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फाइल

फाइल

ऑल्ट के साथ डीलीट और कंट्रोल दबाकर उसने हैंग हुई फाइल को बंद किया और बैग़ उठाया।

’अरे सौम्या प्रोग्राम एण्ड कर दिया?’

’हाँ और क्या? घर जाने का टाइम हो रहा है और सिस्टम दिमाग खराब कर रहा है। इसे तो मैं अब सोमवार को ही देखूँगी। वैसे तुम्हारा क्या प्लान है गौतम?’

’कुछ नहीं। अब वीक-एन्ड है तो दोस्तों को परेशान करूँगा। किसी को फिल्म के लिए सताऊँगा तो किसी को संडे की मैराथान के लिए पकडूँगा। खैर, तुम्हारा क्या प्लान है?’

’मेरी मकान मालकिन बहुत दिनों से कह रही है कि मैं आज कल उससे बातें नहीं करती, उसके पास बैठती नहीं। क्या करूँ? ये ऑडिट वाले तो जान खा जाते हैं। अब अगले हफ्ते चले जाएं तो कुछ सोचती हूँ, उसके साथ बैठकर उसकी सिडनी वाली लडक़ी का एलबम देखूँ।’

’तो ऑडिट के लिए सब कुछ रेडी है?’

’हाँ। रेकार्ड तो सारे रेडी कर लिए हैं मैंने...बस्स’

’बस्स क्या?’

’कुछ नहीं....वो तो बॉस का काम है सो वो जाने’

’क्या? कहीं गिफ्ट्स के बारे में तो नहीं सोच रही?’

’हाँ बस्स वही बाकी है’

’हाँ इस बार तो तगड़ा गिफ्ट मिलना चाहिए ऑडिट वालों को। कॉटेन वाले लोन में बहुत घपला किया है बड़े साहब ने। सब के सब शामिल हैं उसमें। खूब खाते हैं और ऐन मौके पर दे-दिलाकर छूट जाते हैं।’

’इस बार नहीं गौतम। इस बार ये लोग नहीं बचेंगे।’

’ये कैसे कह सकती हो?’

’चलो बताती हूँ। मेरी पिछली बार की चाय बाकी है। चलो नीचे, चंदू के यहाँ चाय पिऐंगे और इसका जवाब भी वही दूँगी। आखिर दीवारों के भी कान होते हैं।’

’राइट! चलो मैने भी सिस्टम ऑफ कर दिया है।’

’चलो’

सुनसान गलियारे से होते हुए सौम्या और गौतम लिफ्ट में पहुँचे। गलियारे में दोनों की गूँजती हंसी बता रही थी कि वे आज बहुत लेट हो चुके हैं।

बाकी का पूरा ऑफिस कब का घर जा चुका था। वीक-एन्ड की छुट्टियों के लोभ ने यों भी वक्त से पहले ऑफिस खाली करा दिया था।

सौम्या की खिलखिलाती हंसी बता रही थी कि उसे देर तक काम करने का कोई क्षोभ नहीं है बल्कि संतोष है कि उसने सोमवार को शुरू होनेवाले ऑडिट की पूरी तैयारी कर ली है।

दोनों ऑफिस के नीचे आए हैं और सीधे बिङ्क्षल्डग से लगे चंदू की चाय की दुकान पर पहुंच गए हैं। अपनी रोज की सीटें संभालते हुए गौतम इशारे से दो चाय मंगाता है और सौम्या के चेहरे पर नजऱ टिका लेता है। अपनी भौहों को आसमानी उछाल देते हुए कहता है,

’तो’

’तो क्या?’

’तो इस बार कैसे नहीं बच सकते ये घूसखोर?’

’हां, वो... अच्छा। दरअसल, इस बार मैंने एकाउंट की सारी फाइलें देखी हैं। सारे लोन की फाइलें अच्छे से तैयार की गई हैं। कोई अंधा भी इन्हें देखकर बता देगा कि सारे लोन नियमों को ताक पर रखकर दिए गए हैं।’

’वो तो पिछली बार भी दिए गए थे। इसमें नया क्या है?’ गौतम ने चाय के अदने से ग्लास को गोल-गोल घुमाते हुए पूछा।

’हाँ... मगर इस बार ये नहीं बच पाएंगे?’

ग्लास को घूरना छोडक़र गौतम ने सौम्या की आँखों में आँखें डालकर पूछा ’और वो कैसे?’

सौम्या ने उसी आत्मविश्वास से जवाब दिया ’वो ऐसे गौतम कि पिछली बार इंस्पेक्टर्स को घूस देकर पटा लिया गया था और....’

गौतम ने बीच में बात काटते हुए कहा ’और इस बार भी पटा लेंगे। इसमें क्या है?’

’नहीं...इस बार नहीं। इस बार टीम में पी वाई आयंगर आ रहे हैं। उन्होंने बड़े-बड़ों की छुट्टी कर दी है....’

’ओहो....’

’....और अपने कडक़ उसूलों के लिए जाने जाते हैं। उस दिन मैं जब बड़े साहब के केबिन में एकाउंट्स का रजिस्टर लेकर गई थी तब वे इसी पर गुप्ता सर से चर्चा कर रहे थे। सच पूछो तो बड़े साहब के छक्के छूटे हुए हैं। उनको मैंने इतना परेशान कभी नहीं देखा। सब कमीनों ने बहुत रुपया खाया है। संस्था को खूब लूटा है और देश को भी। गौतम... अगर ऐसे लोगों को सज़ा नहीं मिली तो देश बर्बाद हो जाएगा। पिछली बार मैं कुछ नहीं कर पाई थी मगर मेरा सीना छलनी होकर रह गया था। पिछली बार... जानते हो गौतम.... इन लोगों ने ऑडिट में न पकड़े जाने पर एक पार्टी रखी थी.... बड़े साहब के यहाँ।’

’हूँ.... अच्छा तो वो पार्टी इस खुशी में रखी गई थी?’

’हाँ तो और तुम क्या समझे थे कि अपना बॉस बड़ा दिलदार है जो मुफ्त में पार्टी दे रहा था’

’हम्म’

’जानते हो गौतम.... ऑडिट के दूसरे दिन इन लोगों के ठहाके मुझे एटम बॉम्ब से कम नहीं लग रहे थे... उनकी हंसी जल्लादों सी लगती थी।’

’लेकिन सौम्या.... तुम इन जल्लादों को नहीं जानती। ये कोई न कोई उपाय ढूँढ़ लेंगे।’

’अगर ऐसा होता गौतम तो ये यूँ पसीने नहीं छोड़ रहे होते। सबके बारह बजे हुए हैं। शिव बाबू को देखा। कैसे चेहरे पर हवाइयाँ उड़ रही हैं।’

’अच्छा! तभी सोचूँ.... ये हमेशा दाँत निपोरने वाला दो दिन से मुँह लटकाकर क्यों घूम रहा है। मैने कल प्रिया पर एक जोक मारा, सभी हंसे, बस वही खोया हुआ था, न जाने कहां। अब समझ में आ रहा है कि माजरा...’

सौम्या बीच में ही चीख पड़ी ’गौतम!!!’

गौतम ने झटके से सौम्या को देखा। वह गौतम के पीछे कुछ देख रही थी और देखते-देखते खड़ी हो गई। गौतम ने पीछे मुडक़र देखा। कुछ न पाकर बोला-

’क्या?’ ’वो देखो’ सौम्या ने ऊंगली उठाई।

गौतम ने देखा कि ऑफिस की बिङ्क्षल्डग की एक खिडक़ी से धुँआ निकल रहा था।

’ओ माई गॉड। यह तो अपना फ्लोर है। वहाँ आग लग गई है।’

सौम्या ने एकदम गंभीर हो कर कहा ’वह रिकार्ड रूम है और वहां आग लगी नहीं है.....’

गौतम आधी बात सुनकर बिङ्क्षल्डग की ओर लपका। सौम्या ने भी वही रास्ता लिया। दोनों दौड़ते-भागते ऑफिस पहुँचे।

ऑफिस में धुआँ भरता जा रहा था। वे रेकॉर्ड रूम की तरफ भागे। मगर एकदम ठिठक गए। सामने धुएँ में से श्रीकांत निकल कर आ रहा था। धुएँ से निकलता हुआ किसी दैत्य के समान लग रहा था। काला गठा हुआ शरीर जो धुएँ में ही विलीन सा लगता था और अगर कुछ प्रकट था तो केवल उसके चमकीले दाँत। हाथ में माचिस और केरोसिन का कैन लिए हुए उनकी ओर बढ़ रहा था।

गौतम ने फटी आँखों से श्रीकांत को देखा और सवाल दाग दिया ’यह क्या हो रहा है श्रीकांत?’

सौम्या ने उसके उत्तर की प्रतीक्षा नहीं की, क्योंकि अब तक वह समझ गई थी कि आखिर हो क्या रहा है? वो बस बेतहाशा रेकॉर्ड रूम की तरफ दौड़ पड़ी। वहाँ पहुंची जहां लोन की फाइलें रखी थीं और जैसे दीवारों से कह रही हो ’सब जला दी कमीनों ने... सब स्वाहा हो गईं’। कुछ देर जलती फाइलों को देखती रही फिर मुडक़र वापस ऐसे गौतम के पास आई जैसे उस अग्नि में उसकी सारी ताकत जल गई हो और उसे अब चलने में भी दिक्कत महसूस हो रही हो। गौतम ने भरपूर आश्चर्य प्रकट करते हुए कहा, ’सुन रही हो सौम्या.... इसने सारी लोन की फाइलें जला दीं।’

जवाब में सौम्या भरपूर निराशा से बोली ’जानती हूँ... देखकर आ रही हूँ।’ आगे जैसे कहना चाहती हो कि तुम्हें कुछ बताने की ज़रूरत नहीं।

गौतम ने श्रीकांत को लाल नेत्रों से देखते हुए कहा ’तुम पागल हो श्रीकांत.... सोमवार को होने वाले इंस्पेक्शन के लिए वो फाइलें ज़रूरी थीं।’

’उसको क्यों डांट रहे हो गौतम। उसने यह सब खुद थोड़े न किया है।’

’डाँटूँ नहीं तो और क्या करूँ सौम्या? उसने... ’

’उसे बड़े साहेब ने कहा होगा। क्यों श्रीकांत?’

श्रीकांत ने रिरियाते हुए कहा ’और क्या मेमसाहेब.... मैं क्या जानता फाइल के बारे में.... मेरे को तो जो जैसा बोलता मैं वैसा करता.... जो बोलता फाइल लाके दे तो लाके देता.... ले जाके रख बोले तो रखता... कल बड़ा साहब मेरे को बुलाकर अच्छा से समझा कर बोला.... कपाट नंबर सात का सब फाइल जलाने का है... तो मैं जलाया।’

’चलो गौतम। घर चलते हैं। कम से कम तुम अपना वीक-एण्ड मत बर्बाद करना।’

’क्यों तुम क्या करनेवाली हो इस वीक-एन्ड पर जो तुम्हारा बर्बाद हो गया।’

’कुछ नहीं। बस मुझे नींद नहीं आएगी इस वीक-एन्ड पर।’

***