Kya darna jaruri hai books and stories free download online pdf in Hindi

क्या डरना ज़रूरी है

क्या डरना ज़रूरी है ?

क्या डरना ज़रूरी है ? मेरी इस कहानी की शुरुआत राजस्थान के भानगढ़ जिले से होती है, भानगढ़ का एक किला जो भूतो के वजह से बहुत प्रसिद्ध है जहाँ छह बजे के बाद जाना मना है, राजस्थान सरकार यानि 'एएसआई' का एक बोर्ड भी लगा रखा है जिस पर लिखा है सूर्यास्त के बाद इस किले में प्रवेश करना मना है, बहुत से वैज्ञानिको ने इसके बारे में पता लगाने की कोशिश की थी, लेकिन अभी तक किसी ने ये दावा नहीं किया है की वहां सच में भूत रहते है लेकिन ऐसे कुछ लोगो के उदाहरण है जिन्होंने इसके खोज के अंत में एक रहस्मय तरीके से अपना जान गवा दिया है, जैसे आज तक न्यूज़ चेंनल का एक रिपोर्टर गौरव तिवारी जिसकी मौत एक रहस्य बन कर रह गयी है, पुलिस भी आज तक पता नहीं लगा पायी है कि उसकी मौत की असल वजह क्या थी लेकिन पुलिस को शक है की गौरव तिवारी ने आत्महत्या किया था, इस बात के पीछे कितनी सच्चाई है ख़ैर ये तो कोई नहीं जनता है लेकिन उन्होंने अपने जीवन काल में ऐसे कई सारे सबूत इकठे किये है जो भूतो के होने का दावा करता हैं जिसे हम इंटरनेट के ज़रिये पढ़ और देख सकते है|

मेरी इस कहानी की शुरुआत तो भानगढ़ के भूतिया किले से ही होती है लेकिन इस कहानी का अंत कुछ और ही है, आइये पढ़ते है|

एक ज़ोया नाम की लड़की थी, जिसने अपनी पूरी पढाई लन्दन के एक यूनिवर्सिटी से की थी | ज़ोया एक जर्नलिस्ट थी, ज़ोया के माँ-बाप बचपन में ही गुज़र चुके थे, वह अपने चाचा-चाची के साथ रहती थी|जोया ने अपनी पढ़ाई पूरी कर ली थी, उसके चाचा-चाची उसे इंडिया आने के लिए ज़िद करने लगे थे, क्यूंकि ज़ोया ने लंदन में ही सेटल्ड होने का सोचा था पर वह अपने चाचा-चाची की बातो को टाल नहीं सकी, ज़ोया इण्डिया वापस आ जाती है, ज़ोया का घर राजस्थान में था, ज़ोया बचपन से ही मॉडर्न कल्चर में रही थी उसके लिए राजस्थान में रहना मुश्किल हो चुका था लेकिन वहां रहने पर उसे कुछ ही दिनों में भानगढ के भूतिया किले के बारे में पता चला, हालांकि ज़ोया आज के ज़माने की लड़की थी, उसके लिए कही सुनी बातो पर विश्वाश करना नामुमकिन था, लेकिन उसने अपने गांव के कई लोगो के मुँह से उस किले के बारे में सुना था इसलिए अब उसका ध्यान भानगढ़ के हॉरर क़िले पर था |

उसने इंटरनेट के हर एक साइट्स पर से भानगढ़ किले के बारे में इन्फॉर्मेशन निकालना शुरू कर दिया, भूतो पर रिसर्च करना उसे बहुत ही रोचक लगा, उसके और भी फ्रेंड्स लन्दन से इंडिया आ गए उसका साथ देने के लिए, ज़ोया के चाचा-चाची इस सब के खिलाफ थे, उन्होंने ज़ोया और उसके फ्रेंड्स को बहुत समझाया लेकिन उनलोगो को उनकी बाते बकवास लगी क्यूंकि उनके लिए भूतों पर विश्वाश करना नामुमकिन था |

बात उस समय की है जब ज़ोया और उसके फ्रेंड्स भानगढ़ में पहुंचे थे |भानगढ़ में वो लोग शाम चार बजे तक पहुंच चुके थे और वो लोग उस किले से लगभग दस किलो मीटर की दूरी पर थे, उन लोगो की गाड़ी ख़राब हो चुकी थी और गांव वाले किले तक जाने को तैयार नहीं थे, फिर उनको वही पर एक होटल में रुकना पड़ा क्यूंकि मैकेनिक के आने में समय था, होटल के कुछ दूरी पर एक घर था जो अपने ज़माने में बहुत सुन्दर रहा होगा लेकिन इस समय वो घर एक खंडर बन चूका था, ज़ोया होटल के छत्त पर खड़ी होकर उस घर को बहुत ध्यान से देख रही थी, तभी होटल का वॉचमैन वहां पर आता है और ज़ोया के पूछने पर वह उस घर के रहस्मय बाते बताने लगता है |

वॉचमैन उसे बताता है की वो घर पहले इस इलाक़े के एक रईस आदमी का हुआ करता था, जो अपने ही घर में खो गया था, अब तक ये पता नहीं चल पाया है की वो ज़िंदा है या मरा हुआ क्यूंकि उसकी लाश किसी को नहीं मिली और ना ही कोई हिम्मत कर पाता है उस घर में जाने को क्यूंकि दरवाज़े के पास से ही अजीब-अजीब सी आवाज़े आती है, लोग उस आवाज़ से ही डर कर भाग जाते हैं, ज़ोया ये सब सुनने के बाद अब वो भी उस आवाज़ को सुनना चाहती थी, वो अपने फ्रेन्डो को बिना बताये उस होटल से बाहर निकलती है, होटल से देखने पर वो घर तो नज़दीक लग रहा था लेकिन वास्तव में वो कुछ दूरी पर था, ज़ोया अकेले उन सड़को पर चली जा रही थी l

होटल के कुछ दूरी पर चार-पांच आवारा लड़के अपने बाइक पर बैठे हुए थे, ज़ोया को आते देख वो लड़के कमैंट्स पास करने लगते हैं, ज़ोया उन पर बिना ध्यान दिए आगे चले जा रही थी, सारे लड़के खड़े हो होकर ज़ोया का पीछा करने लगते है, उन लड़कों को आते देख ज़ोया ने अपने कदमो को तेज़ कर लिया और वह वहाँ से भागने लगी उसके हाथो में एक कैमरा भी था, पांचो लड़के भी तेज़ चलने लगे और ज़ोया को पकड़ने की कोशिश करने लगे, ज़ोया से लगभग चार कदम पर वह घर था जिसमें वो जाने वाली थी, ज़ोया उस घर के अंदर चली जाती है, वो सभी लड़के उस घर के दरवाज़े के पास जाकर खड़े हो गए |

ज़ोया पीछे मुड़ कर देखती है, वो सभी लड़के बाहर खड़े होकर उसे देख रहे थे, ज़ोया उस घर के और अंदर चली जाती है, थोड़ी ही देर में सारे लड़के उस घर के भीतर घुस जाते है, इस बार उस घर में से कोई आवाज़े नहीं आती है, ज़ोया उन लड़को को आते देख घर के मुख्य दरवाज़ा से अंदर चली जाती है घर के अंदर एक सीढ़ी होती है जिससे ऊपर के मंज़िलो पर पंहुचा जा सकता था, ज़ोया उन सीढ़ियों पर चढ़ कर दूसरे मंज़िल पर पहुँच जाती हैं, हर जगह सन्नाटा होता है, उसे उन लड़को के सीढ़ियों पर चढ़ने की आवाज़े आती है, ज़ोया सीढ़ी के बाये तरफ़ वाले कमरे के अंदर चली जाती है और दरवाज़ा बंद कर लेती हैं, थोड़ी ही देर में वो लड़के वहां पहुंच जाते है और हर एक कमरे में उसे ढूंढने लगते है, ज़ोया जिस कमरे के अंदर थी उसमे हल्की-हल्की रौशनदान से रौशनी आ रही थी, उस कमरे में कुछ सामाने बिखरी हुई थी जिस पर अब धूल मिट्टी और मकड़ियों का बसेरा था, दरवाज़ा के सामने एक बैड रखा हुआ था जिस पर सफ़ेद रंग की चादर बिछी हुई थी जो अब भी साफ़ दिख रहीं थी, बैड चारो तरफ से लाल रंग के धागे से बंधा हुआ था, लगभग दस मिनट में वह जग़ह बिलकुल सन्नाटे से घिर गया, बाहर से भी उन लड़को की आवाज़े नहीं आ रही थी|

ज़ोया ने अपना कैमरा निकाला और उस कमरे की विचित्र वस्तुओ का फोटो लेने लगी, फोटोज़ लेने के बाद उसे लगा अब शायद वो लड़के इस घर से जा चुके है इसलिए अब वो दरवाज़ा खोल सकती है लेकिन जब वो दरवाज़ा खोलने जाती है तब दरवाज़ा खुलता ही नहीं, उसने अपनी पूरी ताक़त लगा दी लेकिन दरवाज़ा नहीं खुला, ज़ोया बार-बार उस दरवाज़े को खोलने जाती लेकिन कोई फ़ायदा नहीं होता, उस कमरे में दो खिड़कियाँ थी लेकिन दोनों ही नहीं खुल रही थी, ज़ोया के लिए ये सब उसके सब्र का इम्तिहां था उसने हिम्मत नहीं हारी वो पूरी कोशिश करती रही उस कमरे से निकलने को लेकिन हर बार उसे सिर्फ निराशा ही मिलती, अब वह थक चुकी थी, वो सीधा जाकर बैड पर बैठ गयी उसके बैठते ही अचानक से वो बैड निचे ज़मीन पर चला गया ज़ोया के मुँह से एक ज़ोर की चीख निकल गयी, वह जिसे बैड समझ रही थी वास्तव में वहां पर कोई बैड था ही नहीं बल्कि वो तो हर जगह से काले जादू से घिरा हुआ बिना ऊपरी सतह के एक बड़ा सा संदूक था जिसके अंदर अब ज़ोया भी थी, ज़ोया जब उस संदूक में गिरती है तब उसके हाथों में खरोंच लग जाती है वो वहां से उठने की कोशिश करती है तभी उसे लगता है कि कोई पहले से ही उस संदूक के अंदर है लेकिन सफ़ेद कपड़े की वजह से वो उसका चेहरा नहीं देख पाती है, ज़ोया उस संदूक से बाहर निकल कर पहले उस सफ़ेद कपड़े को हटाती है जिसके वजह से वह संदूक के अंदर छिपे इंसान का चेहरा नहीं देख पायी थी, क्या उस कमरे में उसके आलावा कोई दूसरा इंसान था? फिर वो क्या था जिसे ज़ोया इंसान समझ रही थी, ज़ोया ने जब उसका चेहरा देखा तो उसे एक उम्मीद नज़र आयी वहाँ से निकलने की, लगभग पैंतीस साल का एक हट्टा-कट्ठा नौजवान जिसने रईसों वाले पोशाक़ पहन रखे थे वहां आँखे बंद किये लेटा हुआ था, ज़ोया ने उसे उठाने का सोचा वो दुबारा उस संदूक के अंदर गयी उसके हाथो में वो सफ़ेद वाला चादर अभी भी था ज़ोया ने उस शख्स के हाथो को छुआ जो बर्फ के जितना ठंडा था, उसने एक ही झटके में अपना हाथ पीछे कर लिया उतने में ही उसने ने अपनी आँखे खोली जो बिलकुल लाल दिख रही थी उसने ज़ोया की तरफ देखा और फिर अपना मुँह आगे कर लिया और फिर उसने एक बहुत ज़ोर से चीख निकाली जिसके वजह से उस कमरे का सारा सामान हिल गया सारी खिड़किया अपने आप खुल-बंद हो रही थी ज़ोया ने अपना कान बंद कर रखा था, तभी उस कमरे का दरवाज़ा भी खुल गया, ज़ोया खुले दरवाजें को देख कर खुश हो गयी और खुश होते हुए उसे शुक्रिया कहने लगी,

(खुश होते हुए) ज़ोया - "थैंक यू बॉस तुम्हारी आवाज़ में सचमुच में बहुत दम है एक ही चीख़ में पुरे कमरे को हिला कर रख दिया, थैंक यू सो मच तुम्हारी वजह से ये दरवाज़ा भी खुल गया है "

ज़ोया ने जैसे ही बाहर निकलने को सोचा वैसे ही दरवाज़ा फिर बंद हो गया, ज़ोया उस संदूक से निकल कर दरवाज़े और खिड़कियों को खोलने लगी लेकिन फिर से उसकी मेंहनत बेकार हो गयी, ज़ोया वापस उस संदूक के पास आती है और उस संदूक में बैठे शख्स को कहती है-

ज़ोया - तुम कैसे इंसान हो एक अकेली लड़की कब से दरवाज़ा खोलने में लगी है क्या तुम उसकी मदद नहीं कर सकते, बाय द वे तुम इस कमरे में क्या कर रहे हो?

तुम कुछ बोलते क्यूँ नहीं, मैं तुम से कुछ पूछ रही हूँ, (उसके चेहरे के सामने अपने हाथो को हिलाते हुए )हेलो क्या तुम मुझे सुन सकते हो?

(भयानक आवाज़ में) अजनबी-हमारा नाम विक्रम है और हम इंसान नहीं,

(विक्रम नाम का इंसान जो पचास साल पहले ही मर चुका है जिसकी आत्मा उस संदूक में कैद थी जो उस घर का मालिक भी था विक्रम की आत्मा को अब ज़ोया ने आज़ाद कर दिया था)

ज़ोया- ओ वॉव तुम बोल भी सकते हो...अच्छा नाम है, एक सेकंड तुमने क्या कहाँ अभी की तुम इंसान नहीं हो तो क्या भूत हो, देखो तुम मेरी मदद करो दरवाज़ा खोलने में मेरे दोस्त मेरा इंतज़ार कर रहे होंगे, प्लीज़

ज़ोया दुबारा दरवाज़े के पास जाने के लिए कुछ ही क़दम आगे बढाती है तभी वह उसका हाथ पकड़ लेता है|

ज़ोया - व्हाट आर यू डूइंग, हाथ छोड़ो मेरा(तभी विक्रम अपने मुँह से ज़ोर से हवा निकालता है जो आंधी जितनी तेज़ होती है उस कमरे के सारे शीशे अपने आप ही टूट जाते है, ज़ोया उसे बहुत ध्यान से देख रही थी) ये क्या था, लिसेन अगर तुम मुझे डरा रहे हो तो मैं बिलकुल भी नहीं डरी...., एक सेकंड अभी कुछ देर पहले तो तुम्हारे हाथ बहुत ठन्डे हो रहे थे और अब ये......, कौन हो तुम और इस घर में कर क्या रहे हो?

(संदूक में खड़े होते हुए) विक्रम - ये मेरा घर है और इस घर में एक बार जो कोई आ जाता है वो ज़िंदा वापस नहीं जाता है लेकिन तुम फिक्र मत करो हम तुम्हे नहीं मारेंगे क्यूंकि तुमने हमें आज़ाद करवाया है लेकिन अब तुम इस घर से नहीं जा सकती हो......|

(अपना हाथ छुड़वाते हुए ) ज़ोया - ओ हेलो, मुझे तुम्हारी एक भी बात सच नहीं लग रही है, मैं जाउंगी इस घर से और अभी जा रही हूँ, लेकिन तुम्हे मेरी मदद करनी होगी दरवाज़ा खोलने में......|

(भयानक आवाज़ में ) विक्रम –“एक बार जो कोई इस घर में आ गया वो ज़िंदा वापस नहीं जाता है ये बात तुम्हे समझ नहीं आयी क्या, मैं इंसान नहीं हूँ, मैं पचास साल पहले ही मर चूका हूँ लेकिन मैं मरना नहीं चाहता था वो तो मेरे रिश्तेदारों ने मेरी जायदात लेने के लिए मुझे मारकर मेरे ही घर में कैद कर दिया था ताकि मेरी आत्मा उन्हें नुक्सान न पंहुचा सके जिसे तुमने आज़ाद करवाया है इसलिए मैं तुझे नहीं मार रहा लेकिन अगर इस घर से जाने की कोशिश भी किया तो....”

(हसते हुए) ज़ोया -लिसेन अगर तुम मुझे डराने की कोशिश फिर से कर रहे हो तो मैं तुम्हे बता दूँ मैं किसी से नहीं डरती और मुझे तुम्हारी कहानी बिलकुल बकवास लग रही है ये बॉलीवूड के किसी मूवी का डायलॉग लग रहा है और रही बात इस घर से निकलने की वो तो मैं जाउंगी यहाँ से और वो भी अभी, समझ गए तुम|

ज़ोया दरवाज़े के पास जाती है और फिर से खोलने की कोशिश करती है लेकिन इस बार दरवाज़ा खुल जाता है ज़ोया पीछे मुड़ कर देखती है और उस कमरे से बाहर निकल जाती है ज़ोया के उस कमरे से निकलते ही विक्रम की आत्मा गायब हो जाती है उधर ज़ोया सीढ़ियों से उतर कर पहले मंज़िल पर पहुंच जाती है लेकिन वहां जो वो देखती है उसे देख कर वो सचमुच में डर जाती हैं और वापस उसी कमरे में जाती है जहा उसकी मुलाकात विक्रम की आत्मा से हुई थी |

ज़ोया अब विक्रम की आत्मा से मिलने के लिए बेताब हो रही थी वह उसे उस घर के हर एक कमरे में जाकर ढूंढ रही होती हैं अंत में वो छत्त पर जाती है उसे ढूंढने के लिए, ज़ोया इधर-उधर देख ही रही होती है तभी विक्रम की आत्मा उसके पीछे आकर खड़ी हो जाती है जैसे ही ज़ोया पीछे मुड़ती है उसे देख कर चौक जाती है..,

ज़ोया - "विक्रम इस घर में ख़ून हुआ है, मैं जिस गुंडों से बच कर इस घर के अंदर आयी थी वो गुंडे मेरे पीछे-पीछे आये थे और उन सब को किसी ने मार दिया है और वो भी बुरी तरह से, चलो मैं तुम्हे दिखाती हूँ"

(भयानक आवाज़ में ) विक्रम की आत्मा-“उन सब को मैंने मारा है क्यूंकि वो सब इस घर से जाने की कोशिश कर रहे थे जो भी इस घर से जाना चाहेगा मैं उसे मार दूंगा”

ज़ोया - मुझे तो तुम बहुत बड़े बेवक़ूफ़ लगते हो, किसी और के खून की सजा तुम अपने ऊपर क्यूँ ले रहे हो.....माना तुम थोड़े अजीब दिखते हो लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं कि मैं....

(तभी विक्रम भयानक आवाज़ में ज़ोर से चिल्लाकर बोलता हैं) –“तुम हमारी बातो पर विश्वाश क्यूँ नहीं करती, हम कोई मज़ाक नहीं कर रहे है, चलो मेरे साथ हम तुम्हे कुछ दिखाते हैं”

(दोनों एक ही झटके में एक स्टोर रूम में पहुंच जाते है जो बहुत ही गन्दा और सामानो से भरा हुआ था)ज़ोया- मैं ये कहाँ आ गयी..?

विक्रम की आत्मा –“इस कमरे में ऐसे बहुत से सबूत है जिसे तुम्हे देख कर हमारी बातो पर विश्वाश हो जायेगा”

ज़ोया - देखो मुझे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता है कि तुम कौन हो और ज़िंदा हो या मरे हुए मुझे इस घर से जाना है बस, (तभी दरवाज़ा बंद हो जाता है, ज़ोया दौर कर दरवाज़े के पास जाती है और उसे खोलने की कोशिश करती है, जब वो पीछे मुड़ कर देखती है तो विक्रम की आत्मा वहां से गायब होती है, ज़ोया वापस उसी जगह पर आती है जहा पर विक्रम खड़ा था, ज़ोया उसे स्टोर रूम के हर एक कोने में ढूंढने लगती है उसे एक कोने में एक फोटो फ्रेम मिलती है जिसमे तीन लोग होते है माँ-बाप और एक बच्चा, ज़ोया दुबारा उस जगह पर सामान को हटा कर देखती ताकि कोई और फोटो मिले, उसे फिर से एक फोटो गैलरी मिलती है जिसमे बहुत सारी फोटोज होती है जिसे देखने के बाद उसे विश्वाश हो गया था कि ये घर विक्रम का ही है |

ज़ोया को एक न्यूज़ पेपर मिली जो अमेरिका की थी जिसमे विक्रम की फोटो छपी हुई थी और उसके बारे में लिखा हुआ था कि उसने फुटबॉल में नॉवल प्राइज जीता था वो अखबार 1949 की थी तभी ज़ोया के ऊपर खून की बूंदे गिरती है ज़ोया उन बूंदो को देख कर चौक जाती है और कुछ ही देर में खून की बूँदे गायब हो जाती है|

तभी दरवाज़ा धीरे से खुलता है, ज़ोया हैरान होकर दरवाज़े की तरफ देखती है और अखबार को वही फेंक कर दरवाज़े के पास जाती है, स्टोर रूम भू-तल में था, ज़ोया जैसे ही बाहर कदम रखती है उसे ज़ंज़ीर के बजने की आवाज़े आती है वो उस आवाज़ का पीछा करने लगती है ज़ोया जितना उस आवाज़ के करीब जाती वो आवाज़े उससे उतनी ही दूर चली जाती, ज़ोया को बाहर का रास्ता दिखता है लेकिन अब वो फिर से विक्रम की आत्मा से मिलना चाहती थी|

ज़ोया जिस ज़ंज़ीर की आवाज़ का पीछा कर रही थी दरअसल वो ज़ंज़ीर विक्रम के पैरों में लगा हुआ था, ज़ोया की अचानक नज़र चलते हुए विक्रम की आत्मा पर पड़ी ज़ोया उसे देखते ही दौर कर उसके पास गयी,

ज़ोया - विक्रम जी रुकिए, मैंने आप के बारे में पढ़ा है, आप अपने ज़माने में फुटबॉल के बहुत अच्छे प्लेयर थे ना, अगर आप ज़िंदा होते तो सेवेंटी प्लस में होते लेकिन मुझे जानना है, आप की मौत कैसे हुई, मेरा मतलब है आप को किसने मारा और क्यूँ मारा?

विक्रम –“तुम्हारे दोस्त तुम्हे छोड़ कर वापस लन्दन चले गए”

ज़ोया –“क्या वो लोग चले गए, मुझे ढूंढा तक नहीं, कितने बुरे दोस्त थे अब मैं उनलोगो से कभी बात नहीं करुँगी, लेकिन हम लोग तो भानगढ़ किले में जाने वाले थे वो लोग वापस कैसे जा सकते है”विक्रम –“जब तुम इस घर में आयी थी तब तुम्हे गांव वाले ने आते हुए देखा था और जब तुम्हारे दोस्त तुम्हे ढूंढते हुए यहाँ आये थे तब उनलोगो ने इस घर की कहानी बताई वो सभी डर कर वापस लौट गए”(ज़ोर से हसते हुए ) ज़ोया - डरपोक फिरंगी, आप अपने बारे में बताईये?

विक्रम - मानना पड़ेगा तुम बहुत हिम्मत वाली हो, तुम्हे डर नहीं लगता, मैं भी अपने ज़माने में बिलकुल तुम्हारे जैसा था, बहुत हिम्मत वाला और बहादुर,

(निचे बैठते हुए) उस दिन मेरे माँ-बाबूजी बहुत खुश थे क्यूंकि हम सब बॉम्बे से इस घर में प्रवेश करने वाले थे, मेरे बाबूजी ने बहुत प्यार से ये घर बनवाया था मेरी माँ और मेरे लिए, उस समय हमारे दिल्ली में भी कई जगह मकान थी और भारत के कई राज्य में भी बाबूजी ने प्रॉपर्टी लिया था, हमारे घर में किसी चीज़ की कमी नहीं थी, बाबूजी ने मेरे लिए राजस्थान की एक महारानी की बेटी से मेरा विवाह तय कर दिया था उस समय मैं इंग्लैंड में अपना अंतिम फुटबॉल मैच खेल रहा था बाबूजी का फ़ोन आया की उनके छोटा भाई गोवा से हमारे साथ हमारे घर में रहने आ रहे है और मेरे विवाह तक वही ठहरेंगे, मैं ये सुन कर चौक गया क्यूंकि दादाजी के मरने के बाद वो हम सब से अलग हो गए थे और आज अचानक इतने दिनों बाद आये थे तो शक तो होगा ही उसके अगले दिन ही मैं भारत लौट आया क्यूंकि मुझे पता लगा मेरे बाबूजी की तबियत ख़राब हो गयी है, और जब मैं घर वापस आया तो मुझे मेरे माँ-बाबू जी की लाश मिली, मैं ये देख कर टूट चुका था लेकिन मैंने देखा मेरे माँ-बाबू जी के पास मेरे चाचा, चाची बैठ कर आंसू बहा रहे थे, मेरा पहला शक उन पर ही गया, मैं उन लोगो से बहस करने लगा और उन्हें घर से निकल जाने का न्योता दे दिया, उनलोगो ने मुझसे सुबह तक का समय माँगा मैं मना नहीं कर पाया क्यूंकि उस समय शाम हो रही थी अगले ही सुबह वो सब हमारे घर को छोड़ कर जाने वाले थे, उस रात मैं अपने माँ-बाबू जी के जाने के सदमें में सो ही नहीं पाया, मैं बाबू जी के सभाकक्ष में बैठा रो ही रहा था ही कि मेरे चाचा ने मेरे सिर पर लोहे की रॉड से मारी, मैं खड़ा होकर जैसे पीछे मुड़ा उन्होंने फिर से मेरे सिर पर ज़ोर से मारा मैं वही पर बेहोश हो गया था, उसके बाद जो हुआ वो बहुत दर्दनाक था उस समय सारे नौकर अपने-अपने कमरे में सो रहे थे और सभाकक्ष में हम तीन के आलावा एक पंडित भी था जिसने मेरी आत्मा को कैद करने में उनका मदद किया था, मेरे माँ-बाबू जी की आत्मा को भी उन लोगो ने कैद कर दिया है ताकि हमारी आत्मा उनको तंग ना करे उसके बाद मेरे बाबू जी की जितनी भी दौलत थी उनलोगो ने अपने नाम पर करवा लिया, क्या तुम हमारी मदद करोगी हमारे माँ-बाबू जी की आत्मा को आज़ाद करवाने में...,

(आंसू पोछते हुए) ज़ोया - जी विक्रम जी मैं ज़रूर करुँगी, लेकिन मुझे एक बात समझ नहीं आयी कि उस ज़माने में भी लोग पैसो के लिए भाई, भाई का खून कर देते थे ये तो इस ज़माने में होता है लोगो के लिए पैसे इतने इम्पोर्टेन्ट हो चुके हैं कि इसको पाने के लिए कुछ भी कर सकते है लेकिन वो लोग ये क्यूँ नहीं समझते कि ये बस दुनिया तक ही सिमित है मरने के बाद ये पैसे किसी के काम नहीं आने वाले और अगर ये अपने बच्चो के लिए ऐसा करते है तो इसकी क्या गारेंटी की वो बच्चे उनके बुढ़ापे का सहारा बनेंगे, क्या पता बच्चा भी किसी ऐसे ही लोगो के संगत में पड़ कर वो भी अपने माँ-बाप के साथ ऐसा ही करे|

मेरे माँ-बाप तो मुझे बचपन में ही छोड़ कर चले गए है लेकिन आज मुझे उनकी बहुत याद आ रही है

(ज़ोया घुटनों के बल बैठ कर फूट -फूट कर रोने लगती है)

ज़ोया विक्रम के माँ-बाप की आत्मा को आज़ाद करवाने में मदद करती है उसके बाद ज़ोया के लिए हर तरफ से दरवाज़े खुल जाते है बाहर निकलने के लिए, ज़ोया विक्रम को उसके माँ-बाप के साथ देख कर बहुत खुश होती है, ज़ोया उस घर से निकल कर वापस अपने घर लौट जाती है |