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साहित्य और फिल्मे















हेल्लो दोस्तो! आज मै आपके सामने हाजिर हूँ एक नए लेख के साथ । आज हम बात करेंगे साहित्य और उनसे जुड़ी फिल्मों के बारे में । साहित्य और फ़िल्मे दो अलग विधाए होंने के बावजूद भी एक दूसरे में कई समानताएँ होती है । दोनो मनोरंजन के साथ साथ समाज का दर्पण भी है। दोनो अपने समय के समाज में चल रही दूषित तत्व को लोगो के सामने उजागर करते है । जब भी किसी साहित्य के रचना पर कोई फ़िल्म बनती है तो लोगो के लिए वे सोने पे सुहागा होता है क्योंकि साहित्य कि अपनी एक सीमा है , वे केवल शिक्षित वर्ग तक ही सीमित होती है पर फिल्मों की कोई सीमाए नही होती वे शिक्षित और अशिक्षित दोनो वर्गो के लिए होती है । जब कोई साहित्य रचना फिल्म का स्वरूप ले लेती है तो उसमें जो मूल संदेश होता है वे अधिक से अधिक लोगो तक पहोचता है और रचना सफल हो जाती है।

हॉलीवुड एवं भारतिय सिनेमा में समय समय पर साहित्य की रचनाओ पर फिल्मे बनी है । भारतिय सिनेमा में शुरुआती दौर में साहित्यक कृति पर कई फिल्में बनी पर कुछ ही फिल्मे सफल हुई और बाकियो का हश्र देखके फ़िल्मकारो ने साहित्य पर फिल्में बनाना ही छोड़ दिया , पर बीच बीच में एक दो फिल्में साहित्य पर आ ही जाती है । हॉलीवुड में बॉलीवुड से एकदम विपरीत हुआ वहां पर आज भी ज्यादातर फिल्मे किसी न किसी उपन्यास या कहानी पर आधारित होती है और वे प्रचलित और व्यवसायीक रूप से कामयाब भी होती है जैसे “जे .के. रोवलिंग की हैरी पॉटर ,सुजान कॉलिन्स की हंगर गेम्स, स्टेफेनि मेयर की ट्वाईलाईट, ” आदी फिल्मे बॉक्स ऑफिस एवं प्रेक्षकों के दिल पर ग़हरी छाप छोड़ जाती है, यहां तक कि आज कल सबसे प्रचलित स्टूडियो ” मार्वेल सिनेमैटिक यूनिवर्स ” भी बच्चो की एक कॉमिक साहित्य पर ही फिल्मे बना रहा है और आने वाले वक़्त में न जाने कितनी और फ़िल्म बनायेगा ।

भारतिय सिनेमा में हिंदी साहित्य के साथ साथ विदेशी साहित्य पर भी फिल्मे बनी जिनपर एक नजर डालते है । सबसे पहले उपन्यास सम्राट “प्रेमचंद ” एवं उपन्यास पर बनी फिल्म के बारे मे बात करते है . उनके कई रचनाओं पर फ़िल्म बनी पर सारी फिल्मे फ्लॉप रही,पर उनके मृत्यु के कई वर्ष बाद सत्यजीत राय ने ” शतरंज के खिलाड़ी ” पर फ़िल्म बनाई जो बेहद ही चर्चित रही । इसके बाद 1981में ” सैयाद्री ” पर भी सत्यजीत राय ने फ़िल्म बनाई इसमें मुख्य भूमिका ‘ स्मिता पाटिल और स्वर्गीय ओम पुरीजी ‘ ने निभायी थी । यह फ़िल्म भारतीय जाती व्यवस्था पर तमाचा मारती हैं।फ़िल्म में छुआछूत की बुराई साफ नजर आती है।

लेखिका अमृता प्रीतम की बहुचर्चित एवं सफल उपन्यास ” पिंजर ” पर भी 2003 में चंद्रप्रकाश द्विवेदी जी ने उसी नाम पर फ़िल्म बनाई जिसमें मुख्य भूमिका में ‘ उर्मिला मातोंडकर, मनोज वाजपेयी और प्रियांशु चटर्जी ‘ थे यह उपन्यास बटवारे के समय में हुए सामाजिक उथलपुथल प्यार और नफरत और उस समय महिला की व्यथा को बताते है और फ़िल्म भी यह सारे तत्वों को दिखाने में सफल रही और लोगो ने भी इसे सराहा । बटवारे की ही बात करे तो भीष्म साहनी द्वारा लिखित बटवारे के दर्द को बयां करने वाला कालजयी उपन्यास “तमस” पर भी गोविंद निहलानी ने इसी नाम से फ़िल्म बनाई और इसपर सीरियल भी बनी और उपन्यास की तरह दर्शकों पर गहरा प्रभाव डाला।

भारतीय सिनेमा केवल हिंदी साहित्य जगत तक ही सीमित नही रहा बल्कि विदेशी लेखको के उपन्यास और उनके द्वारा लिखे नाटको पर भी फ़िल्म बनी सबसे पहले बात करते है शेक्सपियर की तो उनके कई नाटको पर भी फ़िल्म बनाई गई जैसे विशाल भारद्वाज ने ” ओथेलो,मैकबेथ और हैमलेट पर आधारित ओमकारा, मक़बूल और हैदर ” बनाई जो सफलता के साथ साथ लोको के दिल जीतने में भी कामयाब रही वही पर संजय लीला भंसाली ने “रोमियो और जूलियट पर राम लीला ” बनाई जो कॉन्ट्रोवर्सी के साथ साथ बहुत सफल भी हुई और वही विशाल भारद्वाज ने रस्किन बांड की कहानी “सुजैना सेवन हसबैंड पर सात खून माफ ” और रस्किन बांड की एक और उपन्यास ” द ब्लू अम्ब्रेला ” पर भी उसी नाम पर फ़िल्म बनाई।

अंग्रेजी साहित्य पर भी भारतीय सिनेमा जगत ने कई फिल्में बनाई पर जो सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है वे आर.के नारायण की ” दि गाइड ” पर आधारित सदाबहार कलाकार देव आनंद साहब की 1965 में आई गाइड फ़िल्म। इस फ़िल्म ने भारतीय सिनेमा में कई झंडे गाड़े और कई पुरस्कार अपने नाम किए और आज भी यह बेहतरीन फिल्मो मै शामिल है ।और अनुराग कश्यप ने एस. हुसैन ज़ैदी की ” ब्लैक फ्राइडे ” जो मुम्बई बोम्ब ब्लास्ट पर आधारित थी उस पर 2007 में उसी नाम पर फ़िल्म बनाई और सफल भी रही।

फिल्मकारों को अपनी और आकर्षित करने वाला कोई उपन्यास है तो वे है शरतचंद्र द्वारा लिखित ” देवदास ” इस कालजयी रचना पर विविध भाषाओं में अबतक 13 फिल्मे बन चुकी है और अच्छी बात यह है कि वे सारी फिल्में अपने समय में सफल रही यहां तक कि इनके संवाद भी लोगो को मुहजुबानी याद हो गये थे । इसी तरह शरतचंद्र की एक और रचना “परिणीता” पर भी एक से अधिक बार फिल्मे बनी है और लोगो की उम्मीदों पर खरी उतरी है।

आज के समय में किसी साहित्य रचनाकार के कृति पर ज्यादा से ज्यादा फ़िल्म बन रही है तो वे है चेतन भगत ।चेतन भगत को भारतीय सिनेमा का स्टीफेन किंग कहना गलत नही होगा क्योंकि चेतन भगत की 20 20 रेवोल्यूशन को छोड़कर बाकी सभी रचनाओं पर फिल्मे बनी ।सबसे पहले अतुल अग्निहोत्री ने ” वन नाइट इन कॉल सेंटर ” पर हेल्लो नाम की फिल्म बनाई पर वे बॉक्स आफिस पर बुरी तरह पिट गई ।पर जब राजकुमार इरानी ने ” फाइव पॉइंट समवन ” पर थ्री इडियट्स नामक फ़िल्म बनाई और तब इस फिल्म ने बोक्स आफिस पर अपने सफलता के जंडे गाड़े और पहली 200 करोड़ क्लब वाली फिल्म बनी ।इसके बाद तो कई फ़िल्मकारोने चेतन भगत की सारी उपन्यास पर फ़िल्म बनने लगी ” थ्री मिस्टेक ऑफ माई लाइफ ” पर अभिषेक कपूर की काई पो छे,” 2 स्टेट ” पर इसी नाम पर फ़िल्म बनी और हाल में ही मोहित सूरी ने ” हाफ गर्लफ्रेंड्स ” पर फ़िल्म बनाई और यह सारी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर हिट साबित हुई।

आज के सोशल मीडिया के युग में साहित्य के प्रति बहोत ही कम लोगो में रुचि देखने को मिलती है।अब हम विशेष दिन या स्कूल एवं कॉलेजों में भाषा के विषय के सिलेबस में ही देखने को मिलते है और ऐसा ही चलता रहा तो साहित्य की विशेषता या महत्व कही कम या विलुप्त न हो जाये। और साहित्य की धरोहर को बचाने का एक मात्र साधन कोई है तो वो है फिल्मे क्योकि जब भी कोई रचना पर फिल्मे बनती है तो लोग उस रचना की तरफ आकर्षित होते है और उस रचना को पढ़ते है क्योंकि फ़िल्म में कई बदलाव एवं कई भागों को हटा दिया जाता है इस लिए लोग उस रचना को पढ़ते है और इस तरह रचना लोगो तक पहोचती है ।