोकरी छोड़कर प्याज बेचने का काम शुरू करना है। कितना दूरदर्शी हूं मैं भी, कम से कम केन्द्रीय कृषि मंत्री तो बनने लायक हूँ ही। सरकार अब प्याज़ खुद बेचने के चक्कर में है मगर हम भी कम पढ़े लिखे बनिये नहीं हैं। हम अब प्याज़ नहीं बेचेंगे, हमारा प्याज़ बाजार में आते ही बाजार भाव ही खराब हो जायेगा। हम प्याज़ पूरा तीन सौ रूपये किलो में बेचेंगे, सरकार कितना बेचती है वो हम सब जानते है। अगर बेचेगी भी तो लायेगी कहां से ? पांच बोरे तो हम अकेले ले मारे। दिने में प्याज़ की रखवाली गहने से ज्यादा करते है। यह हमारी ईज्जत बन गया है, घर में प्याज़ की ही खुश्बू है। पडा़ैसी तो बोलते हैं कि इस बार तो सेठ चिरजींलाल की लॉटरी ही लग गई है। रोज पूछते है कि सेठ प्याज़ कब बेच रहे हो ? मेरा तो एक ही जवाब है कि जिस दिन प्याज़ को लेकर देश में गृहयुद्ध हो, उसी दिन प्याज़ बेचकर देश को बचाया जायेगा। अब हम भी तो देश के सच्चे सेवक है। जब दोस्त घर में आते हैं तो बोलते हैं कि यार अजीब रहीस हो, इस समय प्याज़ खा रहे हो। खाते नहीं प्यारे, हम तो सब्जी के पास प्याज़ ले जाकर उसे प्याज़ का दर्शन करा देते है ताकि मजा भी आ जाये और खर्चा भी बच जाये। अब देश में प्याज़ कम हो इसका जवाब मुझे तो देना नहीं होता, वो तो कृषि मंत्री जी का मामला है लेकिन उनको मुझे प्याज़ सलाहाकार जरूर रखना चाहिये था। नहीं रखे तो भुगत रहे हैं अपनी। पत्नी का सोचना भी ठीक है। वह कहती है कि तुम अभी प्याज़ को सस्ते में बेच दो। लोगों में तुम्हारी ईज्जत बन जाये तो फिर दूध भी रेस पकड़नेवाला है। दूध सस्ते में बेच दिया तो विधानसभा चुनाव आराम से निकाल सकते हो। बात तो हमे भी सही लगती है लेकिन सोचते हैं कि मौका है हाथ से क्यूं जाने दे। जब कुछ निवेश करना ही है तब लोकसभा चुनाव तो ले पड़ेंगे। यह भी सोचते हैं कि एक तो अखिल भारतीय प्याज़ संघर्ष पार्टी बनाकर उतार दें उम्मीदवार मैदान में। लेकिन यह सब हमें जचता नहीं है। मेरा तो मानना है कि भई मुनाफा कमाना है, चुनाव उनाव में क्या रखा है। वैसे भी मुझे घोटाला करना तो आता नहीं। मुझे तो बस, अपना प्याज़ बेचकर धंधा शुरू करना। फिर दूध, फिर चीनी। कुल मिलाकर हमारा धंधा चौपट होने वाला नहीं है। इस बार किसान प्याज़ बोकर अमीर होने के चक्कर में हैं लेकिन हम कह दिये है कि क्यों जमीन खराब कर रहे हो। दो रूपये किलो बिकेगा। मानता ही नहीं है। हम और सरकार जब तक जिंदा है वो अमीर नहीं हो सकता, वह इतना दूरदर्शी है नहीं।

रातभर प्याज़ की रखवाली करनी पड़ती है ना। प्याज़ चोर इतने हो गये है कि सोना छोड़ देंगे मगर प्याज़ का छिलका भी नहीं छोड़ेगे।

शायद रात के तीन बजे होंगे कि अचानक घर में कोई घुस गया। एक बार तो तमंचा निकाल लिया था मगर देखा तो अपना कबीरदास निकला।

मैंने पुछा,‘साधु! तुम इतनी रात को कैसे टपके ?‘

‘तुम्हें जागता हुआ देखकर आ गया है, कबीर सोता तो है नहीं, वो तुमने पढ़ा होगा— सुखिया सब संसार है।‘

‘वो सब छेाड़ो, हम तो प्याज़ के चक्कर में जगे हुए हैं‘

कबीर जी ने नया प्याज़ राग बनाया था, वो हमे सिखाने लगे। मैं कबीर जी के पीछे पीछे गाने लगा। राग सिखाने के बाद जाने लगे तो दो प्याज़ भी उठा लिये। अब, कबीर जी को मना तो कर नहीं सकता था। सुबह सारे मौहल्ले में प्याज़ राग गाया जा रहा था और मैं दो प्याज़ के नुकसान में पक्का राग गा रहा था।