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वक़्त का खेल

“ वक़्त का खेल “

एक क्रिकेट मैच, दूसरी राजनीति, तीसरी फिल्में सर चढ़कर बोलती हैं और चौथी तो गपशप सभी के बारें में ये तो सर्वविदित है जैसे ही इस लाइन पर मुकेश आज पंहुचा था एक आर्टिकल पढ़ते-पढ़ते आज मन एक बार फिर से हिलोरें मरने लगा था कि उसे देश की राष्ट्रीय टीम का क्रिकेटर ही बनना है| स्कूल क्रिकेट हो या जिला क्रिकेट हो सब जगह उनकी धाक और जलवे से हर कोई वाकिफ था| यहाँ तक कि एक बार मुकेश और दोस्तों रवि , अजीत और स्वप्निल को तो अपने घरवालों से दो -दो हाथ तक करने पड़े थे और आख़िरकार सबके घरवालों को उनकी क्रिकेट फीस भरनी ही पड़ी वो जान चुके थे कि क्रिकेट को लेकर इनमें अजीब सा पागलपन सवार है जो अपने सामने किसी को नहीं देखता है सिवाय मैदान में घूमती बाल के जिसको ये कभी प्यार से कभी मार से मनचाही जगह भेज देते हैं |

आज चारों दोस्त अंडर १९ क्रिकेट में खेलने से पहले अतीत के पन्नों में खो से गए थे | जब उन्होंने घरवालों से झगड़ा, किया हो या अखबारों में मैच की चर्चाओं में एक दूसरे को हराना हो या फिर धूप में बिना खाए पिए पागलों की तरह घंटों बल्ले को गेंद पर तड़ातड़ चमकाते रहना हो |

अगले दिन अख़बारों की सुर्ख़ियों में चारों ही दोस्त किस्मत से छाए थे पहली बार| किस्मत से इसलिए क्यूंकि हर कोइ क्रिकेट के अलग- अलग स्तंभों में काबिज थे मुकेश गेंदबाजी में तो स्वप्निल फील्डिंग में अजीत धुआधार बल्लेबाजी में और रवि का क्या कहना वो तो आलराउंडर थे चाहे बल्ले से कमाल दिखाना हो या गेंद से या गेंद को बाज की तरह झपट के पकड़ना हो हर जगह उस्ताद थे आज सबको एक तरफ रखकर उन चारों ने बेहतरीन प्रदर्शन किया था |

घरवाले भी पुरानी बातों को भुलाकर बधाई दे रहे थे | चारों की दोस्ती भी बहुत मानी जाती थी क्रिकेट टीम में पर आज कल वो बहुत व्यस्त रहने लगे थे ऐसा प्रतीत होता था कि महत्वकांक्षा के छुपे सर ने उनके अन्दर पैठ बना ली थी | हुआ ये था कि रणजी खेलने के बाद से कुछ हलकी सी खटास चारों में पड़ने लगी थी | अब चारों का चयन देश की राष्ट्रीय टीम में हो चुका था, चयनकर्ता उनके प्रदर्शन से काफी खुश थे | रवि चूँकि आलराउंडर था चारों में जाहिर सी बात थी कि उसे ही टीम का कप्तान चुना जाना था | और वही चुना गया रवि इस पद से थोड़ा घमंड में आ गया दोस्ती के ऊपर कप्तानी हावी हो चुकी थी चाहे मैदान की बात हो या मैदान के बाहर या टीम मैनेजमेंट के सामने , हर जगह वो अपने को ही श्रेष्ठ साबित कर देता था और उन्हें सीखें या कमी निकाल कर ,बुरी तरह नीचा दिखा देता था | उसने उठना बैठना तक बंद कर दिया उन लोगों के साथ , मुकेश, स्वप्निल, अजीत , सभी अपने प्यारे दोस्त के इस व्यवहार से चिंतित थे| कई बार समझया दोस्ती का वास्ता भी दिया लेकिन जब श्रेष्ठता का नशा सर चढ़कर बोलता है तो अच्छे अच्छे नशे में चूर हो जाते हैं |

इधर दूसरे देश की टीम के साथ आज अपनी ही देश की धरती पर पहला मैच इन चारों धुरंधरों को खेलना था | ये पहली सीरीज थी विदेशी टीम की |

ये मैच बहुत निर्णायक था कई नजरियों से, विदेशी टीम ने टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी करने का निर्णय लिया | रवि का निर्णय पहले ही गलत साबित हो गया मुकेश की जगह उसने दूसरे गेंदबाज़ से ज्यादा ओवर डलवा दिए | बल्लेबाजों ने उसके ओवर में खूब रन बटोरे | विदेशी टीम आज दूसरे देश की सरजमी पर रनों का पहाड़ खड़ा कर ही देती अगर मुकेश का ओवर का स्पेल बीच में न आया होता | अपने दो ओवरों में ही केवल तीस रन देकर उसने चार विकेट चटका के विदेशी टीम को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया और वे २० ओवरों में केवल १५० रन का स्कोर ही खड़ा कर सके |

यह एक सम्मानजनक स्कोर था जिसका पीछा करना इतना आसान नहीं था पर इतना मुश्किल भी नहीं बस अजीत ही एक मात्र खिलाड़ी था जिस पर पूरी टीम भरोसा करती थी कि अगर वह टिक गया कुछ शुरुआती ओवरों तक तो टीम को जीतने से कोई नहीं रोक सकता था | लेकिन ऐसा संभव तभी हो पाता जब अजीत को ओपनर के तौर पर उतारा जाता पर रवि के गलत फैसले ने आज फिर ड्रेसिंग रूम में बखेड़ा खड़ा कर दिया टीम मैनेजमेंट की भी उससे झड़प हो गयी लेकिन अपने आगे उसने एक न चलने दी | और

अजीत की जगह दूसरे ओपनर को भेज दिया | उसके एक गलत फैसले से पूरी टीम का मनोबल भी चरमरा गया और मैदान पर विकटों के गिरने का सिलसिला शुरु हो गया , ५ विक्केट के नुकसान पर केवल ६० रन ही बना सकी थी मेजबान टीम १० ओवरों में, अब अजीत की बारी थी अब तो उसे वैसे ही उतरना था जैसे ही वह मैदान में उतरा| रक्षात्मक खेल दिखाते हुए पहले तो विरोधियों के हौसले पस्त किये फिर शुरु हुआ हर ओवर में चौकों और छक्कों की बरसात ये किस्मत ही थी कि दूसरे छोर पर बल्लेबाजों का हौसला भी अजीत स्ट्राइक बदलते समय कर देता था और अब सभी को लगने लगा था कि विदेशी टीम को हम अपनी ही सरज़मी पर हराने में कामयाब हो पाएंगे | आख़िरी ओवर में जब जीत के लिए दस रन चाहिए थे तभी लॉन्ग आन पर छक्का जड़ने के चक्कर में अजीत अपना विकेट गँवा बैठे उनका कैच लपक लिया था मेहमान खिलाड़ी ने वो भी जबरदस्त तरीके से | अब अकेली आस स्वप्निल से ही बची थी, ड्रेसिंग रूम से हाथ हिलाते हुए उसे अपने दोनों खिलाड़ी दोस्त मुकेश और अजीत दिख रहे थे पर रवि अकेले कोने में बैठा था

वो जानता था कि स्वप्निल फील्डिंग ही अच्छी कर पाता है और बची-खुची थोड़ी बहुत गेंदबाजी लिहाजा उसने सीट से उठकर उसका मनोबल बढ़ाना भी उचित नहीं समझा | एक कप्तान होने के नाते उसे अपनी निजी मसलों को अलग रखना चाहिए था और टीम स्पिरिट जगाने के लिए पूरी टीम के साथ खड़े होना चाहिए था सारे खिलाड़ी इस समय स्वप्निल का मनोबल बढाने के लिए खड़े हो गए थे | स्वप्निल पर बहुत दबाव था पहला न तो बल्लेबाजी की उसे गहरी समझ थी दूसरी कम गेंदों पर जादा रन चाहिए थे जीत के लिए | दो गेंदें वह झेल गया एक भी रन न बना पाया | अब बाकी बची थी तीन गेंदें और जीत के लिए चाहिए थे १० रन अब घबड़ाहट उसके दिलो-दिमाग पर हावी हो चुकी थी | एक तो टीम के कप्तान का भरोसा नहीं ,दूजा बल्लेबाजी आती नहीं तीसरा, दो दोस्त ही चिअर उप करने के लिए खड़े थे |

लेकिन ये क्या अचानक रवि ने अपने आप ही मुकेश और अजीत के साथ वहां से हाथ हिलाकर गले में हाथ डाल कर और पैर हिलाकर जो नाच दिखाया ऐसा लगा पुराना रवि वापस आ गया है अपने अच्छे दोस्त का डर खतम करने के लिए और उससे भी ज्यादा जरूरी अपनी टीम स्पिरिट को दोस्ती से ऊपर रखने के लिए | रवि का अकेले में बैठकर मंथन करने का सदपरिणाम सामने आ ही गया था फिर क्या था स्वप्निल ने जोश जोश में फ्रंट फुट आगे निकाल कर मिड आन के ऊपर से जो धड़ाके से छक्का लगाया सब देखते रह गए | उसे खुद भी यकीन नहीं हो पा रहा था ,वह बुरी तरह चौंक उठा था शायद उसे लगा कि ‘मैन आफ द मैच’ गलती से उसे न मिल जाए या फिर टीम स्पिरिट को अपने पुराने दोस्तों की जुडी हुयी गहरी दोस्ती समझ बैठा था तो ख़ुशी के मारे छक्का लग गया हो फिलहाल जो भी हो अगली गेंद पर स्वप्निल जी ने फिर निराश कर दिया उनके सर के ऊपर से दो बाउंसर निकल गयी थी एक साथ पहली कि तीनों को साथ हँसता खिलखिलाता देखकर झूमते, अचानक लपलपाती दोस्ती की ये ग़लतफ़हमी सही थी या गलत और दूसरी बाउंसर वो गेंद थी जो सर के ऊपर से निकल गयी थी अब ये सोचते कि असली बाउंसर कौन सी थी अपने दिल- दिमाग को ठंडा करके आख़िरी गेंद पर स्वप्निल जी ने फोकस किया और ये तो तारीफे काबिल से भी आगे था उसने बाहर जाती गेंद को हुक कर दिया और गेंद सीमारेखा के थोड़ा ही बाहर गिरी थी सब ख़ुशी से नाच उठे |

टी शर्ट उतारकर इस बार रवि ने मैदान की तरफ दौड़ लगा दी | उसके पीछे बाकी टीम के साथी थे सभी ऐसे झूम के नाच रहे थे जैसे ये बिलकुल अप्रत्याशित जीत थी | कर्तव्य देश के प्रति हो चाहे टीम के लिए जब निजता और अहम् से ऊपर निकल कर आ जाता है तो ऐसे ही अप्रत्याशित परिणाम देखने को मिलते हैं | और सबसे बड़ी बात यही थी कई गलतियों के बावजूद कर्तव्य सही समय पर निजता और अहंकार से ऊपर उठकर आ गया था अन्यथा एक गेंद या दो गेंद बाद रवि को अहसास होता तो क्या फायदा होता और वैसे भी क्रिकेट तो अवसर का खेल कहा जाता है और सही गेंद पर हिट करने का अवसर निकल जाता तो शायद दोस्ती भी हाथ से निकल जाती क्यूंकि सभी ये जान चुके थे कि निजी स्वार्थ और बदले के कारण ही अजीत को ओपनर नहीं उतारा गया था जिसके चलते टीम गड्डे में जा गिरी थी |

और अब रवि को अपनी गलती का अहसास हो रहा था कि उसका नजरिया गलत हो चला था ,सबने उसे माफ़ कर दिया और माफ करते भी क्यूँ न आखिर वह उनका अपना ही तो बचपन का पागल सनकी क्रिकेटर था जो मैदान पर तो आलराउंडर था पर गलती से वह ज़िंदगी में भी अपने को हद से ज्यादा ही आलराउंडर समझ बैठा था |