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देह के दायरे भाग - 6

देह के दायरे

भाग - छः

दिसम्बर का महिना था...शरदावकाश होने वाला था | इन छुट्टियों में कॉलिज की ओर से छात्र-छात्राओं का एक समूह ‘स्नोफाल’ देखने के लिए शिमला जा रहा था |

अन्य छात्र-छात्राओं के साथ रेणुका ने भी इस भ्रमण के लिए अपना नाम लिखाकर एक निश्चित राशी जमा करवा दी थी | जाने की इच्छा तो पूजा की भी थी परन्तु वह अभी तक अपने घर से स्वीकृति प्राप्त करने का साहस नहीं जुटा पाई थी |

उस दिन वह कॉलिज के पीरियड समाप्त करके रेणुका के साथ घर जाने के लिए कॉलिज के दरवाजे से निकल ही रही थी कि दूसरी ओर से आते देव बाबू ने उन्हें पुकारा तो दोनों ठिठककर रुक गयीं |

“पूजा जी, आप शिमला-भ्रमण के लिए नहीं चल रही हैं क्या?” पास आकर देव बाबू ने पूजा से पूछा था |

“मैं नहीं जा सकूँगी |” उसने अपनी अप्सष्ट-सी असमर्थता प्रकट की |

“क्यों...?”

“शायद मम्मी मना कर दें...|”

“मम्मी से पूछा है...?” रेणुका ने प्रश्न किया |

“अभी तक तो नहीं |”

“क्यों...?”

“साहस ही नहीं हुआ मम्मी से पूछने का |”

सुनकर खिलखिलाकर हँस पड़ी थी रेणुका | हँसी कुछ थमी तो उसने कहा, “इसमें साहस की क्या बात है | तुम उनसे पूछो...मैं भी सिफारिश कर दूँगी, शायद बात बन जाए |”

“हाँ पूजा जी, आप साथ चलेंगी तो कम्पनी अच्छी बन जाएगी | हमने तो आपके साथ के लिए ही नाम लिखवाया था | आप नहीं चलेंगी तो शायद हमें भी अपना नाम वापस लेना पड़े |” न जाने कैसे कह गया देव बाबू! कितना आग्रह था उसके शब्दों में |

‘इच्छा तो मेरी भी यही है देव |’ मन ही मन बुदबुदायी थी पूजा परन्तु रेणुका की उपस्थिति में वह सिर्फ इतना ही कह सकी थी, “पूछ लूँगी अम्मी से, शायद मान जाएँ |”

“शायद नहीं पूजा जी, कल किसी भी तरह अपना नाम लिखा दो! रेणुका जी, आप मेरी ओर से भी मम्मी को सिफारिश कर देना |”

“आपकी ओर से सिफारिश करुँगी तो क्या इनकी मम्मी जाने की अनुमति दे देंगी?” मुसराकर देव बाबू की ओर देखते हुए रेणुका ने कहा था |

“ओह ! नहीं रेणुका जी मेरी ओर से नहीं, मेरा मतलब है आप अपना पूरा प्रयास करना कि इनकी मम्मी मान जाएँ |” हडबडा-सा गया था देव बाबू उसकी मुसकराहट से और रेणुका थी कि उसकी इस हडबडाहट पर खिलखिलाकर हँस पड़ी |

देव बाबू झोंपकर सामने सड़क की ओर देखने लगा था और पूजा की दृष्टि जैसे पृथ्वी से चिपक ही गयी थी | दो पल को दोनों के मध्य सिर्फ रेणुका की हँसी ही रह गयी थी |

“आप चिन्ता न करें देव बाबू! कल पूजा अपना नाम टूर के लिए अवश्य लिखा देगी |” चलते-चलते पूजा के स्थान पर रेणुका से ही इतना दृढ़ आश्वासन पाकर देव बाबू कुछ तो निश्चिन्त हो ही गया था |

पूजा की मम्मी तो शायद जाने की स्वीकृति न देती परन्तु उस दिन जब वह रेणुका के साथ घर पहुँची तो उसके पिताजी भी घर पर ही थे | पहले तो उसके पिताजी उसे भ्रमण की स्वीकृति देने में हिचकिचाए थे परन्तु रेणुका ने जोर देकर कहा था,

“अंकल, पूजा कोई अकेली थोड़े ही है...मैं भी तो जा रही हूँ | बहुत-सी और लड़कियों ने भी नाम लिखवाए हैं | पाँच-छः दिन की ही तो बात है...हाँ कर दीजिए ना!”

रेणुका ने इस आग्रह पर पूजा के पिताजी ना नहीं कर सके | अपनी स्वीकृति देते हुए कहा था उन्होंने, “बेटी, बाहर निकलकर बहुत होशियार रहना पड़ता है | सर्दी का मौसम है और तुम पहाड़ पर जा रही हो, अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना |”

अपने पिताजी की स्वीकृति पा पूजा बहुत खुश हुई थी | उस दिन बहुत अच्छे लगे थे उसे अपने पिताजी! प्रसन्नता के आवेग को मन में दबाए वह रेणुका के साथ कमरे से बाहर आ गयी | हँसी थी कि होंठों से फूटने को आतुर हो रही थी मगर संकोच उसके मुखरित होने में बाधक हो रहा था |

अगले दिन जब पूजा रेणुका के साथ कॉलिज जा रही थी तो जैसे खुशी से उसके पाँव जमीन पर नहीं पड़ रहे थे | मन खुशी से झूम रहा था और वह जैसे कल्पना के पंखों के सहारे उड़ी जा रही थी | रेणुका भी उसकी इस स्थिति पर मन ही मन हँस रही थी पर अपने स्वभाव के विपरीत आज वह चुप थी | शायद वह उसे छेड़कर उसकी कल्पना को भंग नहीं करना चाहती थी |

दोनों अभी कॉलिज पहुँची भी नहीं थीं कि राह में देव बाबू से साक्षात्कार हो गया |

“पूजा जी, हाँ कर दी मम्मी ने?” उसका पहला प्रश्न यही था |

“आपका क्या अनुमान है?” रेणुका ने पूछा |

“मुख की प्रसन्नता तो कह रही है कि मम्मी ने हाँ कर दी है |”

“देव बाबू इस स्थिति में कोई किसीको रोक पाया है क्या?” हँस पड़ी रेणुका |

“अच्छा!” आज वह भी उसकी हँसी में सम्मिलित हो गया था |

“देव बाबू! दुआ दो हमें...|”

रेणुका की अनकही अधूरी बात को समझते हुए देव बाबू ने कहा,

“आपने बहुत अच्छा किया रेणुका जी! आप दोनों के साथ अच्छी कम्पनी बन जाएगी | शुक्रिया तो मैं आपका क्या करूँ...|”

“शुक्रिया से काम नहीं चलेगा देव बाबू |”

“तो...|”

“एक कप गर्म-गर्म चाय |”

“ओह!” इस बार देव बाबू स्वयं को खिलखिलाकर हँसने से रोक नहीं पाया |

“आइए...अभी कॉलिज लगने में देर है, कैन्टीन चलती है |” देव बाबू के कहने के साथ ही तीनों कैन्टीन की ओर चल दिए |

“आपने तो पूजा को जादू से तैयार कर दिया रेणुका जी |” कैन्टीन में प्रवेश करते हुए देव बाबू ने कहा |

‘हाँ, यह जादू ही तो है |’ मन ही मन कह उठी पूजा और तीनों एक खाली मेज की ओर बढ़ गए |

कैन्टीन में अधिक भीड़ न थी | अधिकतर मेजें खाली पड़ी थीं | कैन्टीन का बेयरा शीध्र ही उनकी मेज पर आर्डर लेने के लिए आया |

“मूल के साथ ब्याज भी चलेगा क्या, रेणुका जी?”

“क्या?” रेणुका चौंकी |

“मेरा मतलब है चाय के साथ समोसे...|”

“हाँ, लेकिन ब्याज चक्रवृद्धि चलेगा |”

“क्या...मैं समझा नहीं |” इस बार देव बाबू चौंका |

“साथ में स्लाइस भी चलेंगे |”

एक खिलखिलाहट के मध्य बेयरा ऑर्डर लेकर चला गया | पूजा सोच रही थी कि कितनी निःसंकोच है रेणुका और एक वह है जो इतनी देर से एक शब्द भी नहीं बोल पाई है |

“आप इस फार्म को भर दीजिए पूजा जी |” देव बाबू ने अपनी डायरी से एक फार्म निकालकर देते हुए कहा |

“मैं आपका नाम भ्रमण के लिए लिखा दूँगा |” पूजा जी फार्म की ओर उठी प्रश्न-भरी दृष्टि का आशय समझते हुए देव बाबू ने कहा |

“लाइए!” पूजा सिर्फ इतना ही कह सकी और फार्म लेने के लिए हाथ आगे बढ़ा दिया | देव बाबू ने फार्म के नीचे लगी अपनी डायरी भी उसकी ओर बढ़ा दी |

पूजा ने देखा-फार्म तो पहले ही भर दिया गया था, उसे तो सिर्फ अपने हस्ताक्षर करने थे | उसकी दृष्टि देव बाबू के मुख की तरफ उठी | देव बाबू ने पेन खोलकर हस्ताक्षर करने के लिए पूजा की तरफ बढ़ा दिया |

बेयरा चाय तथा अन्य सामान रख गया था | पूजा ने समोसों को स्लाइस के मध्य रखकर उन्हें सैण्डविच का रूप दे दिया | तीनों अपने प्यालों को उठाकर चाय को घूँट भरने लगे |

“वहाँ सर्दी अधिक होगी, अपने गर्म कपड़े पूरी तरह से साथ ले लेना |” चाय पीते हुए देव बाबू ने हिदायत दी |

“आप साथ होंगे...ठण्ड का कुछ विशेष प्रभाव इसपर नहीं पड़ेगा |” रेणुका ने मुसकराकर चुटकी ली |

“मैं क्या करूँगा रेणुका जी?” देव बाबू ने भी उसे जान-बूझकर छेड़ा |

“आपके होते हुए इसपर ठण्ड का प्रभाव होना कठिन है |”

“क्यों, क्या मैं हीटर हूँ?”

“आप एक कोट अपने साथ अधिक रखना | आजकल लड़के-लड़कियों के कपड़ो में कोई विशेष अन्तर नहीं रह गया है |” रेणुका कहाँ पीछे रहने वाली थी |

“यानी मेरा कोट पहनाओगी इन्हें?”

“क्यों नहीं, दुसरे के कोट में सर्दी कम लगती है |”

“अनुभव से कह रही हो?” मुसकराकर देव बाबू ने व्यंग्य किया |

“नहीं, अनुमान से कह रही हूँ | अपने साइज का कोट तो हमें मिला ही नहीं है |” बिना किसी झिझक के रेणुका ने उत्तर दिया और तीनों चाय समाप्त कर उठ खड़े हुए |

देव बाबू ने कैन्टीन का बिल भुगतान किया और तीनों क्लास की तरफ चल दिए | कॉलिज में अवकाश से पूर्व आज अन्तिम दिन था | अधिकांश छात्र-छात्राएँ भ्रमण हेतु जा रहे थे | कल भ्रमण के लिए प्रस्थान किया जाना था इसलिए कक्षा में पढ़ाई के स्थान पर भ्रमण-सम्बन्धी चर्चा ही अधिक को रही थी | न तो छात्र-छात्राओं की आज पढ़ने में रूचि हो रही थी और न ही प्राध्यापकों का पढ़ाने का मूड था | कल भ्रमण के लिए तैयारी की जा सके इसलिए अवकाश भी आज दो घन्टे पूर्व ही घोषित कर दिया गया था |