bina makeup ki selphie books and stories free download online pdf in Hindi

बिना मेकअप की सेल्फ़ी


सामने बैठी मेरी पत्नी मेरे उत्तर की प्रतीक्षा कर रही है और मै डरपोक सा इधर उधर छिपने के लिए कोई जगह तलाश रहा हूँI सही नंबर के चश्में से भी पहली बार मुझे धुँधला नज़र आ रहा हैI चश्मा ही क्यों, शायद मेरे पेसमेकर ने भी काम करना बंद कर दिया हैI डॉक्टर ने तो कहा था कि अभी कुछ साल आसानी से चल जाएगा पर जब घर में गुर्दा फाड़ने वाला यंत्र मौजूद हो तो भला बाहरी उपकरण भी आपकी कितनी सहायता कर सकते हैI अब मेरी पत्नी अपना पल्लू करीब पैतालीस इंच की कमर में बड़ी जद्दोज़हद के बाद ठूँसकर बैठ गई है और मेरी राय की प्रतीक्षा कर रही हैI

पर शब्द है कि मुझे त्यागकर ब्रह्माण्ड में विलीन हो गए है, लाख कोशिशों के बाद भी जैसे मुँह से हवा ही निकल रही हैI किसी भी भाषा के शब्द मेरे मुँह से फूट ही नहीं रहे हैI टूटी घड़ियाँ, तीन टाँगों पर हवा के साथ लहराती कुर्सियाँ और चिटके हुए काँच के गिलास मेरी आँखों के सामने नाच रहे हैंI मुँह खोलने से पहले हज़ार बार सोचना पड़ रहा है कि अपनी बात को किस तरह से व्यक्त करूँI अगर मैंने इतनी गंभीरता से कभी अपने टीचर की बात को लिया होता तो आज कुछ भी होता पर झोलाछाप लेखक तो कतई ना होताI लेखक होने के बाद भी सारे अक्षर आज मेरा साथ छोड़कर दुश्मन खेमे में चले गए हैंI होंठों को भरपूर कोशिश के बाद कानों तक खींचने के चक्कर में चेहरे पर मुस्कान तो दिख ही रही हैI

पत्नी फ़िर अपनी मधुर आवाज में बोली-"अभी तक आपने मेरी "बिना मेकअप वाली सेल्फ़ी"  के बारे में कुछ नहीं बतायाI

मेरा दिल जैसे बैठ गयाI धड़कन इतनी तेज हो गई जैसे अचानक प्रेमिका का सरप्राइज़ खुद की पत्नी निकल आएI

मैने कहा-"सुनो..."

वह सुनो शब्द से ही ऐसे खुश हो गई मानों मैंने उस पर सौंदर्यशास्त्र वर्णित कर दिया होI

पहली बार मेरे कानों में खनकती सी आवाज़ आई-" जी.."

मैने हाथों से चेहरा पोंछते हुए पूछा -" रुमाल है?"

"चप्पल चाहिए?" वह दहाड़ी

"हाँ ... जो जोड़ी में ना हो वह लाकर दे दोI"

आँखों से ही उसने मेरा आधा खून चूस लिया और गरजते हुए पूछा -"लेखक की प्रजाति, कभी आम आदमी की बोलचाल में भी बात कर लिया करोI"

"मेरा मतलब है कि वह चप्पलें जो कई बार तुमने मुझे फेंक कर मारी हैं और जब भी तुम्हारा निशाना गलती से छूट गया और वह नीचे वालों के आँगन में गिरी और उन लोगो का कुत्ता उन्हें दबाकर दूर कहीं ले गया, वह सारी एक -एक चप्पल पड़ी हुई है, वह तुम मुझे लाकर दे सकती होI"

पत्नी मुझ पर बरसने ही वाली थी कि अचानक उसकी याददाश्त की घंटियाँ बज उठी और वह बोली-"जल्दी से बताइए ना मेरी सेल्फ़ी के बारे में ..."

"हे ईश्वर, अगर इस औरत ने इतनी प्रखर बुद्धि के साथ, कॉलेज के समय पढ़ाई की होती तो मुझे इसको जेब खर्च के चक्कर में ट्यूशन पढ़ाने ना जाना पड़ता और आज मेरी यह दुर्गत ना हो रही होतीI"

मैने थूक निगलते हुए कहा-"ओह, तुम्हारे जैसा सच्चा, निर्मल, भोला और सरल व्यक्तित्व भला इस छोटी सी फ़ोटो में कैसे समा पायेगाI"

पत्नी मुझे एकटक ताकती रही मानों कच्चा ही चबा जाएगीI

बीस सालों में यह चार शब्द मैंने उसके बारे में शायद कभी सोचे भी नहीं थे, सुनना तो बहुत दूर की बात थीI इसलिए वह मुझे भौंचक्की होकर घूर रही थीI मै आगे बोला, तुम्हारी सूरत को देखकर क्या तुम्हें कभी भी ऐसा लगा कि तुम्हें सजने सँवरने की जरूरत हैI तुम्हारी तो सादगी में भी एक ऐसी अदा है जो सामने वाले को “लहूलुहान” कर देI"

पत्नी जो अभी तक मुस्कुरा रही थी, अचानक आक्रामक हो उठी और उसने काँच का गिलास उठा लियाI

मैने तुरँत अपने दोनों हाथ सिर पर रख लिए और घुटने मोड़ कर बैठ गयाI 

वह चीखी-"क्या पागलपन कर रहे है? पानी पी रहीं हूँ मैI"

और यह कहते हुए वह पानी का घूँट भरते हुए बिस्तर पर ही पसर कर बोली-"आप शायद हैरान कहना चाह रहे थेI "

"हाँ...हाँ..तुम्हारी अदा ऐसी है कि सामने वाले को हैरान कर देI अब मुझे पूरी तरह से समझ में आ गया था कि आज चाहे खाना बने या ना बने पर फ़ोटो के बारे में बिना कहे मेरी जान को चैन नहीं हैI अजीब ब्याला है यह औरत भी ..मैने भुनभुनाते हुए कहा

पर वाह रे कान..उसने यह भी सुन लिया और बोली-"अब जल्दी से बता रहे हो या...

बस इसी या.. के बाद के कोई शब्द नहीं  होने से मेरी रूह काँप जाती हैI

"मैने धीरे से कहा-"तो तुम क्या अभी ही सुनना चाहती हो?"

बालों की लट को बड़ी अदा से घुमाते हुए वह बोली-"बिलकुल..जल्दी बताओI"

मेरा मन हुआ कि मै अपने सिर के बाल नोंच लूँ या किसी पत्थर पर अपनी खोपड़ी पटक दूँI इतनी बदसूरत फ़ोटो मेरे सामने पड़ी हुई थीI अरे, ठीक है अगर भगवान ने चेहरे में कोई त्रुटि कर दी है तो उसे रंग-रोगन करके ठीक करने में कोई बुराई नहीं है और अगर चेहरे पर मेकअप नहीं करना है तो कम से कम ज़ुबान पर ही डेंटिंग पेंटिंग कर लोI

यहाँ तो डर के मारे शब्द ही भागे जा रहे हैI समझ ही नहीं आ रहा है कि क्या बोलूँ  और क्या ना बोलूँI ज़्यादा सच्चाई दिखाने के चक्कर में फ़ोटो को अँधेरे में जाकर खींचने की पता नहीं क्या ज़रूरत थीI वह भी सारे दाँत फाड़कर हँसते हुएI उसको भी ना जाने किस हिसाब से ब्राइट कर दिया कि चेहरे पर तो मामूली असर हुआ पर चमकते हुए दाँत “लाल दंत मंजन” का विज्ञापन देते हुए नज़र आ रहे हैI अब क्या कहूँ और क्या छिपाऊं...हे भगवान किस मुश्किल में डाल दिया है तुमने मुझेI

मैंने फोटो का विश्लेषण करने के बाद पत्नी की आँखों में झाँका जो मुझे एकटक देख रही थीI

मैंने कहा-"जहाँ तक मुझे याद पड़ता है, मेरी कई पुश्तों में कभी किसी ने झूठ नहीं बोलाI"

पत्नी तिरछी नज़र से देखती हुई बोली-"हाँ हाँ ..वह तो मै पिछले बीस साल से देख ही रहीं हूँI पर अभी आप सच ही बोलियेI"

"पर तुम तो जानती ही हो कि सच बहुत कड़वा होता हैI"

"हाँ.. मैं सुन लूंगीI"

"ठीक है, पर एक मिनट रुकोI मै जरा कमरे के अंदर चला जाऊंI"

"क्यों..."

"ऐसे ही मेरा मन कर रहा हैI ज़्यादा सच्चाई मुझसे बर्दाश्त नहीं हो पा रही हैI"

"अच्छा ठीक है, आप कमरे के अंदर से ही बोलिएI"

"मैं मोबाइल उठाकर कमरे के अंदर भागा और झट से कुंडी लगा लीI

अंदर जाकर मैने पत्नी की सेल्फ़ी को भरपूर नज़रों से देखा और कहा-"मै कुदरत के फ़ैसलों में दखल अंदाजी नहीं करताI तुम मेरी नजर में इसलिए खूबसूरत हो क्योंकि तुम मेरी जीवन संगिनी होI मेरे बच्चों की माँ  हो और मै तुमसे सच्चा प्यार करता हूँ I जहाँ तक फ़ोटो की सच्चाई की बात है तो तुम्हारे दाँत खरगोश जैसे है जो हँसते समय लिज्जत पापड़ का विज्ञापन देते नजर आते है और यह जो तुम पँद्रह सालों से लगातार डाई कर रही हो और आज तुमने अचानक बिना डाई किये हुए फोटो डाले हैं तो ऐसा लग रहा है मानों काले मेघों के बीच रह रहकर चमचमाती बिजली कड़क रही हैI

बाहर से जब कोई आवाज नहीं आई तो मैंने धड़कते हुए दिल से कुंडी की तरफ देखाI

कुंडी ठीक से बंद थीI

मैंने अंदर से ही पूछा-" तुम सुन रही हो नाI"

मेरी पत्नी जिसने कभी मैदान छोड़ कर जाना सीखा ही नहीं था , बोली-"सब सुन रही हूँ..थोड़ा और बताइयेI"

आवाज में गंभीरता का पुट था पर मेरे पिटने के आसार नहीं थे इसलिए मेरी हिम्मत बढ़ी और मै बोला-"तुम्हारी आँखों के नीचे काले घेरे हैं जिन पर अगर तुम खीरा रखो तो घेरे मिट जाएँगेI चेहरे पर हल्दी और शहद लगाने से थोड़ी लुनाई भी आ जायेगी और यह जो तुमने मुँह के ऊपर पांच अलग अलग तरह की नेल पॉलिश लगाकर उँगलियाँ रखी हुई है वह मुझे इंद्रधनुष की याद दिला रही हैI और अगर तुम रोज़ाना चार किलोमीटर टहलो तो तुम्हारा कमरा मेरा मतलब है कमर ...."

बात पूरी होने से पहली ही पत्नी दहाड़ी -"चेहरे की सेल्फ़ी में तुम्हें कमर कहाँ से दिख रही हैI"

और इसके साथ ही दरवाज़े पर उसके मजबूत हाथों की थाप सुनाई दी

मै तुरँत पलंग के अंदर घुस गयाI

दरवाज़ा खोलो....

नहीं..कभी नहीं....

अरे, खोलो तो ...मुझे मोबाइल चाहिए

यह सुनकर मै पलंग के अंदर से निकला और मैने धीरे से पूछा, क्यों चाहिए मोबाइल

मेकअप करके सेल्फ़ी लेनी है..बाहर से पत्नी के खिलखिलाने की आवाज़ आई

और मैने कुंडी खोलकर अपना हाथ दरवाज़े के बाहर बढ़ा दियाI

 

डॉ. मंजरी  शुक्ला