Pyar ka Jurmana in Hindi Comedy stories by Ravi Gohel books and stories PDF | प्यार का जुर्माना

Featured Books
  • विंचू तात्या

    विंचू तात्यालेखक राज फुलवरेरात का सन्नाटा था. आसमान में आधी...

  • एक शादी ऐसी भी - 4

    इतने में ही काका वहा आ जाते है। काका वहा पहुंच जिया से कुछ क...

  • Between Feelings - 3

    Seen.. (1) Yoru ka kamra.. सोया हुआ है। उसका चेहरा स्थिर है,...

  • वेदान्त 2.0 - भाग 20

    अध्याय 29भाग 20संपूर्ण आध्यात्मिक महाकाव्य — पूर्ण दृष्टा वि...

  • Avengers end game in India

    जब महाकाल चक्र सक्रिय हुआ, तो भारत की आधी आबादी धूल में बदल...

Categories
Share

प्यार का जुर्माना

प्यार का जुर्माना

"कहीं दीप जले कहीं दिल" - ऐसे ही दो दिल में इश्क की आग जल चुकी है। आग का धुंवा कहां तक जाएगा? सभी को पता चल जाएगा - वो इश्क था। दो प्रेमी एक होने के दिए तैयार बैठे है।

हरबार प्यार की कसम लेनेवाले "नकुल" और "शितल" दुनिया को एक बनकर दिखलायेंगे ही। उसकी ट्रेन घर से सो कीमी. के दुरी पर पहुंच गई। घर से छुपकर शादी करनेवाले दोनों को अब राहत लग रही है। एक-दो हजार जेब में लेकर नकुल उसकी प्रेमिका शितल को लेके शहर से दुर चला गया। शादी के बाद की जिंदगी अदभुत होती है! उसका अहेसास मुसाफरी के दौरान ही हो गया। हरबार पुरी कोफी पीनेवाला नकुल पैसो का बचाव के लिए आज शितल के साथ आधी चाय मे से दो धुंट लगाकर खुश हो गया। आश्चर्य की बात तो वो थी की दोंनो के बिच में 'प्यार' था लेकीन ट्रेन की टिकीट नहीं थी। क्या पता कब चैकिंग आ जाए और जुर्माना भरना पडे। साहस पे साहस किए जा रहे थे। हर जिवन की चुनौति के लिए तैयार है पर इश्क छुटना नहीं चाहिए। एन्जिन की आवाज कम हुई, गाडी रूकती जा रही थी, प्लेटफोर्म आने से गाडी रूक गई। प्लेटफोर्म पे ना कोई आदमी या ना कोई की आवाज दुर तक सुनाई देती थी। ऐसे में दोनों ने वहीं बिना टिकीट का सफर खतम किया और ट्रेन छोडकर वहीं उतर गये। शितल फटाक से हाथमें थैली लेकर उतरने जा रही थी, नकुल सीट से खडा हुआ की उसकी पेन्ट सीट के किनार में फँसकर फट गई। अंत में दुसरे लोगो को पता ना चले उसकी वजह से आधा फटा पेन्ट में वो ट्रेन से उतर गया। तब तक तो शितलने कई आवाज लगा दी थी। वो अंधेरी रात ने दोनों के दिल में गभराहट पैदा करदी थी। किस्मत की कठनाई पहले से ही शुरू हो गई, शितलने उसके ड्रेस में से सेफ्टीपीन निकाली और नकुल के फटी पेन्ट की जगह लगाई ताकी सबको उसका बेक सीट का पाऊं जैसा भाग न दीखे। उसी टाईम वो दश्य पीछे से धर के बाहर निकलते स्टेशन मास्तरने देख लिया। मास्तर को कोई गंदी हरकत लगी जिससे उसने बडा सा पथ्थर उठाके फेंका। नकुल और शितल जल्दी वहाँ से भागने लगे -मुसीबत वही खडीथी!! शितल थोडी दुरी तक दौडी पर चप्पल तुट गया।

पेन्ट की सेफ्टी पीन ने लंबे वक्त साथ ना दीया, ऐसे फटा पेन्ट और बिना चप्पल की शितल। दोनों को एक दुकान के नीचे ही रात गुजारनी पडी। सुबह हुई बाजार से लूंगी खरीदकर नकुलने पहनली जिससे अलग वेश में कोई भी ना पहचाने। सडक पर ही दोनों ने इधर-उधर भटकते पाँच दिन निकाले। दिन गुजरते हे ब्रेड-पकौडे खा-खा के। न कीसीने हाल पुछा, न कीसीने आसरा दिया। एक-दो हजार जैसी मामुली मुडी साथ लेके निकले दोनों प्रेमी को यहीं तक जीनेमें सीर्फ तिनसों रूपिये बचाये थे।

भटक भटक के नकुल थक गया है। शितल को लगता था की कोई संबंधी सहारा देगा लेकीन वो भी तरकीब नाकाम रही। हम बोलते है ना, दुख के मारे बेहाल - दोनों उसी स्थिती में हो गये।

"नकुल मुझे पता नहीं की ऐसे फंस जाऐंगे"

"अभी तू चुप ही रहना शितल, जबान बंध रखना, मुझे कुछ सोचने दे" - नकुलने अपनी लुंगी को जोर से टाईट कीया और शितल नाक में से.... निकाल रही थी।

दोनों को एक-दूसरे पर गुस्सा जबरदस्त आ रहा था। लेकिन अब क्या? उसी वक्त शितल बोली,

"घर जाना है तो फोन करुं!" - नकुल की जबान की बात जैसे शितल बोली,

दो मिनीट दोनों ने आमने-सामने देखकर सोचा, बादमें शितल बोली,

"हा, तो तुम्हारे घर पहले फोन लगावो"

नजदीकि एस.टी.डी. बूथ में नकुलने अपने घर फोन लगाया और सब बीती बात बताई। मुंहमें बिना दाँतवाले उसके बापने इतना बोल डाला की नकुल को कुछ समज में नहीं आया। पता चल गया की घर के हाल बिगडे हुए है। समज में कुछ नहीं आया की आगे क्या बोले, ऐसे धर जाने का विकल्प हुआ केन्सल! सामने शितलने हिम्मत दिखाकर उसके धर पर फोन लगाया, शितल की माँ फोन पर ही रोने लगी और सभी परिस्थिती भूलकर दोनों को वापस घर बुलाया। पर वो 'लूंगीमेन' को शितल की माँ मोतीबाई पर भरोसा न आया।

"शितल तेरी माँ सच बोल रही हे, या फिर पकडने के लिए?"

"ओ लल्लु!! ऐसे सवाल मत करो, में भगवान नहीं की मुझे पहले से पता चल जाए"

"चमेली गर्म मत हो, सोच क्या करना है बाद में कुछ करते है।

बात की सच्चाई जानने के लिए नकुलने साँस मोतीबाई को फिर से फोन लगाया। फोन पर नकुल की आवाज गूंजी, "मम्मी, नकुल बात कर रहा हु" इतने शब्दो में साँस रो पडी, सामने नकुल को भी पिघला दिया। अंत में दोनों ने धर लौटने का फैसला किया।

हाथ में थैली, मैले कपडे और लूंगी में बिखरे बाल लेकर फिरसे बिना टिकट ही वो दोनों धर पहुंचे। नकुल के घरवालोंने तो मना कर दिया, शितल के घरने दोनों को संभाल लिया और टेका दिया ताकि फिरसे ये कदम ना उठे। शितल के माँ-बाप को पसंद आया। तब से "नकुल" और "शितल" - शितल की छोटी बहन "हिना", उसके माँ-बाप सभी एक साथ ही धर में रहते है।

***

इस तरहा "नकुल" कुदरती तौर से घरजमाई बन गया। "नया नौ दीन चला।" पांच आदमी क धर लेकिन पांचसो जैसा माहोल में नकुल की जिंदगी! शितल से भी खुबसुरत उसकी माँ अर्थात् नकुल की सास तो जैसे हिटलर होती जा रही थी। घर के काम से फ्री होने ही नहीं देती। मोतीबाई के सामने कोई भी कुछ नहीं बोल सकता और नकुल भी - आखिर लडकी की माँ जो ठहरी! कहां कुदरतने नखुल को फीट किया? दिन की शुरूआत सुबह में भी अजीब सी होती थी। नकुल खुद चाय बनाता बाद में सबको पिलाता और वो हाथ की बनी हुई चाय पीने के बाद पान-मसाला का कुचा चढाने के बाद जैसे दिन की शहनाई बजी हो। पहले तो मोतीबाई से नकुल दश की नोट हररोज ले जाता है क्युंकी जेब में भी कुछ तो होना चाहिएना!! बाद में तो उसकी पान-मसाले की बारी आती है। घर में सभी लोगो की आंख खुलते ही माहोल तंग हो जाता है। कोई किसी को न बुलाता - ना कोई बात करता। वर्ना झगडा होने में देर नहीं लगती। कोई अखबार पठ रहा होता, कोई हाथ में ब्रश लिए धुम रहा होता। मानो जैसे सरकारी होस्टेल हो। सुबह में प्रेशर कोई और को आता है और टोईलेट में धुस कोई और जाता है। पुराना बैठे-बैठै हवा को दुषित करता फिरता है। घर के हाल देखे तो घर नहीं कोई सार्वजनिक ठिकाना पता नहीं चलता।

"ओ कोई - उपर टंकी में पानी चढावो" - नकुल जब टोईलेट में जाता है तो अक्सर यहीं आवाज की सुर अंदर से आती है। परिस्थिती ही ऐसी हो जाती है, क्या करे बिचारा!! बारी ही अंत में आती है। पान-मसाला की असर इतनी आयुर्वेदिक जैसी होती है की बाद में वो रोक नहीं सकता। घर की खास बात तो ये है की पुरा घर चाय का इतना प्यासा है के ऐसा लगता हे की चाय पर ही जीते है सब लोग। हर एक-दो धंटे में पोट से चाय बनाते बनाते तपेली डामर की तरहा जला डाली है। चाय में सब की अलग अलग फरमाईश, अद्रक डालना - थोडी मीठी रखना - कडक बनाना। जब से नकुल घर का दामाद बना तब से चाय बनाने का शुभकाम उसकी जिम्मेदारी में आ गया है। महेमान के आते वक्त भी चाय तो नकुल ही बनाता है। सुबह में सबको चाय पीलाने के बाद ही घर से बाहर निकलना, उसका रोजाना नियम। उसके बाद बदबु फैलाते मैले कपडे पहनकर काम में झुट जाना। सुबह से दोपहर तक कलरकाम, दोपहर से रात तक मजुरी करना। रैल में माल-सामान चढाना उसका काम था। रात नौ बजे के बाद वो सब काम खतम होता है। बाद में नकुल जमाई एकदम बिना काम के(वैसे तो फ्री होते ही नहीं)। बाद मे घर का काम शुरू होता है। घर पर पहोंचते ही सबने उसके लिए लिस्ट तैयार रखी होती है। रगडा शितल की छोटी बहन "हिना" को खाना होता है पर वो मेल तो तभी आए जब नकुल घर पहुंचे। आखिर लेने जानेवाला इंन्सान तो चाहिए ना! शितल का बाप दो रूपिये की शिवाजी बिड्डी लेके फुंकता हे और मोतीबाई शब्जी लेने की लिस्ट पकडाती है। शितल का शैम्पु पुरा हो गया होता लेकीन नकुल के आने के टाईम ही याद आता है। हिटलर सास का एक भी रूपिया गलत जाना नहीं चाहिए(बुठ्ठी घर पहुंचते ही एक-एक रूपिये का हिसाब मांगती है, जैसे इन्कम टेक्षवाले हो)। बिचारे को जमाई से नोकर बना दिया। घर मोतीबाई चलाती है उसमें बिना पैसो की नोकरी नकुल कर रहा है। शितलने छोटी उंमर के कैसे व्रत किये होंगे की फल के रूप में नकुल मिल गया। सेवाभावी, संस्कारी और सबकी दांट सुननेवाला। शब्जी लेने जाता नकुल को दाम हटके याद रखना पडता है और बाजार में कौन सा नास्ता किया उसकी सारी डीटेइल देनी पडती है। एसी नकुल की खुबसुरत सास प्लास्टिक की खुरशी में बैठी बैठी ओर्डर पे ओर्डर देती रहती है।

नकुल की खराब परिस्थितीओ का कोई धी एन्ड नहीं है। फंस गया, जिवन बरबाद हो गया ये सब अनुभव होते हे पर अब क्या! पुरे घर में तीन रूप की रानी फटाके की तरहा धुमती है लेकिन कोई नकुल की जगह नहीं ले पाता। शितल पुरा दिन कुछ भी काम नहीं करती तब भी थक जाती है। सामने नकुल को थकने का नाम नहीं। रात के सोते समय तैयारी चलती सोने की और मोतीबाई कर्कश आवाज लगाती है - "चाय तो पिलावो नकुल"। फिर नकुल भोलाकर बनकर चाय बनाने में जुट जाता है। बिना काम कीए थकी शितल के पैंरो को मालिश करके सोने का टाईम होता है। सुबह के वक्त ये सब होशियार लोग अलार्म धडी भी नकुल के कानो के पास रखके सोते है। परेशानी की हद हो चुकी है।

शादी करके क्या उखाड लिया? जिंदगी की.... डाली। हुकमशाही से छुटना चाहता है अब नकुल। लाल कलर के गाउन में तीसो दिन दिखती मोतीबाई मिजाज की बहुत खराब है। उसको सुनना आता ही नहीं - बोलने में किसीको भी झाड देती है(साली! बुठ्ठी)। सबको आंख खुलते ही चाय शुरू हो जाती हे, जब तक सोने का टाईम ना हो। सबको चाय के बैरल में डुबा देना चाहिए।

नकुल को क्रिकेट खेलने का बडा शौक है। एक तो टाईम मिलता नहीं और मिले तो साथ में कोई खेलने को तैयार नहीं होता। परसो शनिवार को समय-संजोग सही बन गये तो एक मैच खेलने गया था। उस मैच में सबसे ज्यादा विकेट लेकर ट्रोफी मिली। ये पुरी धटना हिटलर को नहीं पता वर्ना मामला बिगड जाता। ट्रोफी को आठ महिना बारा दिन तक दोस्त के घर छुपाके रखना पडा, घर ले जाने की हिम्मत तो होनी चाहिएना! कभी जवानी पुरी ऐसे डर में न तबदील ना हो जाए ऐसा डर लगता है। हिटलर की बेटी मतलब शितल खुद हिटलर से भी कुछ कम नहीं है! दोनों को उसकी मुताबिक चलने वाली ही जिंदगी चाहिए।

वो सब तो ठीक पति-पत्नी का मिलन आज तक नकुल की मर्जी से नहीं हुआ है। तभी तो शादी के पांच साल तक बच्चे का नाम निशान नहीं है। उस दिन मैच जितने पर एक न्युझ पेपरने फोटो के साथ अखबार में खबर छाप दी। मुसीबत आ पडी...सवेरे काम पे जाने के बाद पता चला और वहीं से हिना को फोन करके परेशान कर दिया। पेपर को छुपाने का ओर्डर नकुल दे चुका था ताकि किसीको मैच के बारे में पता ना चले। हर दो धंटे में हिना का घर पर फोलोअप ले के पुछा।

और एक शितली। उसकी माँ से ज्यादा एडवान्स। छोटे से छोटी बात भी उसकी माँ से बता देती है, तब तक शांति नहीं मिलती। बात बात पे हिटलर के पास पेस कर देती है। दोस्तो, शादी मत करना ये नकुल आपको सलाह देता है। छुटने का जी करता है। ये सब नोकजोक से तंग आ गया। शादी से पहले 'जान' कहनेवाली शितल अब जान की परेशानी बन गई है। जान से जानवर बना डाला। शितल की शादी से सबसे ज्यादा खुश उसका बाप हुआ। क्युंकी अभी जो नकुल के साथ हो रहा है वो देवाभाई के साथ हो रहा था। अब उसकी डिग्री चली गई, नकुल आ गया ना!! तब से वो ओर्डर देने लगा है। पुरा दिन टोलियाँ की लंगोटी पहनकर धुमनेवाला पुराने गाने का शौकीन देवाभाई को शांति हो गई।

पुरे घर में हिना नकुल को मदद करती है। वो मदद करती है और हिटलर पानी फिरौती है। क्या करुं? सास है। ये सब बात नकुल उसके नजदीकी दोस्त से बता रहा था। उसी वक्त ससुर की आवाज आई,

"ओ....नकुल चाय बनाईए - कडकवाली"

फिर से नकुल काम में जुट गया। ऐसे ही जिंदगी का आनंद सब खतम ही हो गया जिवनमें। नहीं सुधरेगा कोई उस घरमें - नहीं सुधरेगा। चलो!! कृष्ण कनैया लाल की जय...

AUTHOR - रवि गोहेल