Samay ka Pahiya - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

समय का पहिया भाग - 02

अनुक्रम

१. नरभक्षी

२. ऐसे

३. ओवरटाइम

४. भय

५. खुरण्ड

६. ऐलान7ए7बगावत

७.गन्दगी

८. सफेद चोर ९. इज्जत के लिए १०. रुदन

११. एहसास १२. विवश मुट्ठी

१३. खोखलापन १४. ट्यूशन

नरभक्षी

उस जंगल में एक नरभक्षी पौधों का झुण्ड था। जो भी व्यक्ति उस राह से गुजरता, उन पौधों के फूल देखकर ललचा जाता। पास जाने पर पौधे उस व्यक्ति का सारा खून चूस कर उसे निष्प्राण कर देते थे। वे पौधे जितने अधिक लोगों का खून चूसते, उतने ही अधिक फलते7फूलते जाते।

एक दिन उस राह से एक क्षीणकाय बुढ़िया गुजरी। उस दिन सभी पौधों का पेट भरा था और फिर उस बुढ़िया में खून ही कितना! यह सोचकर कि फिर कभी जरूरत के समय सही; उन्होंने पूछा, 4बूढ़ी ताई, कहाँ चलीं?3

4अपने लड़के को खोज रही थी भैया!3 उसका व्यथित स्वर विरह में डूबा हुआ था।

4उसे हमने देखा है।3

4कहाँ है...?3 बूढ़ी आँखों में चमक बढ़ गई।

4आज तो हमें फुर्सत नहीं है, कल आना।3 झूठा आश्वासन दे, उन्होंने बुढ़िया को टरका दिया।

4अच्छा बेटा....!3 बुढ़िया के होंठ दुआ में बुदबुदाने लगे थे।

अब बुढ़िया प्रतिदिन अपने लड़के के विषय में पूछने के लिए उनके पास आने लगी। वे टरकाते रहे। एक दिन उस राह से कोई भी व्यक्ति न गुजरा, तो उन सबने उस बुढ़िया को उसके लड़के के पास भिजवा ही दिया।

वे जंगली पौधे अब इतने मोटे हो गए हैं कि कोई उन्हें राह से हटाने का सोचकर भी साहस नहीं कर पाता।

ऐसे

रात के गहराते अन्धकार में दो मित्र पार्क की सूनसान बैंच पर गुमसुम बैठे थे। इससे पूर्व वे काफी देर तक बहस में उलझे रहे थे। इस बात पर तो दोनो सहमत थे कि अब इस दुनिया में जिया नहीं जा सकता; इसलिए मरना बेहतर होगा। मगर मरें कैसे? काफी विचारने के बाद भी दोनों को आत्महत्या का कोई ढं़ग उपयुक्त नहीं लगा था।

4सुनो....! 3एक ने खामोशी तोड़ी।

4हूँ....3

4मेरी मानोगे?3

4क्या?3

4क्यों न हम जिन्दगी से लड़कर मरें।3

कुछ देर बाद दोनों मजबूती से एक7दूसरे का हाथ थामें; एक ओर बढ़े जा रहे थे।

ओवरटाइम

वह पिछले दो महीनों से सर्दी में ठिठुरता चला आ रहा था। वेतन में से बूढ़े माँ.बाप के लिए पैसे भिजवाने और राशन खरीदने के बाद इतना भी तो नहीं बच पाता था कि पूरे महीने मुन्ने का दूध खरीदा जा सके। आखिरी दिनों में तो कई बार उसे तीन मील का सफर पैदल ही तय कर दफ्तर पहुँचना पड़ता है।

दस दिन पहले जब दफ्तर में कार्य का अतिरिक्त भार आ पड़ा, तो उसे जानकर बड़ी खुशी हुई कि उनको एक सप्ताह के लिए ओवरटाइम स्वीकृत कर दिया गया है। लगभग सत्तर.अस्सी रुपये तो मिल ही जाएँगे, वह मन.ही.मन बजट बनाता रहा कि वह इस बार पत्नी के लिए भी कार्डिगन की ऊन खरीदेगा, चाहे उसे अपनी जरसी के लिए घटिया ऊन ही क्यों न लेनी पडे़!

वह घर से दफ्तर के लिये चला तो बहुत खुश था। ओवरटाइम का भुगतान आज होने की आशा थी। कल शाम को फाइल बडे़ साहब के पास भेज दी गई थी।

उसे अभी दफ्तर में बैठे कुछ ही समय हुआ था कि छोटे साहब ने उन सबको ओवरटाइम की फाइल में लिखा, बड़े साहब का नोट पढ़कर सुना दिया : चूंकि ओवरटाइम के लिए निर्धारित काम सन्तोषजनक ढ़ंग से समाप्त नहीं किया जा सका है, इसलिए स्टाफ को ओवरटाइम की राशि का भुगतान न किया जाए।

वह खड़ा सोच रहा है कि साहब के इस 1सन्तोषजनक1 शब्द की क्या व्याख्या है? वह यह भी जानता है कि वे पाँचों इसके विरूद्ध संघर्ष भी नहीं पाएँगे, क्योंकि उनमें से तीन ने बढ़िया सीट पाने के लिये बडे़ साहब की मक्खनबाजी के साथ ही भेंट भी चढ़ा रखी है।

उसे लगा, आधी बाजू के स्वेटर में उसके हाथ काँप रहे हैं।

भय

4यस....पुलिस स्टेशन....3 इंस्पेक्टर वर्मा ने रिसीवर उठाया और उसकी आँखें फोन पर टिक गईं।

4.....3

4हाँ....हाँ...ड्राइवर यहीं है...मैंने ही उसे अरेस्ट किया था.....3 उसकी आँखेंं चमक उठीं।

4.....3

3नहीं सर! यह एक्सीडेण्ट का नहीं, सरेआम कत्ल का मामला है। उसने ट्रक को जानबूझ कर .....3 उसकी आँखें उत्तेजित हो उठीं।

4.....3

4ओह....! ठीक है सर! आप कहते हैं तो एक्सीडेण्ट ही होगा...3 रिसीवर क्रेडिल पर रखते हुए उसकी आँखें बुझ गईं।

अब उसकी आँखें अपने कमरे से बाहर सींखचों के उस पार देख रहीं थीं। सामने सड़क पर एक ट्रक दनदनाता हुआ उसकी ओर बढ़ा आ रहा था....।

भय से उसकी आँखें मुँद गईं।

खुरण्ड

अपनी खोली का दरवाजा खोलकर जब वह अन्दर पहुँचा, तो सबसे पहले उसकी दृष्टि डाक से आए एक पोस्टकार्ड पर पड़ी। उसकी पुत्री को पुत्र7रत्न की प्राप्ति हुई थी। जानकर एक पल को तो उसके चेहरे पर खुशी उछली मगर तत्काल ही वह गहरी सोच में डूब गया।

4पहला लड़का हुआ है, छूछक भी भारी देनी पड़ेगी। मगर देगा कहाँ से?3 उसे लगा, जैसे उसके आभाव का गहरा घाव रिसने लगा है।

4दस दिन बाद ही तो बोनस मिलना है!3 सोचकर उसे लगा, जैसे उसके घाव पर खुरण्ड आता जा रहा है।

अगले दिन जब वह काम पर पहुँचा तो मिल के सदर दरवाजे पर ताला झूल रहा था। बाहर नोटिस बोर्ड पर लगे लॉक7आउट के नोटिस को पड़ते ही उसे लगा, उसके घाव पर से खुरण्ड छिलता जा रहा है।

ऐलान7ए7बगावत

अपने लिए इण्टरकॉम पर सन्देश सुन, वह फाइल को बगल में दबाए बॉस के चैम्बर की ओर चल दिया।

4यस सर?3 उसके स्वर में प्रश्न था।

4हूँ.....3 बॉस की गर्दन हौले से उठी और अकड़ गई, 4सिंघानियाँ एण्ड कम्पनी का जो टेण्डर पास हुआ था, उसका ऑर्डर अभी तक क्यों नहीं इशू हो पाया है?3

4सर! हमें पता चला है कि कम्पनी आज से कोई तीन साल पहले ब्लैक7लिस्ट कर दी गई थी, इसलिए.....।3

4मिस्टर गौड़! इट्स अवर वर्क; नॉट योर्स। आपका काम है7 हमारे आदेश को फॉलो करना। अण्डरस्टैड?3 भारी आवाज़ में रूतबा झलक रहा था।

4लेकिन सर....!4

4मैं बहस सुनने का आदी नहींं हूँ। अगर एक घण्टे के अन्दर7अन्दर ऑर्डर बनाकर मेरे पास नहीं पहुँचे तो मुझे स्टेनो को बुलाकर, आपका सस्पेंशन ऑर्डर डिक्टेट करवाना होगा। नाउ यू कैन गो।3

वह कुछ कहना चहता था, मगर बॉस ने उसे मौका दिए बगैर दरवाजे का रास्ता दिखा दिया।

बाहर निकला तो फाइल मरे चूहे के समान उसके हाथ में झूल रही थी। अपमान से वह बिलबिला रहा था। वह हॉल में अपनी सीट पर आकर बैठा तो चारों ओर से दृष्टियाँ उठकर उस पर चिपक गईं। उसने दराज में से एक प्लेन पेपर निकाला और टाइपराइटर पर चढ़ा दिया। एक7एक शब्द के साथ उत्तेजना उसके चेहरे पर खिंचती जा रही थी। कुछ देर बाद वह एक झटके से उठा और दरवाजा धकेल बॉस के सामने जा पहुँचा।

4हो गया!3 बॉस की दृष्टि उसकी ओर उठी।

4जी!4

4इतनी जल्दी...!3

4जल्दी नहीं जनाब! बहुत देर हो गई थी3 कहते हुए उसने वह कागज सहजता से बॉस के सामने रख दिया।

बॉस के चेहरे पर एक क्षण को जो खुशी झलकी थी, काफूर हो गई।

4व्हाट इज दिस?3 उन्होंने आग उगली।

4इट्स माइ रेजिगनेशन।4

4दैट्स राइट....मगर आपने इंस्टिट्यूशन और मुझ पर जो आरोप....।3

4ये कागज तक ही सीमित नहीं है जनाब! मैं पिछले दो सालों से त्रासदी और घुटन सहता रहा हूँ ताकि आप और आपकी इंस्टिट्यूशन के खिलाफ भ्रष्टाचार के तमाम सबूत इकट्ठे कर सकूँ, अण्डरस्टैड मिस्टर चोपड़ा!3 कहकर वह सधे हुए कदमों से बाहर निकल गया।

......लंच टाइम के बाद ऑफिस के सभी कर्मचारियों ने हैरत से देखा : बॉस पुलिस जीप में जा रहे थे; उनका दायाँ हाथ हथकड़ी की गिरफ्त में था।

गन्दगी

आगे.आगे बैण्ड, घोड़ी पर बैठा दूल्हा, सजे सँवरे बाराती और गहने.कपड़ो में लदीं औरतें7 यह सवर्णों की घुडचढ़ी थी। औरतों की भीड़ में से बार.बार एक भारी मुट्ठी हवा में ऊपर उठती और कुछ रेजगारी घोड़ी के आगे बिखर जाती। छनाक् के साथ जैसे ही चन्द सिक्के जमीन को छूते, कुछ अधनंगे बच्चे उन पर टूट पड़ते। कुछ चेहरों पर प्राप्ति की खुशी चमकती और कुछ बेचारी आँखें अगली बार मुट्ठी उछलने की प्रतीक्षा में ऊपर उठ जातीं।

इस बार की छनाक् के साथ ही एक सिक्का उछलकर पास की नाली में जा गिरा, तो एक सूखी मरियल.सी लड़की के हाथ ने उसका पीछा किया। हाथ अभी सिक्के तक पहुँचा भी नहीं था कि तभी एक भारी पाँव का जूता उस पर पड़ा और एक दर्द भरी चीख फिल्मी धुन बजाते बैण्ड के शोर में दब गई।

4ओह!3 युवक ने नजर लटकाकर देखा। गन्दगी से सना हाथ लाल होता जा रहा था। झट से उसने एक रुपये का चमचमाता सिक्का निकाला और दूसरे स्वस्थ हाथ पर टिका दिया।

लड़की फटी.फटी निगाहों से अपनी हथेली पर रखे सिक्के को घूर रही थी। तभी एक झटके के साथ उस लड़की ने वह सिक्का एक तरफ को उछाल दिया और अपना खून7कीचड़ से सना हाथ युवक के जूते से पोंछ दिया।

युवक अवाक् सा खड़ा अपने जूते को देख रहा था... और वह लड़की भीड़ से थोड़ी दूर खड़ी उसी को घूरे जा रही थी।

सफेद चोर

होली का त्योहार पास था। थोड़े से रंग, पिचकारी का डिब्बा तथा गुब्बारों के कुछ पैकेट लिए वह बूढ़ा पटरी पर बैठा था।

4पिचकारी कितने की है बाबा?3 मैं उसके पास जा खड़ा हुआ था।

4दो रुपए की।3 पिचकारी मेरे हाथ में देते हुए उसकी घबराई7सी दृष्टि चारों ओर घूम रही थी।

अचानक एक भगदड़7सी मच गई, 4कमेटी....कमेटी....!3 पटरीवाले अपना7अपना सामान समेटकर भागने लगे।

उसके कँपकपाते हाथ अभी समेट भी न पाए थे कि एक सिपाही डण्डे से जमीन ठोंकता हुआ उसके सामने आ डटा।

4....साले, हरामजादे! तुम्हारी माँ.... ये पटरी तुम्हारे बाप की है।3 भद्दी गालियों के साथ वातावरण में आतंक फैलने लगा।

वृद्ध ने अपने काँपते हाथों से उसकी मुट्ठी में कुछ रखा तो वह एक बार फिर डण्डे से जमीन ठोंकता हुआ आगे बढ़ गया। वृद्ध की क्रोध भरी तिरस्कृत दृष्टि उसकी पीठ में धँसती जा रहीं थीं।

मेरी हैरान आँखें अपनी ओर उठी देखकर उसके स्वर में तल्खी उभर आयी, 4हरामी पिल्ले! साली गोरमेण्ट ने सफेद चोर पाल रखे हैं....!3

इज्जत के लिए

उस दिन सरजू बाबू मिले तो बहुत थके7से लग रहे थे, उदास और टूटे हुए।

4क्या बात है सरजू बाबू! कुछ बीमार थे क्या?4

4हाँ, अनिल भाई! लड़की की शादी की चिन्ता बीमारी ही तो है। जहाँ भी बात करो, मुँह फाड़कर दहेज माँगते हैं। हम नौकरी7 पेशेवाले भला कहाँ से सब जुटाएँ।3

मैं जल्दी में था, नही ंतो शायद उनसे दहेज पर एक लम्बा भाषण सुनने को मिलता।

चार वर्ष बाद पुनः गाँव लौटा हूँ। मित्रों से मिलते हुए सरजू बाबू से भी मुलाकात होती है। इस बार न उनके चेहरे पर आक्रोश है और न ही वे थके हुए लग रहे हैं।

4लड़की की शादी कर दी सरजू बाबू?3

4हाँ भाई! सिर से बोेझ उतरा। अब तो लड़के की सगाईवाले चक्कर लगा रहे हैं। अभी7अभी एक उठकर गया है, एक लाख लगा रहा था मगर दूसरी जगह डेढ़ लाख की बात चल रही है।3

4लेकिन आप तो...3

4मैं किसी से माँग तो नहीं रही अनिल, फिर इज्जत के लिए यह सब तो....।4

रुदन

अर्से से बीमार पढ़े पति को एक रात धरती पर उतार लिया गया। सारा परिवार रोने7पीटने लगा था । नीरा को गहरा सदमा पहुँचा था। वह जड़ हो गई मगर उसकी रुलाई नहीं फूटी। प्रतिदिन वह गीता का पाठ करती थी, यह शायद इसी का प्रभाव रहा हो।

सियापे के मध्य दूर कोने में बैठी सास7ननद उसे सुनाते हुए बतियाने लगी थीं7

4रोएगी क्यों? इसकी तो मुराद पूरी हो गई।3 वे सिसक रहीं थीं।

4पीहर में जाकर मौज उड़ाएगी, रोए इसकी जूती। इसके मन में तो लड्डू फूट रहे हैं।3

4इसका क्या, दूसरा कर लेगी। राँड तो वो जिसका मर जाए भाई....।3 ननद ने घृणित स्वर में कहा।

अभी बात पूरी भी नहीं हुई थी, नीरा का हृदय फटने लगा और वह दहाड़ मार7मारकर रोने लगी।

अब सास7ननद के साथ सारा मोहल्ला उसे ढाढ़स दे रहा था।

एहसास

पार्क में बैठा वह देर तक अँधेरा उतरने की प्रतीक्षा करता रहा। दिन के उजाले में वह माँ के सामने नहीं पड़ना चाहता था। अँधेरे के आँचल में मुँह छुपाकर अब उसने घर में कदम रखा तो बराबर के कमरे से माँ के खाँसने का स्वर आ रहा था। वह दबे पाँव रसोई में घुस गया।

रोटियों पर ढँकी प्लेट चूहे ने गिरा ली थी और अब वह रोटी को खींचकर ले जाने के प्रयास में था; लेकिन रोटिया लाल मिर्चों की चटनी से दबीं हुईं थीं। शायद चटनी को चख लिया था चूहे ने।

उसने झपटकर चूहे को भगाया। चूहे की जूठी लेकिन पेट में भी तो चूहे दौड़ रहे थे। वो रोटियाँ उठा कर खाने लगा।

तीनों रोटियाँ खाने के बाद भी उसकी भूख कम न हुई, तो उसे आश्चर्य हुआ कि उसकी भूख इतनी क्यों बढ़ गई है।

पास के कटोरदान से कपड़ा उठाकर देखा7 क्या उसके लिये गिनती की रोटियाँ बनाई जाती हैं?

दूसरे ही क्षण एक विचार ने उसे आटे के कनस्तर के पास ला खड़ा किया। खोलकर देखा7 वह भी खाली था। उसका चेहरा सफेद पड़ गया और उसे अपना पेट भारी लगने लगा।

माँ के खाँसने की आवाज बराबर आ रही थी। स्वयं को पारिवारिक अनभिज्ञता के बारे में सोच उसे गहरा दुःख हुआ। उसने निश्चय किया7 चाहे मजदूरी ही क्यों न करनी पडे़, कल से वह दो पेट का बोझ पूरी तरह से उठाएगा। उसे अपनी एम.ए. की डिग्री महज एक कागज का टुकड़ा प्रतीत होने लगी थी।

विवश मुट्ठी

4मोहन...!3 कक्षा में अध्यापक की कड़कड़ाती हुई आवाज गूँजी।

छात्र सहमकर अपने स्थान पर खड़ा हो गया।

4तुम्हारे हाथ में क्या है?3

4जी...जी...टॉफी।3

4तुम्हे कितनी बार कहा है, क्लास में टॉफी लेकर मत आया करो।3

क्रोध उगलते हुए वह छात्र के पास आ खड़े हुए, 4निकालो सब....।4

बच्चे ने सहमते हुए पाँच7छह टाफियाँ डेस्क पर रख दीं, तो अध्यापक उन्हें मुट्ठी में भींच कूडे़दान की ओर चल दिए।

कूड़ेदान में खुलती हुई मुट्ठी सहसा ठहर गई। पिछले सप्ताह से पप्पू हर रोज टॉफियों की जिद करता रहा है। पन्द्रह तारीख हो गई है, तन्ख्वाह मिले तब ना!

उन्होंने एक चोर दृष्टि कक्षा में बैठे छात्रों पर ड़ाली और उनकी मुट्ठी जीर्ण कोट की जेब में जाकर खुल गई।

खोखलापन

फिल्म बड़ी चर्चित थी। कमरे में ठसाठस भरे स्त्री.पुरूष और बच्चे एकाग्रता से टी.वी. देख रहे थे।

मध्यान्तर हुआ। रोजगार समाचारों के मध्य, फिल्म पर टीका.टिप्पणी होने लगी।

4टी.वी. पर तो ऐसी फिल्में देनी ही नहीं चाहिए....बच्चे बिगड़ते हैं।3

4घर में सभी बहन.बेटी एक साथ बैठती हैं। छी....छी....ऐसी फिल्म....!3

4राम....राम....! मुझमें तो बैठा रहना भी मुश्किल हो रहा है। लिहाज.शर्म तो अब घरों से मिट ही जाएगी।3

रोजगार समाचारों के बाद फिल्म फिर आरम्भ हुई। कमरा इस बार पहले से भी अधिक बोझ झेल रहा था।

ट्यूशन

मनोहर बाबू ने सोचा तो कई बार था, परन्तु आज बच्ची की फटी फ्रॉक देखकर उन्हें निश्चय करना पड़ा कि वह कल से ट्यूशनों का जुगाड़ करेंगे।

अगले दिन स्कूल में7

4क्यों बे, तुझे पास नहीं होना क्या?3

4हाँ गुरूजी!3 छात्र ने सकपकाते हुए कहा।

4अपनेे पिताजी से कहना कि तुझे हमारे पास ट्यूशन के लिए भेज दें।3

4मेरे पिताजी नहीं हैं, गुरूजी!3उसका स्वर बैठ गया था।

4घर का खर्च कैसे चलता है?3

4माँ मजदूरी करती है।3

4ओह! कोई बात नहीं, अपनी माँ से पूछ लेना बेटा!4 कहते हुए क्षण भर को अपने बेटे की शक्ल उनकी आँखों के सामने तैर गई।

हाथ की उठी बेंत नीचे झुकती चली गई।