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फेसबुक दोस्त

फेसबुक दोस्त:
इसबार यात्रा पर निकला तो मैंने एक झोले में ढेरसारे फूल रख लिये। पहला फूल, फूलवाली को दिया तो वह थोड़ा सा मुस्करायी और बोली इस फूल को वह अपनी बेटी को देगी। मैं तल्लीताल पहुंच गया था। ठंडी हवा चल रही थी। मैंने अपना काला कोट पहना और झील के किनारे खड़ा हो गया। लोग आ- जा रहे थे। मैं झील पर तैरती मछलियों पर मन को फिरा रहा था। तभी एक युवती मेरी ओर बढ़ी और बोली," आप मेरा फोटो ले दीजिये।" मैंने उसका मोबाइल लिया और  उससे पूछा फोटो में क्या-क्या आना चाहिए?  वह बोली," झील, लहरदार बादल,धुंध, पीछे के पहाड़ , वृक्ष , शहर ।"   चलो, मैं इसमें अपना प्यार भी भर दूँगा, मैंने उसको फूल थमाते हुए कहा। और फोटो ले ली। उसने फिर फूल अपने बालों में लगा लिया और फिर फोटो लेने का आग्रह किया। मैं थोड़ा खो सा गया। सोच रहा था तब भी ऐसी ही हवा चल रही थी, वह मेरे लिए पाठ्यक्रम लायी थी। मैं सही समय पर वहाँ पहुंच गया था। तब प्रकृति के सौंदर्य पर इतना ध्यान नहीं जाता था।  दिसम्बर का महिना था। मैंने कोट की अन्दर की जेब में पाठ्यक्रम रख दिया था।ठंडी हवा झकझोर रही थी और प्यार के तन्तु निकल रहे थे।तब जीरोक्स तो नहीं आया था, मूल प्रति ही रही होगी। मैं सोच में डूबता जा रहा था कि लड़की बोली "खींचीये"।  मैंने फोटो खींच कर फोन वापिस किया। वह नाव में बैठने का आग्रह करने लगी। मेरा मन सशंकित हो रहा था और वह ऐसे व्यवहार कर रही थी जैसे मुझे सालों से जानती हो।जब नाव बीच झील पर पहुंची तो वह मेरे बगल में बैठ गयी और बोली," कोई कविता सुनाइये।"  मैं चकित सा, बोला तुम कैसे जानती हो कि मैं कविता लिखता हूँ। मैंने फोन खोलकर उसमें लिखी कविता पढ़ दी-
"प्यार मैंने क्यों चुना था
कह दूँ तुम्हें या चुप रहूँ,
कदम मेरे क्यों बढ़े
कह दूँ तुम्हें या चुप रहूँ।

तुम वहाँ क्यों खड़े थे
पूछ लूँ तुम्हें या चुप रहूँ,
राह तुमने क्यों बदल दी,
पूछ लूँ तुम्हें या चुप रहूँ।

प्रेम पत्र क्यों लिखा
कह दूँ तुम्हें या चुप रहूँ,
दिल ने चुपके क्या कहा
कह दूँ तुम्हें या चुप रहूँ।

प्यार सुन्दर क्यों दिखा
कह दूँ तुम्हें या चुप रहूँ,
वह क्षण मैंने क्यों चुना
कह दूँ तुम्हें या चुप रहूँ।

तुमसे बिछुड़ कर क्या लगा
कह दूँ तुम्हें या चुप रहूँ,
सपना उधर क्यों बहा
कह दूँ तुम्हें या चुप रहूँ।

प्यार की बातें क्यों कहीं
कह दूँ तुम्हें या चुप रहूँ,
प्यार से भेंट कब-कब हुई
कह दूँ तुम्हें या चुप रहूँ।"
नाव मल्लीताल पहुंच चुकी थी। उसने मुझे पैसे नहीं देने दिये। हम बैंच पर बैठ गये और वह डायरी में कुछ लिखने लगी। तभी मूँगफली वाला वहाँ से निकल रहा था। मैंने उससे मूँगफली खरीदी। वर्षों पुराना स्वाद याद करने लगा, जब ठंड में किसी से भी माँग कर खा लेते थे। लड़की को देख मैं कशमकश में था लेकिन लड़की स्वाभाविक लग रही थी, बिना हिचकिचाहट अपना काम कर रही थी। मैं सोच रहा था फेसबुक पर दोस्ती के आग्रह जो आते हैं, उनमें से तो कोई नहीं है यह! इतने में, उसने फिल्म देखने का प्रस्ताव रख दिया।अब मेरे हाथ-पैर ठंडे होने लगे। वह टिकट लेने चले गयी। आधा घंटे बाद फिल्म आरम्भ हुई। कैपिटल सनेमा हाँल की पुरानी दास्तान याद आ गयी। बीच में यह हाँल बंद हो चुका था।  वह बीच-बीच में डायरी में कुछ लिख रही थी। मैंने पूछा तो बोली,"आपको पत्र लिख रही हूँ।"   मुझे एक याद आ गयी जब डलास, यूएसए से सिनसिनाटी आते समय मेरे बगल में बैठी लड़की बहुत तेज लिख रही थी। पूछने पर उसने बताया कि वह अपने पिता को पत्र लिख रही है। पूरी यात्रा के दौरान वह लिखती रही।इतना क्या लिखा होगा, पता नहीं? मैंने तो एक या दो पंक्तियों के पत्र भी लिखे हैं। अनुभूतियों और भावनाओं का विस्तार इतना बढ़ा हो सकता है। फिल्म समाप्त होने के बाद कंसल बुक डिपो , घूमते-घूमते  पहुंच गये। उसने फिर प्रस्ताव रखा "रज्जु मार्ग से स्नो व्यू चलते हैं।"  मैंने कहा मुझे रानीखेत जाना है। तो वह बोली कल जाना। स्नो व्यू पहुंच कर उसने बहुत फोटोग्राफी की। फिर चाय पीते-पीते मेरी पोस्टें  पढ़ने लगी।
मैं उसकी डायरी देखने लगा। उसमें लिखा था," हे ईश्वर, मुझे अपना फेसबुक दोस्त मिल गया है। वह उतना ही रोमांटिक और जीवंत है जितना मैं सोच रही थी।वह कविताएं सुनाता है, कहानियां कहता है। जब मैंने उनसे कहा ," आज समाचार है कि पैंसठ साल के गायक और अठाईस साल की उसकी शिष्या को प्यार हो गया है तो वे  सुनकर गंभीर दिखे। मैं उनकी एक पोस्ट पढ़ रही हूँ।" -"थोड़ा खो जाएं:
आज नन्हे बच्चों के स्कूल किडजी में जाना  हुआ। वरिष्ठ नागरिकों के लिए तीन कार्यक्रम रखे गये थे। एक खेल में 12 गिलास थीं, उनके पीछे तले पर १,२,३  लिखे थे, गिलासों को तस्तरी में लगाना था और उनमें अपने अनुमान से एक, दो और तीन गोटियां डालनी थी।एक मिनट में यह सब करना था। फिर खेल कराने वाली महिला पता लगाती थी, किस गिलास में सही गोटियां डली हैं। जिसने सबसे अधिक सही गोटियां डाली होतीं, वह जीत जाता। 
दूसरे खेल में एक से बीस तक गिनती बारी बारी से पढ़नी थी, लेकिन पाँच, दस, पंद्रह और बीस नहीं कहना था। बीस के बाद फिर एक से उसी क्रम में जल्दी-जल्दी बोलना था।  जो पाँच, दस, पंद्रह और बीस बोल जाता था, वह आउट हो जाता था। अन्त तक जो रह जाता ,वह विजयी हो जाता था।
तीसरे खेल में संगीत बजता था और गेंद जल्दी-जल्दी अगले व्यक्ति को पास करनी थी, जहाँ पर संगीत बन्द होता था, उसे टोकरी से चिट निकालना था और उसमें लिखे गीत को गाना था, यदि गीत न आता हो तो अपने मन से कोई गीत या भजन गाना होता था। सभी ने पुराने गाने ही गाये या भजन। दो महिलाओं ने भजन गाया जिसका भाव था," हे कृष्ण तुम पृथ्वी पर आना, राधा को साथ में लाना। हे राम तुम धरती पर आना, सीता जी को साथ में लाना।"
एक बुजुर्ग ने गाया," पल-पल दिल के पास, तुम रहती हो--।" दूसरे ने," याहू, चाहे तुम मुझे जंगली कहो---।"  एक स्वर था," ओ मेरी जोहर जबीं, तुझे मालूम नहीं---। दूसरा स्वर था," रात बाकी, बात बाकी ---।" 
मेरा पास जब गेंद रूकी तो मैं असमंजस में पड़ गया कि क्या गाया जाय। फिर मुझे याद दिलायी गयी और स्वर निकले," हे, नील गगन के तले, धरती का प्यार पले,
ऐसे ही जग में आती हैं सुबहें, ऐसे ही शाम ढले---।"
फिर बगल से स्वर फूटा," कभी, कभी मेरे दिल में ख्याल आता है---।" और ," ये दोस्ती हम नहीं छोड़ेंगे---।" सब बहुत दूर निकल गये थे बचपन में।और कार्यक्रम का उद्देश्य भी यही था। 
अन्त में चार साल की लड़की ने गाया," आजकल तेरे-मेरे प्यार के चर्चे ,हर जबान पर---।" तो सभी बुजुर्ग ठहाका लगा कर हँसने लगे। इसके बाद ,राष्ट्रगान के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ।"  इतने में उसने डायरी वापिस माँगी। शाम होने को थी। रात को एक ही होटल में ठहरे। मैंने उससे पूछा," तुम्हें गाना आदि कुछ आता है।" वह बोली हाँ, गाऊँ।और गाने लगी," एक प्यार का नगमा है, मौजों की रवानी है। जिन्दगी और कुछ भी नहीं, मेरी तेरी कहानी है---।"  गाना सुनकर मैं अतीत में खो गया। मैंने पूछा," तुमने यह गाना ही क्यों चुना।" वह बोली उसकी माँ ने कहा था "आप यदि कभी मिलें तो यह गाना सुना देना।" मैंने  उसे गले लगाया और कहा बहुत सुन्दर हो अपनी माँ की तरह।
***महेश रौतेला