सुलझे...अनसुलझे - Novels
by Pragati Gupta
in
Hindi Moral Stories
सुलझे….अनसुलझे!!! (भूमिका) ------------------------ जब किसी अपरिचित की पीड़ा अन्तःस्थल पर अनवरत दस्तकें देने लगती हैं, तब उसकी कही-अनकही पीड़ा हमको उसके बारे में बहुत कुछ सोचने और जानने के लिए बार-बार उद्वेलित करती है ऐसे में वह समय ...Read Moreसाथ हमको कुछ जाना पहचाना-सा लगने लगता है जब हम उसकी पीड़ा को मन ही मन बार-बार दोहराते हैं तभी प्रत्यक्ष में संवादों के तार बांधने की कोशिश की जाती है फिर यह तार धीरे-धीरे अपनेआप ही बंधना शुरू हो जाते हैं बातचीत के दौरान न सिर्फ पीड़ाओं से जुड़े वाकये सामने आते हैं बल्कि उन वाकयों से भी पहले के
सुलझे….अनसुलझे!!! (भूमिका) ------------------------ जब किसी अपरिचित की पीड़ा अन्तःस्थल पर अनवरत दस्तकें देने लगती हैं, तब उसकी कही-अनकही पीड़ा हमको उसके बारे में बहुत कुछ सोचने और जानने के लिए बार-बार उद्वेलित करती है ऐसे में वह समय ...Read Moreसाथ हमको कुछ जाना पहचाना-सा लगने लगता है जब हम उसकी पीड़ा को मन ही मन बार-बार दोहराते हैं तभी प्रत्यक्ष में संवादों के तार बांधने की कोशिश की जाती है फिर यह तार धीरे-धीरे अपनेआप ही बंधना शुरू हो जाते हैं बातचीत के दौरान न सिर्फ पीड़ाओं से जुड़े वाकये सामने आते हैं बल्कि उन वाकयों से भी पहले के
सुलझे...अनसुलझे अंधी-दौड़ ------------- मैं उसको पिछले पच्चीस-तीस मिनट से एकटक गुमसुम दीवार की घड़ी को लगातार ताकते हुए देख रही थी। करीब-करीब सत्रह-अठारह वर्ष की उसकी उम्र होगी। उसकी आँखों में मुझे बहुत बेचैनी नज़र आ रही थी। बीच ...Read Moreउसके हाव-भाव देख कर मुझे महसूस हुआ कि शायद उसने अपनी माँ को चलने के लिए बोला क्योंकि उसका उठकर वापस बैठना, इस बात की सूचना दे रहा था। मां के कहने से वह बैठ गया| पर मुझे उसकी मनःस्थिति बार-बार विचलित कर रही थी| मैंने स्टाफ़ को बोलकर किशोर और उसकी मम्मा को अंदर बुलाया| माँ-बेटे चेम्बर में साथ-साथ
सुलझे...अनसुलझे अपने ------- अपने अस्पताल में काउंसिलर के रूप में काम करते हुए मुझे कई साल हो गए थे। काफी देर तक मरीज़ देखने के बाद, जब थकने लगी तो सोचा एक चक्कर कॉरिडोर का लगा कर आऊँ। बस ...Read Moreसोचकर चेम्बर से बाहर निकल आई। तभी आई. सी. यू. के बाहर एक मरीज़ की परिचिता को तेजी अंदर प्रविष्ट होते हुए देखा जिसके हाथ में छः से आठ माह का बच्चा था और उसके चेहरे पर हवाइयां उड़ती हुई दिखाई दी। मैं तीन या चार बार उधर से गुजरी मैंने उसको बदहवास हाल में तीन-चार चक्कर सीढ़ियों से ऊपर-नीचे
सुलझे...अनसुलझे आहत मासूमियत ------------------- करीब दो घंटे से एक युवती को अपने चेम्बर के बाहर गुमसुम बैठा देखकर मेरे मन में एक सवाल उठा क्यों बैठी है यह युवती? जबकि दो बार रिसेप्शनिस्ट ने उसको आवाज़ दे कर पूछ ...Read Moreक्या हुआ है आपको? क्या चाहती है आप? किसी परिचित का इंतज़ार है आपको? आपके यहां आने की वज़ह क्या है? पर उसने कोई जवाब नहीं दिया| चूंकि रिसेप्शनिस्ट की आवाज़ बुलंद थी तो मुझे उसका कहा हुआ तो सुनाई दिया| पर उस युवती ने क्या कहा मेरे कानों तक नही पहुँचा। मेरे भी मरीज़ लगातार आ-जा रहे थे तो
सुलझे...अनसुलझे कभी सोचा है -------------------- पांच-छ: महीनों से एक मरीज़ा का हर महीने ही आना हो रहा था| वह अपना प्रेगनेंसी टेस्ट करवाने हमारे ही सेंटर पर आती थी। जब भी आती तो मुझे अभिवादन करना नही भूलती थी। ...Read Moreनाम आशी नाम था। सैकड़ो मरीज़ो के बीच, जब कोई चला कर अभिवादन करने जैसी आदत बना लेता है तो हमेशा ही स्मृतियों में रहता है| ऐसे में औपचारिक रिश्तों में भी अनायास ही एक अनजानी-सी आत्मीयता जुड़ जाती है| जहाँ प्रश्नों को पूछने और उत्तर देने में सहजता रहती है| ऐसा ही कुछ आशी और मेरे बीच हुआ|आशी तीन
सुलझे...अनसुलझे कहीं थी मज़बूरी...तो कहीं ------------------------------ आज सेंटर की सीढ़ियों को चढ़ते समय अनायास ही मेरी नज़र एक औरत पर गई। जो कुछ ज्यादा ही सिकुड़कर सेंटर की बेंच के एक कोने पर चुपचाप बैठी हुई थी| उसको अपने ...Read Moreब्लड-टेस्ट करवाने थे| रसीद बनवाकर वह अपने टेस्ट करवाने की बारी आने का इंतज़ार कर रही थी। उसको देख कर न जाने क्यों मेरे मन में उसके बारे में जानने की इच्छा हुई| अपने चैम्बर में आकर पूजा करके जब मैं अपनी कुर्सी पर बैठी तो फिर से अचानक मेरी नज़र उसी स्त्री पर पड़ी| न जाने क्यों मुझे लगा कि
सुलझे...अनसुलझे ज़िंदा सूत्र ------------ आज सवेरे से ही मेरे मोबाइल पर एक ही फ़ोन नंबर से बराबर फोन आ रहा था| कई बार रिंग आने से मुझे आने वाले फ़ोन के लिए चिंता भी होने लगी थी| सिग्नल पूरे ...Read Moreहोने की वज़ह से आवाज़ नही आ रही थी| फ़ोन करने वाला बराबर मुझ से संपर्क साधने की कोशिश में, लगातार फ़ोन लगा रहा था। वापस उसी नंबर से घंटी बजते ही मैंने तुरंत ही अपना मोबाइल उठाया तो पीछे से आवाज़ आई - ‘आप मिसेस गुप्ता बोल रही हैं’... मेरे हाँ कहते ही वह बोली - ‘भोर बोल रही
सुलझे...अनसुलझे डॉ.अनिकेत ---------------------- डॉ.अनिकेत का शुगर प्रॉब्लम होने की वज़ह से हमारी क्लिनिक में जाँच करवाने के लिए हफ्ते में एक या दो बार आना लगभग तय ही था। उनकी उम्र यही कोई सत्तर वर्ष के आसपास की होगी। ...Read Moreभी क्लीनिक की सीढ़ियां चढ़ते मुस्कुराहट उनके मुख पर हमेशा खिली रहती। शुगर लेवल के बढ़ने या घटने से उनकी मुस्कुराहट पर कभी कुछ अंतर पड़ा हो, मैंने कभी महसूस नही किया। डॉ. अनिकेत बहुत ज़िंदादिल इंसाना थे| वह हरेक को सोचने पर मज़बूर कर देते कि कैसी भी परिस्थिति हो, हर परिस्थिति में मुस्कुराया भी जा सकता है। जब
सुलझे...अनसुलझे दोषी कौन -------------- तारीख और दिन आज सोचूं तो मुझे याद नही पर जब भी सुनीता नाम की उस मरीज़ा के बारे में सोचती हूँ तो उसके साथ-साथ न जाने कितनी ही बातों का ज़खीरा स्वतः ही मेरे ...Read Moreखड़े कर देता है| क़रीब छब्बीस-सताईस साल की एक लड़की अपनी रसीद रिसेप्शन पर बनवा अपनी जांचो का बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी| चूँकि मुझे रिसेप्शन पर रखे हुए पेशेंट रजिस्टर से देखना था तो मैं स्वयं ही उठकर स्टाफ के पास आ गई थी| वजह सिर्फ यही नहीं थी क्यों कि यह मेरी आदतों में शुमार था| बीच-बीच
सुलझे...अनसुलझे नई बीमारी ------------- बात महिना भर पहले दीपावली के आसपास के समय की है| बाज़ारों में कुछ ज्यादा ही चहलपहल दिख रही थी| पर लगभग सभी चिकित्सकों के क्लीनिकों में मरीज़ कम थे क्योंकि त्योहारों पर आसपास के ...Read Moreसे मरीज़ कम ही आते है और अगर आते भी है तो सिर्फ़ वही, जिनको बहुत जरूरी दिखाना हो| मैं भी बस सेंटर के कामकाज से जुड़े पेपेर्स को व्यवस्थित कर ही रही थी कि एक 40-45 वर्ष कि महिला अपनी 15-16 वर्ष की बेटी के साथ अन्दर आयी| स्टाफ के पूछने पर कि आपको क्या करवाना है वह महिला
सुलझे...अनसुलझे नन्ही-सी परी -------------- सरकारी अस्पतालों की दिनचर्या के बारे में जितना सोचे उतना ही लगता है कि हम बहुत कम सोच पाए है। इधर से उधर दौड़ते मरीज़ो के रिश्तेदार व परिचित ,अस्पताल में बदहवास से ही नज़र ...Read Moreहैं। किसी को दवाई लेने की जल्दी, तो कोई डॉक्टर के आने की राह देख रहा होता है। कब डॉक्टर देखे और इलाज़ शुरू हो! तो दूसरी तरफ मरीज़ का इलाज़ पूरा हो जाने के बाद उसको छुट्टी दिलाने के लिए औपचारिकताएं पूरी करवाने में जुटे मरीज़ के रिश्तेदार। इस भाग-दौड़ का सोचे तो ,जाने कितना कुछ स्वयं में बहुत
सुलझे...अनसुलझे परिवार यह बात सन 2001 की है| जब एक दिन अचानक ही मेरा मन हुआ कि कुछ समय उन अनाथ बच्चों को भी दिया जाये| जिनके भी शायद कुछ अनसुलझे अन्तरद्वंदों हो और मैं उनको सुलझा पाऊं| इसी ...Read Moreने सवेरे से मेरे मन को घेर रखा था| चूँकि उस समय मैंने पी.एचडी करने का भी मानस बनाया हुआ था तो सोचा कि अगर संम्भव हुआ तो अपने शोध का विषय भी निश्चित कर लूंगी| जब मैं अनाथाश्रम में पहली बार वहां के संचालक से मिली तो उनसे मिलना एक ईश्वरीय संजोग था| वह एक ऐसे व्यक्तित्व के धनी
सुलझे...अनसुलझे परेशानी का सबब ----------------------- पहनावे से मां और बेटा सम्भ्रांत परिवार के लगते थे। बच्चे की उम्र यही कोई सात-आठ वर्ष की रही होगी। सेंटर की सीढ़ियां चढ़ते समय मां के मोबाइल पर किसी फ़ोन आ जाने से ...Read Moreफ़ोन में व्यस्त हो गई| माँ के व्यस्त होते ही मानो बच्चे को स्वतंत्रता हासिल हो गई हो। पहले तो उस बच्चे ने सेंटर की सीढ़ियों पर बार-बार चढ़ने फिर उतरने का खेल जारी रखा| जिसकी वज़ह से आने वाले मरीज़ों को असुविधा भी हुई| बच्चा जानकर कोई भी उससे तो कुछ नही बोला। पर फोन पर बात करती हुई
सुलझे...अनसुलझे पलायन क्यों ------------------ काफ़ी अरसे बाद आज मिसेस तोमर को अपनी बेटी दिव्या के साथ अपने सेंटर की सीढ़ियों पर मैंने चढ़ते देखा| अनायास ही मन में विचार आया कि इतने समय बाद मिसेस तोमर के आने की ...Read Moreवजह हो सकती है| कई साल पहले तक उनके आने की एक वजह थी| उनके ससुर की नियमित जांचें हमारी लैब से ही हुआ करती थी| तब अक्सर ही दिव्या कभी अकेले तो कभी माँ के साथ तकनीशियन को अपने दादा जी का सैंपल लेने के लिए बुलाने आती थी| घर काफ़ी नज़दीक होने से स्टाफ को भी सैंपल लाने
सुलझे...अनसुलझे प्यार और डांट ------------------ बहुत साल पहले हमने अपने घर में ही, एक कमरे का सेट मरीज़ों को देखने के लिए बनवाया हुआ था| ताकि समयानुसार उसका उपयोग कर सके। प्रैक्टिस के शुरुवाती दौर में वहां मरीज़ देखे| ...Read Moreजैसे-जैसे समय ग़ुज़रा, मुख्य क्लिनिक पर ही काफ़ी समय निकल जाता था| घर आते-आते बहुत देरी हो जाती थी| फिर हमने घर की क्लीनिक को बंद करने का निर्णय लिया| साथ ही उसको किसी छोटे परिवार को किराए पर देने का भी निर्णय लिया| ताकि घर में थोड़ी चहलपहल रहे। तभी किसी दुकान में कार्यरत दिनेश और उसकी पत्नी दिव्या
सुलझे...अनसुलझे बहुत मुश्किल नहीं ----------------------- मैं उस रोज बहुत सवेर-सवेरे अपने सेंटर पर आ गई थी| मुझे अंदाजा था कि सेंटर पर मरीजों की संख्या, और दिनों के अपेक्षा कहीं अधिक रहेगी| हमारा मेडिकल सेटअप सरकारी अस्पताल के सामने ...Read Moreथा| किसी विशेष विभाग की ओ.पी.डी. होने पर, न सिर्फ अस्पताल में मरीज़ों की संख्या बहुतायत में होती बल्कि मरीज़ों की संख्या आस-पास के सेंटर्स में भी बढ़ जाती थी| सवेरे की बस से गाँव से आया हुआ मरीज़ दिखाने के बाद यही सोचता था कि सभी जांचे करवाकर, रिपोर्ट डॉक्टर को जल्द ही दिखा दे| ताकि वो इलाज़ लिखवाकर
सुलझे...अनसुलझे बेशकीमती रिश्ते -------------------- ‘छोटे बच्चों को मनाना कितना आसान होता है न मैडम| ज्यों-ज्यों ये बच्चे बड़े होते जाते है, उतना ही इनको मनाना मुश्किल का सबब बनता जाता है। आपको एक बात बताऊँ....मेरा बेटा राहुल जब छोटा ...Read Moreउसको हर बात मुझ से साझा करनी होती थी। स्कूल से घर आते ही बैग को एक तरफ डाल देता था| फिर स्कूल की प्रार्थना की घंटी बजने से लेकर उसकी बातों का सिलसिला शुरू होता तो छुट्टी की घंटी बजने तक हर क्लास हर दोस्त से क्या-क्या बातें हुईं सब बताता था|... राहुल कोशिश करता था कि एक ही
सुलझे...अनसुलझे भावनात्मक स्पर्श ------------------ आज मेरी मुलाक़ात एक अरसे बाद अपनी बचपन की मित्र लेखा से हुई। सुना था कि उसकी शादी एक बहुत ही धनाढ्य परिवार में हुई थी। उसके विवाह का निमंत्रण मुझे मिला था| पर मेरा ...Read Moreउससे पहले हो जाने से सुसराल में अपनी ज़िम्मेदारियों की वज़ह से मैं उसके विवाह में नही जा सकी थी। फिर अपने-अपने परिवारों में व्यस्तताओं के चलते एक गैप हो गया था| अचानक ही आज एयरपोर्ट पर उसको देख मुझे बेहद अच्छा लगा। ‘कैसी हो विभा....तुम कहाँ जा रही हो?’.. लेखा ने पूछा । ‘लेखा! मेरे काव्य-संग्रह का विमोचन था|
सुलझे...अनसुलझे भावों की दुनिया ----------------------- कहते है जब बुढ़ापा आता है तो व्यवहार बच्चों जैसा हो जाता है। कुछ हद्द तक यह कथन सच जान पड़ता है क्योंकि बुढ़ापे की ज़िद्द कुछ-कुछ बच्चों जैसी हो जाती है। जिसकी वज़ह ...Read Moreकई बार व्यवहार बच्चों जैसा प्रतीत होता है। बढ़ती उम्र के बच्चे शरीर और मस्तिष्क से सबल हो रहे होते है मगर बुजुर्ग इन दोनों ही दृष्टि से निर्बल। इसलिए उन दोनों के व्यवहार में सिर्फ कुछ प्रतिशत ही एक-सा होना माना जा सकता है। जिस तरह बच्चे ज़िद करते हुए कभी अच्छे लगते है तो कभी परेशान करते है|
सुलझे...अनसुलझे मान-सम्मान ----------------- आज से कुछ सालों पहले तक अपने ब्लड टेस्ट करवाने के लिए डॉक्टर की पर्ची आवश्यक तो होती थी| पर कई बार पर्ची न होने पर भी कई लैब मरीज़ के बताने पर टेस्ट कर दिया ...Read Moreथी| ऐसी ही कुछ धारणा लिए एक मरीज़ बगैर किसी पर्ची, हमारे सेंटर में प्रविष्ठ हुआ| दिखने में यह युवा बहुत पढ़ा-लिखा तो नहीं लग रहा था| पर उसको देखकर यह जरूर लगता था कि उसका उठना बैठना शायद अच्छे-बुरे सभी इंसानों के साथ है| अच्छी पेंट, शर्ट और हाथ में स्मार्ट फ़ोन लिए हुए वह सेंटर के रिसेप्शन पर
सुलझे...अनसुलझे मेरी ज़िंदगी ----------------- आज जब सवेरे-सवेरे मेरे स्कूल की मित्र वृन्दा का बरसों बाद फ़ोन आया तो अनायास ही मेरे चेहरे पर, एक तरफ तो मुस्कराहट की लहर दौड़ गई और दूसरी तरफ़ पांच साल पहले उसके साथ ...Read Moreहादसे की कुछ-कुछ अधूरी-सी दुखद यादें भी साथ-साथ ही हरी हो गई| पांच साल पहले जब अनायास ही एक दिन मुझे, हमारी किसी दूसरी स्कूल मित्र से पता चला कि वृन्दा की पच्चीस वर्षीया बेटी पंखुरी की, एक एक्सीडेंट में मृत्यु हो गई है| हम सभी मित्रों के लिए यह ख़बर बहुत झंझकोरने वाली थी, क्यों कि हम सभी के
सुलझे...अनसुलझे संघर्ष ------- यह बात सन २००५ की बात रही होगी जब मैं जोधपुर के रेलवे स्टेशन से जोधपुर-हावड़ा ट्रेन में अपनी बेटियों प्राची और प्रज्ञा को अपने साथ लेकर आगरा की यात्रा पर निकली थी| अपना सामान बर्थ ...Read Moreनीचे अच्छे से लगा कर मैं बेटियों के साथ बैठी ही थी कि उसी कम्पार्टमेंट में एक और महिला अपनी बेटियों के साथ आई| चूँकि उनकी बेटियां बड़ी थी तो दोनों बेटियों ने अपनी माँ को आराम से बैठने को कहा और दोनों ही ख़ुद सामान जमा कर अपनी माँ के आसपास बैठ गई| थोड़ा ही वक़्त गुज़रा होगा कि
सुलझे...अनसुलझे समझदारी ------------ यही कोई सात-आठ साल पुरानी बात होगी| सुबह के समय जब मैं रिसेप्शन पर खड़ी होकर अपने स्टाफ को सेंटर के काम से संबंधित निर्देश दे रही थी कि तभी तीन महिलाएं व एक युवा-सी लड़की ...Read Moreकी सीढ़ियां चढ़ती हुई दिखाई दी| उनमें से एक महिला जिसको अन्य दोनों महिलाये सुनीता भाभी कहकर संबोधित कर रही थी उसने स्टाफ़ से कहा, ‘मुझे निकिता की सभी जांचें यानी कंप्लीट हेल्थ चेकअप प्लस सोनोग्राफी करवानी है| लगभग कितना खर्चा आएगा बताये|’ ‘आपके पास डॉक्टर की पर्ची है मैडम|’...अगर पता चल जाता किस डॉक्टर को आप दिखा रही हैं
सुलझे...अनसुलझे हरी सिंह ------------- बात उन दिनों की है जब हमने एक एम्बुलेंस उन जरूरतमन्द मरीज़ों को लाने और ले जाने के लिए ली हुई थी, जिनको किसी भी तरह की आने-जाने में असमर्थता होती थी| शाररिक या आर्थिक ...Read Moreसे कमज़ोर मरीज़ों को यह सुविधा हमारे सेंटर की तरफ से निःशुल्क थी| हमने अपने ड्राईवर को भी निर्देश दे रखे थे कि वह किसी भी मरीज़ से भी छिपकर रुपया न ले| बीच में एक ड्राईवर ऐसा भी आया जोकि पंडित था और उसने मरीज़ों से पंडिताई कर रुपया ऐठना शुरू कर दिया था| उस ड्राईवर को लगता था
सुलझे...अनसुलझे बाल दुर्व्यवहार और यौन उत्पीड़न --------------------- मासूम मन उस कच्ची मिट्टी के शरीर में दबे बीज की तरह होता है| जिसके पास पनपने के लिए जोश व साहस अन्दर ही अन्दर पनप रहा होता है क्योंकि प्रकृति की ...Read Moreशय जीवन्तता के साथ सृष्टि में प्रविष्ट होती है| पर जब कभी अचानक ही उश्रंगल मानसिक प्रवृत्तियां या कुंठित प्रवृतियां उस पर, निजी स्वार्थवश आक्रमण करती हैं तो वहीं जोशीला मन अवसाद से घिर कर डरा- डरा सहमा-सहमा शरीर के एक कोने में बैठ, अपने सिर को छुपाने की भरसक कोशिशें करता है| बहुधा मासूम को पता ही नहीं होता,