मुल्ला नसरुद्दीन का पिता मुल्ला को पीट रहा था और कह रहा था— सुधरेगा या नहीं सुधरेगा, देख, एक तू है कि रोज दिन में दो बार तुझे न पीटूं तो कोई रास्ता नहीं निकलता और एक मैं भी था अपने बचपन में कि मेरे बाप ने मुझे कभी नहीं मारा।
मुल्ला ने पिता की तरफ देखते हुए कहा, ‘इससे सिद्ध होता है कि तुम्हारे बाप भले आदमी रहे होंगे।
मुल्ला नसरुद्दीन मनोचिकत्सक के पास गया और बोला, - मेरी पत्नी पूरी तरह से पागल हो गई है, और वह सोचती है कि वह रेफ्रीजरेटर बन गई है।’
मनोचिकित्सक कभी इस तरह के मामले के संपर्क में नहीं आया था। वह बोला, ‘यह गंभीर है। मुझे इसके बारे में और अधिक बताओ।’
मुल्ला बोला - वह सोचती है कि वह रेफ़ीजरेटर है, इससे ज्यादा बताने को कुछ नहीं।
मनोचिकित्सक बोला - यदि यह सिर्फ उसका विश्वास है, तो कोई नुकसान नहीं है, यह भोलापन है। उसे मान लेने दो, वह कोई दूसरी तकलीफ तो पैदा नहीं कर रही है?’
नसरुद्दीन बोला, - ‘तकलीफ? मैं कतई सो नहीं सकता क्योंकि रात में वह मुंह खुला रख कर सोती है— और रेफ्रीजरेटर की लाइट के कारण मैं सो नहीं सकता!’
मुल्ला नसरूद्दीन का बेटा उससे पूछ रहा था कि पिताजी, मैं दुविधा में हूं। दांतों का डाक्टर बनूं या कानों का?
मुल्ला ने कहा, इसमें दुविधा की बात क्या है? दांतों के डाक्टर बनो। क्योंकि व्यक्ति के कान तो केवल दो होते हैं, दांत बत्तीस होते हैं।
मुल्ला नसरुद्दीन की पत्नी रात अचानक मुल्ला को झकझोर कर बोली— आधी रात—सुनते हो जी, नीचे से खटर—पटर की आवाजें आ रही हैं, लगता है कि चोर आ गए हैं। जरा नीचे जाकर देखना तो। मुल्ला नसरुद्दीन ने कंबल सिर के ऊपर खींचते हुए कहा, बकवास बंद करो, चुपचाप सो जाओ। कहीं चोर भी खटर—पटर की आवाजें करते हैं? वे तो बिना कोई आवाज किए ही अपना काम करते हैं। कोई चोर वगैरह नहीं हैं। चूहे वगैरह कूदते होंगे। शांत रहो। और मुल्ला तो कंबल ओढ़ कर बिलकुल मुर्दा हो गया। कुछ समय बाद मुल्ला की पत्नी ने फिर मुल्ला को हिलाया और बोली, सुनते हो जी, नीचे से आवाजें अब बिलकुल नहीं आ रही हैं, देखना कहीं चोर तो नहीं हैं।
मुल्ला नसरुद्दीन एक दिन सुबह—सुबह बरामदे में बैठकर अपने मित्रों को सुना रहा था कि साथियों के साथ शेर के शिकार को गया था। घण्टों हो गये, शिकार मिले ही नहीं। सब साथी थक गये। मैंने कहा, मत घबड़ाओ। मुझे आवाज देनी आती है, जानवरों की। तो मैंने सिंह की आवाज की, गर्जन की। क्या मेरी गर्जना करनी थी कि फौरन एक गुफा में से सिंहनी निकलकर बाहर आ गई! धड़ाधड हमने बंदूक मारी, सिंहनी का फैसला किया।
मित्रों ने कहा, ‘अरे, तो तुम्हें इस तरह की आवाज करनी आती है! जरा यहां करके हमें बताओ तो, कैसी आवाज की थी!’
मुल्ला ने कहा,’ भाई यहां न करवाओ तो अच्छा।’
नहीं माने मित्र कि ‘नहीं, जरा करके जरा सा तो बता दो।’
जोश चढ़ा दिया, तो उसने कर दी आवाज
तत्काल उसकी पत्नी ने दरवाजा खोला और कहा, ‘क्यों रे, अब तुझे क्या तकलीफ हो गई?’
मुल्ला बोला, देखो! सिंहनी हाजिर! इधर आवाज दी, तुम देख लो; खुद अपनी आंखों से देख लो!
पत्नी खड़ी है विकराल रूप लिये वहां! हाथ में अभी भी बेलन उसके!
मुल्ला ने कहा, ‘अब तो मानते हो! कि मुझे आती है जानवरों की आवाज!’
मुल्ला नसरुद्दीन एक रात सोया है और सपना देख रहा है कि भाग रहा हूं भाग रहा हूं भाग रहा हूं—तेजी से भाग रहा हूं! एक सिंह पीछे लगा हुआ है! और वह करीब आता जा रहा है! इतना करीब कि उसकी सांस पीठ पर मालूम पडने लगी। तब तो मुल्ला ने सोचा कि मारे गये! अब बचना मुश्किल है। और जब सिंह ने पंजा भी उसकी पीठ पर रख दिया, तो घबड़ाहट में उसकी नींद खुल गई। देखा तो और कोई नहीं— पत्नी …! हाथ उसकी पीठ पर रखे है…!
पत्नियां नींद में भी ध्यान रखती हैं कि कहीं भाग तो नहीं गये! कहीं पड़ोसी के घर में तो नहीं पहुंच गये!
मुल्ला ने कहा कि ‘भागवान! कम से कम रात तो सो लेने दिया कर! दिन में जो करना हो, कर। और क्या मेरी पीठ पर सांसें ले रही थीं कि मेरी जान निकली जा रही थी!
एक बार रात में सुनसान सडक पर चार लोगों ने मुल्ला नसरुद्दीन पर हमला कर दिया। मुल्ला ने पूरा मुकाबला किया। अकेले ही चारों को नानी याद दिला दी। मगर अकेला कबतक लडाई करता, आखिर चोरों ने मुल्ला पर काबू पा लिया। तलाशी ली तो मुल्ला के पास केवल 10 रुपये मिले।
चोरों ने कहा - अरे मुल्ला, कुल दस रुपये के लिये तूने इतना संघर्ष किया, इतनी मार खायी।
मुल्ला बोला - मुझे पहले से पता होता कि तुम इन 10 रुपयों के पीछे पडे हो तो मैं पहले ही दे देता, मैं तो समझा कि तुम मेरे वो 5000 छीनना चाहते हो, जो मैनें पाजामे के नाडे में छिपा रखे हैं।.....
मुल्ला नसरुद्दीन अखबार पढ़ रहा था। अखबार में खबर छपी थी। किसी वैज्ञानिक ने हिसाब लगाया था कि जब भी तुम एक सांस लेते हो, उतनी देर में पृथ्वी पर पांच आदमी मर जाते हैं!
मुल्ला ने अपनी पत्नी को कहा, जो भोजन पका रही थी, कि ‘सुनती हो, फजलू की मां, जब भी मैं एक बार सांस लेता हूं पांच आदमी मर जाते हैं!’
फजलूकी मां ने कहा, ‘मैंने तो कई दफे कहा कि तुम सांस लेना क्यों नहीं बंद करते! अब कब तक सांस लेते रहोगे और लोगों को मारते रहोगे?’
मुल्ला नसरुद्दीन के पड़ोस में नए व्यक्ति आकर बसे। सभी पड़ोसियों की निंदा करना मुल्ला की आदत है। उससे दोस्त ने पूछा, कि नए पड़ोसी आए हैं, कैसे लोग हैं? क्या सोचते हो?
मुल्ला ने कहा - ग्यारह भाई हैं।
पहला भाई राजनेता है
दूसरा उससे भी गया बीता
तीसरा भाई विश्वविद्यालय में प्रोफेसर है
चौथा उस से भी गधा
पांचवां मनोवैज्ञानिक है
छठवां भी पागल
सातवां दुकानदार है
आठवां भी चोर
नौवां कवि है
दसवां भी लफंगा
और ग्यारहवां अपने बाप-जैसा ही बाल ब्रह्मचारी है।
मुल्ला नसरुद्दीन पार्क में बच्चों की गाड़ी में बच्चे को बिठाए हुए था और बच्चा जोर जोर से रो रहा था, चीख रहा था, हाथ-पैर फेंक रहा था।
मुल्ला बार-बार कहता जा रहा था, नसरुद्दीन, शांत रहो। नसरुद्दीन, शांत रहो। कोई बात नहीं नसरुद्दीन।
एक बूढ़ी महिला यह सुन रही थी। उसने कहा, बड़ा प्यारा बच्चा है और वह बुढ़िया पास आई और उसने बच्चे को कहा कि बेटा नसरुद्दीन, शांत हो जाओ।
नसरुद्दीन ने कहा, उसका नाम नहीं है नसरुद्दीन; नसरुद्दीन मेरा नाम है। मैं अपने को शांत रखने की कोशिश कर रहा हूं इस तरह; नहीं तो या तो इसको उठाकर फेंक दूंगा या अपनी गर्दन दबा लूंगा।
मुल्ला नसरुद्दीन की पत्नी उससे झगड़ रही थी और कह रही थी कि तुम मेरे सभी रिश्तेदारों को नफरत और घृणा क्यों करते हो?
नसरुद्दीन ने कहा, ‘यह बात गलत है; यह बात सच नहीं है और प्रमाण यह है कि मैं तुम्हारी सास को अपनी सास से ज्यादा चाहता हूं।’....................
मुल्ला नसरुद्दीन ने अपनी पत्नी के सिर पर कुल्हाड़ी मार दी, पत्नी मर गयी। पुलिस ने पकड कर मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया। मजिस्ट्रेट ने पूछा कि - नसरुद्दीन, तुम बार-बार कहे जाते हो कि तुम शांतिप्रेमी हो। शांति से रहने वाले हो कि बड़े शांतिवादी हो और इतना जघन्य अपराध किया तुमने।
नसरुद्दीन ने कहा कि - बिल्कुल, मैं शांतिवादी हूं। क्योंकि जब कुल्हाड़ी मेरी पत्नी के सिर पर पड़ी, तो जैसी शांति मेरे घर में थी, वैसी उससे पहले कभी नहीं देखी थी। जो शांति का क्षण था उस वक्त, वैसा पहले कभी नहीं हुआ।
मुल्ला नसरुद्दीन की पत्नी ने पुलिस में रिपोर्ट की कि मेरे मकान के पास ही जो नदी बहती है, वहां कुछ युवक नंगे नहाते हैं। मेरी रसोई की खिड़की से वे मुझे दिखायी पड़ते हैं। यह बर्दाश्त के बाहर है। यह अशोभन है; अश्लील है। पुलिस को तत्क्षण कुछ करना चाहिए।
पुलिस आयी; युवकों को समझाया। युवक आधा मील दूर जा कर नहाने लगे। लेकिन अगले दिन फिर श्रीमती नसरुद्दीन का फोन पुलिस स्टेशन आया कि पुलिस कुछ करे; लड़के अभी भी नदी में नहा रहे हैं और नग्न हैं। लेकिन पुलिस के अधिकारी ने कहा कि देवी, अब वे आधा मील दूर चले गये हैं। अब तुम्हारी खिड़की से दिखाई नहीं दे सकते।
श्रीमती नसरुद्दीन ने कहा, “दिखते है Sir! With my binoculars I can see them – मेरी दूरबीन से दिखाई देते हैं।
मुल्ला नसरुद्दीन को एक मानसिक बीमारी थी कि जब भी उसकी फोन की घंटी बजे, तो वह घबरा जाए, डरे – कि पता नहीं, मकान मालिक ने किराए के लिए फोन न किया हो; कि जिस दफ्तर में नौकरी करता है, कहीं उस मालिक ने नौकरी से अलग न कर दिया हो–हजार चिंताएं पकड़ें; फोन उठाना उसे मुश्किल हो जाए।
तो उसने एक मनोचिकित्सक को दिखाया। दो तीन महीने उसने इलाज लिया।
चिकित्सक ने पूछा - अब कैसा महसूस करते हो? अब तो डर नहीं लगता?
नसरुद्दीन ने कहा - चिकित्सा जरूरत से ज्यादा फायदा की।
जरूरत से ज्यादा फायदा का क्या मतलब?
उसने कहा, अब तो ऐसी हिम्मत आ गई कि घंटी नहीं भी बजती तो भी मैं फोन उठाता हूं। पहले घंटी बजने से डरता था; अब घंटी बजी भी नहीं और मैंने फोन पर मकान मालिक को डांट दिया। वह इतना डर गया है कि बोलता भी नहीं उस तरफ से। एकदम चुप! सांस की आवाज का भी पता नहीं चलता है।
मुल्ला नसरुद्दीन की पत्नी मरने के करीब थी। वह बिस्तर पर पड़ी है। आंख उसने खोली और उसने कहा, सुनो जी, क्या तुम सच कहते हो कि मैं मर जाऊंगी तो तुम पागल हो जाओगे?
नसरुद्दीन ने कहा, सौ फीसदी; तू मरेगी तो मैं निश्चित पागल हो जाऊंगा।
पत्नी हंसने लगी। कहा, झूठ बोलते हो। जहां तक मैं जानती हूं, मैं मरूंगी और तुम दूसरी शादी कर लोगे।
नसरुद्दीन ने कहा कि पागल हो जाऊंगा, यह सच है, लेकिन इतना पागल नहीं कि फिर शादी कर लूं।
मुल्ला नसरुद्दीन एक अमीर बाप की बेटी के प्रेम में था और कहता था: चाहे जीवन रहे कि जाए, तुझे नहीं छोड़ सकता। मरने को तैयार हूं, अगर उसकी भी जरूरत हो; शहीद हो सकता हूं, लेकिन तुझे नहीं छोड़ सकता। बड़ी बातें करता था।
एक दिन लड़की बड़ी उदास थी और उसने नसरुद्दीन से कहा कि सुनो, मेरे पिता का दिवाला निकल गया!
नसरुद्दीन ने कहा, मुझे पहले से ही पता था कि तेरा बाप जरूर कोई न कोई गड़बड़ खड़ी करेगा और हमारा विवाह न होने देगा।
मुल्ला नसरुद्दीन को किसी ने कह दिया कि तुम बड़े कंजूस हो। उसने कहा, कौन कहता है? मेरा जैसा दानी नहीं! लोगों ने जोश पर चढ़ा दिया। उन्होंने कहा कि अगर ऐसा है, तो आज हम सबको निमंत्रण करवा दो तुम्हारे घर। उसने कहा, आओ, जितने लोग यहां मौजूद हैं। कोई तीस-पैंतीस का जत्था आ गया। घर पहुंचते-पहुंचते होश आया कि यह क्या कर लिया! क्योंकि अब तक तो भूल ही गए थे जोश में कि पत्नी घर बैठी है। अब वह मुश्किल हो जाएगी।
एक आदमी ले आओ घर में तो मुसीबत खड़ी होती है। तो उसने कहा कि देखो भई, तुम भी सब घर-द्वार वाले हो, तुम भी जानते हो आदमी की असलियत। मैं भी एक साधारण पति हूं, पत्नी घर में बैठी है। तुम जरा बाहर रुको, पहले मैं उसे राजी कर लूं, समझा-बुझा लूं, फिर तुम्हें भीतर बुला लूंगा।
वह सबको बाहर छोड़ कर दरवाजा बंद करके भीतर गया। पत्नी तो एकदम पागल हो गई, गुस्से में आ गई कि हद्द हो गई, पूरा गांव लिवा लाए! और घर में खाना भी नहीं, सब्जी भी नहीं। दिन भर से कहां थे? आटा पिसा ही नहीं है। सब्जी तुम लाए नहीं–आ कहां से जाएगी? कोई आकाश से टपकती है?
तो मुल्ला ने कहा, अब तू ही बता, क्या करें? अब तो रात भी हो गई, बाजार भी बंद हो गया। इनसे किस तरह निपटारा हो?
उसने कहा, अब तुम ही समझो; जो निपटारा करना हो, करो! मैंने मुसीबत बुलाई भी नहीं, तुम्हीं लेकर आए हो।
तो उसने कहा, एक काम कर, तू जाकर उनसे कह दे कि मुल्ला घर पर नहीं है।
वह बाहर आई पत्नी, उसने उनसे कहा कि किसकी राह देख रहे हो? वे घर पर नहीं हैं।
यह कैसे हो सकता है–उन लोगों ने कहा–वे हमारे साथ ही आए थे, और हमने उनको बाहर जाते भी नहीं देखा, भीतर ही गए हैं।
वे पत्नी से जिरह करने लगे, दलीलबाजी करने लगे। आखिर मुल्ला को भी जोश आ गया। भीतर सुन रहा है दलील, वह भूल ही गया जोश में फिर, खिड़की से झांक कर बोला कि सुनो जी, पीछे के दरवाजे से बाहर निकल गया हो, यह भी तो हो सकता है।
मुल्ला नसरुद्दीन दवाएं बनाता है और बेचता है। एक पैकेट पर उसने लिख रखा है : फायदा न होने पर दाम वापस। एक आदमी आया, वह बड़ा नाराज था। उसने कहा, महीना भर हो गया दवा फांकते-फांकते, कोई फायदा नहीं हुआ। दाम वापस चाहिए!
नसरुद्दीन ने कहा कि पैकेट पर लिखा है: फायदा न होने पर दाम वापस। तुम्हें न हुआ हो, हमें तो फायदा हुआ है
मुल्ला नसरुद्दीन एक दिन शराबघर गया। शेखी मारना उसकी आदत है। शेखी मार रहा था शराबघर के मालिक के सामने कि मैं हर तरह की शराब स्वाद लेकर पहचान सकता हूं। और ऐसा ही नहीं है, अगर तुम दस-पांच शराबें भी इकट्ठी एक प्याली में मिला दो तो भी मैं बता सकता हूं कि कौन-कौन सी शराब मिलाई गई है।
मालिक ने कहा तो रुको। वह भीतर गया, मिला लाया एक ग्लास में मार्टिनी, ब्रांडी, रम, ह्विस्की–जो भी उसके पास था, सब मिला लाया। मुल्ला पी गया और एक-एक शराब का नाम उसने ले लिया कि येऱ्ये चीजें इसमें मिली हैं। चकित हो गया वह मालिक भी। उसने कहा, एक बार और। वह भीतर गया और एक गिलास में सिर्फ पानी भर लाया। मुल्ला ने पीया, बड़ा बेचैनी में खड़ा रह गया। कुछ सूझे न। शुद्ध पानी है। स्वाद ही उसे इसका याद नहीं रहा है शुद्ध पानी का।
उसने इतना ही कहा, कि यह मैं नहीं जानता यह क्या है! मगर एक बात कह सकता हूं, इसकी बिक्री न होगी।
मुल्ला नसरुद्दीन मस्जिद में नमाज पढ़ने गया था। जब वह नमाज पढ़ने बैठा तो उसका कुर्ता, पीछे से एक कोना उठा हुआ था, उलझा होगा–तो पीछे के आदमी ने कुर्ता खींचकर ठीक कर दिया। मुल्ला ने सोचा कि शायद कुर्ता खींचना इस मस्जिद का रिवाज है। तो उसने अपने सामनेवाले आदमी का कुर्ता खींचा। उस आदमी ने पूछा, क्यों जी! किसलिए कुर्ता खींचते हो? उसने कहा, मेरे पीछेवाले से पूछो। मुझे कुछ पता नहीं। मैं तो समझा कि यहां का रिवाज है।
तुम न मालूम कितने लोगों के कुर्ते खींच रहे हो! क्योंकि तुम्हारा कुर्ता खींच दिया गया है। तुम सोचते हो, यहां का रिवाज है। तुम सौ में से निन्यानबे काम ऐसे कर रहे हो जो कि तुम देखते हो दूसरे कर रहे हैं।
एक सम्राट ने आदेश दिया कि मेरे राज्य में जो भी असत्य बोलेगा उसे सूली पर लटका देंगे। और उसने कहा कि नगर का बड़ा द्वार जब सुबह खुलेगा, तो वहां जल्लाद मौजूद रहेंगे फांसी लगाकर और जो भी आदमी आएंगे-जायेंगे उनमें से कोई भी असत्य बोला तो तत्क्षण सूली पर लटका देंगे।
मुल्ला नसरुद्दीन उसके दरबार में था, उसने कहा अच्छा, तो कल फिर दरवाजे पर मिलेंगे। उस सम्राट ने कहा, तुम्हारा मतलब? उसने कहा, कल वहीं तुम भी मौजूद रहना। हम असत्य बोलेंगे और तुम हमें फांसी पर लगाकर देख लेना।
सुबह जब दरवाजा खुला, सम्राट मौजूद था, और वजीर मौजूद थे, पूरे दरबारी मौजूद थे, फांसी का तख्ता मौजूद था, जल्लाद मौजूद थे। और मुल्ला अपने गधे पर सवार दरवाजे के भीतर प्रविष्ट हुआ।
सम्राट ने कहा, “कहां जा रहे हो नसरुद्दीन?’
नसरुद्दीन ने कहा, “फांसी के तख्ते पर लटकने जा रहा हूं।’
अब बड़ी मुश्किल हो गई। अगर उसको लटकाओ तो वह सच हो जाए। अगर न लटकाओ तो वह झूठ है। अब करो क्या? अगर उसको फांसी पर लटका दो तो एक सच्चे आदमी को फांसी हो गई। अगर उसको फांसी पर न लटकाओ, तो एक झूठा आदमी पहले ही दिन छूटा जा रहा है। सम्राट ने अपना सिर ठोंक लिया।
नसरुद्दीन ने कहा कि सत्य और असत्य का निर्णय इतना आसान नहीं। हटाओ फांसी वगैरह। कौन जानता है कौन सत्य बोल रहा है, कौन असत्य बोल रहा है! कौन जानता है क्या सत्य है, क्या असत्य है!
सत्य और असत्य बड़ी नाजुक बातें हैं
मुल्ला नसरुद्दीन अपनी पत्नी से कह रहा था कि मैं एक घंटे में वापिस आने का प्रयत्न करूंगा। यदि न आया तो शाम तक आ जाऊंगा। और अगर शाम तक भी न आ पाया तो समझ लेना कि मुझे अकस्मात बाहर जाना पड़ गया। वैसे अगर मैं बाहर गया तो चपरासी से चिट्ठी जरूर भिजवा दूंगा।
मुल्ला की पत्नी ने कहा, चपरासी को तकलीफ मत देना, मैंने चिट्ठी तुम्हारी जेब से निकाल ली है।
मुल्ला नसरुद्दीन के बेटे का परीक्षा परिणाम आया। मुल्ला ने बहुत हायत्तौबा मचायी, बहुत क्रोधित हुआ और कहा कि बरबाद कर दिया, नाम डुबा दिया। किसी विषय में बेटा उत्तीर्ण नहीं हुआ है। अधिकतर में शून्य प्राप्त हुआ है।
लेकिन बेटा नसरुद्दीन का ही था। वह खड़ा मुस्कुराता रहा। जब बाप काफी शोरगुल कर लिया और काफी अपने को उत्तेजित कर लिया, तब उसने कहा कि जरा ठहरिए, यह रिजल्ट मेरा नहीं है। पुरानी कुरान की किताब में रखा मिला, यह आपका है।
मुल्ला ने कहा - “तो ठीक! मेरा ही सही, कोई हर्जा नहीं। तेरा कहां है?’
उसके बेटे ने कहा, “मेरी भी हालत यही है। इसीलिए तो मैंने आपका दिखाया है, शायद आप थोड़े नरम हो जायें।’
मुल्ला नसरुद्दीन ने कहा, “तो ठीक, तो जो मेरे बाप ने मेरे साथ किया था वही मैं तेरे साथ करूंगा।’
उसके लड़के ने पूछा, “तुम्हारे बाप ने तुम्हारे साथ क्या किया था?’
उसने कहा, “नंगा करके चमड़ी उधेड़ दी थी।’
एक बहुत पुराना चर्च था। वह जराजीर्ण हो गया था; हवा चलती तो लगता कि अब गिरा, तब गिरा। उसमें पूजा करने वाले लोग भी डरने लगे; कभी भी गिर सकता था। आखिर ट्रस्टियों ने बैठक की कि अब कुछ करना ही होगा। अब तो पुजारी भी भीतर आने से डरता है, पूजा करने वाले भी डरते हैं, पास से गुजरने वाले भी भयभीत होते हैं; क्योंकि कब गिर जाए!
तो उन्होंने तीन प्रस्ताव स्वीकार किए।
एक कि पुराने चर्च को गिराना पड़ेगा।
दूसरा कि नये चर्च को बनाना पड़ेगा।
पुराने को गिराना है–दुख से; नये को बनाना है–मजबूरी है;
और तीसरा प्रस्ताव उन्होंने पास किया कि नये चर्च को हम पुराने चर्च की जगह ही बनाएंगे। और जब तक नया न बन जाए, तब तक हम पुराने का उपयोग जारी रखेंगे! और नये चर्च में हम पुराने चर्च के ही पत्थरों का उपयोग करेंगे।
और यह भी सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया उन्होंने
मुल्ला नसरुद्दीन के बेटे ने उससे पूछा : पापा, मेरे मास्टर कहते हैं कि दुनिया गोल है। लेकिन मुझे तो चपटी दिखाई पडती है। और डब्बू जी का लडका कहता है कि न तो गोल है , न चपटी , जमीन चौकोर है। पापा ,आप तो बडे विचारक हैं , आप क्या कहते हैं ?
मुल्ला नसरुद्दीन ने आंखे बन्द की और विचारक बनने का ढोंग करने लगा। कुछ देर यूँ ही बैठा ही रहा, हाँलाकि उसके समझ मे कुछ नहीं आया ,सब बातें सिर से घूमती रहीं कि आज कौन सी फ़िल्म देखने जाऊं, क्या करुं क्या न करूं। बेटे ने कहा : पापा, बहुत देर हो गयी , अब तक आप पता नही लगा
पाये कि दुनिया गोल है , चपटी या फ़िर चौकोर?
मुल्ला नसरुद्दीन ने कहा : बेटा , न तो दुनिया गोल है न चपटी न चौकोर। दुनिया चार सौ बीस है।
एक आदमी ने गाँव के नेता जी को किसी बात पर सच्ची बात कह दी । कह दिया कि उल्लू के पटृठे हो! अब नेता जी को उल्लू का पटृठा कहो तो नेता जी कुछ ऐसे ही नहीं छोड देगें। उन्होनें अदालत मे मुकदमा मानहानि का चलाया।
मुल्ला नसरुद्दीन नेता जी के पास ही खडा था तो उसको गवाही मे लिया । जिसने गाली दी थी नेता जी को , उसने मजिस्ट्रेट को कहा कि होटल में कम से कम पचास लोग ,जरुर मैने उल्लू का पटृठा शब्द का उपयोग किया है; लेकिन मैने किसी का नाम नही लिया । नेता जी कैसे सिद्द कर सकते हैं कि मैने इन्ही को उल्लू का पटृठा कहा है।
नेता जी ने कहा : सिद्द कर सकता हूँ। मेरे पास गवाह हैं। मुल्ला को खडा किया गया । मजिस्ट्रेट ने पूछा कि मुल्ला , तुम गवाही देते हो कि इस आदमी ने नेता जी को इंगित करके उल्लू का पटृठा कहा है! मजिस्ट्रेट ने कहा : तुम कैसे इतने निशिचत हो सकते हो? वहाँ तो पचास लोग मौजूद थे, इसने किसी का नाम तो लिया नहीं। नसरुद्दीन ने कहा : नाम लिया हो कि न लिया हो, पचास मौजूद हों कि पांच सौ मौजूद हों , मगर वहां उल्लू का पटृठा केवल एक था । वह नेता जी ही थे ! मै अपने बेटे की कसम खाकर कहता हूँ कि वहां कोई और दूसरा था ही नहीं , यह कहता भी तो किसको ?
एक गाँव मे एक धर्मगुरु आये । मुल्ला नसरुद्दीन भी सुनने गया। धर्मगुरु का उपदेश था कि दूसरों के जीवन मे व्यवधान डालना हिंसा है। प्रवचन के बाद मुल्ला मंच पर पहुचा, बोला मै आपको एक बढिया लतीफ़ा सुनाता हूँ, जरा गौर से सुनिये। लतीफ़ा चार खडों मे है।
पहला खण्ड : एक सरदार जी साइकिल पर अपनी बीबी को बैठा कर कहीं जा रहे थे। रास्ते में गडृढा आया, बीबी चिल्लायी: जरा बच कर चलाना ! सरदार जी ने साईकिल रोकी और उतर कर बीबी को एक झापड मार कर कहा : साइकिल मै चला रहा हूँ कि तू?
धर्मगुरु बोले : सही बात है, किसी के काम मे अडंगा नही डालना चाहिये।
मुल्ला ने आगे कहा : जरा सुनिये दूसरा खंड । सरदार जी घर आये। बीबी चाय बनाने बैठी । गुस्से मे तो थी ही , स्टोव मे खूब हवा भरने लगी । सरदार जी बोले : देखो, कहीं टकी फ़ट न जाये। बीबी ने सर्दार जी दाढी पकड कर सरदार जी को एक चांटा लगाया। बोली : चाय मै बना रही हूँ कि तुम ?
धर्मगुरु बोले : वाह-वाह, क्या चुटकुला है ! किसी के काम मे बीच मे बोलना ही नही चाहिये।
मुल्ला ने कहना आगे जारी रखा । कहा : सुनिये, अब सुनिये चौथा खंड…...एक बार एक सरदार जी……..।
धर्मगुरु ने बीच मे टोका : अरे भाई, पहले तीसरा सुनाओ। दूसरे के बाद यह चौथा खंड कहां से आ गया? नसरुद्दीन ने आव न देखा ताव , भर ताकत एक घूंसा धर्मगुरु की पीठ पर लगाया और बोला : चुटकुला मै सुना रहा हूँ कि तुम ?
नसरुद्दीन का बेटा फ़जलू स्कूल से चार नये शब्द सीख आया- दारु,हुक्का,रंडीऔर उल्लू का पटृठा। वह बारम्बार इनके अर्थ पूछे। इस डर से कहीं बेटा बिगड न जाय, नसरुद्दीन ने दारु का अर्थ चाय, हुक्का का अर्थ काफ़ी, रंडी का अर्थ भिंडी की सब्जी , और उल्लू का पटृठा यानी मेहमान बतला दिया। दूसरे ही दिन एक विचित्र घटना घटी, जिसकी कल्पना भी किसी ने नहीं की थी। फ़जलू बहार बरामदे में बैठा था , तभी नसरुद्दीन का कोई परिचित उससे मिलने आया। फ़जलू ने कहा : आओ उल्लू के पटृठे, कुर्सी पर बैठो। मित्र तो यह सुन कर हैरान हो गया। बोला, तुम्हारे पापा कहां गये हैं? फ़जलू ने कहा :पापा, अरे वह बाजार गये हैं रंडी खरीदने। आजकल उन्हें रंडी बहुत भाती है। वे आते ही होगें।
फ़जलू ने अपने नये शब्द-भंडार का उपयोग करने का अच्छा अवसर देख कर कहा : आप हुक्का पीना पंसद करेगें या दारु लेकर आऊँ? वह मित्र तो यह सुन कर हक्का-बक्का रह गया,घबराते हुये बोला : फ़जलू कैसी उल्टी-सीधी बातें कर रहे हो? तुम्हारी मम्मी कहाँ हैं? उन्ही को बुला लाओ, तब तक पापा भी आते होगें।
फ़जलू ने दरवाजे के भीतर झांक कर आवाज लगाई; मम्मी एक उल्लू का पटृठा आया है । मैने हुक्का पूछा, दारु की पूछी तो कुछ नहीं बोला। कहता है कि उल्टी-सीधी बातें मत करो ; जब तक पापा रंडी वगैरह नहीं लाते , तब तक तुम्हारी मम्मी को ही बुला दो।
एक दिन नसरुदीन घबडाया हुआ सा अपने निजी डाक्टर के पास पहुंचा और उससे बोला कि डाक्टर साहब,मेरे नौजवान बेटे ने , जिसे की छूत की बीमारी है, मेरी नौजवान नौकरानी को चूम लिया है और कहता है कि मै उसे अक्सर चूमा करता हूँ।
डाक्टर बोला, तो आखिर इसमें इतना परेशान होने की बात क्या है? नसरुदीन, आखिर वह भी युवा ही है। फ़िर छोकरे छोकरे हैं, लडके लडके हैं और नौकरानी को चूमा है न , इसमे घबराते इतना क्यों हो?
नसरुदीन बोला, पर डाक्टर साहब , आप समझने की कोशिश करे क्योंकि मै भी उस नौकरानी को अक्सर चूमा करता हूँ। क्या वह छूत का रोग मुझे नहीं लग सकता? डाक्टर बोला, घबराओ मत बडे मियां, नौकारानियां आखिर चूमने के लिये ही तो रखी जाती हैं । और छूत की बीमारी कोई बीमारी है! और यदि तुम्हें कोई लग भी जाय , तो उसका आखिर इलाज है। मै किसलिये हूं?
नसरुदीन बोला, पर डाक्टर साहब, बात यहीं खत्म नहीं होती। नौकरानी को चूमने के बाद मै कई बार अपनी पत्नी को भी चूम चुका हूं।
अब डाक्टर ने घबराते हुये कहा, ऐ, तो क्या यह वाहियाद रोग मुझे भी लग गया।
मुल्ला नसरुद्दीन एक दिन ट्रेन से उतरा तो चक्कर खाता हुआ लग रहा था। किसी ने पूछा कि बीमार लग रहे हो, क्या बात है।
नसरुद्दीन ने कहा कि जब भी मुझे ट्रेन के चलने की दिशा से विपरित बैठकर यात्रा करनी पड़ती है यानि जिस तरफ ट्रेन जा रही है, उस तरफ मुझे पीठ रखनी पड़ती है, तो मुझे उलटी, वमन, चक्कर और सिरदर्द हो जाता है।
उस मित्र ने कहा, ‘भले आदमी, सामने के आदमी से पूछा लिया होता कि भई मै जरा तकलीफ में हूं जगह बदल लें।’
नसरुद्दीन ने कहा, ‘वह मैंने भी सोचा था, लेकिन सामने की सीट खाली थी, वहां कोई आदमी नहीं था, पूछता किससे?
गांव में एक बाबाजी आये। बडे बडे प्रवचन दिये लोगों को शराब छोड देने के लिये। शराब बहुत बुरी चीज है। सबकुछ लुट जाता है। सबसे बडा घर किसका है - शराब विक्रेता का। तुम्हारी खून पसीने की कमाई शराब विक्रेता ले जाता है। सबसे ज्यादा दौलत किसके पास है - शराब विक्रेता के, वो सब तुमसे ही लूटी गई है।
मुल्ला नसरुद्दीन ने धैर्यपूर्वक सभी प्रवचन सुने और बाबा जी के चरणों में लोट गया।
बोला - बाबाजी आपने मेरी जिन्दगी बना दी, मेरी आंखें खोल दी, धन्यवाद
बाबाजी ने कहा - तो तुम आज से शराब पीना छोड रहे हो?
मुल्ला - बाबा जी वो बात नहीं है, मैं काफ़ी दिन से सोच रहा था की क्या व्यापार करूं। आपने रास्ता दिखा दिया। मैं अब शराब बेचने का धंधा करूंगा।
मुल्ला नसरुद्दीन पार्क में बच्चों की गाड़ी में बच्चे को बिठाए हुए था और बच्चा जोर जोर से रो रहा था, चीख रहा था, हाथ-पैर फेंक रहा था।
मुल्ला बार-बार कहता जा रहा था, नसरुद्दीन, शांत रहो। नसरुद्दीन, शांत रहो। कोई बात नहीं नसरुद्दीन।
एक बूढ़ी महिला यह सुन रही थी। उसने कहा, बड़ा प्यारा बच्चा है और वह बुढ़िया पास आई और उसने बच्चे को कहा कि बेटा नसरुद्दीन, शांत हो जाओ।
नसरुद्दीन ने कहा, उसका नाम नहीं है नसरुद्दीन; नसरुद्दीन मेरा नाम है। मैं अपने को शांत रखने की कोशिश कर रहा हूं इस तरह; नहीं तो या तो इसको उठाकर फेंक दूंगा या अपनी गर्दन दबा लूंगा।
मुल्ला नसरुद्दीन एक धूप में चक्कर खा कर सडक पर गिर पड़ा। लोग इकट्ठे हो गये, भीड़ लग गई। मुल्ला की दोनों आंखें बंद हैं। कोई कहता है, इसको जूता सुंघा दो, इसे होश आ जाएगा। कोई कहता है, सिर पर मालिश करो। कोई कहता है, पानी छिड़को। एक लड़की कह रही है कि पावभर दूध में आधा पाव जलेबी डालकर इसे खिला दो।
मुल्ला पहले तो थोड़ी देर तक उन सबकी बातें सुनता रहा। फिर एक आदमी जूता निकालकर ही आ गया। तब उसने एक आंख खोली, उसने कहा, हटाओ भी, सब अपनी बकवास में लगे हैं, कोई उस बेचारी लड़की की भी तो सुनो। हम इधर बेहोशी में मरे जा रहे हैं और तुम अपना जूता सुंघा रहे हो! एक आंख खोलकर उसने कहा कि उस बेचारी लड़की की भी कोई सुनो! ...........
मुल्ला नसरुद्दीन ने अपनी पत्नी के सिर पर कुल्हाड़ी मार दी, पत्नी मर गयी। पुलिस ने पकड कर मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया। मजिस्ट्रेट ने पूछा कि - नसरुद्दीन, तुम बार-बार कहे जाते हो कि तुम शांतिप्रेमी हो। शांति से रहने वाले हो कि बड़े शांतिवादी हो और इतना जघन्य अपराध किया तुमने।
नसरुद्दीन ने कहा कि - बिल्कुल, मैं शांतिवादी हूं। क्योंकि जब कुल्हाड़ी मेरी पत्नी के सिर पर पड़ी, तो जैसी शांति मेरे घर में थी, वैसी उससे पहले कभी नहीं देखी थी। जो शांति का क्षण था उस वक्त, वैसा पहले कभी नहीं हुआ।
मुल्ला नसरुद्दीन एक मनोचिकित्सक के पास गया। कहा कि मेरी पत्नी टब में बैठ कर रबर की बतख से घंटों खेलती रहती है। रोकिए!
मनोचिकित्सक ने कहा कि इसमें कुछ ऐसा चिंतित होने का कारण नहीं है। अगर खेलती भी रहे तो बतख से ही खेलती है; किसी का कुछ नुकसान भी नहीं कर रही, कोई हानि भी नहीं कर रही और पत्नी अगर बतख से खेल रही है तो घर में भी शांति रहेगी, तुम भी चैन में रहोगे। इसमें हर्ज क्या है? यह तो बहुत बेहतर ही है। जिनकी पत्नियां नहीं खेलती हैं, उनको भी खेलना सिखाना चाहिए। इससे तुम चिंतित मत होओ। खेलने दो।
नसरुद्दीन ने कहा, कैसे खेलने दो? मुझे खेलने का वक्त ही नहीं मिलता। चौबीस घंटे वही बतख लिए बैठी है। बतख मुझे नहीं मिलती तो मैं कब खेलूं?...
मुल्ला नसरुद्दीन बार बार तालियां बजाता रहता था। एक मानसिक चिकित्सक ने उसे इस प्रकार की हरकत करने का कारण पूछा।
मुल्ला बोला, तालियां बजाने से शेर पास नहीं आते। इस पर चिकित्सक बोला, लेकिन यहां तो कोई शेर है भी नहीं।
मुल्ला ने कहा, देख लिया आपने मेरी तालियों का असर! अरे, आ कैसे सकते हैं शेर यहां, जब तक मैं हूं कभी शेर नहीं आ सकते! तालियों में वह असर है।
मुल्ला नसरुद्दीन मनोचिकत्सक के पास गया और बोला, - मेरी पत्नी पूरी तरह से पागल हो गई है, और वह सोचती है कि वह रेफ्रीजरेटर बन गई है।’
मनोचिकित्सक कभी इस तरह के मामले के संपर्क में नहीं आया था। वह बोला, ‘यह गंभीर है। मुझे इसके बारे में और अधिक बताओ।’
मुल्ला बोला - वह सोचती है कि वह रेफ़ीजरेटर है, इससे ज्यादा बताने को कुछ नहीं।
मनोचिकित्सक बोला - यदि यह सिर्फ उसका विश्वास है, तो कोई नुकसान नहीं है, यह भोलापन है। उसे मान लेने दो, वह कोई दूसरी तकलीफ तो पैदा नहीं कर रही है?’
नसरुद्दीन बोला, - ‘तकलीफ? मैं कतई सो नहीं सकता क्योंकि रात में वह मुंह खुला रख कर सोती है— और रेफ्रीजरेटर की लाइट के कारण मैं सो नहीं सकता!
मुल्ला नसरुद्दीन की पत्नी रात अचानक मुल्ला को झकझोर कर बोली— आधी रात—सुनते हो जी, नीचे से खटर—पटर की आवाजें आ रही हैं, लगता है कि चोर आ गए हैं। जरा नीचे जाकर देखना तो। मुल्ला नसरुद्दीन ने कंबल सिर के ऊपर खींचते हुए कहा, बकवास बंद करो, चुपचाप सो जाओ। कहीं चोर भी खटर—पटर की आवाजें करते हैं? वे तो बिना कोई आवाज किए ही अपना काम करते हैं। कोई चोर वगैरह नहीं हैं। चूहे वगैरह कूदते होंगे। शांत रहो। और मुल्ला तो कंबल ओढ़ कर बिलकुल मुर्दा हो गया। कुछ समय बाद मुल्ला की पत्नी ने फिर मुल्ला को हिलाया और बोली, सुनते हो जी, नीचे से आवाजें अब बिलकुल नहीं आ रही हैं, देखना कहीं चोर तो नहीं हैं।
एक दिन मुल्ला घर लौटा, देखा कि पत्नी के साथ बिस्तर पर कोई सोया हुआ है। आगबबूला हो गया। पर इसके पहले कि पिस्तौल निकालने जाऊं, जरा देख तो लूं कि कौन है? कंबल उठाया, वही पहलवान? जल्दी से कंबल उढा दिया। अरे, पहलवान जी ठंड तो नहीं लग रही! और एक कंबल ले आऊं, भैया? शांति से सोओ!’
मुल्ला क्रोध और घृणा से जल रहा था। मगर दिल तो भनभना रहा था। यह तो हद हो गयी! ईंट भी ठीक थी, मगर अब बात बहुत आगे बढ़ गयी थी। कंबल तो उढाकर बाहर लौट आया, पहलवान का छाता रखा था, उसका छाता अपनी टांग पर रखकर तोड़ दिया और कहा कि हे प्रभु, अब ऐसा हो कि जमकर बरसे, पानी ऐसा बरसे कि कमबख्त को पता चल जाए! घर पहुंचने में मजा आ जाए इसको भी!
मुल्ला नसरुद्दीन चला जा रहा था एक रास्ते से, ऊपर से एक ईंट गिरी, जरा सा बचा। भनभना गया तमतमा गया। उठायी ईंट और गुस्से में गया जीना चढ़कर ऊपर कि सिर खोल दूंगा! कौन हरामजादा है जिसने ईंट पटकी? देखता भी नहीं! उधर जाकर देखा तो एक पहलवान खड़ा था। अभी दंड—बैठक लगाकर ही उठा था। पहलवान को देखकर मुल्ला चौकड़ी भूल गये। पहलवान ने पूछा, कहो, क्या काम है? उसने कहा, कुछ नहीं, आपकी ईंट गिर गयी थी, वह वापिस करने आया हूं। अरे, कभी भी जरूरत हो तो पड़ोस में ही रहता हूं आवाज दे देना। कोई चीज गिर जाए, कुछ हो तो उठाकर ला दूंगा। सेवा तो हमारा धर्म है!
मुल्ला नसरुद्दीन एक दिन सुबह—सुबह बरामदे में बैठकर अपने मित्रों को सुना रहा था कि साथियों के साथ शेर के शिकार को गया था। घण्टों हो गये, शिकार मिले ही नहीं। सब साथी थक गये। मैंने कहा, मत घबड़ाओ। मुझे आवाज देनी आती है, जानवरों की। तो मैंने सिंह की आवाज की, गर्जन की। क्या मेरी गर्जना करनी थी कि फौरन एक गुफा में से सिंहनी निकलकर बाहर आ गई! धड़ाधड हमने बंदूक मारी, सिंहनी का फैसला किया।
मित्रों ने कहा, ‘अरे, तो तुम्हें इस तरह की आवाज करनी आती है! जरा यहां करके हमें बताओ तो, कैसी आवाज की थी!’
मुल्ला ने कहा,’ भाई यहां न करवाओ तो अच्छा।’
नहीं माने मित्र कि ‘नहीं, जरा करके जरा सा तो बता दो।’
जोश चढ़ा दिया, तो उसने कर दी आवाज
तत्काल उसकी पत्नी ने दरवाजा खोला और कहा, ‘क्यों रे, अब तुझे क्या तकलीफ हो गई?’
मुल्ला बोला, देखो! सिंहनी हाजिर! इधर आवाज दी, तुम देख लो; खुद अपनी आंखों से देख लो!
पत्नी खड़ी है विकराल रूप लिये वहां! हाथ में अभी भी बेलन उसके!
मुल्ला ने कहा, ‘अब तो मानते हो! कि मुझे आती है जानवरों की आवाज!
मुल्ला नसरुद्दीन एक रात सोया है और सपना देख रहा है कि भाग रहा हूं भाग रहा हूं भाग रहा हूं—तेजी से भाग रहा हूं! एक सिंह पीछे लगा हुआ है! और वह करीब आता जा रहा है! इतना करीब कि उसकी सांस पीठ पर मालूम पडने लगी। तब तो मुल्ला ने सोचा कि मारे गये! अब बचना मुश्किल है। और जब सिंह ने पंजा भी उसकी पीठ पर रख दिया, तो घबड़ाहट में उसकी नींद खुल गई। देखा तो और कोई नहीं— पत्नी …! हाथ उसकी पीठ पर रखे है…!
पत्नियां नींद में भी ध्यान रखती हैं कि कहीं भाग तो नहीं गये! कहीं पड़ोसी के घर में तो नहीं पहुंच गये!
मुल्ला ने कहा कि ‘भागवान! कम से कम रात तो सो लेने दिया कर! दिन में जो करना हो, कर। और क्या मेरी पीठ पर सांसें ले रही थीं कि मेरी जान निकली जा रही थी!
मुल्ला नसरुद्दीन अखबार पढ़ रहा था। अखबार में खबर छपी थी। किसी वैज्ञानिक ने हिसाब लगाया था कि जब भी तुम एक सांस लेते हो, उतनी देर में पृथ्वी पर पांच आदमी मर जाते हैं!
मुल्ला ने अपनी पत्नी को कहा, जो भोजन पका रही थी, कि ‘सुनती हो, फजलू की मां, जब भी मैं एक बार सांस लेता हूं पांच आदमी मर जाते हैं!’
फजलूकी मां ने कहा, ‘मैंने तो कई दफे कहा कि तुम सांस लेना क्यों नहीं बंद करते! अब कब तक सांस लेते रहोगे और लोगों को मारते रहोगे?’
मुल्ला नसरुद्दीन टैक्सी में कहीं जा रहा था। नसरुद्दीन को बोर होता हुआ देख टैक्सी ड्राइवर बोला - "आपसे एक सवाल पूछता हूं; सवाल बड़ा कठिन है!”
मुल्ला ने कहा : “पूछो—पूछो! मेरे लिए कुछ कठिन नहीं है?”
टैक्सी ड्राइवर बोला :”मेरे मां—बाप की एक ही संतान है, जो न मेरा भाई और न मेरी बहन है; बताइए वह कौन है?”
नसरुद्दीन बड़ी उलझन में फंस गया। उसने बहुत सिर मारा, लेकिन समझ ही न आए कि ऐसा हो ही कैसे सकता है! मां—बाप की संतान या तो भाई होगा या बहन होगी।
ड्राइवर ने व्यंग्य से पूछा : “कहिए, महाशय जी! मैंने पहले ही कहा था न, सवाल बड़ा कठिन है; अच्छे—अच्छों को जवाब नहीं सूझता!”
बेचारे मुल्ला ने हार मान ली। ड्राइवर ने बताया, “अरे, सीधी—सी बात है, मैं खुद अपने मां—बाप की संतान हूं, एकमात्र, मगर न मैं खुद का भाई हूं, न खुद की बहन हूं।”
जब नसरुद्दीन घर वापस आया तो उसने दोस्तों से वही सवाल पूछा - “यारो, एक प्रश्न पूछता हूं। मेरे मां—बाप की एक औलाद है, जो न रिश्ते में मेरा भाई लगता है और न बहन लगती है, तो बताओ वह कौन है?”
इस प्रश्न का जवाब दोस्त भी नहीं दे पाये। सबने पराजित होकर कहा : मुल्ला, तुम्हीं जवाब दो, हमारी तो अक्ल काम नहीं करती, कि जो तुम्हारे मां—बाप की ही संतान है, किंतु न तुम्हारा भाई है, न बहन है, तो आखिर वह कौन हो सकता है फिर?”
गर्व से छाती फुलाकर नसरुद्दीन बोला : “अरे, वही टैक्सी ड्राइवर!”
एक बार मुल्ला नसरुदीन को प्रवचन देने के लिए आमंत्रित किया गया . मुल्ला समय से पहुंचे और स्टेज पर चढ़ गए , “ क्या आप जानते हैं मैं क्या बताने वाला हूँ ? मुल्ला ने पूछा .“
नहीं ” बैठे हुए लोगों ने जवाब दिया .
यह सुन मुल्ला नाराज़ हो गए ,” जिन लोगों को ये भी नहीं पता कि मैं क्या बोलने वाला हूँ मेरी उनके सामने बोलने की कोई इच्छा नहीं है . “ और ऐसा कह कर वो चले गए .
उपस्थित लोगों को थोड़ी शर्मिंदगी हुई और उन्होंने अगले दिन फिर से मुल्ला नसरुदीन को बुलावा भेज .
इस बार भी मुल्ला ने वही प्रश्न दोहराया , “ क्या आप जानते हैं मैं क्या बताने वाला हूँ ?”
हाँ ”, कोरस में उत्तर आया .“
बहुत अच्छे जब आप पहले से ही जानते हैं तो भला दुबारा बता कर मैं आपका समय क्यों बर्वाद करूँ ”, और ऐसा खेते हुए मुल्ला वहां से निकल गए .
अब लोग थोडा क्रोधित हो उठे , और उन्होंने एक बार फिर मुल्ला को आमंत्रित किया .
इस बार भी मुल्ला ने वही प्रश्न किया , “क्या आप जानते हैं मैं क्या बताने वाला हूँ ?”
इस बार सभी ने पहले से योजना बना रखी थी इसलिए आधे लोगों ने “हाँ ” और आधे लोगों ने “ना ” में उत्तर दिया .“
ठीक है जो आधे लोग जानते हैं कि मैं क्या बताने वाला हूँ वो बाकी के आधे लोगों को बता दें .”
एक बार खबर फैली की मुल्ला नसरुदीन कम्युनिस्ट बन गए हैं . जो भी सुनता उसे आश्चर्य होता क्योंकि सभी जानते थे की मुल्ला अपनी चीजों को लेकर कितने पोजेसिव हैं .
जब उनके परम मित्र ने ये खबर सुनी तो वो तुरंत मुल्ला के पास पहुंचा .
मित्र : “ मुल्ला क्या तुम जानते हो कम्युनिज्म का मतलब क्या है ?”
मुल्ला : “हाँ , मुझे पता है .”
मित्र : “ क्या तुम्हे पता है अगर तुम्हारे पास दो कार है और किसी के पास एक भी नहीं तो तुम्हे अपनी एक कार देनी पड़ेगी ”
मुल्ला : “ हाँ , और मैं अपनी इच्छा से देने के लिए तैयार हूँ .”
मित्र : “ अगर तुम्हारे पास दो बंगले हैं और किसी के पास एक भी नहीं तो तुम्हे अपना एक बंगला देना होगा ?”
मुल्ला : “ हाँ , और मैं पूरी तरह से देने को तैयार हूँ .”
मित्र :” और तुम जानते हो अगर तुम्हारे पास दो गधे हैं और किसी के पास एक भी नहीं तो तुम्हे अपना एक गधा देना पड़ेगा ?”
मुल्ला : “ नहीं , मैं इस बात से मतलब नहीं रखता , मैं नहीं दे सकता , मैं बिलकुल भी ऐसा नहीं कर सकता .”
मित्र : “ पर क्यों , यहाँ भी तो वही तर्क लागू होता है ?”
मुल्ला : “ क्योंकि मेरे पास कार और बंगले तो नहीं हैं , पर दो गधे ज़रूर हैं .”
एक पड़ोसी मुल्ला नसरुद्दीन के द्वार पर पहुंचा . मुल्ला उससे मिलने बाहर निकले .“
मुल्ला क्या तुम आज के लिए अपना गधा मुझे दे सकते हो , मुझे कुछ सामान दूसरे शहर पहुंचाना है ? ”
मुल्ला उसे अपना गधा नहीं देना चाहते थे , पर साफ़ -साफ़ मन करने से पड़ोसी को ठेस पहुँचती इसलिए उन्होंने झूठ कह दिया , “ मुझे माफ़ करना मैंने तो आज सुबह ही अपना गधा किसी उर को दे दिया है .”
मुल्ला ने अभी अपनी बात पूरी भी नहीं की थी कि अन्दर से ढेंचू-ढेंचू की आवाज़ आने लगी .“
लेकिन मुल्ला , गधा तो अन्दर बंधा चिल्ला रहा है .”, पड़ोसी ने चौकते हुए कहा .“
तुम किस पर यकीन करते हो .”, मुल्ला बिना घबराए बोले , “ गधे पर या अपने मुल्ला पर ?”
पडोसी चुप – चाप वापस चला गया .
एक बार मुल्ला नसरुद्दीन के एक मित्र जो कि व्यापार करने के लिए किसी दूसरे देश को जा रहा था उसने मुल्ला से कहा कि क्यों नहीं तुम अपनी ये अंगूठी मुझे दे देते ताकि जब तक मैं तुमसे दूर रहूँगा तो जब जब इस अंगूठी को देखूंगा मुझे तुम्हारी याद आयेगी ।
इस पर मुल्ला ने कहा देखो अगर मैं तुम्हे अंगूठी देता हूँ और तुम इसे खो दोगे तो निश्चित ही मुझे भूल जाओगे और क्या ये अच्छा नहीं है मैं तुम्हे मना कर देता हूँ और तब जब भी तुम अपनी ऊंगली को खाली खाली देखोगे तो तुम्हे याद आयेगा कि तुमने मुझसे अंगूठी मांगी थी लेकिन मैंने तुम्हे दी नहीं थी इसलिए तुम पहले की अपेक्षा कंही अधिक मुझे याद रख पाओगे |
एक बार के गाँव के बाहर एक फ़कीर आया जिसने ये दावा किया कि वो किसी भी अनपढ़ को अपनी विद्या से कुछ ही पलों में साक्षर कर सकता है जिसके बाद वो कोई भी किताब या साहित्य को पढ़ सकता है |
मुल्ला ने ये सुन तो दौड़ा दौड़ा वंहा पहुंचा और फ़कीर से बोला कि क्या आप मुझे साक्षर कर सकते है | इस पर फ़कीर ने कहा हाँ क्यों नहीं इधर आओ | मुल्ला पास गया | फ़कीर ने मुल्ला के सर पर हाथ रखा और कुछ देर बाद उस से बोला कि अब जाओ और कुछ पढो |
अपने गाँव लौटा और आधे घंटे बाद वापिस हांफता हुआ आया | क्या हुआ इतने बदहवास क्यों हो और क्या तुम अब पढ़ सकते हो ? लोग पूछने लगे तो मुल्ला ने जवाब दिया “हाँ मैं पढ़ सकता हूँ पर मैं ये बताने नहीं आया हूँ मुझे ये बताओ वो ढोंगी फ़कीर कंहा है ?
लोग कहने लगे फ़कीर ने तुम्हे कुछ ही मिनटों में पढने लायक बना दिया और तुम उन्ही को ढोंगी कह रहे हो शायद तुम पागल हो गये तो तो मुल्ला ने जवाब दिया मैंने जाते ही जो किताब पढ़ी उसमे लिखा हुआ है “सभी फ़कीर ढोंगी और बदमाश होते है ” इसलिए मैं उस फ़कीर को ढूंढ रहा हूँ | सब लोगो ने माथा पीट लिया |
एक दिन की बात है । कड़ाके की ठण्ड पड़ रही थी जबकि एक भरी कपडे पहने हुए आदमी ने क्या देखा कि ने नहीं के बराबर कपडे पहने है और बाहर घूम रहा है ।
वह व्यक्ति मुल्ला के पास गया और बोला कि “मुल्ला ! ऐसा क्यों है मेने इतने सारे कपडे पहले हुए है फिर भी मुझे ठण्ड लग रही है जबकि तुमने कड़ाके की ठण्ड में न के बराबर कपडे पहने है फिर भी लग रहा है तुम्हे कोई परवाह नहीं है ।
ने दार्शनिक अंदाज़ में जवाब दिया ” मेरे पास और कपडे नहीं है इसलिए मैं ठण्ड को महसूस करने में सक्षम नहीं हूँ जबकि तुम्हारे पास बहुत सारे कपडे है इसलिए तुम ठण्ड को महसूस करने के लिए स्वतंत्र हो ।” यही वजह है कि मुझे ठण्ड नहीं लग रही है ।
एक बार एक धार्मिक नेता ने बाकी लोगो के साथ साथ को शाम के भोजन और उपदेश पर बुलाया । मुल्ला ने उस दिन कुछ अधिक नहीं खाया था इसलिए उसके बुलाये जाने पर वो खुश भी हुआ कि चलो आज तो कुछ अच्छा खाने को भी मिलेगा सो मुल्ला ख़ुशी ख़ुशी वंहा पहुंचा ।
काफी देर हो गयी उस धार्मिक गुरु ने लोगो के आने के बाद प्रवचन शुरू किया तो एक के बाद विषयों पर बोलता चला गया जबकि मुल्ला ने देखा कि दो घंटे बीत जाने पर भी सभा विसर्जन नहीं हुआ तो मुल्ला को परेशानी होने लगी । एक एक मिनट जैसे जैसे बीतता मुल्ला को चिढन होने लगी ।
काफी देर बाद भी जब धार्मिक गुरु का भाषण बंद नहीं हुआ तो ने बीच में से उठकर कहा कि “क्या मैं कुछ पूछ सकता हूँ ?” धार्मिक गुरु ने सोचा मुल्ला जरुर कुछ धर्म सम्बन्धी विषय पर सवाल पूछना चाहता है इसलिए उसने बोला कि ‘हाँ तुम कुछ भी पूछ सकते हो ।”
इस पर मुल्ला ने जवाब दिया क्या आपकी इन कहानियों में कभी किसी ने खाना भी खाया है ।
एक बार दिन के उजाले में चादर बिछा कर मस्ती में आंखे बंद करके सो रहा था उसे नींद आये उस से पहले एक आदमी अत है और मुल्ला से पूछता है ” क्या तुम सो रहे हो ??”
मुल्ला ने आंखे खोले बिना जवाब दिया “क्यों क्या काम है ?”
तो दूसरे व्यक्ति ने कहा “मैं सोच रहा था कि तुम मुझे तीन सौ रूपये उधार दे दोगे तो मैं तुम्हे कल लौटा दूंगा ।”
इस पर मुल्ला ने कहा चलो तुम्हारे पहले वाले सवाल का जवाब देता हूँ तुमने पूछा था “क्या मैं सो रहा हूँ ?? तो हाँ मैं सो रहा हूँ सो अब मुझे अकेला छोड़ दो ।”
एक बार गाँव के बीच में चौपाल में बैठा हुआ था कि लोगो के एक समूह को उस से मस्ती करने की सूझी । लोगो ने उस से पूछा कि मुल्ला हमने सुना है तुम्हे गिटार भी बजाना आता है । मुल्ला ने कहा ” तुम लोग ने सही सुना है मुझे आता है ।” जबकि मैं तो दुनिया का सबसे अच्छा गिटार बजा सकता हूँ ।
मुल्ला ने ऐसा कहा जबकि उसे नहीं आता था इसलिए के हाँ कहने पर लोगो ने सोचा ये अच्छा मौका है मुल्ला का मजाक बनाने का क्योंकि वह अक्सर ऊट पटांग बाते करता रहता है जबकि अपने तर्क की वजह से हर बार बच निकलता है । इसलिए लोगो ने उसे उसी वक्त गिटार लाकर दे दिया कि वो उन्हें बजाकर दिखाए ।
मुल्ला ने गिटार हाथ में लिया और गिटार की एक ही तार को लेकर बजाने लगा इस पर काफी देर तक उसे ऐसा करते देखते हुए लोगो ने कहा मुल्ला गिटारवादक तो इन सारी तारों का इस्तेमाल करते हुए धुनें बजाया करते है जबकि तुम केवल एक ही तार का उपयोग कर रहे हो ।
मुल्ला ने जवाब दिया वो लोग गिटार में सही धुन की खोज में तरह तरह की तारों का इस्तेमाल करे है जबकि मैंने पहले से ही उस धुन को खोज लिया है तो मैं उन जैसे क्यों करू ।
एक दिन की पत्नी ने मुल्ला से कहा “कितना अच्छा हो अगर आप एक गाय ले लें ताकि हम लोग रोज दूध आराम से पी सकें ?” इस पर मुल्ला ने कहा ये नहीं हो सकता क्योंकि हमारे बाड़े में पहले से ही मेरे प्रिय गधे के लिए जगह कम है सो मैं ये नहीं कर सकता ।
इस पर मुल्ला की पत्नी नाराज हुई और जब तक नहीं मानी जब तक मुल्ला ने अपनी पत्नी को गाय लाने का वादा नहीं कर दिया । मुल्ला अगले दिन बाजार गया और गाय को खरीद लाया । और जैसे उसने सोचा था गाय को ले आने के बाद उसके गधे के लिए रहने का स्थान कम हो गया इसलिए मुल्ला जरा भी खुश नहीं हुआ ।
कुछ दिनों बाद एक रात खुदा से ये प्रार्थना करने लगा कि हे खुदा ” इस गाय को उठा ले ताकि मेरा गधा अच्छे से बाड़े में रह सके ” अगले दिन मुल्ला जब अपने बाड़े में गया तो क्या देखता है कि उसका गधा मरा हुआ है देखकर मुल्ला बहुत दुखी हुआ और सोचने लगा ये तो मैंने कब चाहा था । निराश मुल्ला ऊपर देखकर भगवान से कहने लगा कि मेरा इरादा आपका अपमान करने का नहीं है लेकिन फिर भी मैं ये पूछना चाहूँगा कि क्या आप ये बताना चाहते हो कि इतने सालों बाद भी आपको गधे और गाय में फर्क नजर नहीं आता ।
एक बार मुल्ला नसीरुद्दीन का गधा खो गया | जो उसे बहुत ही प्रिय था । सब जगह दूंढा लेकिन फिर भी मुल्ला के हाथ निराशा ही लगी । गाँव के लोग भी मुल्ला नसीरुद्दीन की मदद के लिए आगे आये और पूरा गाँव खोज डाला गया लेकिन मुल्ला नसीरुद्दीन का गधा कंही नहीं मिला इस पर लोग भी हताश होकर कहने लगे गाँव में तो कंही नहीं है इसका मतलब तीर्थ यात्रा जाने वाले कारवें के साथ कंही निकल गया है सो उसे और खोजना भी व्यर्थ है कहकर वो अपने अपने घरों को चले गये ।
मुल्ला नसीरुद्दीन ने सोचा जब इतना खोज लिया है तो एक आखिरी उपाय और करलूं यह सोचकर वह अपने हाथों और पेरो के बल गधे के जैसे ही खड़ा हो गया और इधर उधर घूमने लगा और अपने घर मकान बगीचे का चक्कर लगा कर वह ठीक उसी गड्ढे के पास पहुँच गया जिसमे उसका प्रिय गधा गिरा हुआ उसे मिल गया ।
गाँव वाले सब हैरान हुए कहने लगे मुल्ला ये कौनसी तरकीब तुमने निकली हद ही हो गयी । तो मुल्ला कहने लगा जब आदमी बन गधे को खोजा तो कंही नही मिला तो सोचा कि गधे की कुंजी आदमी के पास तो है नहीं सोचकर मैं मन में भावना की मैं गधा हूँ और गधा होता तो कन्हा कन्हा जाता और कंहा दूसरे गधे को तलाश करता और मुझे मेरा गधा इस गड्ढे में पड़ा हुआ मिल गया । मुझे नहीं पता मैं कैसे इस गद्दे के पास आया लेकिन बस ये हो गया ।
एक दिन एक व्यक्ति एक पेड़ पर चढ़ गया लेकिन थोड़ी देर बाद उसने जाना कि नीचे उतरना उतना आसान नहीं है और खुद को फंसा हुआ पाया जितना कि ऊपर चढ़ना था तो वह व्यक्ति घबरा गया उसने काफी कोशिश की लेकिन फिर भी वो कुछ अधिक नहीं कर पाया । अब उसके पास केवल एक ही रास्ता था कि वो पेड़ से कूद जाये लेकिन पेड़ काफी ऊंचा था इसलिए उसे चोट लगने का भी भय था । इसलिए उसने आस पास के राहगीरों से मदद मांगी लेकिन किसी को नहीं सूझा कि क्या किया जाये ??
लोगो की भीड़ इक्कठा हो गयी तभी भीड़ में से आगे निकल कर आया और सबसे बोला घबराओ नहीं मेरे पास एक युक्ति है जिस से ये नीचे आ सकता है और उसने एक रस्सी उस आदमी की तरफ फेंकी और बोला कि ऐसा करो इस रस्सी को अपने कमर में बांध लो फिर मैं बताऊंगा कि आगे क्या करना है । इस पर लोग बोले ये कौनसी युक्ति है तो मुल्ला ने कहा कम से कम मुझ पर भरोसा तो रखो तो लोग चुप हो गये । थोड़ी देर बाद जब वो आदमी रस्सी अपनी कमर के बांध चुका तो ने रस्सी का दूसरा छोर खींच कर उसे नीचे गिरा दिया और उस आदमी को बहुत चोटें आई इस पर लोगो ने पर गुस्सा किया और चिल्लाते हुए बोले मूर्ख ये क्या किया है तूने ?
मुल्ला बड़ी सहजता से बोला कि मैंने पहले भी एक आदमी की इसी विधि से जान बचायी है लोगो ने पूछा क्या तुम सच कह रहे हो इस पर सिर खुजलाते हुए बोला हाँ मैंने ये पहले भी किया है लेकिन मैं इस बात के लिए उलझन में हूँ कि मैंने उसे कुँए में से बचाया था ये पेड़ पर से ?
एक दिन गाँव के मुखिया के पास गया और बोला कि मैं अपनी पत्नी के रोज़ रोज़ के तानों से तंग आ गया और बोला कि मैं चाहता हूँ कि मैं अब उस से तलाक ले लूँ ।
मुखिया ने मुल्ला नसरुद्दीन से उसकी पत्नी का नाम पूछा तो मुल्ला नसरुद्दीन ने जवाब दिया “मैं नहीं जानता ।”
मुखिया हैरान रह गया और उसने मुल्ला नसरुद्दीन से पूछा कि तुम लोगो की शादी को कितना वक़्त हो गया है इस पर मुल्ला नसरुद्दीन ने जवाब दिया “ये कोई पांच साल से कुछ ऊपर हो गये है ।”
मुखिया ने फिर हैरान होकर पूछा इतनी लम्बी अवधि में तुम अपनी पत्नी का नाम तक नहीं जान पाए तो मुल्ला नसरुद्दीन ने सहज भाव से जवाब दिया “हाँ ये सही है मुझे नहीं पता ।
मुखिया ने से पूछा कि ऐसा क्यों है ? तो मुल्ला ने कहा वो इसलिए क्योंकि मेरा मेरी पत्नी के साथ कोई सामाजिक नाता नहीं रहा है कभी भी ।”
मुल्ला नसीरुद्दीन की पत्नी गर्भवती हुई और उसने मुल्ला नसीरुद्दीन से इस बारे में कहा कि अब हमे थोड़ी सावधानी बरतनी चाहिए क्योंकि कभी भी प्रसव हो सकता है ।
एक रात को दोनों सोये हुए थे और मुल्ला नसीरुद्दीन की पत्नी ने मुल्ला नसीरुद्दीन की और मुहं करके कहा कि मुझे प्रसव पीड़ा हो रहा है इस पर मुल्ला झट से उठा और जल्दी से जाकर मोमबत्ती जला ली । क्योंकि वह अपने नये जन्मे बच्चे को देखना चाहता था ।
थोड़ी देर में उसकी पत्नी ने एक बच्चे को जन्म दिया तो मुल्ला क्या देखता है कुछ ही पलों के बाद उसे दूसरे बच्चे की किलकारी सुनाई दी और ऐसे ही थोड़े समय के अंतराल के बाद उसकी पत्नी ने तीसरे बच्चे को जन्म दिया ।
तीनो बच्चो को देखने के बाद मुल्ला नसीरुद्दीन ने मोमबती बुझा दी तो उसकी पत्नी ने उस से सवाल किया कि तुमने ऐसा क्यों किया ?
मुल्ला नसीरुद्दीन ने जवाब दिया तुमने देखा नहीं जब तक मोमबत्ती जल रही थी तुमने एक के बाद एक तीन बच्चो को जन्म दिया अगर मैं मोमबती न बुझाता तो न जाने कितने बच्चे और जन्म लेते ।
मुल्ला नसीरुद्दीन और उसकी पत्नी रात को सो रहे थे । देर रात को का एक बच्चा रोने लगा इस पर मुल्ला की पत्नी ने कहा “जाओ और बच्चे को संभालो वो रो रहा है तुम्हे दिखाई नहीं देता ।” वह अकेले मेरा नहीं है आधा तुम्हारा भी है ।
इस पर मुल्ला नसीरुद्दीन ने नींद में ही जवाब दिया “तुम चाहो तो जाकर अपने आधे बच्चे को चुप करवा सकती हो क्योंकि मैं तो अपने वाले आधे बच्चे को रोते हुए देखना पसंद करता हूँ ।”
की पत्नी ने अपना माथा पीट लिया
एक दिन गाँव के बाहर बैठा हुआ था कि किसी दूसरे शहर से एक आदमी से उसकी भेंट हुई ।मुल्ला नसरुद्दीन ने उसके आने का प्रयोजन पूछा । कुछ देर वार्तालाप के बाद उस व्यक्ति ने मुल्ला नसरुद्दीन से कहा कि मेरे पास सब कुछ है “पैसा धन दौलत और खुशियों के सारे साधन भी” लेकिन फिर भी मैं खुश नहीं हूँ मैं अक्सर ख़ुशी की तलाश में निकल पड़ता हूँ ।
तो मुल्ला ने उस से सवाल किया तो क्या वो तुम्हे मिली । नहीं ! उस व्यक्ति ने मुल्ला को जवाब दिया ।
इस पर मुल्ला नसरुद्दीन ने बातों ही बातों में उसके हाथ से उसके बैग को छीना और वंहा से नो दो ग्यारह हो गया वो आदमी मुल्ला के पीछे जब तक दौड़ा जब तक कि मुल्ला नसरुद्दीन उसकी आँखों से ओझल नहीं हो गया ।
मुल्ला नसरुद्दीन ने थोडा आगे जाकर बैग को सड़क पर रखा जन्हा से वो उस आदमी को दिखाई दे सके और खुद एक पेड़ के नीचे छुप कर बैठ गया । थोड़े देर बाद उस व्यक्ति ने उसे ढूंढ लिया और उसे पीटने ही वाला था कि मुल्ला नसरुद्दीन ने उस बैग की तरफ उसे इशारा किया तो उस आदमी के चेहरे पर मुस्कान फ़ैल गयी । और बैग मिल जाने की ख़ुशी में वो खुशी से नाचने लगा ।
कुछ देर बाद उस व्यक्ति ने से ऐसा करने की वजह पूछी तो मुल्ला नसरुद्दीन ने उसे जवाब दिया यह एक तरीका था तुम्हारी खुशियों से मुलाकात करवाने का जबकि तुम तो कह रहे थे तुम्हे आज तक वो आनंद नहीं मिला जो तुम चाहते थे जबकि अभी तो तुम ख़ुशी से नाच रहे थे ।
इस पर उस व्यक्ति को अहसास हुआ कि सच में खुशिया तो हमारे आस पास ही है हम केवल फालतू की भागदौड़ में जिन्दगी को खो देते है जबकि अगर हम अपने आस पास ही खुशियों की तलाश करे तो जान जायेंगे कि वो हमसे दूर कभी थी ही नहीं ।
की पहली पत्नी के गुजर जाने के बाद उसने दूसरी शादी की । एक दिन वो दोनों पति पत्नी सो रहे थे कि उसकी नई पत्नी ने से कहा कि “क्या तुम जानते हो मेरा पहले वाला पति बहुत आदर्श पति था ।”
मुल्ला नसरुद्दीन से ये सहा नहीं गया उसने जवाब दिया ” मेरी पहले वाली पत्नी तुमसे अधिक सुंदर और भली थी ।”
मुल्ला नसरुद्दीन की पत्नी ने जवाब दिया “मेरे पहले पति का कपडे पहनने का सलीका बहुत सही था ।”
मुल्ला बोला मेरी पहले वाली पत्नी भी बहुत कमाल का खाना बनाती थी ।
मुल्ला नसरुद्दीन की पत्नी बोली मेरे पहले वाला पति गणित में बहुत तेज था ।
मुल्ला बोला मेरी पत्नी भी गजब की प्रबंधक थी और घर के सारे काम काज बड़े अच्छे से सम्भाल लेती थी और उसके होते मुझे लेशमात्र भी किसी चीज़ के विषय में कभी सोचना नहीं पड़ा ।
इस प्रकार एक दूसरे के पिछले साथी के बारे में उनका विवाद काफी बढ़ गया तो मुल्ला ने अपनी पत्नी को धक्का देकर बेड से गिरा दिया और उसे बहुत चोटें आई ।
इस पर मुल्ला नसरुद्दीन की पत्नी उसे गाँव के पंचायत में ले गयी और जज से न्याय की गुहार की । तो जज ने दोनों को अपना अपना पक्ष रखने को कहा । मुल्ला की पत्नी ने उसे पूरी बात बताई तो जज अब मुल्ला नसरुद्दीन की और मुखातिब हुआ और बोला कि बताओ अब इस विषय में तुम्हे क्या कहना है ।
मुल्ला ने बड़े धीरज से जवाब दिया हम दोनों बड़े आराम से तब तक बेड पर सो रहे थे जब तक कि इसका पहले वाला पति और मेरी पहले वाली पत्नी बीच में नहीं आ गयी । फिर बेड हम दोनों के लिए छोटा पड़ गया और इसने नीचे गिर कर चोट खायी ।
एक दिन अपने घर में सो रहा था । थोड़ी ही देर में उसकी पत्नी ने उसे जगाया और डरे हुए स्वर में उस से बोला कि मुल्ला उठो घर में चोर आया है । इस पर मुल्ला नसरुद्दीन ने खीजते हुए अपनी पत्नी से कहा “क्या हुआ तो आया है और वैसे भी हमारे घर में कुछ ऐसा नहीं है जो उसके काम का हो सो जो उसे करना है करने दे यही अच्छा है ।”
इस पर मुल्ला नसरुद्दीन की पत्नी ने कहा “नहीं चलो उसे पकड़ते है ।” मुल्ला ने अपनी पत्नी को डांट लगाई और गुस्से भरे स्वर में बोला कि बेतुकी बाते मत कर अगर घर में कुछ है भी जो अच्छा है तो उसे चुराने दे उसके बाद मुझसे कहना अगर कीमती कुछ हुआ तो मैं उस से चुरा लूँगा ।
एक दिन मुल्ला नसीरुद्दीन अपने दोस्त के साथ कंही जा रहा था तो जब वो एक झील के किनारे से गुजर रहे होते है मुल्ला का पैर फिसल जाता है और वो झील में गिरते गिरते बचा क्योंकि उसके आगे आगे चल रहे उसके दोस्त ने उसे गिरने से बचा लिया |
वो दिन तो ठीक लेकिन उसके बाद जब वो आपस में मिलते तो इस बात का जिक्र उसका दोस्त जरुर कर देता जिसकी वजह से मुल्ला नसीरुद्दीन परेशान हो गया और सोचने लगा इस अहसान से मुक्ति कैसे प्राप्त की जाये | इस पर मुल्ला को एक विचार आया |
मुल्ला एक दिन अपने दोस्त को उसी झील पर ले गया और वंहा ले जाकर खुद समेत कपड़ो और जूतों के उस झील में खुद गया और जब वह पूरी तरह भीग गया तो अपने दोस्त को चिल्लाकर कहने लगा देखो अगर तुमने उस दिन मुझे नहीं बचाया होता झील में गिरने से तो अधिक से अधिक मेरी ये हालत हो सकती थी | इसलिए भगवान के लिए अब उस बारे में बात करना बंद करो उस बारे में याद दिलाना बंद कर दो |
एक दिन मुल्ला एक अखरोट के पेड़ ने नीचे बैठा हुआ था तो क्या देखता है थोड़ी दूर पर एक तरबूज की बेल खेत में लगी हुई है | मुल्ला के दिमाग में उसी समय एक सवाल ने दस्तक दी | मुल्ला ने भगवान से कहा माफ़ कीजिये लेकिन मैं ये पूछना चाहूँगा और ऊपर देखते हुए मुल्ला ने कहा कि कमाल है कितनी अजीब बात है भगवान की अपने इतना बड़ा पेड़ बनाया है जिस पर तो छोटे छोटे अखरोट लगे है | लेकिन एक बड़ा तरबूज एक पतली सी बेल के साथ लगा हुआ है लगता है आप में समझ की थोड़ी कमी है | क्या कोई और रास्ता नहीं हो सकता था |
मुल्ला ये कह ही रहा था कि थोड़ी देर में तेज हवा चली और एक अखरोट पेड़ से टूटकर मुल्ला के सिर पर गिरा और और मुल्ला ने कहा ‘आह’ मुझे लगता है ये प्रकृति कितनी सही है अगर ऐसा होता कि तरबूज उस बेल की जगह इस पेड़ पर लगा होता तो संभव था कि इतने ऊंचे से मेरे सिर पर इसके गिरने से मेरी मौत हो जाती | इसलिए मैं जितना सोचता हूँ प्रकृति वैसी तो नहीं है जो है वो सही है |
मुल्ला नसीरुद्दीन एक दिन अपने घर के बाहर खड़ा था तो उसका एक पडोसी उसके पास अपनी समस्या को लेकर आता है और मुल्ला से कहता है मुल्ला मेरे साथ एक बहुत बड़ी समस्या है और तुम एक बुद्धिमान व्यक्ति हो इसलिए मुझे लगता है तुम मेरी समस्या का समाधान कर सकते हो |
मुल्ला ने उस व्यक्ति को कहा ‘बताओ तुम्हारी समस्या क्या है ‘? उस व्यक्ति ने कहा मेरे घर में जगह की बहुत समस्या है और मैं और मेरी पत्नी तीन बच्चो के साथ मेरी सास भी है जिसकी वजह से हम सब बेहद परेशान है | मुल्ला ने कोई बात नहीं चिंता मत करो एक बात बताओ क्या तुम्हारे घर में मुर्गे है |
‘हाँ है ‘ उस व्यक्ति ने जवाब दिया तो मुल्ला ने कहा उन्हें भी अपने रहने वाली जगह में छोड़ दो इस पर उस व्यक्ति ने मुल्ला से कहा कि पहले से ही मेरे घर में बहुत कम जगह है इसलिए ऐसा करने से और भी कम हो जाएगी | “तुम्हे मेरी सलाह से कोई समस्या है तो मत मानो ” मुल्ला ने कहा |
वह व्यक्ति जानता था मुल्ला एक बुद्धिमान व्यक्ति है तो कुछ न कुछ तो कारण है इसलिए ऐसा करने को कहा रहा है इस पर उस व्यक्ति ने मुल्ला के कहे अनुसार वो कर दिया | मुल्ला ने अगले दिन आने को कहा |
अगले दिन वो व्यक्ति मुल्ला के पास आया और कहने लगा कुछ भी फर्क नहीं पड़ा उलटे हालत और बुरे हो गये है अब और भी जगह कम हो गयी है तो मुल्ला ने उसे कहा कि अब एक काम और करो अपने गधो को भी घर में खुला छोड़ दो वह आदमी परेशान हुआ लेकिन उसने वो भी किया और अगले दिन आकर कहा हालत और भी बुरे हो गया है अब तो बिलकुल भी जगह नहीं बची है इस पर मुल्ला ने कहा एक आखिरी काम और करो फिर तुम्हारी समस्या खत्म हो जाएगी और उसने बकरियों को भी बाड़े से लाकर खुला छोड़ने को कहा तुम उस आदमी को बड़ा गुस्सा आया और कहने लगा कि ऐसा कैसे हो सकता है तो भी मुल्ला के कहने पर उसने किया |
अगले दिन वो आदमी मुल्ला को बुरा भला कहने को आया तो मुल्ला ने उस से कहा अभी एक आखिरी काम करो तुम सब को घर से बाहर बड़े में जानवरों को बांध दो और कल आकर मुझे बताना कि घर के हालत कैसे है इस पर वह व्यक्ति चला गया |
अगले दिन वो बड़ा ही खुश होकर आया कि मुल्ला हालाँकि जगह तो उतनी है लेकिन फिर भी ऐसा लगता है कि अब घर खुला खुला सा हो गया है और हम अब सही से रह सकते है | तुम्हारे प्लान ने बहुत सही से काम किया है अब मैं समझ गया और वह व्यक्ति खुश होकर वंहा से चला गया
एक दिन मुल्ला नसीरुद्दीन अपने गधे पर उल्टा और मुहं करके बैठकर जा रहा था तो इस पर राहगीरों के एक समूह ने उसे रोका और उस से कहा कि मुल्ला क्या तुम्हे पता है तुम अपने गधे पर गलत बैठे हो इस पर मुल्ला ने कहा तुम लोगो पागल हो सारे के सारे |
लोग हैरान हुए और मुल्ला ने कहा ” मैं गलत नहीं हूँ यह मेरा गधा है जो उलटी और मुहं करके चल रहा है |” लोग चले गये और अगले दिन उन्होंने फिर जब मुल्ला को उसी तरह से बैठे हुए देखा तो मुल्ला से फिर वही सवाल किया और बोला कि मुल्ला क्या तुम अभी तक गधे के मुंह को सीधी दिशा में मुहं करना नहीं सिखा पाए तो इस पर मुल्ला ने उन लोगो से कहा कि तुम लोग मेरे पीछे क्यों लगे हो जबकि आज ऐसा है मेरा गधा तो सही दिशा में मुंह करके चल रहा है जबकि तुम लोग गलत दिशा में जा रहे हो इस पर लोगो ने अपना माथा पीट लिया और चुप होकर चले गये |