Shrungaar Bhakt in Hindi Short Stories by Ajay Amitabh Suman books and stories PDF | श्रृंगार भक्त

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श्रृंगार भक्त

(१)

श्रृंगार रस

इस कथा के दो पात्र है . एक भक्ति रस का उपासक तो दूजा श्रृंगार रस का उपासक है. दोनों के बीच द्वंद्व का होना लाजिमी है. ये कथा भक्ति रस के उपासक और श्रृंगार रस के उपासक मित्रों के बीच विवाद को दिखाते हुए लिखा गया है.
ऑफिस से काम निपटा के दो मित्र कार से घर की ओर जा रहे थे । शाम के करीब 6.30 बज रहे थे । मई का महीना चल रहा था । गर्मी अपने उफान पे थी । शाम होने पे भी गर्मी से कोई निजात नहीं थी । बाहर धुआं और धूल काफी था इसलिये कार के विडोव-मिरर को बंद करके कार ड्राइव कर रहे थे । ए.सी. तेज रखने पे भी गर्मी पे असर बेअसर साबित हो रही थी । दोनों मित्र पीकू फ़िल्म पे हल्की फुल्की बात करते हुए जा रहे थे ।


रेड लाइट पे कार रुकी । इतने समय में स्कूटी पे तीन नवयुवतियां कार के विडोव-मिरर के ठीक बगल में आकर रुकी । तीनों नवयुवतियों ने वेस्टर्न पोशाक पहन रखे थे । उनकी पोशाक का वर्णन करके थर्ड क्लास के लेखक की संज्ञा का पाने से बेहतर है क़ि ये जिम्मेवारी पाठकों की कल्पना शक्ति पर छोड़ दिया जाए। कुल मिला के ये कहना है कि उन युवतियों ने ऐसे पोशाक धारण कर रखे थे कि उनका अंग अंग दृष्टिगोचित हो रहा है । एक बात और इन नवयुवतियों ने हेलमेट भी नही डाल रखे थे अपने सर पे। ऐसा लगता था इनको ट्रैफिक नियमों की कोई परवाह नहीं थी, या यूँ कहे कि ट्रैफिक के रखवालों की नजर में ये अपवाद थी ।


जो मित्र कार ड्राइव कर रहे थे उन्होंने विडोव-मिरर नीचे कर दिया । नवयुवतियां मुस्कुराने लगी । नयनों ही नयनों में वार्तालाप होने लगे। एक ओर खूबसूरत प्रतिमाएं और दूसरी और खूबसूरती का पारखी । प्रतिमाओं ने अपनी खूबसूरती के एक्स्प्रेशन में कोई कमी नहीं छोड़ी तो कलाकार ने भी अपनी प्रशंसा के भाव में कोई कमी नहीं छोड़ी । हलाकि दूसरे मित्र को को ये नैनों के वार्तालाप रास नहीं आ रहे थे । खैर रेड लाइट ग्रीन हो गयी और कार आगे बढ़ चली। कलाकार मित्र ने कहा भगवान ने क्या खूबसूरती दी है इन नव युवतियों को । दूसरे मित्र ने कहा कि मै तो कालीभक्त हूँ भाई , मुझे ये सब पसंद नहीं ।


कलाकार मित्र ने कहा भाई मै तो कालिदास का भक्त हूँ भाई ,कालिदास की नजरें रखता हूँ । जहाँ खूबसूरती दिखाई पड़ती है , प्रशंसा का भाव अपने आप उभर आता है । “चुनाव नहीं कुछ भी नहीं ,सब कुछ स्वीकार्य है” कालीभक्त ने पूछा अगर सबकुछ स्वीकार्य है तो क्या आप जहर भी खा लेंगे। कालिदास भक्त ने कहा भाई जहर भी तो लेते हीं है । ये धुआं , ये प्रदुषण , क्या है ये । सबकुछ स्वीकार्य है , पर मर्यादा में । काली की भक्ति भी स्वीकार्य है पर रामकृष्ण परमहंस की तरह नहीं , उनकी तरह आध्यात्मिक शक्ति नहीं मेरे पास और खूबसूरती की प्रशंसा भी स्वीकार्य है पर कालिदास की तरह मेघदूत नहीं लिख सकता। कालिदास ने कहा:-काली की भक्ति और खूबसूरती के प्रति आसक्ति दोनों का सम्प्रेषण मर्यादा में हों तो ही ठीक । भाई मेरे पास अपनी मर्यादा है और मैं मर्यादित रहना हीं पसंद करता हूँ.।


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