Swabhiman - Laghukatha - 23 in Hindi Short Stories by Jyoti Sharma books and stories PDF | स्वाभिमान - लघुकथा - 23

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स्वाभिमान - लघुकथा - 23

  • "एक नया आसमां"
  • "अरे! तू तो बीमार थी कमली फिर क्यों आयी?
  • और आज तो वैसे ही करवा चौथ हैमैं ये जानती हूं कि बीमार होने पर भी तू इसे छोड़ेगी नहीं तो आज और आराम कर लेती घर पर"
  • 'बीबीजी सच कहूँ तो आपके साथ दिन भर रहने की आदत सी हो गयी हैआपके बिना मन नहीं लगता'
  • और अब मैं ठीक हूँ दो दिन से मेरा मरद काम पर नहीं गया बेचारादिन-रात गीला कपड़ा कर पट्टियां लगाता रहा डॉक्टर के कहने सेइसलिये बुखार उतर गया अब मेराबेचारे ने कई महीने रिक्शा ज्यादा चलाकर पैसे जोड़े थे जिससे ये मंगलसूत्र भी लाकर दिया। ।
  • ये देखियेपूरे पांच हज़ार का है'
  • हाथ नचाते हुए जब वो बोली तो रागिनी की हंसी रुक सकी
  • 'कमली बहुत प्यार करता है तेरा पति तुझेबड़ी भाग्यवान है री तू'
  • ये सुनकर वो लजा गयी और नज़रें नीची कर नाखून से फर्श कुरेदने लगीं
  • फिर कुछ सोचकर बोली'बीबीजी आप आज वो ज़री वाली बनारसी लाल साडी ही पहनना और पूरा शृंगार करना फिर देखना साहब देखते ही कैसे फिदा होते हैं?'
  • 'धत....अब ज्यादा बातें मत बना...जा जाकर रसोई में देख दूध उफन गया हो कहीं?'
  • ये कहकर रागिनी तैयार होने चल दीआईने में खुद को निहारने लगी .....कहाँ दूध सी धवल, सुगढ़ नाक-नक्श और खूबसूरत काया वाली रागिनी? कहाँ काली मोटी बदसूरत कमली पर मन से वो उतनी ही खूबसूरत थी
  • पर पर.… पति के प्यार के मामले में बिल्कुल उलट तकदीर
  • ये सब सोचते हुए गीली कोरों को हथेली से पौंछते हुए वो तैयार होने लगी
  • हाथों में हीरे की चूड़ियां , कानों में कुंदन के झुमके, गले में रानीहार, सलीके से किया मेकअप, ज़री वाली लाल बनारसी साड़ी में रागिनी किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थी
  • वाह! बीबीजी आज तो साहब गश खाकर गिरने वाले हैं आपको देख कर
  • उफ्फ.… क्या क्या बोलती है जाने?.…
  • रागिनी की नज़र कब से दरवाजे पर ही थींघड़ी की टिकटिक धड़कनें बढा रही थी
  • 'बीबीजी नौ बज गए साहब अभी तक नहीं आये'
  • ' जाएंगे तू जातेरे मरद ने भी तो उपवास रखा है बेचारा भूखा बैठा है तेरे इंतज़ार में'
  • 'पर बीबीजी आप अकेली'
  • ...'अरे तू फिक्र मत कर, ये आते ही होंगे'
  • 'जी बीबीजी, मैं चलती हूँअपना ध्यान रखनाचाँद देख कर समय से ही खाना खा लेना'
  • 'हाँ री तू जाइतनी फिक्र करा कर मेरी'
  • तभी रुद्र ने लड़खड़ाते कदमों से घर में प्रवेश किया और एक लड़की उसकी बाहों में थी
  • 'मीट माय प्रीटी वाइफ रागिनी'
  • 'और ये है ज़ोया मेरी नई सेक्रेटरी'
  • 'है ना ब्यूटिफुल ?'
  • रागिनी के मुँह के पास अपना मुंह लाकर बड़ी बेशर्मी से उसने कहा तो शराब की बदबू के कारण रागिनी पीछे हट गई
  • अच्छा 'सुनो डोंट डिस्टर्ब अस'
  • 'पर आज तो करवा चौथ हैआज तो ये सब....…
  • आपकी लम्बी उम्र के लिए सुबह से भूखी बैठी हूँ मैं और आप?'.…
  • चटाक.… एक जोरदार चांटा रागिनी के गाल पर पड़ा
  • 'साली! मेरे ही टुकड़े खाती है और मुझसे ही जुबान लड़ाती हैइतने गहने, बंगला-गाड़ी सब तो दे रखा है तुझे और क्या चाहिए ?'
  • ये कहते ही उसने उस लड़की को अंदर ले जाकर बैडरूम अंदर से बंद कर लिया
  • पर आज रागिनी रोई नहींउसने दाँतों तले होठ काट लियाखून की धार बह निकली पर वो जख्म उसके दिल के जख्म के सामने कुछ भी था
  • फिर अचानक दृढ़ता से कुछ सोच उसने अपनी m.b.a. की डिग्री और बाकी ज़रूरी कागज़ात निकालेऔर वकील को तलाक के पेपर्स तैयार करने को कहनिकल पड़ी उस सोने के पिंजरे से बाहर अपने लिए एक नया आसमां ढूंढने
  • ***
  • 2.आज की दुर्गा

    आज शुभि को दिल्ली जाना था एक प्रेजेंटेशन के लिएस्टेशन पर ट्रेन का इंतज़ार करते हुए उसकी नज़र आस पास पड़ींहद से ज्यादा भींड़ थी वहाँस्टूडेंट्स ही थे ज्यादातरपैर रखने तक को जगह नहीं थीशुक्र है उसने रिजर्वेशन करवा लिया था और वैसे भी कॉलेज की प्रेजिडेंट और ब्लैक बेल्ट चैंपियन होने से उसमें आत्मविश्वास भी गज़ब का थाफिर उसे किसका डर? ये सब सोचते हुए उसने खुद को दिलासा दियापास ही में करीब उन्नीस बीस ग्रामीण लड़कियों का एक ग्रुप थाजो कि स्टेशन पर ज़मीन पर ही बैठीं हुईं थींउन्हें देख उसने मुँह बिचकायाहुंह गंदे गंवार लोगउनमें से कुछ किताब खोले पढ़ भी रहीं थींउनकी बातों को सुनकर लगा कल पुलिस कांस्टेबल का एग्जाम हैजिसे वो भी देने जा रहीं हैं'उफ़्फ़ तभी इतनी भींड़ है आज'उसने सोचा

    तभी सीटी बजाती हुई ट्रेन भी गयीआश्चर्य से आंखें फैल गयीं उसकीपूरी ट्रेन पर, खिड़कियों पर यहाँ तक कि छत पर भी ढ़ेर सारे लड़के ही लड़के बैठे हुए हैंतिल भर भी जगह नहींएक बार वो डरी, थोड़ा सहमी पर फिर उसके अंदर की ब्लैक बेल्ट चैंपियन बोल उठीअरे! तू ही डरेगी तो इनके जैसी गंवार, कमज़ोर लड़कियाँ क्या करेंगी भला? कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता तेरा, चल चढ़ जा

    धक्का मुक्की करके वो चढ़ने लगी उसके थर्ड .सी. डब्बे में बगल में ही जनरल लेडीज कोच था जिसमें वो ग्रुप भी चढ़ रहा थातो एक बार फिर से मुँह बिचका दिया उसने घृणा सेअपने डिब्बे में गयी तो देखा ऊपर-नीचे सब जगह लोगों ने डेरा जमा रखा थाउसने उन्हें हटने को कहा तो बोलेमैडम जी आज कोई रिजर्वेशन है कोई कौआज तौ बस हमारौ ही राज़ रहैगो यहाँ

    हालांकि उसे बैठने की जगह तो दे दी पर उस डब्बे में वो अकेली ही लड़की थीबाकि सब आवारा, गंवार से दिखने वाले लड़के ही कब्ज़ा करके बैठे थेट्रेन चल पड़ी रात के आठ बजे थेकॉलेज में उसने इतने आवारा मजनुओं को ठोका हैपर यहां तो पूरा डब्बा ही आवारा मजनुओं से भरा पड़ा हैवो उस पर फब्तियां कसने लगेअंधेरा बढ़ते ही कुछ तो उससे सट कर बैठ गए और जैसे ही उनमें से एक ने उसे छूने के लिए हाथ बढ़ाया उसने उसे कस कर उसे एक जोरदार लाफा मार दियाइससे वो सारे तैश में गए और उसे पकड़ लिया और उनमें से एक लड़का बोलाले अब हम तुझे सिर्फ छुएंगे ही नहीं तेरे साथ….ऐसा कहकर दूसरे लड़के की तरफ आँख दबाते हुए बेशर्मी से ठहाके मार कर हंसने लगा’ ‘ले अब बुला ले किसी को खुद की इज़्ज़त बचने के लिएजैसे ही उसने उसके टॉप की तरफ हाथ बढ़ायाएक लात उसके मुँह पर लगी और दो दाँत टूट कर बाहर गिरे उसकेशुभि ने भौचक्की होकर सामने देखा तो सामने उन्हीं लड़कियों का ग्रुप खड़ा थाउनमें से कुछ ने उन लड़कों को हॉकी से ठोकना शुरू कियाधड़ाधड़ हाथ और लातें चल रहीं थीं उनकीचोट खाये नाग की तरह जब सारे लड़के एक साथ उनकी ओर बढ़ने लगे तो हाथ में उन लड़कियों ने बड़े बड़े चाकू निकाल लिए और बोलींबेटाऔ, वहीं रुक जाओ, नहीं तो एक एक की गर्दन अभी नीचे पड़ी होगी

    चलो मैडम हमारे साथइस दुनियां में जब रावण ही रावण भरे पड़े हों तो हमें खुद ही दुर्गा बणना पडेगो कोई राम आवेगों हमें यहां बचावे

    ***

    3.

    "डार्विन का सिद्धान्त"

    फ़ूट फ़ूट कर रोते रोते हुए अचानक वो उठी और आंखों से आंसू पौंछ, कुछ दृढ़ निश्चय कर अलमारी से साड़ी निकाली और फंदा गले में डाल लिया

    अब तक का सारा जीवन चलचित्र के सदृश उसके जहन में घूमने लगा

    पढ़ाई लिखाई में बचपन से ही तेज़ थी वोउसके पिता कस्बे से बाहर शहर कॉलेज जाकर पढ़ने के विरोधी थे इसलिए घर पर रहकर दूरस्थ शिक्षा से उसने परास्नातक तक पढ़ाई की वो भी गोल्ड मेडल के साथपर उसमें आत्मविश्वास की कमीं थी वो कुछ अंतर्मुखी, अपने में ही सिमटी और सहमी हुई सी रहती थीकिसी बाहरी व्यक्ति से बात करने में भी बहुत झिझकती थी वोक्योंकि बचपन से ही उसने घर में पिता का कठोर अनुशासन और हमेशा माँ को उनके सामने नतमस्तक होते हुए देखा हैछोटे भाई से भी जब कभी उसकी लड़ाई होती तो माँ सिर्फ उसे ही चुप रहने को कहती और यही समझाती रहती कि बेटी लड़कियों और औरतों को तेज बोलना, ज्यादा ज़ोर से हँसना, बहस करना इन सबसे बचना चाहिए तभी घर इन सुख शांति रह सकती है'

    तो बस इन्हीं बातों को दिल में सहेजे वो ससुराल चली आयीयहाँ पर भी सारे दिन काम में खटते रहना पर उसे बदले में पति, सास और ससुर और ननद के ताने और दुत्कार ही मिलतींमाँ बाबा से कुछ कहती तो कहते 'बेटी तुम्हारा घर अब वही हैहर हाल में तुम्हें वहीं रहना हैथोड़ी और सहनशीलता रखो सब ठीक हो जाएगा'

    ऐसे ही दो बरस बीत गए अब तो बच्चा होने के ताने भी उसे दिए जाने लगेअभी कुछ देर पहले भी खाने में कमीं बताकर उसे जली कटी सुनाकर उसके माँ बाप को कोसा गया तो दौड़ कर वो कमरे में चली आयी

    "अब और कोई रास्ता नहीं बचा अब बर्दाश्त नहीं होता माँ"

    पत्र लिख टेबल पर छोड़ दिया

    और स्टूल नीचे से वो हटाने ही वाली थी कि तभी उसकी साइंस टीचर का मुस्कुराता चेहरा उसके दिमाग में कौंध गया और उनका पढ़ाया पाठ डार्विन का सिद्धांत 'survival of fittest(योग्यतम की उत्तरजीविता) भी घूमने लगा

    तभी अचानक एक झटके से उसने फंदा गले से निकाला और 100 . मोबाइल से डायल कर दिया

    मौलिक अप्रकाशित

    ज्योति शर्मा