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सुलझे...अनसुलझे - 25 - अंतिम भाग

सुलझे...अनसुलझे

बाल दुर्व्यवहार और यौन उत्पीड़न

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मासूम मन उस कच्ची मिट्टी के शरीर में दबे बीज की तरह होता है| जिसके पास पनपने के लिए जोश व साहस अन्दर ही अन्दर पनप रहा होता है क्योंकि प्रकृति की हर शय जीवन्तता के साथ सृष्टि में प्रविष्ट होती है| पर जब कभी अचानक ही उश्रंगल मानसिक प्रवृत्तियां या कुंठित प्रवृतियां उस पर, निजी स्वार्थवश आक्रमण करती हैं तो वहीं जोशीला मन अवसाद से घिर कर डरा- डरा सहमा-सहमा शरीर के एक कोने में बैठ, अपने सिर को छुपाने की भरसक कोशिशें करता है|

बहुधा मासूम को पता ही नहीं होता, जो उसके साथ घटा है, वह प्राकृतिक था या अप्राकृतिक| दूसरी तरफ़ जब पीड़ित, किशोर अवस्था का हो तो उसका चोटिल मन सोते-जागते न जाने कितनी अनकही पीड़ाओं के दंश झेलता है| यह सिर्फ वही महसूस कर सकता है जिसने किसी ऐसे किशोर के दर्द को बहुत क़रीब से महसूसा हो।

अपनी रातों को सिसकते हुए काट देना,सोते-सोते डर कर चीख़कर उठ जाना,बिस्तर गीला कर देना,गुमसुम रहना ,प्यार और स्नेह के सही मायनों को खो देना जैसे लक्षणों को, तब किशोर आयदिन झेलता है। जो बच्चा, चाहे वो छोटा हो या बड़ा, प्यार और स्नेह के भाव को लेकर चोटिल हो जाएगा, इसका मानी है उसका व्यक्तित्व पूरी तरह खंडित हो चुका है| ऐसे बच्चों के मन की मरम्मत करने में जनको और उसके चाहने वालों की पूरी उम्र लग जाती है। यह स्थिति बहुत भयावह है अगर इस पर चिंतन किया जाए तो।

तटस्थ रहकर जब स्वस्थ व्यक्तित्व इस पूरे घटित घटनाक्रम पर अगर ग़ौर करता है, तब वह बौखलाहट के साथ-साथ इतनी घुटन व असहायता महसूस करता है| वह किसी तरह उस मासूम मन रूपी बीज को कच्ची गीली मिट्टी के अंधेरों से प्रकाश में लेकर आ जाए| जिस पर किसी कुंठित का पैर इतनी बेरहमी से रखा गया कि वह मिट्टी के गीले होने से उसको, उस निचली तह तक पहुंचा गया जहां उसके पनपने की संभावना, उसके नष्ट हो जाने के प्रतिशत को बढ़ा गई|

आज अगर हम सिर्फ़ बाल यौन उत्पीड़न की बात करते है तो यह इस शीर्षक से जुड़े चित्र का वो अधूरा हिस्सा है…जिसकी छवि बहुत बाद में परिणाम बनकर उभरती है| अगर किसी भी समस्या का समाधान चाहिए या वास्तव में किसी भी समस्या का समाधान करना हो तो हमें उसके मूल में जाना होगा|

यहाँ हमको शुरुवात ‘बाल दुर्व्यवहार’ से करनी होगी | यह शीर्षक मासूम बच्चे से लेकर किशोरावस्था तक के उन बच्चों को शामिल करता है, जिनके साथ शारीरिक,मानसिक,व भावात्मक दुर्व्यवहार किन्ही भी स्थितियों-परिस्थितियोंवश हुआ जिसकी वजह से उनके व्यक्तित्व का विकास उतना सुदृण नहीं हुआ जैसा कि एक स्वस्थ वातावरण में पले-बढ़े बच्चे का होता है| और वो अपनी इन्हीं व्यक्तित्व की कमजोरियों की वजह से किसी अन्य कुंठित मानसिकता वाले व्यक्तित्व का शिकार बनता है या यह कह सकते हैं, कई बार यही किशोर अपराध में लिप्त हो जाते है| या किसी अपराधी नेटवर्क के शिकार बन जाते है| इस श्रेणी में वो मासूम नहीं आते जिनको इन अप्राकृतिक बातों की समझ ही नहीं होती, वो तो सिर्फ़ शिकार बनकर पीड़ित होते है|

पहली श्रेणी में हम उन मासूम बच्चों को रख सकते हैं, जिनको उन पर घटित हुआ अप्राकृतिक कुछ भी समझ नहीं आता और वो आहत चोटिल होकर सिर्फ़ सिसकते है| इनको आहत करने वाले बहुधा बहुत क़रीबी लोग ही होते है | ऐसे बच्चों के मन की ख़ूब लाड़-प्यार स्नेह से काफ़ी हद तक मरम्मत की जा सकती है,पर इनका दर्द अकल्पनीय है|

दूसरी श्रेणी में उन बच्चों को रख जा सकता है जिनको धीरे-धीरे यह समझ आने लगता है कि उनके साथ जो भी घटित हुआ है या हो रहा है वो न सिर्फ़ उनको पीड़ा दे रहा है बल्कि बिल्कुल सहज नहीं है अप्राकृतिक है| बहुत बार किशोर मन इस सबका प्रतिकार करता है पर किसी दबाब या डर की वजह से वो कहने में असमर्थ होता है|

चूँकि इस उम्र के बच्चे पहली श्रेणी से अलग होते है क्यों कि इनको कई बातें समझ आती है और कई बातें इनकी समझ से परे होती हैं| साथ ही यह असमंजस की स्थिति में होते है कि अपने ऊपर घटित कृत्य को बताना चाहिए या नहीं| यहाँ परिवार का वातावरण और माँ-बाप का व्यवहार बहुत महत्त्वपूर्ण होता है जो बच्चे को चाहे तो उबार सकता है और चाहे तो गर्त में गिरा भी सकता है|

अब प्रश्न यह उठता है कि आहत और चोटिल किस तरह के बच्चे होते है? अगर आकड़े इक्कठे किये जाए तो हम पायेगे कि जिन बच्चों का लालन-पालन अस्थिर स्थितियों-परिस्थितियों में होता है, भावनात्मक रूप से बहुत कमज़ोर होते है और आसानी से कुंठित मानसिकताओं का शिकार बनते है या अवसाद में घिर कर स्वयं पीड़क बन जाते है| या विखंडित व्यक्तिव के साथ दूसरी श्रेणी के पूर्णतः पीड़ाओं से भरे हुए लाचार नज़र आते है|

यहाँ पर एक बात को जरूर उल्लेखित करना चाहूंगी| जो माँ-बाप स्वयं में शरीर या भावनात्मक रूप से कमज़ोर होते हैं वो न सिर्फ स्वयं प्रपंची लोगों के शिकार बनते है बल्कि अपने बच्चों के भी शोषण के लिए उत्तरदाई होते हैं| बहुधा माँ-बाप लड़कियों से पिंड छुड़ाने को उनको स्वयं ही उत्पीड़न और दुर्व्यवहार का शिकार बनवाने से हिचकते नहीं| उनका अंधा-विश्वास प्रपंची लोगों में संतान को कुँए में धकेलता है| कुंठित मानसिकताए बहुधा ऐसे चोलों में, ख़ूब पनपती है और अपने गंदे मक़सद पूरे करती है|

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है हर व्यक्ति का जन्म किसी एक विशेष वातावरण और परिस्थितियों में होता है। व्यक्ति के कुछ गुण जन्मजात व कुछ गुण आसपास के वातावरण में पनपते हैं| जन्म लेते ही जीव का जीवन न जाने कितने रिश्ते नातों से एक ताना-बाना बुन लेता है| इसमें उसका चयन कर पाना नामुमकिन है, यह सब प्रक्रिया निमित्त के हिसाब से ही होती है|

जाहिर-सी बात है, आसपास मिले हुए करीबी रिश्तो पर सबसे पहले विश्वास ही करना होता है तभी प्रगाढ़ता बनाती है, पर जब यह विश्वास अंधा-विश्वास बन जाता है और जनकों को अपने मासूमों के लिए जैसे ही थोड़ा निश्चिन्त और लापरवाह करता है, बस तभी आसपास के वातावरण में कोई अगर कुंठित मानसिकता का व्यक्ति होता है वह मासूम को शिकार बना लेता है|चूँकि कई बार पीड़क क़रीबी ही होता है तो उसकी कोई रिपोर्ट नहीं लिखवाई जाती और वो बच्चे के आस-पास ही रहकर और दिखकर, अनवरत बच्चे के भय का कारण बनता है|

आज के समय में मां-बाप दोनों के ही कामकाज़ी होने से, परिस्थितियां और भी अधिक चौकन्ना रहने को कहती हैं| आजकल बाल यौन शोषण का दायरा केवल बलात्कार या गंभीर यौन आघात तक ही सीमित नहीं है बल्कि बच्चों को इरादतन यौनिक कृत्य दिखाना,अनुचित कामुक बातें करना ,गलत तरीके से छूना, ज़बरन यौन कृत्य के लिए मजबूर करना, प्रलोभन देकर या डरा कर पोर्नोग्राफी(अश्लील फ़िल्म) बनाना सभी कुछ इसी के अंतर्गत आता है|

बाल तस्कर तकनीकी की सहायता लेकर जो बच्चे ऑनलाइन ज्यादा रहते है उनसे दोस्ती करके उनको ग़लत कामों के लिए फांस कर ब्लैकमेल करते है और दूसरे देशों में उनकी अश्लील हरकतें करते हुए तस्वीरें बनवा कर अपने व्यापार करते है|

सिर्फ शारीरिक प्रताड़ना या यौनिक चोट ही, मासूम के मन को दमित चोटिल नहीं करती बल्कि मानसिक व भावनात्मक स्तर पर भी जो चोटें मां-बाप या रिश्तेदार अभिभावक द्वारा पहुंचाई जाती है, एक बच्चे के स्वस्थ मन को पनपने में बाधक बनती है| इन परिस्थितियों में पले-बढ़े बच्चे बड़े होकर कुंठित हो जाते हैं और वो न सिर्फ अपना बल्कि दूसरे मासूम के मन को आहत करने से सबसे आगे होते हैं|

सामाजिक चिकित्सा के क्षेत्र में काउंसलिंग का काम करते हुए मेरा ऐसे कई बाल मनो से सामना हुआ जिनकी काउंसलिंग करने से पहले मुझे उनके मां-बाप की काउंसलिंग करनी पड़ी क्योंकि वह काफी हद तक अपने बच्चे के विचलन (जो कि परिस्थितियों वश थे) को सुधारने की बजाय नासमझी में, उनको बढ़ावा दे रहे थे|

मां-बाप का किसी भी निराशावश चीखना-चिल्लाना, बच्चों की खिल्ली उड़ाना,उनकी उपेक्षा करना, यह सभी कारक बच्चे को स्वस्थ वातावरण नहीं देते हैं| जिसकी वजह से बच्चे भावनात्मक रूप से बहुत कमज़ोर बन जाते है और अवसाद,अनिंद्रा,डर के शिकार बन अक्सर ही गन्दी मानसिकताओं के शिकार बनते है| यहाँ पर मैं सिर्फ़ दो केसेस पर बात करुँगी जहां पर परिवार में अस्थिरता होने से बच्चे को कैसी स्थितियों का सामना करना पड़ा|

केस नंबर 1-

माँ-बाप की आयदिन की लड़ाइयों से बच्चों को हर दिन बग़ैर, उनकी गलती का पता लगे हुए अपमानित होना, उनको बहुत अस्थिर मानसिकता का शिकार बना गया| जिसमें की पीड़ित को हर बात पर इतना क्रोध आने लगा कि उसको मेडिकल उपचार के साथ मानसिक चिकित्सा भी लेनी पड़ी| सिर्फ़ यही नहीं पीड़ित को बहुत क़रीबी ने लाड़-प्यार दिखा कर उसके साथ मनमानी की जोकि उसके लिए अपराधबोध बन गया|

केस नंबर 2-

यहाँ पर मेरे पास स्वयं एक पन्द्रह साल का किशोर आया था जिसने अपने घर के अवसाद को, पड़ोस की नन्ही-सी बच्ची को बग़ैर किसी ग़लती पीट-पीट कर निकाला था | पर जब उसकी चेतना ने उसको झंझकोरा तो वो काउन्सिल्लिंग के लिए आया था| और उसने बताया कि अति क्रोध की अवस्था में उसको लगता है किसी की भी पिटाई करके अपने गुस्से को उतारूँ | मानी कई बार ऐसे बच्चे जो कि अपनी गलती को महसूस करते हैं और आगे गलतियां दोहराने से डरते भी है| किसी गलत संगत में पड़कर अपराध कर सकते है| यहाँ उसको सज़ा की ज़रूरत नहीं होती बल्कि प्यार की ज़रूरत होती है ऐसे बच्चों को अगर सजा दे दी जाये तो भी ग़लत होता है|

मैं ऐसा मानती हूँ कि समस्याओं के मूल में ही समाधानं होते है जिनको खोजना भी हमारे ही हाथ में होता है| बाल यौन हिंसा हो या बाल उत्पीड़न से जुड़ी कोई भी समस्या, उसको बहुत बार की काउन्सिल्लिंग, समस्या को सुलझाने में काफ़ी हद तक कारगर होती है|

पर यह भी सत्य है कि शिकार हुआ बच्चा या किशोर इस पीड़ा के दंश को ताउम्र भोगता है यह बहुत ही कष्टदाई स्थिति है। बार-बार वाक़ये को दोहराने से पीड़ित की पीड़ा बढ़ती है अतः इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए।

यहां एक बात उल्लेखनीय है कि जो पीड़क है वो भी मानसिक रूप से कुंठित है मानी उसको भी सजा के अलावा गहन काउन्सिल्लिंग की जरूरत है क्यों कि वो मानसिक रोगी है। उसको भी इलाज़ की जरूरत है। पर चूंकि हमारी जेलों में सज़ा तो दी जा सकती है पर सघन रूप से समझाईश की व्यवस्था उच्च स्तर की नही है। पीड़ित के दर्द को प्रेम और स्नेह से जितना उबारा जा सकता है कोशिश करनी होगी, उतनी ही दूसरी तरफ़ साठ-सत्तर प्रतिशत केसेस में पीड़क को भी समझाइश जरूरत होती है। पर चूंकि हम अपराधी को इस दृष्टि से नही देखते तो सिर्फ उसके लिए सज़ा के प्रावधान को ही सोच पाते है।

दरअसल जब हम समस्या के मूल में जायेगे तो पाएंगे पीड़क मानसिक रोगी है उसको भी सख्त इलाज़ की जरूरत है। मेरी नज़र में पीड़क और पीड़ित दोनों के लिए ही सोचना होगा। साथ ही समाज की उन मूलभूत परिवार जैसी इकाइयों को सुदृण बनाना होगा जहां बच्चों को मूल्यों और संस्कारों की घुट्टी पैदा होते ही पिलाई जाती थी, ताकि मानसिक उश्रृंगलतायें व्यक्तिव को विचलन न दें।

कई बार बच्चों के अलावा जनकों की भी काउन्सिल्लिंग की ज़रूरत होती है क्यों कि बच्चों का किसी भी स्तर पर चोटिल होकर किसी के बहकाने पर गलत संगत में पड़ जाना या उनका स्वयं कुंठित हो जाना अन्य समस्याओं को जन्म देता है|

दूसरा- संबंधों पर विश्वास करिए पर अंधा-विश्वास विपरीत परिस्थितियों को जन्म देता है| बच्चे को स्वस्थ वातावरण व भरपूर प्यार दीजिये ताकि वो मजबूत बन सके|

यौन हिंसा राष्ट्र के भविष्य के साथ बलात्कार करना है मीडिया को भी ख़बरें बेचने की बजाय समाज में वो परोसना चाहिए जो सुधार ला सके| अपराध व अपराधी को पनाह देकर समाज की व्यवस्था को नहीं ख़राब करना चाहिए | स्कूल कॉलेज में भी अनुशासन बनाने के लिए इनसब बातों को शिक्षा में शामिल कर बच्चों को सेक्सुअलिटी पर सटीक जानकारी देकर जागरूक बनाना चाहिए| भावों के महत्व को समझना व दूसरे के भावों की कीमत करना हर व्यक्ति को समझ में आना चाहिए|

भारत सरकार ने राष्ट्रीय बाल अधिकार आयोग(NCPCR) और राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग(SCPCR) बनाया हुआ है जो कानून के सही अमलीकरण व निगरानी के लिए काम करता है| समय-समय पर वो सरकारी एजेंसिओं और कार्यकर्ताओं की मदद व प्रोत्साहित करता है|

पर यह भी सच है कि नियम क़ानून बगैरा तो हादसे हो जाने के बाद लागू होते है| हालांकि इनकी भी सख्ती से पालना होनी चाहिए| पर बच्चों के व्यक्तित्व की नींव की मजबूती पर विशेष ध्यान प्रेम, स्नेह व जागरूकता बोकर करना चाहिए ताकि स्थितियां समय रहते ही संभल जाए| बच्चों के साथ अधिक से अधिक समय गुजारे उनके साथ खूब सारी बातें सांझा करे| उन्हें दोस्त बनाये|

बच्चे तिजोरी के वो गहने होते है जिनकी चाबी अतिकरीबी के पास होती है,इसके लुटने का डर हमेशा बनाये रखे| उन्हें हर तरह की ज़हनी और ज़िस्मानी सुरक्षा दें| ताकि उनकी हिफाज़त में कोई कोताही न हो||

प्रगति गुप्ता