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बदलते जज़्बात

कहानी— बदलते जज़्बात




सुबह के पाँच बजे मुम्बई सेंट्रल रेल्वे स्टेशन पर अनाउंसमेन्ट होती है—"यात्रीगण कृपया ध्यान दें ! गाड़ी संख्या पाँच नौ चार चार दो अहमदाबाद-मुम्बई सेंट्रल साधारण सवारी गाड़ी प्लेटफॉर्म क्रमांक पाँच पर आ रही हैं। धन्यवाद।" , , , , , "पैसेंजर्स आर अटेन्शन प्लीज ! ट्रेन नम्बर फाइव नाइन फोर फोर टू अहमदाबाद-मुम्बई सेंट्रल पैसेंजर इज अराइविंग ऑन प्लेटफार्म नम्बर फाइव। थैंक्यू।"

कुछ देर में हॉर्न बजाती हुई ट्रेन धीरे-धीरे प्लेटफॉर्म पर आकर रूकती है………सभी यात्री ट्रेन से उतरने लगे। ट्रेन खाली होने पर मुम्बई की ट्रेनों में कचरा उठाने वाले कुछ लड़के और कुछ आदमी अपनी–अपनी बोरियों के साथ प्लास्टिक, पॉलिथीन का कचरा उठाने के लिए ट्रेन के अलग–अलग डिब्बों में चढ़ते हैं।

एक आदमी ने कचरा उठाते-उठाते कम्बल से स्वयं को पूरी तरह ढ़ककर सोए हुए एक व्यक्ति को हिलाकर कहा- “ऐ भाय ! मुम्बई आ गया, उठ जा।"

चेहरे से कम्बल हटाकर धूल-मिट्टी के कचरे से भरे लगभग छः महीने से बढ़े हुए सर के बाल और लगभग छः महिने से बढ़ी हुई दाड़ी-मुँछ के चेहरे वाले आयु में छब्बीस(26) वर्ष के युवक ने पूछा—“कौनसा स्टेशन हैं ?"

आदमी “मुम्बई सेंट्रल" बोलकर कचरा उठाता हुआ आगे बढ़ गया। कम्बल ओढ़े हुए युवक सीने से चिपका कोई सामान छिपाए खड़ा होकर ट्रेन से बाहर आया और यात्रियों के बैठने के लिए बनाई गई एक कुर्सी पर बैठ जाता है।

युवक पर अभी तक नींद का असर है। युवक ने रेल्वे की घड़ी में टाइम देखा। सुबह के पाँच बजकर बीस मिनट हुए है। कम्बल ओढ़े हुए युवक खड़ा होकर सीने से चिपका बैग जैसा सामान छिपाए अपना चेहरा ढ़ककर हल्के–हल्के कदमों से इधर–उधर देखते हुए स्टेशन के एंट्रीगेट की तरफ चलने लगता है।

सारा स्टेशन झिलमिलाती रोशनी में चमचमाता हुआ बहुत खूबसूरत लग रहा है। स्टेशन पर अभी ज्यादा भीड़ नहीं हैं। रेल्वे के सफाई कर्मचारी सफाई कर रहे हैं। अन्य कर्मचारी और पुलिसकर्मी इधर–उधर आ–जा रहे हैं। चाय–नाश्ते की स्टॉल वालों की चाय–नाश्ते के लिए गुंजती आवाजों के बीच कुछ यात्री ट्रेनों के ईंतजार में खड़े हैं और कुछ यात्री चाय–नाश्ता कर रहे हैं। युवक एंट्रीगेट के पास आकर एंट्रीगेट के सामने एक खम्बें के नीचे बने चमकदार चबूतरे पर खुद को कम्बल से पूरी तरह ढ़ककर वापस सो जाता है।

लगभग आठ बजे एक पुलिसवाले ने युवक को जगाकर पूछा—“कौन हैं तू ? किधर से आया इधर ?"

कम्बल हटाकर बढ़ी हुई दाड़ी-मुँछ वाले चेहरे, धूल-मिट्टी से खराब सर के बाल, गन्दे होकर बिल्कुल मैले हो चुके, लेकिन महँगे पेन्ट-शर्ट और पैरों में महंगे जूते पहने युवक ने खड़े होकर कम्बल अपने ऑफ़िस बैग पर डाला और जेब से निकालकर अपना आधार कार्ड, वोटर आईडी कार्ड, पेन कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस दिखाते हुए कहा—“मुम्बई घूमने आया हूँ।"

पुलिसवाला युवक को सर से लेकर पैर तक देखकर युवक के आईडी प्रूफ देखता है। युवक का नाम विश्वास, आयु छब्बीस(26) वर्ष, पिता का नाम सुभाष, माता का नाम कोमल और रहने वाला जयपुर, राजस्थान का है।

सभी आईडी प्रूफ देखकर पुलिसवाले ने कहा—“राजस्थान से आया हैं ?"


विश्वास ने जेब से टिकट निकालकर दिखाते हुए कहा—“नहीं, सूरत से। ये टिकट।"

पुलिसवाले ने टिकट देखकर आईडी प्रूफ वापस करते हुए कहा—“बैग में क्या हैं ?"

विश्वास—"कुछ नहीं, बस कपड़े वगैरह हैं।"

पुलिसवाला—"दिखाओ।"

विश्वास ने कम्बल हाथ में लेकर बैग पुलिसवाले को दिया। पुलिसवाला बैग की तलाशी लेता है। बैग में कपड़े और मोबाइल के चार्जर के अलावा एक युवा लड़की की सौ(100) से ज्यादा, एक महिला की पचास(50) से ज्यादा और एक पुरुष की नौ(9) तस्वीरें हैं।

पुलिसवाले ने तस्वीरें दिखाकर पूछा—"ये लोग कौन हैं ?"

विश्वास- "शि इज माय बेस्ट फ्रेंड, शि इज माय मम्मी एंड हि इज माय डेड। बट आल हेव पास्ड वे। अब इनमें से कोई भी दुनिया में नहीं हैं।"

पुलिसवाले ने विश्वास के तनावग्रस्त चेहरे को देखकर बैग और तस्वीरें लौटाते हुए कहा—"ओह,,,,,एम सॉ सॉरी। शायद इसीलिए आपका ये हालत हैं। हौंसला रखो। कुछ बातों पर इन्सान का बस नहीं है। अभी आप बाहर किसी होटल या लॉज में रूम लेकर आराम करो। इधर सोना मना हैं। और हाँ, अपना हुलिया और कपड़े चेंज कर लेना। बहुत खराब हो गये हैं।"

विश्वास ने बैग और तस्वीरें लेकर कहा—"इट्स ओके। थैक्यू सॉ मच।"

पुलिसवाला चला जाता है।

विश्वास कम्बल और बैग चबूतरे पर रखकर तस्वीरें बैग की जेब में डालता है। बैग से चश्मा और मफ़लर निकालकर कम्बल समेटकर बैग में रखकर खड़ा होकर हाथों की उंगलियों से अपने सर के बाल ठीक करके गले में मफ़लर लपेटकर बैग उठाकर चश्मा पहनते हुए स्टेशन से बाहर आता है।


शेष आगे जारी हैं.....
लेखक - वर्मन गढ़वाल