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मेरी यादें

प्यार जीवन की सबसे बड़ी ऊर्जा है जिसमें विश्वास और सत्यता का गहरा संबंध है इन्हीं भावों के साथ प्यार के रिश्ते निभाए जाते हैं कुछ इन्हीं भावों से सजी मेरी यह कुछ कविताएं हैं आशा करती हूं पाठकों को पसंद आएगी यह प्रेरणा मां शारदा की देन है उन्हें शत-शत नमन धन्यवाद

नैनो से कर रही आरती

सुख दुख की जीवन लहरों पर नहीं बने कोई मझधार

शब्द शब्द में हो विश्वास हो न एक दूजे से छल व्यापार

दीप शिखा न बने कभी कहीं भी दबी हुई कोई चिंगारी,

मन वसुधा में हुई पल्लवित, प्रीत भरी कोमल क्यारी।।

नींद उड़ी जब भी आंखों से, हमने मन में भाव सजाये

ढाल उसे शब्दों में मैंने, मधुरिम भावों के गीत बनाये

हो वेदना कहीं न शामिल, कभी न टूटे प्रीत हमारी,

मन वसुधा में हुई पल्लवित, प्रीत भरी कोमल क्यारी।।

पल छिन का मधुर मिलन एक अलौकिक सुख दे जाती,

जहां प्रीत मधु कलश लुटाती, वहीं वेदना भी घट जाती,

बस जाओ तुम मन मंदिर में, नैनो से कर रही आरती,

मन वसुधा में हुई पल्लवित प्रीत भरी कोमल क्यारी।।

***

तुमने दर्द दिया न होता

नित्य निरंतर करूं साधना,

परन्तु विषमता छल ही जाती ।

सभी कल्पना अंत:मन की

कैसे कविता बन सकती है।

बांध अधर मौनता सौपी

किंतु भावना में बह जाती ।

अंतर की विह्वलता को,

वाणी व्यक्त नहीं कर सकती ।

सभी विचार सरस हो जाते,

पाकर सुंदर सुस्मृति की जाती ।

जितनी गति से मन चलता है,

नहीं लेखनी चल पाती ।

फूटे लय छंदों के अंकुर,

बनी प्रेरणा मधुरिम पाती ।

आंसू अक्षर बन उभरे हैं,

दर्द बन गया अपना साथी ।

तुमने दर्द दिया न होता,

तो मैं गीत नहीं रच पाती ।।

***

सरस प्रेम उद्गार

नेह प्रदीप जलाने को हुई जा रही सांझ सिंदूरी,

आमंत्रण दे बाट जोहता उसका कोई अपना होगा।

बिदा ले रहा सूरज तय करनी है उसको दूरी,

प्रतिक्षा रत नैनो में, पलता सुंदर सपना होगा।

सूना पन घट जाएगा, होगी सभी कामना पूरी,

सोच सोच कर रचा ऋचायें, कोई बांहे फैलाए होगा।

मनुहारों से मिट जायेगी, व्यवहारों से उपजी दूरी,

बरसाता सरस प्रेम उद्गार, अपना जीवन साथी होगा।।

***

क्षणिक अनुराग

एक पथिक को बार बार मन क्योँ अपना कहे,

इस क्षणिक अनुराग को कैसे हम सपना कहें ।

बंध गई आशा वहां, दो पल दिखा जो स्वप्न‌ था,

स्वप्न मिश्रित आसा को, क्या अब जीना कहें ।

तेरे स्पर्शों को सह नहीं पाई, नम मेरी आखें हुईं,

बहती हुई अश्रुधारा को, अब हम झरना कहें।

कच्चे धागों में था पिरोया, प्रेम के मनके सभी,

टूटे बिखरे मन के मनके को, कैसे माला कहें।

हरियाली में उग गये हैं, कंटकीय पौधे नये,

कंटकीर्ण उपवन को कैसे कोई मधुबन कहें ।

***

शब्द साधना

शब्द केवल शब्द नहीं होते, शब्द बढ़ कर राह दिखाता है

शब्द बुलाते हैं शब्द को, हाथ बढ़ा कर दोस्त बनाता है।

शब्द में जीवन छुपा है, शब्द सींचते तन मन औ ध्यान।

शब्द की बिखर जाती गंध, देता है अंधियारा भी छांट ।

शब्द में छिपे सप्त स्वर, झंकृत कर देते अंतरमन।

शब्द में सारे स्पर्श, प्यार ममता दुलार का अहसास।

शब्द में झलकती कामना, है जिनमें भावना का सार।

शब्द तृष्णा, शब्द आशा, शब्द कविता शब्द भाषा ।

शब्द से सफल होती आराधना, शब्द में ही है साधना ।।

***

समर्पण

तुम प्राण धन, मन प्रान पूजा,

नेह धारा जोडती ।

पा के आमंत्रण तुम्हारा,

हर्षित मुग्ध मन डोलती।

संदली मारूति बसंती,

दे सिहरन तन तोड़ती ।

वंदना के स्वर समर्पित,

तार सप्तक टेरती ।।

है सहज अनुभूति मन की

व्यक्त करना है कठिन ।

भावना भेद, ज्वार-भाटा बन,

कामनाएं छेडती।

अनुराग है अम्रत्व पावन

सृजनता का प्रतीक ।

अर्चना के शंडगण समर्पित,

‌‌ तन-मन हूं सौपती ।।

***

अनुराग

अनुराग अमृत्व है

कराती आत्म बोध

बांधती एकत्व में

प्रकृति की आराधना

समर्पण की भावना

सृजनता का प्रतीक

सजगता, उत्सर्गता

इसे पावन बनाती

है ये औषधि

और दाह भी

स्वतः गढ़ लेती

ऋचाएं भी ।।

***

कैसे तुमको गीत सुनाऊं

कैसे दर्द बाट दूं अपना , प्यार नहीं श्रृंगार नहीं ।

प्यासे अंधेरों को सिक्त करें, ऐसी कोई फुहार नही ।

आशाओं से सिंचित, क्या भावों का रूप दिखाऊं ।

गुपचुप हो मधुर मिलन के पल कैसे बिसराऊं ।।

गगनांगन का गहन अंधेरा, मन में आना बसा है ।

बंद पलक बिखरी अलकों ने, जीवन नया रचा है ।

वक्त बदल दिया अपनों ने, अब मै कैसे वक्त बिताऊं।

मन के तार न होते झंकृत, कैसे तुमको गीत सुनाऊं ।।

***

मधु‌रितु है बतलाती

रवि रश्मि का आलिंगन पा महक उठी कली कली,

भंवरों के दल निकल पड़े, मधुबन क्या हर गली-गली।

सुरभित पवन झकोरा, तन-मन को है पुलकाती ।।

कोल, पपीहा के गुंजन ने गुंजित कर दी अमराई,

रंग बिरंगी चुनरी ओढ़े, धरती भी है कुछ शरमाई ।

है मौन संदेशा प्रियतम का, ये मधुरित है बतलाती ।।

हो भावों से सराबोर, बन मयूरी बिरहन नाची ।

खोल किवाडे पलकों के, कुछ सोई कुछ-कुछ जागी।

अनुभूति की खिली कली, मन की क्यारी महकाती।।

***

सुधि तुम्हारी

सरस सुरभित शीतल मलय

लेके मधुरितु आ गई ।

शांत तन में अगन विरह की

और भी भड़का गई ।

गान मधुर कोयलों का,

वेदना मेरी बढाती ।।

संग मेरे मुस्कुराती सुधि तुम्हारी ।।

खिल उठे हैं फूल टेसू

छीन मेरे मुख से लाली ।

पीत सरसों ने खिल कर,

भावना मेरी छुपा ली ।

हरित आभा ओढ़ अवनि,

है मुझको चिढ़ाती ।।

संग मेरे मुस्कुराती सुधि तुम्हारी ।।

गीत मुझसे मांग कर,

मधुप फिरते गुनगुनाते ।

हर के चंचलता मेरी,

तितलियां सबको रिझाती ।

हूं विलग जान तुमसे ,

यामिनी मुझको सताती ।।

संग मेरे मुस्कुराती सुधि तुम्हारी ।।

***

मिलन पथ‌ की जोगन बनूंगी

अधरों पर कलियों की मुस्कान हो,

जीवन में वीणा की मधुर झंकार हो

पतझर मुझे रास आता नही है,

बसंती पवन का झोंका बनूंगी ।

अम्बर का चंदा बड़ा बेवफा है,

छुप छुप चकोरी को सताता बड़ा है,

अश्क ढलकाती चांदनी की तरह,

रातों की शबनम कभी न बनूंगी ।

पुरजोर आंधियां चलती रहे,

चमचम बिजली चमकती रहे,

नेह के घन उमड़े, बरसते रहें,

पी पी पपीहा कभी न बनूंगी ।

विश्वास से ही मिलता है किनारा,

शांत सलिल हो जीवन की धारा,

महकती सांस से गहराई जान लूंगी,

सिसकती विरहन कभी न बनूंगी ।

सभी कुछ संसार में मिलता नहीं है

भाग्य का साथ भी छिपता नहीं है,

नहीं चाहिए मुझको महल व घरौंदे

मिलन पथ की ही जोगन बनूंगी ।।

***

कौन कर पाया नियंत्रण

करदिया सुधियों ने आकर, हृदय में मेरे अंधेरा,

दीप मैं कैसे जलाऊं, कांपता है हाथ मेरा,

भाव बिखरे नयन गीले, पर लबों पर नाम तेरा,

प्रणय के भाग्य में है, विरह का हंसता सवेरा।

कामना देती निमंत्रण, आज उर के द्वार पर ।।

कौन कर पाया नियंत्रण, हृदय के उदगार पर।।

डोलती हूं बन पथिक मैं एक कमनीय बाला,

उठ रहा क्रंदन हृदय में, मौन मुझसे आज हारा,

प्रेम सुधा के प्यालों से, छलका दो, दो बूंद हाला

पा तेरा स्पर्श वार दूं, प्राण क्या तन-मन ये सारा

चातकी सी पंथ तकती, क्षितिज के इस द्वार पर ।।

कौन कर पाया नियंत्रण, हृदय के उदगार पर।।

तृप्ति का आधार हो, प्रणय का गतिमान जीवन,

दृग पटल को खोलकर, एकटक तुझको निहारूं

आस के झंकार पर ही, है नाचता ये मन मयूरा

अब न टूटे आस कोई, और न उजड़े ये बसेरा

कामनाएं बह चली अब तक के बंधन तोड़ कर

कौन कर पाया नियंत्रण, हृदय के उदगार पर।।

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कामना

जूझ कर कठिनाइयों से जीवन में रंग भरो।

आयेगी नयी भोर, ये कामना करो ।

विचलित न हो हृदय, धीरज की लौ जले।

लक्ष्य अपना भेद के जयी तुम बनो।।

देकर नयी क्रांति, तुम नया समाज दो।

हो अबला प्रबुद्ध, तुम नये संस्कार दो।

दे दो नयी आस्था, हो अस्मिता जयी‌ ।

है शक्ति पुंज इतनी, दुर्गा सती बनो ।।

एकता विश्वास की अखंड ज्योति हो ।

विश्व के लिए तुम इक विभूति हो ।

देकर देश को पहचान इक नयी ।

सबला विकास की शक्ति तुम बनो ।

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स्वरूप

तुम सलिल सरिता शांति की,

नदियां बहाना जानती।

तुम शब्द बन लय छंद,

अज्ञानता को तारती।

तुम सुबह की पहली किरन,

ज्योति पुंज बिखेरती ।

तुम सावन, बरखा की झड़ी हो

प्रेम सुधा न्योछारती ।

तुम गरिमा भावों की

कल्पना संवारती।

तुम ही हो दीपक की बाती,

हर अंधेरा टालती।

बन तुम पुरिइन की पाती

संबंधों को निखारती ।

है नहीं अब शब्द मुझ में,

क्या ज्ञान मैं बखानती।

हो नहीं सकता भगवन हर कहीं,

खुद को रचकर नारी रूप में

शक्ति अपनी डाल दी।।

***

तेरी याद आती मुझे बार-बार

तेरी याद आती मुझे बार-बार,

करती मैं हर पल इंतज़ार ।

सीमित हो गई कठिन साधना,

हर व्यथा कथा बनती जाती ।

सूने पथ पर शीश छुपाती,

ले रजनी से आंचल उधार । ।

तेरी याद आती मुझे बार-बार ।।

कजरारे बादल ने आकर,

अखियों में डेरा डाला।

नीदों ने भी चुरा लिया,

सपनों की मोहक माला।

शीतल सुरभित मलय पवन

से मांग रही हूं गंध उधार । ।

तेरी याद आती मुझे बार-बार ।।

कोकिल बोल निमंत्रण देते,

तन मन पुलकित हो जाता ।

गुच्छ पुष्प सम भाव हैं उमड़े,

प्रणयी मन व्याकुल हो जाता।

आशायें भी हैं मचल उठी,

सागर से लें लहरें उधार ।।

तेरी याद आती मुझे बार-बार ।।

***