chidiya in Hindi Short Stories by Kazi Taufique books and stories PDF | चिड़िया

Featured Books
Categories
Share

चिड़िया

मै शहर के खराब  वातावरण से काफी त्रस्त था। जिस के कारण मैने अपना निवास स्थान शहर से दूर बनाया था। वहां की हवा बहुत साफ़ थी। वहां की हवा वहां का जल सबकुछ बहोत अच्छा था।उस स्थान की प्रदूषण मात्रा काफी कम थी। वहां का वातावरण मेरे लिए वातानुकूल था। वहां की हवा जब भीतर जातीं तो ऐसा लगता मानो आप स्वर्ग मे है।  आजकल के शहरों मे प्रदूषण की बढ़ती मात्रा ये काफी चिंता का विषय है। जिस तरह शहरों से वृक्ष काटने मे वृद्धि हो रही हैं। ऐसे मे वह दिन  दूर नहीं जब लोग शहर छोड़ गाँव की तलाश करेंगे ओर उन्हे गाँव नहीं मिलेंगे क्यो की वह वृक्ष को समाप्त कररहे है और वृक्ष है तो  गाँव है। और वृक्ष के बिना हमारा जीवन मुमकिन नहीं है। हा तो मै बात कर रहा था उस स्थान जहाँ मैने अपना निवास बनाया था। बहुत शांत और मनमोहक स्थान था। और मेरे निवास के ठीक सामने एक पीपल का पेड़ था और उस पेड़ एक छोटासा संसार बसा था। उस पेड़ एक सुदंर  चिड़िया ने अपना घोंसला बनाया था। और उसके कुछ अंडे भी दिये थे। कुछ दिनों बाद वह मेंरे आंगन मे आनें लगी कभी दाने चुंगती  कभी सुखी काडी  पतियों को अपनी चोंच से पकड़ ले जाती। शायद घोंसले के लिए ले जाती होंगी। फिर वो रोज आने  लगीं और मैं भी उसे बड़े चाव से उसे दाने डालता। वह रोज सुबह  आजाती और  अपनी मधुर आवाज़ में मुझे आने का संकेत देती। यह मेरी आदत और उस का व्यवहार बन गया था। वह रोज सुबह सुबह आजाती और मैं भी उसे निहारता उस चिड़िया से मंझे एक लगाव सा हो गया था। उस के स्वभाव के कारण या उस की सुंदरता के कारण। वह देखने में दुर्लभ प्रजाति की लगतीं थी। उस की सुंदरताा का मै मुुुुरीद  हो गया था। उसके लाल नीले और सुनहरे रंग के पंख। छोटी आखें लेकिन चमकदार और उस के सिर पर कलगी थी  मानों वो सोने पे सुहागा लगतीं थी। बहुत सुंदर थी वह चिड़िया। कुछ दिनों बाद उस चिड़िया उन अंडों से बच्चे निकल आए और वो भी मेरे आंगन के बिना बुलाये मेहमान बन गए। रोजाना मेरे आंगन में चिड़ियों की सेना जम जाती। मुझे उस सेना से हमारी सेना की तरह सुरक्षा तो नहीं मिलती थी मगर उन से सुकून मिलता था। मैं उन्हे दाने डालना नहीं भूलता मेरे दिन की शुरुआत उन्ही से होतीं। छुट्टियों में मै सह परिवार पर्यटन के लिए गया था। वहां मुझे कुछ सप्ताह लगे थे। और जब मैं वापस आया तो चकित था यह देखकर की वह चिड़ियों का संसार तुट चुका था। पैसों के लोभियों और पर्यावरण के दुश्मनों ने उस वृक्ष को काँट दिया था जिस पर उस चिड़िया ने अपना घोंसला बनाया था। मैं काफी दुखी हो गया था। दो कारणों से एक चिड़िया के जानें से और पर्यावरण के विनाश की गति से। और आज वो गति ओर भी तेज़ होगई। मैं काफी दिनों उस चिड़िया की प्रतीक्षा की। शायद घर छीन जानें  के कारण उदास होकर चली गयी।