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नन्हा फौजी

नन्हा फौजी

(1)

“चचा, कल जब मैं खेतों की तरफ गया था, तब मैंने हरी वर्दी वाले बहुत से लोग देखे थे । उनके पास बहुत बड़ी बँदूकें थीं । वो मेरी नई बँदूक है न्, उससे भी बड़ी ! ....”“बेटा, वे फौजी होंगे ।“ चचा ने बालक को समझाया ।”फौजी कौन होते हैं ?” बालक ने सवाल किया ।”फौजी देश के रखवाले होते हैं । जब कोई दुश्मन देश पर चढ़ाई करता है, तब दे जान पर खेलकर देश की रक्षा करते हैं ।“ चचा बोले ।”उनकी बँदूकें बहुत बड़ी थीं .... । बहुत बड़ी .... ।“ थोड़ी देर रुककर वह फिर बोला, “चचा, अगर मैं फौजी बन जाऊँ तो मुझे भी ऐसी बँदूकें मिलेंगी ?””हाँ, बेटा ।“ चचा ने प्यार से कहा और उसे गोद में उठा लिया ।उत्तर भारत की पर्वतमालाओं में बसे एक गाँव का यह दृश्य था । गाँव के लोग सादे और परिश्रमी थे । मासूम बालक – किशन – के पिता किसान थे । उम्र में किशन केवल सात-आठ साल का था, पर उसका दिमाग बड़ा तेज़ था । अक्सर वह रहमान चचा के पास आकर ना-ना प्रकार की बातें करता था, सवाल पूछता था और हर बार रहमान चचा उसे बड़े प्यार से जवाब देते थे ।”किशन, अरे ओ किशन ! जरा इधर ओ आ !” किशन की माँ ने उसे बुलाया । उसने तुरंत आज्ञा का पालन किया ।माँ के कहने पर किशन खेतों पर अपने बाबा (पिता) के लिए खाना लेकर चला गया । राह में वह रहमान चचा से हुई बात के बारे में सोच रहा था । जैसे-जैसे वह उस बात के बारे में सोचता रहा, उसके मन में फौजी बनने की इच्छा भी बढ़ती गई । घर आने के पश्चात् वह पुन: रहमान चचा के पास गया ।”चचा, दुश्मन चढ़ाई क्यों करता है ?””वह चढ़ाई करके हमारी जायदाद – ज़मीन सव हड़प लेना चाहता है ।“ चचा बोले ।”क्या उसके पास ज़मीन और जायदाद नहीं होती ?” किशन ने सवाल किया ।”होती है, बेटा, मगर इंसान को तसल्ली नहीं होती । उसे जितना मिलता है, उससे भी ज़्यादा पाना चाहता है ।“ चचा ने ठण्डी आह भरते हुए जवाब दिया ।”मगर ऐसा क्यों होता है ?” किशन ने फिर प्रश्न किया ।”ये जहान् ही ऐसा है, बेटा । इंसाफ़ और नाइंसाफ़ के बीच हमेशा जंग चलती रहती है ।“”जीतता कौन है, चचा ?””इंसाफ़ जीतता है, बेटे । नाइंसाफ़ चाहे कितनी ही धाक जमाए, वह इंसाफ़ से कभी नहीं जीत सकता ।“ चचा ने कहा ।”अच्छा चचा, अब यह बताइए कि फौजी बनने के लिए क्या-क्या आना चाहिए ।“ किशन ने अपनी जिज्ञासा के प्रवाह अपनी ओर बदला ।”फौजी बनने के लिए बहादुरी, हिम्मत और नि:स्वार्थ भावना होनी ज़रूरी है । जो क़ुरबानी के लिए तैयार हो वही सिपाही वन सकता है ।“ चचा ने कहा ।”और बँदूक चलाना ?” किशन ने पूछा ।”हाँ, बेटा । वह भी आना चाहिए । लेकिन भावना बहुत अहमियत रखती है । क़ुरबानी देने वाले इंसान की ख़ुदा भी इज़्ज़त करता है ।“

किशन आगे कुछ न बोला । वह गहरे चिंतनसागर में डूब गया ।

(2)

अपने छोटे-से गुप्त फौजी सेरे के सामने मेजर सिन्हा टहल रहे थे । वे गहरी सोच में थे । चारों ओर तन्हाई और तनाव का वातावरण था । शाम का झुट्पुटा छाने लगा था, मगर वहाँ आसपास चिड़ियों की चहचहाट भी न थी । अचानक खामोशी को तोड़ती हुई एक छोटी-सी आहट पीछे की झाड़ियों में हुई । वे चौंके ।”कौन है ? जल्दी से बाहर आ जाओ ।“ वे गरजे ।झाड़ियों में से एक छोटी-सी, सहमी हुई सूरत निकली । उनके कहने पर बालक झाड़ियों से बाहर निकला । अपने सामने एक हृष्ट-पुष्ट गोरे-से बालक को देखकर उनके आश्चर्य की सीमा न रही ।”कौन हो तुम ? यहाँ कैसे आए ?"

“मैं बाबा के खेतों से लौट कर टहल रहा था । मैंने कुछ दिनों पहले कुछ फौजियों को देखा था । मुझे उनकी बँदूकें और वर्दी बहुत अच्छी लगी थीं । मैंने उन्हें जिस ओर देखा था, उसी ओर मैं चलने लगा । मैं कुछ ही दूर गया था कि मुझे एक घायल फौजी दिखे । उनके पेट की दाईं ओर से खून निकल रहा था । वे पास की झाड़ियों के पीछे छिपकर अपनी बोतल से पानी पीने की कोशीश कर रहे थे और आवाज़ दबाकर कराह रहे थे । मैंने पानी पिलाना चाहा, पर उनकी सांस ही बन्द हो गई । .... बड़ी देर तक भटकने के बाद मैं यहाँ आ पहुँचा । .... उनकी जेब में यह कागज़ था ।“ बालक ने कागज़ देते हुए कहा ।”तुम्हारा नाम क्या है ?” मेजर साहब ने पूछा ।”किशन ।“”कहाँ रहते हो ?””पास वाले गाँव में ।“ जवाब मिला ।”मानसिंग कहाँ है ?” मेजर साहब ने पूछा ।”मैंने उन्हें झाड़ियों में छिपा दिया है और जहाँ-जहाँ खून के निशान थे, वहाँ धूल बिछा दी है ।“ किशन ने बड़ी सरलता से जवाब दिया ।मेजर सिन्हा ने मानसिंग के अंतिम संस्कार का प्रबन्ध करवाया । वे किशन की बुद्धिमानी और सरलता से बड़े प्रभावित हुए । उन्होंने उसका परिचय डेरे के अन्य सैनिकों से करवाया । अपनी मासूमियत के कारण वह सब को भा गया । जाते-जाते वह धीरे से बोला, “क्या मैं यहाँ फिर से आऊँ ?”

मेजर साहब बोले, “ज़्ररूर आओ । मगर किसी को इस बात का पता नहीं होना चाहिए और न ही तुम किसी को हमारा पता बताना ।“किशन ने तुरंत वादा कर दिया कि वह किसी को कुछ नहीं बताएगा और वहाँ से चला गया । वह वहाँ अक्सर आने-जाने लगा । वह इस बात का ध्यान रखता था कि कोई उसे देख न ले । माँ से खेतों में टहलने जाने का बहाना बनाकर वह छुट्टी पा लेता था । सब सिपाहियों से उसकी बड़ी अच्छी दोस्ती हो गई थी । विशेष कर वह अपने मेजर चाचा से खूब बातें करता था ।

(3)

दोपहर होने को थी । सुबह किशन अपने बाबा के खेतों में गया था और लौटने में उसे थोड़ी देर हो गई थी । वह मस्ती से आगे बढ़ रहा था कि उसे कुछ आवाज़ें सुनाई दीं ।”तुमने हमें जो पता बताया वह सही है न् ? हम आज रात को हमला करेंगे ।“ एक मोटी-सी आवाज़ आई ।”हाँ, हाँ, सरकार । मैंने पक्की जानकारी हासिल की है । मैंने बिलकुल सही पता बताया है ।“ एक जानी-पहचानी सी आवाज़ आई ।”ठीक है। तुम यह बात किसी को बताना नहीं, नहीं तो ....।“”नहीं, नहीं, सरकार । यकीन कीजिए । मैं किसी को नहीं बताऊँगा ।“ उत्तर मिला ।फिर उसने देखा दो सैनिक, खाखी रंग की वर्दी पहने पास के पेड़ों के पीछे से निकले और चल दिए । दूसरी ओर से शेरू निकला और अपने खेतों की ओर जाने लगा ।”शेरू ? गद्दर ....। आज रात को हमला होने वाला है । मेजर चाचा को इसकी खबर जल्दी से जल्दी मिल जानी चाहिए ।“ किशन ने सोचा ।वह तुरंत डेरे की तरफ हो लिया । वह हो सके उतनी जल्दी से आगे बढ़ रहा था । उसने लगभग आधा रास्ता तय किया थाकि उसे फिर आवाज़े सुनाई दीं । मगर इस वार वह बार-चीत समझ नहीं पाया । उसने देखा कि वही दो सैनिक गुज़र रहे थे । वह ठिठक कर झाड़ियों में छिप गया । परंतु दुर्भाग्यवश एक छोटी-सी आहट हो गई और उन सैनिकों को उस आहट ने चौंका दिया । एक सैनिक ने पिस्तौल निकाली और गरजा, “बाहर निकलो वर्ना गोली मार दूँगा ।“ मगर किशन अपनी जगह से हिला नहीं । उस सैनिक ने दो गोलियाँ झाड़ी की ओर चलाई । एक से तो वह बच गया पर दूसरी गोली उसके बाएँ पैर में जा लगी । बेचारा किशन दर्द की आह भी न भर सका । वह अपनी पूरी शक्ति से दर्द दबाए हुए झाड़ियों के पीछे छिपा रहा । किसी प्रकार की प्रतिक्रिया न देखकर दोनों सैनिकों ने आपस में कुछ बातचीत की और वहाँ से चले गए । शीघ्र ही वे आँखों से ओझल हो गए ।उनके जाते ही किशन ने अपनी पूरी शक्ति बटोरी और डेरे की तरफ दौड़ पड़ा । वह जल्दी ही बुरी तरह थक गया । उसके बाएँ पाँव से खून बहे जा रहा था और उसे असह्य पीड़ा हो रही थी । मगर वह किसी भी तरह हमला होने की इत्तला मेजर चाचा को देना चाहता था ताकि उसका देश हार न जाए । डेरे तक पहुँचते-पहुँचते उसकी हालत बहुत ही खराब हो गई थी । मेजर सिन्हा डेरे के सामने कुर्सी लगा कर बैठे थे । और सैनिक काम में व्यस्त थे ।”चाचा, चाचा, आज रात को दुश्मन .... हमला करने वाला है ....।“ वहाँ पहुँचते ही उसने आवाज़ लगाई । मेजर सिन्हा दौड़कर उसके पास आए । वह धीरे-से ज़मीन पर लुढ़क गया । मेजर साहब ने उसे सहारा दिया ।

“ये क्या हुआ, किशन ? और तुम क्या कह रहे हो ?” मेहर सिन्हा ने पूछा । सब सैनिक भी इकट्ठे हो गए ।”चाचा, मैंने .... उनकी बातें .... सुन लीं .... । शेरू ने .... डेरे .. के .. बारे में .... पता .... ल..गा.... कर .... उन्हें .... ब... ता.... दि..या.... । मैं...ने.... उनकी .... बात .... सुन .... ली .... । आते .... आते .... मुझे उनकी .... गोली ..... लग ..... गई .... ।“ वह बड़ी मुश्किल से बोल पा रहा था ।”चाचा, .... आज .... रात ..... के .... लिए .... तैयारी ..... कर .... लीजि....ए...गा .... ।“बुझती नेत्र-ज्योति उसे तिमिर की तरफ घसीट रही थी । काँपते अधर अंत में बड़े यत्न के पश्चात् यह अधूरा कथन कह सके, “रहमान .... चचा .... से .... कहना .... देश .... के .... लिए .... ।“

(04/08/1986)

  • वनिता ठक्कर
  • (E-mail : vanitaa.thakkar@gmail.com)